गुरुवार, 27 अगस्त 2015

दिल्ली पब्लिक ट्रांसपोर्ट में घुसते ही लोग भूल जाते हैं कि वो इंसान भी हैं?

राजधानी दिल्ली में ट्रैफिक की समस्या को सुलझाने के लिए कार चालकों को दोषी ठहराया जाता है, लेकिन मेट्रो रेल के बावजूद दिल्ली का पब्लिक ट्रांसपोर्ट मसलन बस, ऑटो, टैक्सी सेवाएं बद से बदतर हालत की हैं।

कई बुद्धिजीवियों की सलाह के बाद बढ़ती ट्रैफिक में कमी लाने के लिए कार पूलिंग की बाते की जाने लगी, लेकिन डीटीसी बसों की फ्रीक्वेंट सर्विस नहीं होने और अब मेट्रो फीडर बसों का ब्लू लाइन बसों में तब्दील हो जाने से दिल्ली की पब्लिक मजबूरी न हो तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट लेना पसंद नहीं करती है।

ब्लू लाइन बस सर्विस याद है न? जिसमें पब्लिक ट्रांसपोर्ट से चलने वाले बसों में भेड़-बकरी की तरह ठूंसे जाते थे, लेकिन अब उसकी कमी मेट्रो फीडर पूरी कर रही है।

किसकी हिम्मत होगी जो पब्लिक ट्रांसपोर्ट को यूज करेगा? इसलिए न चाहते हुए लोग मजबूरी में पर्सनल कारें यूज करते है।

भले ही कार लेकर चलने से दिल्लीवाले खुद और दूसरों को जाम में घंटों फंसा कर रखते है, लेकिन वे कम से कम खुद को इंसान तो महसूस करते हैं वरना दिल्ली पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सवार होते ही लोग भूल जाते हैं कि वे इंसान भी हैं।

आम आदमी की सरकार के नाम से दिल्ली के मुख्यमंत्री बन बैठे केजरीवाल को राजनीति करने से फुरसत मिले तो वो कुछ करें? उन्हें तो बस प्रधानमंत्री बनना है इसलिए गुजरात में आरक्षण का आग फैलाने के बाद राजनीति करने बिहार घूम रहें हैं।

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