शनिवार, 30 मई 2015

क्योंकि कांग्रेस की कब्र खोद रहें हैं राहुल गांधी!

शिव ओम गुप्ता
तमाम टीवी और प्रिंट मीडिया के सर्वे के आंकड़ों की मानें तो जनता ने मोदी सरकार के एक वर्ष के कार्यकाल पर संतुष्टि की मुहर ही नहीं लगाई अलबत्ता डिस्टिंक्शन नंबर से पास भी किया है!

लेकिन हार की हताशा के अंधे कुयें में डूब चुके राहुल गांधी एंड पार्टी को भूमि अधिग्रहण विधेयक में ही सत्ता की चाभी दिखाई दे रही है और राज्यसभा में विधेयक पर ऐसे कुंडली मारकर बैठने को मजबूर हैं, जैसे बच्चे गंदगी के बावजूद बरसाती कीचड़ में कूदने से बाज नहीं आते?

कांग्रेसी नेताओं और राहुल गांधी को अच्छी तरह से मालूम है कि पूर्ण बहुमत वाली मोदी सरकार बिना किसी रोक-टोक के पूरे पांच वर्ष सत्ता में रहेगी और कहीं न कहीं देश की जनता भी समझ चुकी है कि राहुल गांधी भूमि अधिग्रहण विधेयक के बहाने अपनी जमीन तलाशने की अंतिम कोशिश कर रहें हैं, लेकिन राहुल गांधी भूल गये हैं कि जनता को जीजा रॉबर्ट वाड्रा के कारनामों की भी पूरी जानकारी है।

पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक कहावत है, 'न खेलेंगे और न खेलने देंगे' यानी कांग्रेस ने भले ही किसानों-मजदूरों के लिए कुछ नहीं किया, लेकिन वे मोदी को भी नहीं करने देंगे। राहुल गांधी को समझ लेना चाहिए कि 4 साल बाद वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव में जनता यह नहीं भूलेगी कि कांग्रेसी हताशा ने उनका और देश का कितना नुकसान किया।

 कांग्रेस और राहुल गांधी को याद रखना चाहिए कि जनता सब याद रखती है और कांग्रेस को अब यह भी याद रखना चाहिए कि देश के 45 फीसदी युवा वोटर्स अब गांधी परिवार के सम्मोहन में नहीं है, वे अब विकास को वोट देना अधिक पसंद करते हैं।

और अगर कांग्रेस को लगता है कि मोदी सरकार अच्छा काम कर रही है, और उसे गुजरात की तरह अगले 10-15 वर्ष मौका ही नहीं मिलेगा? तो ध्यान रखिये मोदी सरकार के अच्छे नीतियों और कानूून का समर्थन करके ही कांग्रेस जनता के दिल में दोबारा जगह बना सकती है और फिर एंटी इनकंबेसी का इंतजार करना चाहिए।

जी हां, राहुल गांधी को तब तक इंतजार करना चाहिए जब तक मोदी सरकार किसी घोटाले अथवा किसी बड़ी दुर्घटना की शिकार नहीं हो जाती? और तब तक उन्हें अपनी ऊर्जा बर्बाद करनी चाहिए,  फिर शायद देश की जनता भी उनकी बातों पर नाक-कान
देगी, लेकिन अभी जो राहुल गांधी कर रहें हैं इससे वे खुद मोदी की छवि चमका रहें हैं, क्योंकि देश पिछले 10 वर्षों के मनमोहन सरकार और घोटालों से बुरी तरह त्रस्त रही है।

मोदी सरकार के साथ अभी यह बहुत बड़ा एडवांटेज है कि 1 वर्ष के उनके कार्यकाल में कोई भी स्कैम और अनियमितता सामने नहीं आई है, जिसे जनता में उनकी स्वीकार्यता में कोई बदलाव नहीं आया है। रही बात मंहगाई की तो खुदरा और थोक मूल्य सूचकांकों की महंगाई दर में गिरावट आने वाले समय में महंगाई की आंच को कम कर ही देगी और ताजा जारी हुए 7.3 फीसदी की विकास दर ने उम्मीदों को पंख भी दे दिये हैं।

तो राहुल गांधी को चाहिए कि देश के विकास में आड़े आने वाले की छवि से बाहर आये और अपना अड़ियल रवैया छोड़ते हुए भूमि अधिग्रहण समेत उन सभी विधेयकों का समर्थन दें, जिनमें एक महत्वपूर्ण विधेयक जीएसटी बिल भी शामिल है, जिससे देश के भ्रष्टाचार उन्मूलन में काफी योगदान मिलने वाला है। वरना कब्र खोदू अभियान से कांग्रेस के हाथ सिर्फ ताबूत लगने वाला है और कुछ शेष नहीं?

#Congress #RahulGandhi #LandAcquisitionBill #Defeat #Frustration 

बॉस! ये केजरीवाल तो बड़ा सूरमा निकला बाप?

सुना है मियां केजरीवाल ने दिल्ली में रहने वाले सभी लोगों की जासूसी करने और उनके फोन टेप कराने के लिए गुपचुप तरीके से 3 करोड़ रुपये में कोई बड़का मशीन खरीदने का आर्डर दिया है, जिसके जरिये देश के राष्ट्रपति से लेकर नुक्कड़ पर समोसा बेच रहे कलुआ पर भी नजर रखी जा सकेगी।

वाह, क्या क्रांतिकारी कदम है भाई! इसकी तो जितनी भी तारीफ हो सके उतना तारीफ करना चाहिए। भाई तूने तो दिल जीत लिया है।

 केजरूवा ने 100 दिन में इतना बड़ा काम कर दिया है और तुम लोग नाहक बिजली, पानी और वाई-फाई में अटका के रखा था बेचारे को?

बिजली, पानी कौनो मुद्दा है ससुरी? आजादी के बाद से हर कोई लल्लू-पंजू टाइप के नेता बिजली-पानी का जुगाली कर रहा है? कुच्छौ मिला अभी तक किसी को?

बुरबक, तुम लोग नहीं समझ रहे हो? केजरूवा नई तरह की राजनीति कर रहा है। इ जो जासूसी वाला हाईफाई मशीन खरीद रहा है न, अब उ के जरिये केजरूवा दिल्ली के हर घर की बिजली-पानी का आसानी से हिसाब रख सकेगा कि कौन कितना पानी से नहा रहा है और कौन कितना बिजली खपा रहा है।

तभे न बिजली और पानी विभाग में बैठे चोर-डाकू टाइप के अधिकारियों को सस्पेंड और ट्रांसफर कर सकेगा? वरना लोग बुझेगा कि केजरूवा मुख्यमंत्री बन गया और कुछ क्रांतिकारी हुआ ही नहीं?

तो चिंता मत कीजिए अपना केजरूवा बहुतै काबिल है, देखना उ दिन दूर नहीं जब राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री निवास को बिजली-पानी के लिए केजरूवा के सामने गिड़गिड़ाना पड़ेगा?

बूझे की नाहीं? बहुतै मजा आने वाला है। बस इंतजार करो उ बड़का जासूसी मशीन का?

#Kezriwal #AAP #DelhiCM #Spy #

शुक्रवार, 29 मई 2015

अब तो केजरीवाल को देखते ही हंसी छूट जायेगी!

शिव ओम गुप्ता
पिछले 10 दिनों से दिमाग का दही कर चुके केजरीवाल को आखिरकार अपनी औकात पता चल गई होगी? वरना केजरीवाल के बोल बच्चन और मीडिया कैमरे पर जारी उनके तमाशे ने गजब की छीछालेदर कर रखी थी।

बंदे में गजब का आत्मविश्वास है भाई! खड़े-खड़े ऐसे झूठ और आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति करता है कि अच्छे से अच्छे झूठे बेचारे लगने लगते हैं।

दिल्ली के सेंट्रल पार्क में आयोजित खुला कैबिनेट हो या दिल्ली विधानसभा की इमरजेंसी मीटिंग? बंदे ने ऐसे ऊंचे सुर में झूठ का राग अलापा था कि लगा केंद्र सरकार ने सचमुच लोकतंत्र की हत्या कर दी है।

लेकिन हमेशा की तरह एक बार फिर केजरीवाल झूठा और मदारीवाला साबित हुआ, जिसने हाय-हाय करके भीड़ तो बटोर लिया, लेकिन भीड़ को दिखाने को उसके पास कुछ नहीं!

