शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

असहिष्णुता की बीन जबरन बजाई और साजिशन सुनाई जा रही है?

कल रात एनडीटीवी प्राइम टाइम पर रवीश कुमार के शो पर तथाकथित असहिष्णुता पर जारी बहस पर तब पानी पड़ गया जब लोकगायिका मालिनी अवस्थी की एंट्री हुई।

हिंदुस्तान की जीवनशैली में सहिष्णुता के विद्यमान होने और देश में असहिष्णुता को लेकर लेखकों के बाद अब फिल्मकारों द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार वापसी को राजनीति प्रेरित बताकर मालिनी जी ने नि:संदेह सरेआम सबकी पोल खोल दी।

जनसत्ता के पूर्व संपादक ओम थानवी तो शर्म से पानी-पानी हुए जा रहे थे कि असहिष्णुता के लिए उनकी बनी बनाई झूठी हवा बहस के अंत में हवाहवाई हो गई।

#Intolrance #Media #Congress #Rumors #Nexes #Modi #DelibrateAction

बुधवार, 28 अक्तूबर 2015

क्यों दिल्ली को मूर्ख पर मूर्ख बना रहे हो केजरीवाल?

तुम अच्छी तरह जानते हो केजरीवाल कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली कभी भी पूर्ण प्रदेश का दर्जा हासिल नहीं कर सकती है, बावजूद इसके तुमने झूठे वादों पिटारा खोलकर दिल्लीवालों को मूर्ख बनाकर वोट ले लिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री बन बैठे और अब अपनी नाकामी छुपाने के लिए दिल्ली पुलिस की अधीनता हासिल करने का स्वांग रच रहे हो?

केजरीवाल बंद करो अपनी नौटंकी, क्योंकि दिल्ली की जनता समझ चुकी है कि उनसे भारी गलती हो चुकी है और अब वह तुम्हारे बेफिजूल के झांसे में नहीं आने वाली है।

मियां केजरीवाल, पहले चीनी, प्याज की बिक्री और खरीद घोटाले का हिसाब दो और खुद को पाक साफ होने की सफाई दो? एक तो चोरी और उस पर पुलिस पर भी अधिकार चाहिए, फुद्दू समझ रखा है क्या? काम कर ले!
#Kezriwal #AAP #DelhiPolice #Modi #RapeCapital

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2015

Intolerance (असहिष्णुता) कांग्रेसी तमाशा है, हार का फस्ट्रेशन है।

कांग्रेस जब जब चुनाव हारती है तब तब मुस्लिम-हिंदू को एक दूसरे को भिड़ाने की कोशिश करती रही है। बात आजादी से पहले की करें या बाद करें।

जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री बनना चाहते थे इसीलिए हिंदुस्तान हिंदू-मुस्लिम में बांट दिया गया और आजादी के बाद जब जब कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई है वह हिंदू-मुस्लिम को भिड़ाने वाले वारदात को अंजाम देती आई है।

आज देश में हिंदू-मुस्लिम असहिष्णुता का जो बकवास हो रहा है, इसके पीछे भी कांग्रेस की साजिश है। देश में माहौल बिगाड़ने के लिए कांग्रेस ऐसे प्रायोजित कार्यक्रम कर रही है, ताकि मौजूदा सरकार को बदनाम कर सत्ता के नजदीक पहुंचा जा सके।
#Congress #Frustration #Intolrance #Hatred #Nexes #Dadri #Dalit

बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

शिवसेना पाकिस्तान विरोधी नहीं, आतंकवाद विरोधी है?

शिव ओम गुप्ता
शिवसेना के पाकिस्तान के प्रति परंपरागत रवैये के लिए बीजेपी को दोषी ठहराने और इसको देश में असहिष्णुता बढ़ने की बात कहने मूर्खता ही महामूर्खता की श्रेणी में गिने जायेंगे ।
क्यों? क्योंकि शिवसेना सत्ता में रही हो या न रही हो, उसने हमेशा पाकिस्तान और पाकिस्तानियों के खिलाफ ही अपनी राजनीतिक साख और छवि बनाई है और अगर वोट देकर महाराष्ट्र की जनता ने उन्हें अपना प्रतिनिधि बनाया है तो शिवसेना के विरोध को जनता का विरोध का विरोध समझना चाहिए ।
शिवसेना के इतिहास पर थोड़ा अपना भेजा फ्राई की कोशिश करेंगे तो कांग्रेस समेत उन तमाम पार्टियों के नेताओं का मुंह काला हो जायेगा, जो शिवसेना के परंपरागत गतिविधियों को लेकर बीजेपी सरकार पर निशाना साधते बकवास कर रहीं हैं कि देश में असहिष्णुता और भाईचारा खत्म हो गया है।
अभी अंतर सिर्फ इतना आया है कि शिवसेना महाराष्ट्र की साझा सरकार में शामिल है, इसीलिए ज्यादा हो-हल्ला हो रहा है जबकि पाकिस्तानी और पाकिस्तान के खिलाफ शिवसेना ने पिचें तक खुदवा दी थीं और इतना हल्ला नहीं हुआ था और न ही तब असहिष्णुता की पीपड़ी बजाई जा रही थी।
हांलाकि शिवसेना के रवैये में थोड़ा बहुत अंतर की बात करें तो शिवसेना ने अपने पारंपरागत स्टैंड से इतर पहली बार किसी पाकिस्तानी को सपोर्ट किया है और वो हैं नोबल शांति पुरस्कार विजेता मलाला युसुफजई।
शिवसेना ने मलाला युसुफजई के भारत आगमन का स्वागत किया है, लेकिन यह खबर किसी मीडिया में नहीं हैं। सबको पता है कि मलाला युसुफजई पाकिस्तान पोषित आतंकवादियों की शिकार हुईं थी और उनके खिलाफ झंडा बुलंद किया था।

