गुरुवार, 27 अगस्त 2015

आत्मनिर्भरता और आजादी के सीधा कनेक्शन को कब समझेंगी लड़कियां?

शिव ओम गुप्ता
लड़कियां न ही अबला रहेंगी और न ही लड़कों से कमजोर रहेंगी, जिस दिन लड़कियां आत्मनिर्भर रहना सीख लेंगी?

क्योंकि एक महिला से जुड़े तमाम अपराध मसलन दहेज, शोषण और दोयम रवैये कड़ी उसकी दूसरे पर निर्भरता से जुड़ी हुई है।

चाहे वह निर्भरता पिता पर हो, जो दहेज का जन्मदाता है, चाहे निर्भरता पति पर हो, जो तमाम शोषण का जन्मदाता है, चाहे निर्भरता परिवारिक हो, जो महिला को आर्थिक और सामाजिक मोर्चे पर दोयम बनाती है।

चूंकि महिला आत्मनिर्भर नहीं है, कमाती नहीं है, परिवार के खर्च में उसकी समान सहभागिता नहीं है, तो फैसलों पर उसकी राय भी मायने रखी जाती हैं और न ही सुनी जाती है।

कहने का मतलब है कि महिला की सक्षमता और उसकी आजादी का कनेक्शन आत्मनिर्भरता से सीधा जुड़ा हुआ है, जो इस अर्थ कनेक्शन के अर्थ को समझ गयी है, वो अपनी ही नहीं, दूसरों की जिंदगी को भी संवार रही है।

लेकिन समस्या यह है कि महिलाएं आज समान अधिकार और समान व्यवहार की बात तो करती हैं, लेकिन वे इसके लिए जरुरी आत्मनिर्भरता के अर्थ कनेक्शन को समझने की कोशिश नहीं करती हैं।

प्रियदर्शन की फिल्म खट्टा-मीठा का एक डॉयलाग है, जिसमें कुलभूषण खरबंदा अपने नकारे बेटे से कहते हैं,  "जिनकी जेबों में पैसे न हों, वे अधिकारों, आदर्शों, नैतिकता की बातें न करें"

आत्मनिर्भरता और सम्मान का कनेक्शन सिर्फ लड़कियों के अधिकारों और उनकी समानता से नहीं जुड़ा है, यही बात लड़कों पर लागू होता है।

यानी पारिवारिक मसलों पर बोलने का हक उन्हीं लड़कों को मिलता है, जो आत्मनिर्भर हैं या पारिवारिक खर्च में योगदान देते हैं और जो लड़के परिवार पर निर्भर होते हैं, उनको भी अधिकारों की लड़ाई हारनी पड़ती है।

#Women_Right #Independency #Money_Matter #Equality #Morality

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