हमें पूरा भरोसा है केजरीवाल अभी भी शांत नहीं बैठेगा, क्योंकि काम करना ही नहीं है उसे? अब फिर कोई झूठ और आरोप-प्रत्यारोप की स्क्रिप्ट लिखवा रहा होगा?

डर इस बात है कि कहीं केजरीवाल हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को भी 'आपस में मिले हुए हैं जी' वाला तमगा न दे मारे?

क्योंकि अदालतों के आज के फैसलों के बाद केजरीवाल केंद्रीय सरकार और उप-राज्यपाल के खिलाफ कुछ नहीं बोल सकता है।

केजरीवाल को अब बिना किसी अतिरिक्त नौटंकी के चुपचाप दिल्ली के लिए ईमानदारी से काम करना चाहिए वरना दिल्ली की जनता अब और नहीं सहने वाली?

मुझे आशंका है कि केजरीवाल चुपचाप बैठेगा? पूरी संभावना है कि केजरीवाल आज और कल दिल्ली के पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने का मुद्दा उछालेगा और धरना-प्रदर्शन करने सड़कों पर उछल-कूद करेगा।

तो दिल्लीवालों तैयार रहिये। स्टेज सज चुका है और आपके नायक झांडू हाथ में लिए कभी भी मंच संभाल सकते हैं ।

हांलाकि मैं चाहता हूं कि ईश्वर केजरीवाल को थोड़ी बुद्धि दें और दिल्ली की जनता को उनकी कर्माें की सजा देने में इतनी भी जल्दबाजी न करें।

#Kezriwal #AAP #SupremeCourt #DelhiHighcourt #DelhiCM #LG #NajeebJung 

ताकि फिर कोई केजरीवाल जैसा ठग न मिले!

शिव ओम गुप्ता
अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी दोनों की समस्या यह है दोनों सत्ता का जहर निगल लेना चाहते है, लेकिन अफसोस यह है कि दोनों की बैटरी मीडिया से ही चार्ज होती हैं और कैमरे के बिना दोनों भाव और विचार दोनों से शून्य है।

शायद यही कारण है कि दोनों को अपना राजनीतिक वजूद ढूंढने के लिए मीडिया के कैमरे के सामने मजबूरन आना पड़ता है, लेकिन मीडिया से दूर होते ही इनका राजनीतिक वजूद फिर गायब होने लगता है और फिर वजूद की तलाश में दोनों नये हथकंडों का इस्तेमाल कर मीडिया कैमरे पर प्रकट हो जाते है।

केजरीवाल मीडिया के कैमरों के सामने बनाई कृत्रिम छवि से हीरो बन गये और दिल्ली के मुख्यमंत्री तक बन गये वरना केजरीवाल का वास्तविक चरित्र और चेहरा पिछले 100 दिनों में सभी देख और सुन चुके है और समझ भी गये हैं कि असली केजरीवाल कैमरे के आगे नहीं, पीछे बैठता है।

ठीक यही बात राहुल गांधी के साथ है। राहुल की राजनीतिक वजूद से सभी वाकिफ है, लेकिन कैमरे पर उनकी छवि तराशने के लिए राहुल को मीडिया में मुंह दिखाई के लिए बैंकाक की छुट्टी छोड़ गरीब के घर जाना पड़ता है।

समझ नहीं आता कि हमारे ऊपर ये कैसे आभासी और कैमरे वाले नेता थोपे जा रहें हैं, जिनका वजूद और चरित्र कैमरे पर कुछ और हकीकत में कुछ और ही है।

 मीडिया को अब अपनी भूमिका समझनी होगी, क्योंकि वास्तविक तस्वीर दिखाने का दावा करने वाली मीडिया अब खुद आभासी होती जा रही है।

मीडिया को स्व-नियमन करना होगा और नेताओं की 'कैमरे के आगे और कैमरे के पीछे' दोनों तस्वीरों को जनता को दिखाना होगा ताकि फिर कोई केजरीवाल जैसा बहरुपिया मीडिया की तस्वीर से अपनी तकदीर न बना सके।

#Kezriwal #AAP #DelhiCM #Media #LG 

बुधवार, 27 मई 2015

केजरीवाल की फेवरेट हॉबी है धरना-प्रदर्शन, दिल्ली जाये तेल लेने!

शिव ओम गुप्ता
दिल्ली की जनता के जनादेश का मखौल उड़ाकर केंद्रीय सरकार से बेवजह पंगा लेना केजरीवाल एंड पार्टी का पसंदीदा शौक लगता है।

70 वादों का बहाना करके दिल्ली की सत्ता का मजे ले रहे केजरीवाल को अब मुख्यमंत्री पद रास नहीं आ रहा है और अब वो अपनी पूरी ऊर्जा प्रधानमंत्री की कुर्सी में लगाते दिख रहें हैं।

वरना दिल्ली को किये 70 वादों को पीछे छोड़ किसान रैली और भूमि अधिग्रहण की राजनीति केजरीवाल क्यों करते? और भी राज्यों में गैर-भाजपा और गैर कांग्रेस सरकार चल रहीं हैं।

इनमें तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, उड़ीसा, बिहार और उत्तर प्रदेश शामिल है, जहां केंद्रीय मुद्दों पर धरने-प्रदर्शन नहीं हुए, लेकिन केजरीवाल दिल्ली को छोड़ इधर-उधर की बातों में ज्यादा रुचि दिखा रहें हैं।

क्या कारण है कि दिल्ली प्रदेश को केजरीवाल घर की मुर्गी समझने लगे है? क्या इसलिए नहीं कि वे अब प्रधानमंत्री पद का सपना देख रहें है?

दिल्ली की समस्याओं और चुनाव पूर्व किये गये वादों को पीछे छोड़कर केजरीवाल अनावश्यक मुद्दों को इसलिए तूल दे रहें हैं ताकि वे उनके झूठे वादों से दिल्लीवालों का दिमाग भटका सकें।

दिल्ली उप-राज्यपाल नजीब जंग से पंगा हो या केंद्र प्रशासित राज्य दिल्ली के अधिकारों के लिए केंद्रीय सरकार से जबरन टकराव हो। इसके जरिये केजरीवाल दिल्ली वालों को जबरन यह बताना चाहती है कि केंद्र सरकार उसे काम नहीं करने दे रही है जबकि सच्चाई अब किसी से छिपी नहीं है।

वरना केंद्र प्रशासित दिल्ली में 5 साल बीजेपी और 15 साल कांग्रेस ने बिना टकराव के सरकारें चलाईं हैं, लेकिन केजरीवाल की मंशा ही नहीं है।

केजरीवाल ने झूठे वादों को जरिये दिल्लीवालों को मूर्ख बनाया और अब केजरीवाल दिल्ली की छाती पर मूंग दलते हुए प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पहुंचने की कोशिश कर रहा है।

वरना केजरीवाल मुख्यमंत्री के दायरे में रहकर दिल्ली को किये वादों और दिल्ली की समस्याओं को पूरा करने में अपनी पूरी ताकत झोंकता?

कहते हैं जिन्हें काम करना होता है वे बहाने नहीं ढूंढते और जिन्हें नहीं करना होता है, वे काम न करने सिर्फ बहाने ढूंढते है। केजरीवाल चाहते तो दिल्ली की जनता के हित के लिए साम, दाम, दंड और भेद के जरिये काम करने की कोशिश कर सकते थे?

लेकिन ने महज 10 दिन के लिए कार्यवाहक मुख्य सचिव की नियुक्ति में जो नौटंकी केजरीवाल ने की है उसका मकसद सिर्फ और सिर्फ हंगामा खड़ा करना था ताकि दिल्ली वालों को गुमराह किया जा सके कि वो केंद्र सरकार के कारण दिल्ली के 70 वादें नहीं पूरे नहीं कर पा रहें है, इसलिए अब उसे अब प्रधानमंत्री बनाओ?