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2015

हताश कांग्रेस मीडिया के जरिये देश विरोधी गेम खेल रही है!

शिव ओम गुप्ता
कांग्रेस की दोगली और खोखली राजनीति का भयावह सच यह है कि दरबारी साहित्यकारों ने अवॉर्ड लौटाकर चुनी हुई एक लोकतांत्रिक सरकार का ही नहीं, जनादेश का अपमान किया है। कांग्रेस की साजिश का हिस्सा बनकर जनता द्वारा चुनी गई एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार के खिलाफ ये राजद्रोह कर रहें है।

असल में कांग्रेस के इशारे में हो रहे इन सारे नौटंकी में मकसद प्रधानमंत्री मोदी के विकासवादी चेहरे को उनके भगवावादी मूल पहचान में घसीट कर बदनाम करना है, जिसमें मीडियाकर्मी कांग्रेस के एक मोहरे भर की तरह इस्तेमाल हो रहें हैं।

मीडिया के सहयोग से कांग्रेस जनता में यह संदेश फैलाना की असफल कोशिश कर रहीं है कि भारत को फासीवाद की तरफ ढकेला जा रहा है, जिससे जनता को एक बार फिर मूर्ख बना कर कांग्रेस देश में सत्ता वापसी का बीज रोप सके।

मतलब, कांग्रेस वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रही है, जिस कारण देश में लगातार जहर की खेती और जहर फैलाये जा रहे हैं और असहिष्णुता और भगवाकरण की नुमाइशी चेहरे को मीडिया के चैनलों पर कालिख पोतकर लटकाया जा रहा है ताकि अगले चुनाव में सांप्रदायिक और संकीर्ण राजनीति की फसल काटी जा सके।

आप समझ गये हैं, कांग्रेस का यही प्लान है। बीजेपी पर असहिष्णुता और भगवाकरण की आरोप कांग्रेस का एक महज प्रायोजित कार्यक्रम है, जो सत्ता से बाहर होते ही कांग्रेस हमेशा करती रही है। यह कोई नई और छिपी बात नहीं है, इतिहास उठाकर देख लीजिये।

#Congress #BJP #Communal #Secular #Intolrance #AwardReturn #Modi #Media

सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

शर्म करो टाइम्स नाऊ, बंद करो आग फैलाने वाली रिपोर्टिंग शैली!

शिव ओम गुप्ता
मीडिया गैर-जिम्मेदाराना तरीके से जबरन तिल का ताड़ बनाकर खबरों को पेश कर रही है। कश्मीर में हिंदू भावनाओं को उकसाने के लिए गौ मांस की पार्टी करने वाले विधायक राशिद इंजीनियर पर स्याही फेंकने की घटना को पिछले 2 घंटे से टाइम्स नाऊ दिखा रही है।

निः संदेह ऐसा लगता है कि मीडिया मौजूदा सरकार के  खिलाफ ऐसा माहौल तैयार करने में जुटी हुई दिखती है, जिससे देश में ऐसा संदेश जा रहा है कि देश गृह युद्ध की ओर बढ़ रहा है।

मुझे कोफ्त है ऐसे मीडिया संस्थानों से जो महज टीआऱपी के लिए (बिजनेस के लिए) छोटी सी छोटी खबरों का बेहिसाब दोहन कर रहीं है ताकि लोग भड़के और उनको और टीवी कवरेज मिले।

क्या मीडिया की जिम्मेदारी नहीं है कि वह खबरों के संचयन और संपादन में समझदारी बरते और हवा के विपरीत एजेंडा आधारित खबरों को कम दिखाए, जिससे समाज में शांति बरकरार रह सके।

लेकिन टाइम्स नाऊ के कवरेज को देखकर लगता है कि टाइम्स नाऊ न केवल दंगे भड़कवाना चाहती है बल्कि दंगे की आग में हाथ भी सेंकना पसंद करती है। इंक फेंकने की घटना निंदनीय है, लेकिन आग की लपटों के साथ टीवी पर न्यूज रिपोर्टिंग की शैली उससे कम घातक नही हैं।
#TimesNow #Media #Reporting #Kashmir #Rashid #Riots

मोदी के विकासवादी मुद्दे को पीछे ढकलेने के लिए हो रहें प्रायोजित कार्यक्रम!

