शिव ओम गुप्ता |
क्या यह असहिष्णुता का नाटक और अवॉर्ड वापसी की ड्रामेबाजी महज एक राजनीतिक खेल था, जो बिहार के लोगों को मूर्ख बनाने के लिए चक्रव्यूह की तरह रचा गया था?
लेकिन जिन प्रबुद्ध कवि, लेखक, वैज्ञानिक और कलाकारों ने असहिष्णुता की दुहाई देकर अवॉर्ड वापसी की ड्रामेबाजी की थी, उनको पढ़ने वाले प्रशंसक/पाठक, सुनने वाले श्रोता और देखने वाले दर्शकों को हाय-हाय करके सड़को पर बाहर नहीं आना चाहिए!
क्या ऐसे प्रबुद्धजनों से उनके प्रशसंकों, पाठकों को खुद के राजनीतिक बलात्कार का हिसाब नहीं मांगना चाहिए, जिन्होंने किसी एक पार्टी विशेष को फायदा पहुंचाने के लिए अपना ईमान, जमीर, और आत्मा तक गिरवी रख कर देश में असहिष्णुता का राग अलापा और अवॉर्ड वापसी की ड्रामेबाजी की?
क्योंकि अगर ये सभी प्रबुद्ध लोग सही थे तो बिहार चुनाव से पहले असहिष्णुता का राग गाकर अवॉर्ड वापस करने वाले एकाएक बिहार चुनाव का परिणाम आते ही चुप क्यों हो गये, लेकिन माल्दा में हिंसा, असहिष्णुता के हो रहे नंगे नाच पर इनके कानों में जूं तक नहीं रेग रहा?
कोई भी अवॉर्ड वापसी के लिए निकल रहा, कोई भी असहिष्णुता की बात करते हुए देश छोड़ने की बात नहीं कर रहा, कोई भी असहिष्णुता पर बयानबाजी की नहीं सूझ रही? सब चुप है और माल्दा में असहिष्णुता का नंगा देखकर खोल में घुस गये है।