#Kezriwal #AAP #DelhiCM #LG #NajeebJung #Controversy 

मंगलवार, 26 मई 2015

दिल्ली रिंग रोड से सीधे जंगल की ओर बढ़ रही है!



ये मानसिक दिवालियेपन के शिकार हैं या सारे आम आदमी पार्टी के विधायक दिमाग से पैदल ही है।

सुना है किसी AAP विधायक ने दिल्ली विधानसभा के आज बुलाए गये आकस्मिक सत्र में उप-राज्यपाल नजीब जंग के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की बात कही है।

कहां से आ गये ये सारे कौव्वाल दिल्ली की राजनीति में? पहले हम अनपढ़ और अनगढ़ नेताओं से परेशान थे और अब आम आदमी पार्टी से पढ़े-लिखे मूर्ख विधायक चुनकर विधानसभा में पहुंच गये है।

भगवान भला करें दिल्ली का? एक तो केजरीवाल और उस पर उसके ऐसे 67 विधायक का हाल!

कैसे बीतेंगे 5 साल, केजरीवाल? सोचकर डर लगता है, जैसे दिल्ली के रिंग रोड से सीधे जंगल पहुंच गये हैं।

कांग्रेस के विरोध में देशहित नहीं, निजी फस्ट्रेशन दिखता है?

शिव ओम गुप्ता
क्या विपक्षी पार्टियां सिर्फ विरोध के लिए होती हैं। कम से कम मोदी सरकार के एक वर्ष के काम काज पर कांग्रेस औक कांग्रेसी नेताओं के बयान और हरकतों से ऐसा ही लगता है।

आलोचना तो ठीक है, लेकिन कांग्रेस के प्रत्येक विरोध और कटाक्ष में उनका सत्ता गंवाने का फस्ट्रेशन हमेशा हावी दिखता है।

शायद यही कारण है कि कांग्रेसी नेताओं की अच्छी बात और सार्थक विरोध भी उनकी वैयक्तिक खींझ अधिक नजर अाती है, जिससे उनके सारे बयान महज सियासी हो जाते है, जिसका सरोकार जनता में गौड़ ही रहता है और कोई भी नाक-कान देना पसंद नहीं करता है।

कांग्रेस को अपनी शैली बदलनी चाहिए और महज सियासी विरोध के अलावा कंस्ट्रक्टिव विरोध करना चाहिए, जिससे जनता का जुड़ाव हो?

क्योंकि कांग्रेसी नेताओं के विरोध और बयान ऐसे लगते हैं जैसे कोई बच्चा वीडियो गेम खेल रहा है और एक ही बटन दबाकर सभी राजनीतिक दुश्मनों को मारकर सत्ता में पहुंच जायेगी।

तो अब झूठ फैलाकर सत्ता में वापसी नहीं कर सकेगी कांग्रेस !

शिव ओम गुप्ता 
राहुल गांधी जब पूरे देश में घूम-घूमकर किसान चालीसा पढ़कर महज झूठ फैलाकर राजनीतिक विरासत वापस पाने की कोशिश कर सकते हैं तो सत्ता पक्ष मोदी सरकार को सच और झूठ के अंतर को बतलाने के लिए उनके पास जाना ही पड़ेगा।

वो जमाना गया जब झुठ फैलाकर कांग्रेस सत्ता में वापसी कर लेती थी। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी डेढ़ सयाने हैं, वे जानते हैं कि झूठ के सिर-पैर नहीं होते हैं और किसी झूठ को बार-बार दोहराने से सच साबित होने लगती है अगर सत्ता पक्ष उन्हीं जनता के पास जाकर सच और झूठ नहीं बतायेगी तो जनता गुमराह होगी ही होगी।

इतिहास गवाह है इससे पहले 5 साल सत्ता के करीब पहुंची पिछली गैर-कांग्रेसी सरकारें दोबारा सत्ता में वापसी करने में इसलिए नाकाम रहीं क्योंकि वे सरकारें कांग्रेसी झूठ को खारिज करने जनता के पास नहीं गई और जनता ने झूठ को सच मानकर 5 वर्ष बेहतर काम करने वाली सरकारों के खिलाफ वोट किया।

लेकिन मोदी सरकार सयानी है और कांग्रेस के झूठ फैलाओं अभियान को करारा जबाव देने के लिए उन्हीं जनता के पास जाकर कुल 200 रैलियां करने जा रही है, जहां-जहां राहुल गांधी झूठ फैलाकर देश को गुमराह करने की कोशिश की है।

तो इसमें कोई बुराई नहीं है। अगर विपक्षी पार्टियां सरकार के खिलाफ कुछ कहती हैं तो सत्ता पक्ष को भी पूरा अधिकार है कि वह उसी जनता के पास जाये और झूठ और सच का अंतर बतलाये।

मोदी जानते हैं कि कांग्रेस झूठ के सहारे ही अब तक सत्ता में वापसी करती आई है और लगातार 5 वर्ष दुष्प्रचार करके भोली-भाली जनता को गुमराह करती रही है, लेकिन इस बार ऐसा संभव नहीं होने वाला दीखता है।

मोदी सरकार कांग्रेसी दुष्प्रचार से निपटने के लिए ही जनता के पास सीधे पहुंच कर सच और झूठ के अंतर को समझाने की कोशिश करेगी और कांग्रेस के दुष्प्रचार के असर को खत्म करने की कोशिश करेगी।

सत्ता पक्ष के खिलाफ कांग्रेस के दुष्प्रचार का सबसे बड़ा उदाहरण अटल बिहारी बाजपेयी सरकार का लिया जा सकता है। अटलजी की पांच साल की सरकार ने बेहतरीन काम किया, बावजूद इसके वापसी करने में नाकाम रहीं ।

कारण था अटल सरकार कांग्रेसी दुष्प्रचार को खत्म करने लिए तत्काल जनता के पास नहीं गई और अच्छे कामकाज के बावजूद कांग्रेस का झूठ जनता के दिल में घर कर गया और अटल सरकार सत्ता में दोबारा वापसी नहीं कर सकी।

शायद यही कारण है कि मोदी सरकार कांग्रेस के झूठ फैलाओ अभियान के खिलाफ जनजागरण रैली आयोजित कर रही है ताकि देश की जनता को सरकार के कामकाज और सफलताओं को बताया जा सके, जिससे जनता दूध का दूध और पानी का पानी समझ सके।

हैट्स ऑफ मोदी जी! क्योंकि अब तक की सभी गैर-कांग्रेसी सरकारें पांच साल बाद ही जनता के फैसले का इंतजार करती थीं, लेकिन इस बार आपने कांग्रेसी दुष्प्रचार से निपटने के लिए प्रति वर्ष जनता के पास जाने का अभियान शुरू करके जनता पर बड़ा उपकार किया है।

क्योंकि अब से पहले कांग्रेसी दुष्प्रचार जनता के बीच वनवे ट्रैफिक की तरह पहुंचता था, जिसकी सच्चाई उन्हें बतलाने के लिए सत्ता पक्ष बाहर ही नहीं निकलता था। लेकिन अब ऐसा लगता है कि कांग्रेसी दुष्प्रचार में सफल होने से रही।

आज के समय का यह शाश्वत सत्य है कि अच्छा काम करना ही काफी नहीं है बल्कि उसको नगाड़ा पीट-पीटकर जनता को बतलाना भी जरूरी है? वरना अच्छा काम भी हवा के झोंके में नेस्तनाबूद हो जाया करते हैं।

हालांकि प्रधानमंत्री मोदी इस कला में माहिर हैं। शायद यही कारण है कि गुजरात में सत्ता संभालने से बाद कांग्रेसी दुष्प्रचार गुजरात में बेअसर रहा, क्योंकि मोदी लगातार जनता के संपर्क में रहे और पूरे 20 वर्ष कांग्रेस गुजरात की सत्ता से बाहर है।

कांग्रेस को अब ईमानदार राजनीति की ओर मुड़ना चाहिए, क्योंकि अब वो जनता भी नहीं रही जो अंधानुकरण करेगी और वह समय और जनरेशम भी नहीं रहा जो वोट करने से पहले झूठ और सच को क्रॉसचेक नहीं करेगी।

ईश्वर कांग्रेस और कांग्रेसी नेताओं को सद्बुद्धि दे ताकि वे महज झूठ फैलाने के बजाय एक ईमानदार और बेहतर विपक्ष की भूमिका निभा सकें, क्योंकि एक बेहतर लोकतांत्रिक सरकार के लिए एक प्रतिस्पर्धी विपक्ष का होना बेहद जरूरी है। 

रविवार, 24 मई 2015

स्कूलिंग: महंगी ही नहीं, चलताऊ भी हो गई है?