शिव ओम गुप्ता
देश में आजकल कांग्रेस प्रायोजित स्पांसर कार्यक्रम खूब चल रह रहें है, तो देखिये और भूल जाइये। क्योंकि न्यूज चैनलों पर दिखाये जा रहे ये स्पांसर प्रोग्राम वास्तविक नहीं, आभासी हैं, जिसके पीछे के मकसद कुछ और है।

विकास की बात को पीछे करने के लिए कांग्रेस जैसे फस्ट्रेटेड राजनीतिक दल गौमांस, असहिष्णुता और भगवाकरण की झूठी राजनीति कर रहीं है, जिन्हें बिकी हुई चैनल्स हवा दे रहें हैं, तो ऐसे जैसे कार्यक्रमों को ऐसे झेले जैसे अपनी मनपसंद प्रोग्राम देखने के लिए विज्ञापन झेलना पड़ता है।

और ज्यादा अच्छा होगा कि तथाकथित क्रांतिकारी चैनलों से कुछ दिनों के लिए तौबा कर लें, क्योंकि प्रायोजित कार्यक्रम तब तक ही चलते हैं जब तक टीआरपी है, तो मनोरंजन चैनल की ओर ट्यून कीजिये और इनटोलरेंस की आभासी की दुकान बंद करने में मदद कीजिये!
#Intolrance #Congress #Hindu #Modi

रविवार, 18 अक्तूबर 2015

असहिष्णुता और धर्मनिरपेक्षता की आड़ में स्वार्थ प्रेरित रायता फैला रहें हैं साहित्यकार!

शिव ओम गुप्ता
सहिष्णुता ही हर हिंदू और हिंदुस्तानी की पहचान है। हां राजनीति के लिए नेताओं ने धर्म और धर्मनिरपेक्षता का चोचला भारतीय संविधान में ले आये और सब मिल कर मलाई काट रहें हैं।

भरोसा नहीं तो आंकड़े उठाकर देख लीजिये? क्योंकि हमेशा सच बयां करते हैं। हिंदू और हिंदुत्व की सहिष्णुता का प्रमाण है कि हिंदू_मुस्लिम आधार पर वर्ष 1947 में हुए भारत_पाकिस्तान के बंटवारे के बाद दोनों देशों में वर्ष 1951 में हुए पहली #जनगणना सारी कहानी बता देते हैं।

दोनों देशों द्वारा जारी किये गये वर्ष 1951 की जनगणना के मुताबिक पाकिस्तान में हिंदू_आबादी कुल पाकिस्तान की 12.9 फीसदी थी जबकि इसी वर्ष भारत में मुस्लिम_आबादी कुल हिंदुस्तान की आबादी 9.8 फीसदी थी।

लेकिन वर्ष 2011 में हिंदुस्तान के जनगणना के आंकड़े और वर्ष 1998 में पाकिस्तान के आखिरी जनगणना के आंकड़े हिंदुओं की सहिष्णुता और मुस्लिमों की असहिष्णुता को पोल खोल देते हैं।

पाकिस्तान में वर्ष 1998 में हुए आखिरी जनगणना के मुताबिक पाकिस्तान में हिंदू आबादी 14.2 से घट कर महज 1.6 फीसदी रह गई, जो वर्ष 1951 में कराये गये पाकिस्तानी जनगणना के घोषित हिंदू आबादी से करीब 13 फीसदी कम हो गया।

जबकि वर्ष 2011 में हिंदुस्तान में आखिरी जनगणना के जारी रिपोर्ट के मुताबिक हिंदुस्तान में मुस्लिम आबादी 9.8 फीसदी से बढ़कर 12.9 फीसदी पहुंच गई है, जो वर्ष 1951 में कराये गये हिंदुस्तान की पहली जनगणना के घोषित आबादी से 3 फीसदी से अधिक बढ़ा है।

इन आंकड़ों की रोशनी में अब आप तय कर सकते हैं कि हिंदू और हिंदुस्तान कितना सहिष्णु और भाईचारा प्रेमी है। खुद तय कीजिये कि कौन सहिष्णु है और कौन असहिष्णुता के नाम की राजनीति करते आ रहें हैं और सत्ता की मलाई काटते रहें हैं।

ये आंकड़े उन दोगले नेताओं और साहित्यकारों के मुंह पर तमाचा मारता है, जो तथाकथित सेकुलरिज्म (धर्मनिरपेक्षता) की आड़ में झूठ और धोखे की राजनीति करके धार्मिक उन्माद को हवा देते रहें हैं।

देश में धार्मिक असहिष्णुता ने नाम पर जो झूठ फैलाकर हिंदू-मुस्लिम के बीच उन्माद फैलाकर राजनीतिक रोटियां सेंकी जा रही है, उनको जबाव उन्हें ही देना होगा जिनको आजादी के बाद से कांग्रेस समेत पार्टियां मूर्ख बनाते आ रहें हैं और उनका वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करती रहीं हैं ।
#Intolerance #Secularism #Pakistan #Hindustan #Congress #Modi #BJP 

शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2015

मुझे मोदी भक्त कहें परवाह नहीं? पर थोड़े अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाएं?

शिव ओम गुप्ता
प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने से पूर्व से नरेंद्र मोदी की छवि एक प्रगतिमूलक और विकासवादी सोच रखने वाले और अपनी कथनी को करनी में तब्दील कर दिखाने वाले नेता के रुप में मशहूर थी। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने के लिए वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले कितने अग्निपरिक्षाओं से गुजरना पड़ा यह किसी से छिपा नहीं है।

सबका साथ और सबका विकास की सोच को आगे रखकर चलने के बावजूद नरेंद्र मोदी को कांग्रेस समेत उन सभी भयाक्रांत पार्टियों के बेबुनियाद और फिजूल आरोपों-विरोधों का ही सामना नहीं करना पड़ा, बल्कि अपने ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के उत्कंठा प्रेरित प्रतिरोध भी झेलना पड़ा।

बावजूद इसके नरेंद्र मोदी अडिग रहे और देश की जनता ने मोदी के विकासवादी सोच पर भरोसा किया और उन्हें भारी बहुमत देकर प्रधानमंत्री पद पर बैठा दिया, क्योंकि देश की जनता कांग्रेसी डर और विकास की डोर के अंतर को अच्छी तरह समझ गई थी।

बगैर किसी ठोस आधार के गुजरात दंगे में नरेंद्र मोदी के दोषी होने का दुष्प्रचार फैलाकर
कांग्रेस ने मोदी को लगातार राष्ट्रीय राजनीति से दूर रखने की कोशिश की, लेकिन देश के सर्वोच्च न्यायालय से सभी आरोपों से बरी होकर और क्लीन चिट मिलने के बाद मोदी खरे सोने की तरह तप कर न केवल बाहर निकले बल्कि कांग्रेस के झूठ, कपट और डराने वाली राजनीति को परास्त कर देश के प्रधानमंत्री मोदी भी बने।

प्रधानमंत्री पद पर बैठने से पूर्व और बैठने के बाद से ही 'सबका साथ और विकास' की सोच को ही आगे रखकर चलने वाले नरेंद्र मोदी ने 18 महीने के अपने कार्यकाल में वह कर दिखाया, जो पहले कोई प्रधानमंत्री नहीं कर पाया, लेकिन इस बीत कभी भी सांप्रदायिक राजनीति का समर्थन नहीं किया और बार-बार खुद मुखर विरोध किया है।

लेकिन लगातार मोदी की विकासवादी छवि चमकने और 'सबका साथ और सबका' विकास नारे की स्वीकार्यता बढ़ने से मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करने वाली पार्टिया कांग्रेस-सपा समेत करीब सभी विपक्षी पार्टियां हैरान-परेशान हो गई हैं, क्योंकि मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले और बाद से वे लगातार हार दर हार झेल रहीं हैं।

आंकड़ें भी कहती हैं लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत से जीत के बाद प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता में लगातार वृद्धि हुई है, जिसके बाद बीजेपी मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में न केवल दोबारा सत्ता हासिल करने में कामयाब रही, बल्कि राजस्थान, महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा में भी पार्टी ने कांग्रेसी सरकारों को उठाकर फेंक दिया है।

कारण साफ है ऐसे में कांग्रेस और ऐसी तमाम पार्टियां घबड़ाई हुई हैं और हैरान और परेशान हैं कि ऐसे ही चलता रहा तो बिहार के बाद उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी की सरकार बनना लगभग तय है।

पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के दंगे और हाल के दादरी में हुए अति सांप्रदायिक घटनायें इस ओर इशारा कर रही हैं कि कौन क्या कर रहा है और क्यूं कर रहा है, क्योंकि अस्तित्व खो देने के संकट से जूझ रहीं है पार्टियां ही ऐसी आग को हवा दे सकती हैं और अब तक मिले तथ्य भी इसी की ओर इशारा कर रहीं हैं।

क्योंकि सांप्रदायिक दंगों के जरिये समुदाय विशेष को डराकर वोटों के ध्रुवीकरण की जरूरत उन्हें है जो अस्तित्व संकट से जूझ रहीं हैं, उन्हें नहीं जो लगातार लोकप्रियता हासिल कर रही है। सवाल है कि इन दंगों से किसका भला हो सकता है अथवा कौन लाभ लेने की कोशिश कर रहा है?