शिव ओम गुप्ता
मां-बाप के खून-पसीने की कमाई का अधिकांश हिस्सा आजकल बच्चों की पढ़ाई में खर्च हो जाता है, क्योंकि चमकदार पब्लिक स्कूलों की प्रतिमाह की मोटी फीस, यूनिफॉर्म और प्रत्येक वर्ष के कॉपी-किताब के खर्चों के बोझ इतने अधिक होते हैं कि उनकी कमर टूट जाती है!

बावजूद इसके पब्लिक स्कूलों में बच्चों को पढ़ाई के नाम पर सिर्फ और सिर्फ रोबोट ही बनाया जा रहा है जबकि बच्चों को होम वर्क के नाम पर महज रटने वाला तोता बनाया जा रहा है, जिस कारण बच्चों में मानवीय और नैतिक मूल्यों का तेजी से पतन हो रहा है!

नि:संदेह आज बच्चों को ऐसे स्कूलिंग की जरूरत है, जहां सभी बच्चों को एक मानक फीस में आधुनिक सुविधाओं से युक्त शिक्षा उपलब्ध कराई जा सके। क्योंकि अच्छी शिक्षा के नाम पर कुकुरमुत्तों की तरह जहां-तहां उग आए पब्लिक स्कूल्स बच्चों के मां-बाप का केवल आर्थिक बल्कि मानसिक शोषण कर रहें हैं।

हालात यह है कि पब्लिक स्कूल हर सत्र में बच्चों के किताबों के पब्लिकेशन बदल देते हैं, जिससे स्कूल्स महज कमाई और व्यवसाय के केंद्र में तब्दील होकर रह गये हैं। यही कारण है कि स्कूलों के पैसे उगाही वाले तमाम प्रपंचों से बच्चों का भविष्य ढूंढ़ने निकले मां-बाप का वर्तमान के साथ-साथ भविष्य भी असुरक्षित रहती है।

कैसी हो स्कूलिंग?

हमें यहां पश्चिमी स्कूलों का अनुकरण कर लेना चाहिए, जहां प्री स्कूल से लेकर हायर सिकेंडरी तक के बच्चों की किताबें स्कूलों में कभी नहीं बदलती है, जिससे बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर मां-बाप को प्रतिवर्ष अवाश्यक पैसे नहीं खर्च करने पड़ते हैं।

इससे पैरेंट्स को प्रति वर्ष एक ही स्कूल में पढ़ने वाले अपने बच्चों के लिए नई किताबें नहीं खरीदनी पड़ेंगी।

यहीं नहीं, प्रति वर्ष के किताबों को सुरक्षित रखने और बच्चों को किताबों के बोझ से बचाने के लिए क्लास की किताबें स्कूल में सुरक्षित रखी जानी चाहिए। इससे बच्चों के बैग भी भारी नहीं होंगे और किताबें भी वर्ष भर सुरक्षित रहेंगी, जो दूसरे बच्चों के काम आ सकेंगी।

निजी स्कूलों द्वारा इस प्रक्रिया को अपनाने से बच्चों को अनावश्यक वजन से मुक्ति भी मिलती है और मौजूदा पास आउट बच्चों की किताबें अगले वर्ष दूसरे बच्चों के काम आ सकती हैं। इससे पैरेंट्स को बच्चों के लिए हर वर्ष किताबें खरीदने से मुक्ति भी मिल जायेगी।

हालांकि सरकारी स्कूलों में संचालित पाठ्य-पुस्तकों के साथ यह सुविधा अभी भी जरूर थीं, जहां मां-बाप पास आउट बच्चों की पुरानी किताबें ले लिया करते थें, लेकिन सरकारी स्कूलों में गिरते पढ़ाई के स्तर से गरीब भी अब अपने बच्चों को महंगे पब्लिक स्कूलों में भेजने को मजबूर हैं।

सवाल वाजिब है। सभी पैरेंट्स बच्चों के बेहतर भविष्य व शिक्षा-दीक्षा के लिए महंगे पब्लिक स्कूलों की ओर ही आकर्षित होते है, लेकिन सरकारी पहल से निजी स्कूलों के उपरोक्त पैसे कमाऊं पैतरों पर अंकुश लगाया जा सकता है।

मसलन, एक सर्कुलर के जरिये सरकार को पहल करके देश -राज्य के सभी निजी पब्लिक स्कूलों में एक मानक फी स्ट्रकचर लागू कराना चाहिए और प्रति वर्ष स्कूलों में संचालित होने वाले किताबों के प्रकाशन में मनमाने बदलाव को रोकना चाहिए अथवा पैरेन्ट्स को बच्चों के किताबों की खरीदारी से अलग ही रखना चाहिए।
यानी, सरकार को सभी निजी स्कूलों को व्यवस्था देनी चाहिए कि सभी निजी स्कूल्स ही किताबें बच्चों को उपलब्ध कराये और किताबें स्कूल में रोजाना जमा करायी जायें, जिसके लिए स्कूल्स मासिक फी ले सकते हैं।

और बच्चों को होमवर्क के लिए बैग्स में सिर्फ नोट बुक लाने का निर्देश होना चाहिए। इससे बच्चों के मानसिक और शारीरिक दबावों में कमी लाई जा सकेगी।

इस प्रक्रिया के निजी स्कूलों में लागू किये जाने निजी स्कूलों की निरंकुशता पर लगाम लगेगी और हर तबके के मां-बाप पढ़ाई के अनावश्यक बोझ से भी बचाये जा सकेंगे।

यही नहीं, ऐसे सर्कुलर से पर्यावरण सुरक्षा में भी अच्छी मदद मिलेगी। मसलन, किताबें कम छपेंगी, तो पेड़ों का दोहन कम होगा। वरना प्रति वर्ष किताबों के प्रकाशन बदलने से लाखों क्विंटल किताबें रद्दी हो जाती है।

कहां गए वो ‪#‎AccheDin‬ ???

एक साल की कीमत तुम क्या जानो ‪#‎मोदी‬ बाबू.... बहुत याद आते हैं ... वो "घोटाले भरे दिन" ....

वो "दामाद बाबू" के खेती-किसानी के चर्चे .... उनके
करामती बिजनेस के नुस्खे ।

वो शहजादे का मचल जाना और "अध्यादेश के पन्ने फाड़ हवा में लहराना

वो "राजमाता" का 'गुप्त रोग' के इलाज मे अमेरिका के बार- बार  चक्कर लगाना ....और शहजादे के कमरे मे टेंसूए बहाना ।

वो जिज्जी की चौपाल...... दिग्गी की भौकाल.......
वो जीरो लोस की थ्योरी.....

वो वो... बब्बर की वो 12 रूपये की थाली ....वो घड़ी-
घड़ी #मोदी को गाली । वो डॉलर और पेट्रोल की रेस .... वो CBI तोते के केस ।

वो "मन्नू" का ठुमक-ठुमक कर चलना .... वो हजार सवालों की आबरू रखना ... वो पेड़ पे पैसे का उगना ....

बहुत याद आते हैं, बहुत याद आते हैं... वो "घोटाले भरे दिन"

और अब बहुत याद आयेंगे बैंकाक के 56 दिनों की छुट्टी...जिन्हें जिज्जे ने लूटा...उन्हें पिला रहे हैं शहजादे बाल जीवन घुट्टी!

वो लहरा-लहरा के अब खेतों में चलना...कभी सड़क पर मल्हार तो कभी संसद में भीम तलाशी कर मचलना?

बहुत याद आयेंगे वो जनरल बोगी के रेल, वो किसानों के आंसू और वो बहुरंगी तेरे खेल...

शनिवार, 23 मई 2015

नाक सीधी करने के लिए संविधान से भी खेलेगा केजरीवाल!

सुना है केजरीवाल ने 26-27 मई को इमरजेंसी विधानसभा सत्र बुलाने जा रहें हैं।

भाई जब सारे फैसले तुम्हें खुद ही लेने हैं तो इमरजेंसी विधानसभा सत्र का नाटक क्यों? वैसे भी 67 विधायक तुम्हारे ही है।

हम अभी बताये देते हैं कि केजरीवाल विधानसभा सत्र क्यों बुला रहा है?

केजरीवाल एक बार कोई ऐसी हरकत करेगा, जिससे उसकी राजनीतिक अपरिपक्वता और दिल्ली वालों की वोटिंग अपरिपक्वता सबको शर्मसार कर देगी!

मुझे पूरा भरोसा है कि केजरीवाल कोई ऐसा बेवकूफियाना प्रस्ताव लाने की कोशिश करेगा, जिससे केंद्र के नोटिफिकेशन की अवमानना हो सके और उसकी तानाशाही जीत हो सके।

ईश्वर बुद्धि दे केजरीवाल को ताकि दिल्ली वाले अपनी बड़ी भूल पर और अधिक शर्मसार होने से बच जायें!

हालांकि अराजक केजरीवाल पर भरोसा रखिये, अब वह जरूर कुछ ऐसा ऊल-जुलूलू करेगा, जिससे संविधान रहे न रहे अपनी नाक जरुर ऊंची करके रहेगा।

#Kezriwal #AAP #DelhiCM # #Constitution #LG #NajeebJung 

Dhoni, You really super #captain of world!

It's really amazing to see #MSDhoni captaincy and his gesture towards his team member.

Dhoni knows well important of #IPL15 #Qualifier2  after he shows confidence in his opening batsman #MikeHussy while hussy failed as opener in last two match.

Dhoni today also gone with Mike Hussy as opener duo and hussy prove his captain's choice was right.

Hussy played well today against #RCB and made valuable 56 run within 46 bolls.

I'm sure any other team captain certainly change his opening combinations in this crucial game but Dhoni didn't?

Dhoni you real super star of Indian as well as world crickets. All the best for #CSK IPL-Final match.

शुक्रवार, 22 मई 2015

क्या केजरीवाल को बर्खास्त नहीं कर दिया जाना चाहिए?

केजरीवाल नहीं मानने वाला? अपनी राजनीतिक और प्रशासनिक नपुंसकता को छिपाने के लिए बंदा कुछ भी करेगा?

अब कह रहा है कि दिल्ली के उप-राज्यपाल भ्रष्टाचार में लिप्त है और ट्रांसफर-पोस्टिंग का धंधा करते हैं।

केजरीवाल भाई थोड़ा खुद भी पढ़ ले संविधान और ढंग से समझ ले दिल्ली के अधिकार क्षेत्र या एक्सपर्ट से ही पूछता रहेगा?

एक मुख्यमंत्री प्रदेश के सर्वेसर्वा के खिलाफ इतनी ओछी और अपमानजनक टिप्पणी कैसे कर सकता है।

क्या राष्टपतिजी को केजरीवाल को हरकतों को संज्ञान में लेकर बर्खास्त नहीं कर देना चाहिए?

#Kezriwal #AAP #DelhiCM #LG #NajeebJung

गुरुवार, 21 मई 2015

केजरीवाल ने राजनीतिक दुकान गलत जगह खोल दी है!

#एनडीटीवीइंडिया पर #रवीसकुमार दिल्ली सरकार की मतिभ्रष्टता को पुरानी राजनीतिक परंपराओं की दुहाई देकर न केवल उचित ठहरा रहें हैं बल्कि उसको समाधान की शक्ल देने की भी कोशिश कर रहें है।

याद रहे, ये वहीं केजरीवाल हैं, जो देश को बदलने के लिए राजनीति में उतरे थे। मसलन, वीवीआईपी कल्चर खत्म करेंगे इत्यादि!

कहते है कि इतिहास किसी को माफ नहीं करता है, क्योंकि केजरीवाल क्या कर रहें हैं रवीसकुमार भी बढ़िया से वाकिफ हैं।

हंगामा खड़ा करना मकसद है शायद #केजरीवाल का और वो अच्छी तरीके से जानते हैं कि दिल्ली मामले का कोई संवैधानिक समाधान नहीं है, क्योंकि दिल्ली की मौजूदा राजनैतिक दशा में यह संभव ही नहीं है?

सभी जानते हैं कि दिल्ली एक केंद्र प्रशासित राज्य है और अन्य केंद्र प्रशासित राज्यों की तरह उप-राज्यपाल ही उसका एकमात्र प्रशासक व सर्वेसर्वा होता है।

केजरीवाल से बस गलती यह हो गई है कि वे दिल्ली को अन्य राज्यों से तुलना कर रहें है और एक अड़ियल घोड़े जैसा रवैया अपनाये हुए हैं!

केजरीवाल से एक ही नहीं, दो गलती हुई है? दूसरी गलती है दिल्ली से चुनाव लड़ना? केजरीवाल अगर हरियाणा में चुनाव लड़ते और जीतते तो शायद उनकी राजनीतिक और प्रशासनिक अक्षमता छुपी रह जाती।

ठीक वैसे, जैसे उत्तर प्रदेश में #अखिलेशयादव पुत्तर प्रदेश चला रहें हैं और #उत्तरप्रदेश का हाल और हालात कैसा है किसी से छिपा नहीं है।

#Kezriwal #AAP #UPGovernment #AkhileshYadav #DelhiGovernment

हां, हम भगत हैं मोदी के, दोबारा मत पूछना?

आप मुझे अंध-भगत कहते हो हमें सच में बुरा नहीं लगता, बल्कि अच्छा ही लगता है कि हम ऐसे आदमी के भगत हैं जिसे सिर्फ विकास और विश्वास की भाषा समझ आती है।

चूंकि आप हमें भगत कहते हो तो हम आपसे भी पूछना चाहते हैं कि आखिर आप किसके भगत हो?

क्या उस सोनिया के जो भारत में इतने साल रहने के बावजूद भी हिंदी बोलना नहीं सीख पाई?

या उस घोंचू के जो एक लाइन लिखने के लिए फ़ोन से नक़ल मारता है?

क्या आप 65 साल तक मानसिक गुलाम और घोटालेबाज पार्टी के भगत थे?

अगर आपको आज हर चीज तबाह नजर आती है, तो क्या आप ये कहना चाहते हो कि 11 महीने पहले तक सब ठीक था?

जैसे नालिओं में गंदे पानी की जगह दूध बहता था ? या अपराध दर शून्य थी ?

या बबूल के पेड पर आम उगते थे? या अमेरिका हमारे पैर पकड़ता था?

या महिला उत्पीडन दर 0% थी? या साक्षरता दर 100% थी ? या कोई किसान आत्महत्या नहीं करता था?

अगर आप इस सरकार को सूट बूट वाली सरकार कहते हो तो आप क्या कहना चाहते हो कि इसके पहले के नेता घटिया और चवन्नी छाप कपडे पहनते थे? या सिर्फ पत्ते लपेटकर ही काम चला लेते थे?

या आप कहना चाहते हो कि देश का प्रधानमन्त्री कोई भोंदू टाइप आदमी होना चाहिए?

आप मोदी की आर्थिक नीतियों पर सवाल उठाते हो? क्या कभी अपने घर का बजट संतुलित कर पाए हो?

आप हर खाते में 15 लाख की बात करते हो क्या कभी 15 लाख रूपये इकट्ठे देखे हैं?

आप बार-बार विदेश दौरे पर सवाल उठाते हो तो क्या आपको सच में विदेश नीति और सामरिक नीति का ज्ञान है?  