कारण स्पष्ट है! यह सारी सांप्रदायिक घटनाएं एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है, यह जानबूझ करवाये जा रहें हैं, जिसके जरिये मोदी विरोधी मोदी पर कीचड़ उछाल कर एक विशेष समुदाय वर्ग के वोटों का ध्रुवीकरण कर सकें, लेकिन क्या ये सफल होंगे?

बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हालत सबको पता है, लेकिन सुशासन बाबू नीतीश कुमार की पार्टी हालत किसी से छिपी नहीं है और चारा घोटाले में सजायाफ्ता और अभी जमानत पर रिहा चल रहें लालू यादव के महागठबंधन की हकीकत भी किसी से छिपी नहीं है।

देख सकते हैं कि बिहार विधानसभा चुनाव में
महज सत्ता पाने के लिए कैसे सांप, नेवले और छछूंदर एक बिल में बैठने को मजबूर हो गये हैं और सभी आदर्शों को ताख पर रख कर नीतीश बाबू राजद के जंगलराज और कांग्रेस के 2जी, कोलगेट और कॉमनवेल्थ घोटाले से बदनाम पार्टियों से गठजोड़ करके बिहार की जनता से एक बार फिर जनादेश मांगने को मजबूर हैं?

नोएडा के दादरी में हुई सांप्रदायिक घटना के मायने बिहार विधानसभा चुनाव मद्देनजर देखे जाने होंगे, क्योंकि मोदी विरोधी सभी पार्टियों के पास अभी कोई और दूसरा हथियार नहीं हैं, जिससे वे बीजेपी को बिहार में जीत से रोक सकें।

30 से अधिक साहित्यकारों द्वारा पुरस्कार लौटाने की कवायद भी इसी रणनीति का हिस्सा है, जिसके जरिये बिहार की जनता (मुस्लिम समुदाय) को डराया जा रहा है ताकि वे बीजेपी को वोट न करें।

मतलब, ऐसे कोमल हृदय साहित्यकार पर सवाल उठ रहें हैं, जो एक अदने से दादरी की घटना से इतने आहत हो गये हैं कि अपने-अपने पुरस्कार लौटा रहें हैं, लेकिन इनका कोमल हृदय तब जरा भी नहीं आहत हुआ जब पिछले वर्ष  मुजफ्फरनगर दंगे में 60 से अधिक लोग मौत के घाट उतार दिये गये और तब भी नहीं जब वर्ष1992 में मुंबई सांप्रदायिक दंगों में सुलग गया, जब 1984 में सिख मौत के घाट उतारे गये, और तब भी जब वर्ष 1984 में ही हजारों भोपाल गैस त्रासदी में मारे गये और कांग्रेस ने दोषी वॉरेन एंडरसन को देश से भगा दिया था।

कहते हैं राजनीति में सब जायज होता है, लेकिन साहित्यकार भी राजनीतिक पार्टियों के मोहरे की तरह इस्तेमाल होंगे, यह सोचकर ही डर लगता है। लेकिन 'लिया है तो चुकाना ही पड़ेगा' की तर्ज पर पुरस्कार पाने वाले साहित्यकार फर्ज निभाये तो कोई क्या कह सकता है। आखिर कहीं तो वफादारी निभानी ही पड़ती?

कहते हैं कि लोकतंत्र में सबको अपनी बात कहने की आजादी होती है। मतलब, फ्रीडम ऑफ स्पीच। लेकिन मोदी विरोधी (राजनीतिक नेता-बुद्धिजीवी वर्ग) बीजेपी नेताओं के फ्रीडम ऑफ स्पीच को उचित नहीं मानते?

कहने का अर्थ है बीजेपी नेता किसी भी सांप्रदायिक दंगा प्रभावित इलाके का दौरा करते हैं और कुछ कहते हैं तो गलत है और वहीं दूसरे किसी पार्टी का नेता कुछ कहते हैं और दौरा करते है तो वह 'फ्रीडम ऑफ नीड' हो जाता है? जिसकी मुखालफत कोई नहीं करता?

दादरी घटना के बाद सबसे पहले कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी पहुंचे, फिर एमआईएम नेता असुद्दीन ओवैसी पहुंचा, फिर क्रांतिकारी नेता केजरीवाल गये, तब तक कुछ नहीं हुआ, लेकिन बीजेपी नेताओं के वहां पहुंचने पर राजनीतिक रोटी सेंक रहें तथाकथित सेकुलर असहज हो गये।

क्रांतिकारी टाइप के कुछ मीडिया भी बीजेपी नेताओं के दादरी दौरे पर असहज होकर रिपोर्टिंग करने लगी और बीजेपी नेताओं को छोड़कर अन्य विपक्षी दलों के नेताओं के दौरे और बयानों को मीडिया ने मरहूम अखलाक के मरहम साबित करते नहीं थके।

अब इतनी समझ तो देश की जनता को खुद में विकसित करनी ही होगी कि कौन सी पार्टी और कौन सी सोच उनके विकास और प्रगति में सहायक हो सकती है और कौन नहीं?