आप वही हैं जो 30 साल तक सबसे करीबी श्रीलंका नहीं गए।

 जरुरत के समय आपने नेपाल को पेट्रोल देने से मना कर दिया जिससे उसे चीन के पास जाना पड़ा और उसकी हर बात माननी पड़ी।

जो कनाडा हमें urenium देना चाहता था आप 45 साल तक उस कनाडा तक नहीं जा पाए।

कभी सोचा है आपने कि आपके कितने पड़ोसियो के साथ अच्छे सम्बन्ध हैं या वो आपका मुहं देखना भी पसंद करते हैं या नहीं?

हां, हम भगत हैं ऐसे नेता के जिसके एक साल के राज में आंखें तरस गई किसी घोटाले की खबर पढने को।

हां, हम भगत हैं ऐसे नेता के जो अपने परिवार के लिए नहीं बल्कि देश के लिए रोजाना 20 घंटे काम करता है।

हां, हम भगत हैं ऐसे नेता के जो नवरात्रि के उपवास में भी देश के बाहर रहकर देश का भला करना चाहता है।

हां, हम भगत हैं एक ईमानदार प्रधान सेवक के।  दोबारा मत पूछना?

बुधवार, 20 मई 2015

दिल्ली की जनता आती है, भागो केजरीवाल!

केजरीवाल, " सब मिले हैं जी, हमें काम नहीं करने दे रहें हैं जी? दिल्ली वालों मैं इस्तीफा देता हूं और दिल्ली की जनता पूर्ण बहुमत देगी तब काम करूंगा" (2013)

केजरीवाल, " जी सब मिलकर हमारी सरकार को काम नहीं करने दे रहें हैं" (2015)

सच्चाई यह है कि केजरीवाल केंद्र प्रशासित दिल्ली के मुख्यमंत्री की औकात से अधिक वादे दिल्ली की जनता से कर बैठे हैं और पूरे नहीं कर पाने के डर से घबड़ाये हुए हैं कि जनता जब कॉलर पकड़ेगी वे क्या करेंगे?

यही कारण है कि केजरीवाल भूमिका तैयार कर रहें हैं और अधिकार क्षेत्र से बाहर कूद कर उप-राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद से खेल रहें हैं!

केजरीवाल एक बार फिर पिछले 49 दिनों की सरकार की तरह आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति की मंचन का मंच तैयार कर रहें हैं, लेकिन क्या दिल्ली की जनता आंख और कान में तेल डाल कर बैठी रहेगी?

केजरीवाल की चाल-चरित्र और हरकतों से दिल्ली की जनता पहले ही वाकिफ हो चुकी है, जहां उसने पार्टी के संस्थापक सदस्यों को धक्के मारकर बाहर कर दिया!

आलम यह है कि केजरीवाल की तानाशाही भाषा-शैली और गाली-गलौज से तंग होकर हरियाणा और महाराष्ट्र यूनिट ने इस्तीफा पहले दे दिया!

#Kezriwal #AAP #DelhiCM #LG #BJP

लगता है टेलीब्रांड का नंबर डॉयल कर फंस गई है दिल्ली!

आम आदमी पार्टी कहती थी कि वह उम्मीदवारों के चयन से पहले उनकी धुलाई ट्रिपल एक्शन लेयर वाले हाई ड्युटी वाशिंग मशीन में करती थी?

लेकिन जिस तरह से फर्जी डिग्री विधायक सामने आ रहें हैं उससे तो लगता है कि पार्टी ने पैसा सिर्फ ब्रांड पर खर्च किया है, प्रोडक्ट पर नही?

भला हो दिल्ली वालों का, जिन्होंने टेलीब्रांड का नंबर डॉयल करके अपना घर लुटा दिया, क्योंकि असली प्रोडक्ट तो अब सामने आ रहें हैं!

#Kezriwal #AAP #DelhiCM #Forgery #fraudDegree

मंगलवार, 19 मई 2015

लौट के केजरीवाल और सिसोदिया घर को आये!

विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि एलजी की शिकायत करने राष्ट्रपति भवन पहुंचे मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री
डांटकर भगाये गये!

पिछले 5 दिनों से प्रमुख सचिव के पद पर शकुंतला गैंबलिन की नियुक्ति का विरोध कर रहे केजरीवाल और सिसोदिया को एलजी के आगे झुकना पड़ा और शकुंतला को बतौर प्रमुख सचिव मानने को राजी होना पड़ा !

इसे ही कहते हैं लौट के बुद्धु घर को आये और फिर भी आप के प्रवक्ता टीवी पर अभी भी प्रवचन दे रहें हैं!

#AAP #Kezriwal #Sisodia #DelhiCM #Controversy 

जो कांग्रेस के लिए खतरा है, उससे बीजेपी क्या बदला लेगी?

राहुल गांधी कह रहें हैं कि बीजेपी ने उनसे बदला लेने के लिए अमेठी फूड पार्क बंद कर दिया है?

सवाल यह है कि जिसे कांग्रेस पार्टी में खुद बहुसंख्यक कांग्रेसी नेता राहुल गांधी को पार्टी का अध्यक्ष बनाने को लेकर तैयार नहीं है, उससे भला बीजेपी को क्या खतरा हो सकता है?

सच्चाई यह है कि फूड पार्क के नाम पर राहुल गांधी अमेठी के भोले-भाले लोगों के बीच झूठ की खेती कर रहें हैं!

जबकि वर्ष 2013 में ही कांग्रेस द्वारा प्रस्तावित फूड पार्क से बिजनेसमैन कुमार मंगलम बिड़ला ने हाथ खींच लिए थे !

राहुल गांधी पर एक सफेद झूठ फैलाने के लिए मीडिया में जमकर धुलाई हुई और राहुल गांधी के बचाव में कई कांग्रेसी नेताओं की भी जमकर फजीहत हुई!

राहुल गांधी को ऐसे ही पप्पू नहीं कहा जाता है! करने को कुछ है नहीं, इसलिए राहुल गांधी झूठ फैलाये रहें हैं, क्योंकि झूठ के सिर पैर नहीं होते है?

#RahulGandhi #Pappu #Congress #FoodPark #Amethi #False

केजरीवाल दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बना है या प्रधानमंत्री?

जब दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ने से पहले केजरीवाल को मालूम था कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल नहीं है बल्कि एक केंद्र प्रशासित राज्य है, जहां उप-राज्यपाल को विशेषाधिकार हासिल है?

फिर केजरीवाल क्यों नाहक नौटंकी करके जनता और देश के पैसे का नुकसान कर रहें हैं?

केजरीवाल किसको बेवकूफ बना रहें है ? दिल्ली की जनता को या उन युवाओं को, जिन्होंने उनसे थोड़ी बहुत उम्मीद रखी थी!

खुद को आम आदमी घोषित करके मुख्यमंत्री बन बैठे केजरीवाल अब देश के संविधान से खेल रहें हैं और तानाशाह जैसे व्यवहार करने की कोशिश कर रहें हैं!

केजरीवाल की निंरकुशता देखकर डर लगता है कि कहीं पूर्ण राज्य दर्जा प्राप्त राज्य केजरीवाल का अनुकरण करने लगीं तो संघ-राज्य के संवैधानिक ढांचे को ही खतरा पैदा हो जायेगा?

राष्ट्रपति महोदय को केजरीवाल के निरंकुश व्यवहार पर फटकार लगानी चाहिए, हो सके तो बर्खास्त कर दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा देना चाहिए!

केजरीवाल की हरकतों से लोकतांत्रिक मूल्यों को बहुत आघात पहुंच चुका है और उसके गंदेे आरोपों-प्रत्यारोपों की राजनीति से देश की राजनीतिक शुचिता पर बड़ा आघात पहुंच चुका है!

#Kezriwal #AAP #DelhiCM #PresidentRule

राहुल बाबा, अब लॉलीपॉप का मतलब समझने लगे हैं किसान!

राहुल गांधी की नौटंकी लोग पहले भी देख चुके हैं, इसलिए कोई किसानों से उनके मिलने और तुरंत बाद प्रधानमंत्री को कोसने को लोग गंभीरता से नहीं ले रहें हैं?

जनता राहुल गांधी के ऐसे कई बार देख चुकी है और शहजादे जहां एक बार गये, वहां दोबारा कभी नहीं लौटे? कलावती तो बेचारी पुकारते-पुकारते थक गई!