देश के प्रत्येक वर्ग को अपनी और देश की माली हालत पता है और देश के अलग-अलग समुदायों को कभी जाति, तो कभी वर्ग में बांटकर वोट बैंक समझने वाली लुटेरी कांग्रेस को भी समझती है, जिसने देश को पिछले 68 वर्ष तक लूटा है और जनता उन पार्टियों दशा-दिशा भी उसे बखूबी समझती है जो उनके विकास के नाम पर अपना और अपने परिवार का विकास करती आईं है।
#Modi #BJP #Congress #Muslim #VoteBank #BiharPolls #DadriLynching

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

पुरस्कार लौटाकर आकाओं को रिटर्न गिफ्ट दे रहें हैं तथाकथित साहित्यकार?

शिव ओम गुप्ता
उत्तर प्रदेश सरकार ने साहित्य जगत में तथाकथित ख्याति प्राप्त करीब 80 लोगों को रेवड़ी की तरह यश भारती पुरस्कार बांटे थे और जिन्हें पुरस्कार मिले थे उनमें 90 फीसदी साहित्यकार मुस्लिम और यादव थे।
सवाल उठता है अब साहित्यकार क्या मुस्लिमों और यादवों के घर का पता लेकर पैदा होने लगे हैं या और लोग गौ पालक हो गये या हुनर-धंधेबाज हो गये?
सीधी सी बात है अब सरकारें ऐसी साहित्यकारों की फौज को पुरस्कारों के एवज में राजनीतिक इस्तेमाल के लिए गढ़ती है, जिसका रिटर्न जरूरत के समय किया जाता है।
अभी कांग्रेस फसल काट रही है और अगले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में आसन्न हार के बाद सपा सरकार भी फसल काटेगी? अब भाई बिना बीज रोपे फसल थोड़े काटा जा सकता है?
धन्य हो ऐसी राजनीति और ऐसे दरबारी साहित्य और साहित्यकारों की, जिन्होंने पुरस्कार को दुकान और साहित्य को सामान बनाकर बेंच और खरीद रहें हैं।
यह सवाल इसलिए आबरू रखते हैं, क्योंकि जिन्होंने पुरस्कार लौटाएं हैं अथवा पद छोड़ा है, उनका दिल, दिमाग और गुर्दा कांग्रेस के शासनकाल में हुए विकराल नरसंहार और दंगों में नहीं पसीजा था।
‪#‎Riots‬ ‪#‎Intolrence‬ ‪#‎Litrate‬ ‪#‎Resign‬ ‪#‎Dadri‬

सुधींद्र कुलकर्णी का मुंह ही नहीं, आत्मा भी काली लगती है!

षिव ओम गुप्ता
वाह रे सुधींद्र कुलकर्णी मुंह तुम्हारा काला हुआ तो तुमने पूरे देश का मुंह काला करने की कोशिश कर डाला। उस पाकिस्तानी खुर्शीद कसूरी के बुक प्रमोशन के लिए भले ही तुमने मुंह से काला रंग उतार दिया, लेकिन तुम्हारी आत्मा अभी भी काली होगी।

क्योंकि जिस नापाक इंसान कसूरी के बुक प्रमोशन के लिए तुमने अपना ईमान और राष्ट्रप्रेम को ताख पर रख दिया उस कमीने मे तुम्हारे राष्ट्र के प्रधानमंत्री का अपमान किया है।

कमीने कसूरी ने पूर्व प्रधानमंत्री बाजपेयी की आड़ में प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधने की हिम्मत की है। उसने कहा है कि बाजपेयी ने जो शांति वार्ता शुरू की थी वह प्रधानमंत्री मोदी के शासनकाल में खत्म हो गया है।

कमीने कसूरी को कोई बताये कि उस शांति वार्ता की आड़ में परवेज मुशर्रफ और तत्कालीन विदेश मंत्री खुर्शीद ने भारत की पीठ से छूरा घोंपा था और भारत को कारगिल का युद्ध लड़ना पड़ा था!

लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के ईट के बदले पत्थर वाले जबाव की कार्रवाई से हैरान-परेशान पाकिस्तानी डरे-सहमे ऐसे बौखलाहट वाले बयान दे रहें हैं। डूब मरो सुधींद्र कुलकर्णी!
#SudhindraKulkarni #Pakistan #KhurshidKasuri

रविवार, 11 अक्तूबर 2015

प्रगति पथ पर है भारत, बस लाभ से कोई वर्ग वंचित न रहे?

शिव ओम गुप्ता
किसी भी देश की खुशहाल जनता ही उस देश की तरक्की और प्रगति का पैमाना होती है और भारत की तो बात ही अलग है।

हम सभी जानते हैं कि किसी भी समाज के उत्थान के लिए वहां रह रहे प्रत्येक वर्ग विशेष को एक समान शिक्षा, स्वास्थ्य और बेरोजगारी जैसी मूल जरूरतों को मुहैया कराना जरूरी है।

लेकिन भारत देश कई मामलों में अलहदा है, क्योंकि यहां के लोग अनुकूल और विपरीत परिस्थितियों में भी मेहनतकश होते हैं, फिर चाहे वह मध्यम वर्ग हो अथवा गरीब वर्ग?

यानी सरकार अगर देश की बीमारी, बेकारी और बेचारगी को दूर करने में कदम उठाती है तो मेहनत करके ऊपर उठना और आगे बढ़ना हमारे देश की जनता अच्छी तरह से जानती है।

मौजूदा मोदी सरकार ने सामाजिक सुरक्षा के लिए पहली बार ऐसे कई कदम उठायें  है, जो अगर देश के हरेक नागरिक तक पहुंच गये तो विकास ही नहीं, विकास की अम्मा, नानी और दादी को भी आने से कोई रोक नहीं सकता है।

देश में पहली बार एक अभियान की तरह शुरू हुए जन धन योजना के तहत गरीब से गरीब लोगों का बैंक खाता खुलना एक बड़ी उपलब्धि है, जिससे सरकारी सहायता जरूरतमंदों को बिना बिचौलियों को सीधे उन्हें मिलने शुरू हो चुके हैं।

बैंकिंग सुविधा से गरीब और मध्यम वर्ग को एक तरफ जहां सरकारी मदद और योजनाओं के लाभ सीधे मिलने शुरू हो गये हैं, दूसरी तरफ 1 रुपये प्रतिमाह की सस्ती दुर्घटना बीमा, 230 रुपये प्रतिमाह में पेंशन योजना से उनकी सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य की अनिश्च्तता की चिंता पर विराम लगा दिया है।

मोदी सरकार की चुनौती बस इतनी सी है कि वह शुरू किये सभी सामाजिक सुरक्षा योजना का लाभ प्रत्येक वर्ग तक पहुंचाये और उसके अमल में भी तेजी लाये, ताकि उक्त योजनाओं से जुड़े जरूरतमंदों को उनकी जरूरत पर किसी का मुंह न देखना पड़े।



मंगलवार, 6 अक्तूबर 2015

लॉ एंड ऑर्डर नहीं, मुआवजा वाली है अखिलेश सरकार!

शिव ओम गुप्ता
कौन नहीं जानता कि उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार प्रदेश इतिहास की सबसे नकारा और निकम्मी सरकार है और उसके नकारापन और निकम्मेपन को छिपाने के लिए अखिलेश के दायें-बायें हमेशा रहने वाले अदृश्य मुख्यमंत्रियों की टोली दंगा और मुआवजे का गंदा खेल रच रही है।

उत्तर प्रदेश में जब से अखिलेश यादव की सरकार सत्तासीन हुई है प्रदेश की लॉ एंड ऑर्डर भगवान भरोसे चल रहीं है, जिसके लिए रोजाना मीडिया की खबरें ही नहीं, पिता मुलायम ही मुख्यमंत्री को लताड़ते रहें हैं।

पिछले 3 वर्षों में उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व में प्रदेश की हालत बद से बद्दतर हुई है और तथाकथित मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कुछ करने के बजाय मुआवजा राजनीति कर रहें हैं।

अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री पद के शपथ के दिन से लेकर उत्तर प्रदेश लॉ एंड ऑर्डर की समस्या बिकराल होती गईं है, क्योंकि गुंडों और अपराधियों के हौसले बुलंद है।

अखिलेश सरकार के कार्यकाल में प्रदेश की हालत के लिए अपराध के आंकड़े की देखने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह सरकार अपराध नहीं, अपराधियों के जाति-संप्रदाय के आधार पर कार्रवाई करती नजर आई है।

मुजफ्फर नगर और दादरी जैसे मामले प्रदेश सरकार की नकारा और तुष्टिकरण की राजनीति के कारण जन्म लेते है, जिसका सीधा जुड़ाव लॉ एंड ऑर्डर के फेलियर से है।

उत्तर प्रदेश में अपराध और अपराधियों के हौसले बुलंद है, क्योंकि वहां एक नहीं, पांच-पांच मुख्यमंत्री काम कर रहें हैं। अपराधी किसी भी समुदाय से हो, उसे पता है कि कुछ होना जाना नहीं है, मुआवजा बांटकर इतिश्री कर लेगी अखिलेश सरकार ।

#AkhileshYadav #UPGovernment #LawAndOrders #Riots #Failurs 

मीडिया रिपोर्टिंग और नाच-नौटंकी के बीच फर्क खत्म हो गया है?