मुझे तो राहुल गांधी के प्रायोजित कार्यक्रम 'किसान मिलन समारोह' के प्रोड्युसरों और डायरेक्टरों पर अधिक तरस आता है?

क्योंकि अगर राहुल गांधी किसान मिलन समारोह की नौटंकी को बाद बगैर बीजेपी व प्रधानमंत्री को गाली दिये निकल आते जो ज्यादा माइलेज मिलता और सहानुभूति भी मिलती मगर....

राहुल गांधी और उनके डायरेक्टर औक मेंटर यह भूल गये हैं कि किसान अब वो किसान नहीं रहे जो सेंटीमेंट और गांधी परिवार के नाम पर वोट किया करते थे?

 क्योंकि अब किसानी में भी नये जनरेशन के किसान आ चुकी है, जो लॉलीपॉप का मतलब समझने लगे हैं? तो कुछ और दिखाओ-और दिखाओ?

#RahulGandhi #Congress #GandhiFamily
#Modi #Farmers #Amethi

सोमवार, 18 मई 2015

लोकतंत्र में निरंकुश शासक बने फिर रहें हैं केजरीवाल!

दिल्ली में तथाकथित आम आदमी की सरकार चलाने की बात कहने वाले केजरीवाल अब एक निरंकुश शासक की तरह व्यवहार कर रहें है!

70 वादों को पूरा करने की बात को पीछे छोड़ केजरीवाल पॉवर शिफ्टिंग का खेल रहें हैं और उप राज्यपाल से नूराकुश्ती कर रहें है!

केजरीवाल सरकार से अच्छी तो वे सरकार हैं जो बगैर उछल-कूद के काम रहीं है, काम न करने के लिए बहाने तो नहीं ढूंढ रही हैं?

#Kezriwal #AAP #DelhiCM #LG #NazibJung

केजरीवाल ने क्या डपोरशंखों वाली बात कही है?

"मेरी बेटी रिश्वत देने गई, लेकिन अधिकारी ने रिश्वत नहीं लिया! दिल्ली में भ्रष्टाचार खत्म हो गया है जी, हैं जी?      
                                                                -अरविंद केजरीवाल

केजरीवाल मियां! तुम्हारी क्या? किसी की भी बेटी रिश्वत देने जाती तो अधिकारी रिश्वत नहीं लेता, क्योंकि रिश्वत अधिकारी नहीं लेता है?

और मुख्यमंत्री की बेटी से रिश्वत कौन गधा अधिकारी लेता है, किसको मूर्ख बना रहे हो केजरीवाल?

खैर..मूर्खों ने ही तुम्हें दिल्ली पर बिठाया है, उन्होंने जरूर ताली पीटी होगी और अब सिर भी पीट रहे होंगे!

#Kezriwal #AAP #DelhiCM

दिल्लीवालों ने बंदर के हाथ में उस्तरा दे दिया है!

दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने सभी लोकतांत्रिक मूल्यों को ताख पर रख कर पड़ोसी की लड़ाई जैसा रुख अपना लिया है?

सुना है केजरीवाल ने प्रधान सचिव (सर्विसेज) अनिंदो मजूमदार के दफ्तर में ताला लटका दिया है!

यह तो ठीक वैसे है जैसे घर की चौहद्दी के परनाले की  लडाई के बाद नाली जाम कर दी गई हो कि न तुम्हारे घर पानी बहेगा न मेरे घर का?

राष्ट्रपति जी अब आप ही बीच में आओ और संज्ञान लेकर लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या करने वाले केजरीवाल से दिल्ली को मुक्त कराओ वरना पता नहीं क्या-क्या देखने पड़ेंगे इस देश को?

ऐसा लगता है जैसे बंदर के हाथ में उस्तरा दे दिया है दिल्लीवालों ने! वो कहते हैं न कि समझदार से नहीं, ज्यादा खतरा डेढ़ समझदार से होता है और फिर केजरीवाल को तो सभी जान ही गये हैं? आमीन!

#Kezriwal #AAP #DelhiCM

रविवार, 17 मई 2015

डोरेमोन को छोड़, अब किसानों से खेल रहें हैं शहजादे!

पिछले 10 वर्षों का ही हिसाब लगाये तो पता चलेगा कि शहजादे राहुल गांधी काम नहीं, छुट्टियों में अधिक रहें है!

और बैंकाक से 56 दिनों की छुट्टियों से लौटे शहजादे को ऐसी कौन सी एनर्जी ड्रिंक का इंफेक्शन हो गया कि डोरेमोन को छोड़ अब वे किसान-किसान खेलने लगे है?

ईश्वर भला करें किसानों का, किसान नहीं जानते कि शहजादे खेल रहें है और खेल खत्म होते ही शहजादे निकल लेंगे!

पेट्रोल-डीजल मूल्यों में वृद्धि पर हाय तौबा क्यों?

घर का बजट बिगड़ जाये तो उसको सुधारने में सालों गुजर जाते हैं और बजट को सुधारने के लिए कड़े फैसले भी लेने पड़ते है, क्योंकि कोई भी दुकानदार हमारे बिगड़े बजट को सुधारने के लिए अपना सामान कम दामों पर नहीं बेचता?

देश का बजट भी ऐसे ही है, जब देश की अर्थ-व्यवस्था बिगड़ी हो, राजकोषीय घाटा अधिक हो तो देश का बजट सुधारने के लिए आश्यकतानुसार कड़े फैसले लेने ही पड़ते हैं!

पेट्रोल और डीजल के रेट जब अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में कम हुए तो पेट्रोल-डीजल के रेट नीचे चले गये, लेकिन जब बढ़ रहें हैं तो बढ़ाये जा रहें हैं! इसमें हाय तौबा कैसा?

वैसे भी भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें सरकार की नियंत्रण से बाहर हैं और तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल के रेट घटाते बढ़ाते हैं?

हां, सरकार तेल कंपनियों का बढ़े मूल्यों का घाटा देकर पेट्रोल-डीजल के दाम स्थिर रख सकती है, लेकिन इससे देश पर ही भार बढ़ेगा और बजट हमेशा बिगड़ा ही रहेगा और बजट और अर्थ-व्यवस्था कभी नहीं सुधरेगा?

ठीक वैसे, जैसे हम घर का बजट सुधारने के लिए लग्जरी चीजों पर पैसा खर्च करना बंद कर देते है! कोई एक घर ऐसा नहीं मिलेगा जो लग्जरी जरूलतों को पूरा करने के लिए लोन लेगा और खुश रह पायेगा?

तो देशवासियों दिमाग लगाओ और दुष्प्रचार में नाक-कान देना बंद करो! देश बचेगा तभी घर बचेगा और अगर घर का बजट सुधार सकते हो तो देश का बजट सुधारने में अपना योगदान करो?
#Petrol #Diesel #Hike #CrudeOil  #InternationalMarket

अराजक केजरीवाल संविधान से खेलने को मजबूर हैं !

भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे अराजक मुख्यमंत्री का नाम लिया जायेगा तो वह अरविंद केजरीवाल होगा!

कार्यवाहक मुख्य सचिव के पद पर शकुंतला गैंबलिन की आंशिक नियुक्ति के डर से केजरीवाल इतनी खौफजदा है कि एडवाईजरी जारी कर दिया है जबकि यह नियुक्ति महज 10 दिन की है?

केजरीवाल से दिल्ली की जनता ने ईमानदारी की उम्मीद में वोट किया था, लेकिन केजरीवाल पर्दे के पीछे के अपने कुकर्म को छिपाने के लिए कार्यवाहक मुख्य सचिव की नियुक्ति रोक रहा है ताकि उसकी पोल न खुल जाये?

सभी जानते हैं कि केजरीवाल जब से दिल्ली का मुख्यमंत्री बना है तब से मीडिया से दूरी बनाकर बैठा है और अपने मनमाने कार्यों में बाधक उन सभी को किनारे लगा रहा है ताकि उसकी अक्षमताएं छुपी रह सके?

केजरीवाल की स्थिति ऐसी हो गई है कि जो निवाला उसने मुंह में ले रखा है, उसको न उगलते बन रहा है और न खाते बन रहा है!