शिव ओम गुप्ता
वह दिन दूर नहीं जब दंगा और फसाद के लिए मीडियाकर्मी और मीडिया का नाम सर्वोपरि होगा।

दादरी में मरहूम अखलाक की मौत के मामले को न्यूज चैनल्स जिस तरीके से खींच कर रबड़ बना रहें हैं और महज टीआरपी की रेस में बने रहने के लिए रोते-बिलखते परिजनों का फुटेज वोट बैंक और टीआरपी के बीच मरहूम अखलाक कहीं नहीं है?

वोट की राजनीति में मरहूम अखलाक की मौत महज एक राजनीतिक और न्यूज चैनलों का फंसाना बनकर रह गयी है, जहां संवेदना नाम की चीज नहीं दिखती है।

एक तरफ जहां 24 घंटे सियासी रोटियां सेंककर राजनीतिक दल वोट बैंक पुख्ता कर रहें हैं, तो दूसरी तरफ 24 घंटे की ऊल-जुलुल रिपोर्टिंग करके न्यूज चैनल्स टीआरपी रेटिंग में थोड़े उछल मारने में लगे हैं।

लेकिन इस सब के बीच अखलाक और उसके परिवार के सदस्य महज तमाशाई बनके रह गये हैं और पीड़ित परिवार के आसपास रह रहा समाज भी मूक दर्शक की तरह सब तमाशा देख रहा है और समझने की कोशिश कर रहा है कि आखिर हो क्या रहा है?

क्योंकि गलती किसी की भी थी, लेकिन राजनीतिक दल और मीडियाकर्मी वहां रह रहे पूरे समाज को बांट रहें हैं, जिनके साथ ही पीड़ित परिवार को आगे भी रहना है और इस सब से आगे भी बढ़ना है।

#Dadri #Incident #Akhlaq #Politics #VoteBank #Media #TRP  बार -बार लहराया और चलाया जा रहा है, वह बेहद की उत्तेजक और घातक है।

चैनल्स के उक्त घातक प्रयास समुदाय विशेष में गलत संदेश और उत्तेजना फैलाने की कोशिश कर रहें हैं, जिससे देश के अलग-अलग इलाकों में दंगा-फसाद फैल जाये इससे इनकार नहीं जा सकता?

मीडिया वालों कुछ तो होश में आओ और अपनी तुच्छ और कुत्सित मानसिकता को छोड़ कर वास्तविक पत्रकारिता का उदाहरण पेश करो वरना वह दिन दूर नहीं जब मीडियाकर्मी किसी भी घटना-दुर्घटना पर लोगों से बात करने को तरस जायेंगे और जहां जायेंगे जूते और खाकर लौटेंगे! सोचो? अभी भी वक्त है!

#Media #Reporting #TRP #Prestitutes

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2015

लालू मतलब जंगलराज की वापसी: कौन करेगा महागठबंधन को वोट?

शिव ओम गुप्ता
चारा चोर लालू यादव को पता है कि उनको अब बतौर राजनेचा कभी सम्मानजनक जीवन नहीं मिलने वाला है और आज नहीं, तो कल बाकी की सजा काटने जेल में वापस जाना ही पड़ेगा?

शायद यही कारण है कि लालू यादव दोनों बेटों का राजनीतिक भविष्य बनाने के लिए नीतीश कुमार के साथ गठजोड़ कर खून के आंसू पी रहें हैं और अपने हवाई सपनों के संभावित अड़चनों से डरे -सहमें लालू यादव गाली-गलौज पर उतर आये हैं।

लालू यादव को थोड़ा आत्मचिंतन करना चाहिए कि बिहार में जंगलराज मतलब लालू यादव ही होता है और चारा घोटाला आरोप नहीं है, बल्कि लालू न्यायालय द्वारा  घोषित अपराधी और सजायाफ्ता है, जो जमामत पर बाहर हैं।

समझ नहीं आता है कि लालू यादव को सुन कौन रहा है और बिहार में कौन ऐसा मतदाता होगा जो लालू मतलब जंगलराज को वोट देकर बिहार में वापसी कराना चाहेगा?

लालू नीतीश का जोड़ी का सत्ता से जाना चो लगभग तय हैं, देखना यह है कि बिहार की जनता इनकी कैसी विदाई करेगा?

क्योंकि लालू और नीतीश दोनों को बिहार में आसन्न भयानक हार की आशंका हो गई है, जिसे दोनों के वागियात बयानों से समझा भी जा सकता है।

#LaluYadav #NitishKumar #BiharPolls #Jungalraaj #FodderScam #JDU #RJD