क्योंकि मुख्यमंत्री तो दिल्ली की जनता ने बना दिया है, लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद अराजक पसंद केजरीवाल अब पद की गरिमा और उत्तरदायित्य को निभाने में खुद को असमर्थ पा रहा है!

शायद यही कारण है कि केजरीवाल केंद्र प्रशासित राज्य दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग के संवैधानिक अधिकारों को न केवल चुनौती दे रहा है बल्कि संविधान की अवमानना करने से नहीं चूक रहा है!

सत्ता के नशे में चूर केजरीवाल को ईश्वर थोड़ी सी बुद्धि दे वरना वह दिन दूर नहीं जब देश के राष्ट्रपति ही नहीं, दिल्ली की जनता भी उसे डंडे से खदेड़ देगी!

#Kezriwal #AAP #LG #ShakuntlaGamblin #DelhiCM #Anarchist

गुरुवार, 14 मई 2015

केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट ने बताई उसकी औकात!

दिल्ली के मुख्यमंत्री बनते ही मीडिया सर्कुलर के जरिये मीडिया का मुंह बंद करने की कोशिश करने वाले केजरीवाल के मुंह पर बहुत ही तगड़ा तमाचा लगा है, जिससे अब केजरीवाल को समझ आ जायेगा कि वो मीडिया से जन्में हैं, मीडिया उनसे नहीं?

कैसे इंसान अपनी औकात भूल जाता है, इसके ताजा उदाहरण केजरीवाल हैं। केजरीवाल के वैयक्तिक और व्यवहारिक भ्रष्टाचार पर सवाल उठे तो भाई साहब चले मीडिया को सबक सिखाने?

केजरीवाल की हरकत देख ऐसे लगा जैसे कोई धूप से बचने के लिए सूर्य को ढ़कने का सर्कुलर जारी कर दे।

ये वही केजरीवाल हैं जो महज मीडिया की उपज है, जिसका खुद का कोई अस्तित्व नहीं है, ये उसकी मीडिया सर्कुलर जैसी उन तमाम हरकतों से साबित हो चुका है।

सुप्रीम कोर्ट के तमाचे के बाद भी केजरीवाल की हरकतों पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है, क्योंकि इसकी क्रिया-कलापों से ऐसा ही लगता है।

अभी केजरीवाल टीवी पर एक विज्ञापन में नजर आ रहा है, जिसमें वह दिल्ली में भ्रष्टाचार कम करने की वाहवाही लूट रहा है।

केजरीवाल विज्ञापन में कहता हुआ देखा जा सकता है कि उसने दिल्ली वालों को  तथाकथित सस्ती बिजली और पानी और दिल्ली के किसानों को 50,000 प्रति एकड़ मुआवजा भ्रष्टाचार कम करके देने में सफल हुआ?

मतलब केजरीवाल अप्रत्यक्ष रुप से देश के उन सभी राज्यों को मुख्यमंत्रियों को भ्रष्टाचारी बता रहा है, जो अपने राज्यों के किसानों को 50,000 प्रति एकड़ मुआवजा नहीं दिया है।

संभव है जल्द ही राज्य सरकारें केजरीवाल के इस ऊल-जुलूल विज्ञापन और प्रचार भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठायेंगी।

बुधवार, 13 मई 2015

रिश्तों का इल्जाम न दो?

मैं उन दिनों सर्वोदय एनक्लेव में रहता था। एक मोहतरमा आईं और मेरी ही बिल्डिंग में मेरे ही पड़ोस के कमरे में शिफ्ट हों गईं।

अक्ल का पता नहीं पर मोहतरमा शक्ल से आकर्षक व सुंदर थीं, लेकिन शादीशुदा थी। नई-नई शादी हुई थी शायद?

पतिदेव दिल्ली में ही कार्यरत थे और मोहतरमा नौकरी तलाश रहीं थीं। दोनों साथ-साथ पड़ोस के कमरे में शिफ्ट हुए थे।

जो मुझे जानते हैं, वो जानते हैं कि मैं घुलने-मिलने में बहुत समय लेता हूं, वो चाहे लड़की हो या लड़का? कोई जेंडर भेदभाव नहीं!

उन दरम्यान कई बार ऑफिस को निकलते और ऑफिस से वापस आते समय एकदूसरे का दीदार हो जाया करता था, लेकिन बातचीत बिल्कुल नही?

न उन्होंने कभी पहल की और मैं तो पहल करता ही नहीं, चाहे बरस बीत जाये। एक महीने के अंतराल बाद एक दिन मोहतरमा ने सुबह-सुबह ही मेरे दरवाजे पर दस्तक दिया!

मैं अमूमन दरवाजे पर दस्तक को पसंद नहीं करता हूं, इसीलिए मकान मालिक को रेंट समय से पूर्व दे आता हूं। फिर भी कोई दरवाजा पीटता है तो बिना दरवाजा खोले निपटाने की कोशिश करता हूं ।

खट-खट की आवाज कई बार आई तो पूछ बैठा, " कौन?
आवाज आई , "मैं....मैं आपके पड़ोस में रहती हूं। मैंने दरवाजा खोला तो देखा सामने पड़ोस वाली मोहतरमा खड़ी थीं और मुझसे मेरा मोबाइल फोन मांग रहीं थी। शायद कोई एमरजेंसी कॉल करना था उनको?

उन्होंने बताया कि उनका फोन काम नहीं कर रहा है और उन्हें जरूरी कॉल करना है? मैंने फोन उठाकर दिया, लेकिन मोहतरमा को मेरे सामने ही बात करनेे की छूट दी और बात खत्म होते ही जैसे ही उन्होंने फोन वापस दिया, मैंने दरवाजा बंद कर लिया।

यह बात आई-गई हो गई और इस बात को कुल 3 माह बीत गये! न उन्होंने शुक्रिया कहा और न मैंने धन्यवाद किया!

मैं ऐसा ही हूं। जबरदस्ती के रिश्तों में जुड़ना पसंद नहीं है, क्योंकि आजकल के रिश्ते बहुआयामी हो गये हैं, लोग भैय्या बोलकर जिंदगी की नैया तक डूबो देते हैं, लेकिन यह अवसर न मैं लेता हूं और न ही किसी को देता हूं।

अमूमन जहां भी मैंने अभी तक काम किया है, वीकेंड मेरा बुधवार+गुरुवार होता है। यह मेरी खुद की च्वाइश होती है, अपवाद भी हुए हैं।

वीकेंड के एक दिन एक बार फिर मोहतरमा ने  दरवाजा खटखटाया और अंदर से बाहर आया तो सामने मोहतरमा खड़ी थी।

मोहतरमा मुझसे फिर कुछ मांगने की इच्छा लेकर आईं थी, लेकिन इस बार लगा लक्ष्य भिन्न था। वो मेरे फ्लैट के अंदर की रखी व्यवस्थित चीजों को बड़े कौतुहल से देख रहीं थी।

और फिर एकाएक मोहतरमा ने एक साथ दो सवाल उछाल दिये, " आप अकेले रहते हैं? आप क्या करते हैं?

परिचय पूरी होेने के बाद मोहतरमा वापस चलीं गईं और मैंने दरवाजा फिर पीटकर बंद कर लिया।

नि:संदेह मोहतरमा ने पूरे 6 महीने तक एक ही बिल्डिंग में पड़ोस में रहते हुये मेरे बारे में खूब रिसर्च कर लिया था और मुझसे किसी भी प्रकार की खतरे की आशंका और संभावना नहीं होने के प्रति आश्वश्त थीं?

अब आते-जाते, उठते-बैठते मोहतरमा से संवाद कायम होने लगा और उनके पतिदेव भी मुझसे बातचीत करने की कोशिश करने लगे। हालांकि पतिदेव शुरू में संवाद में आशंकित ही रहे।

स्थिति यह हो गई कि अब मेरी टीवी और फ्रिज आधी उनकी हो गई थी और मैं भी अब दरवाजे बंद करना भूल जाता था, क्योंकि मोहतरमा जब चाहे दरवाजा खटखटाने की आदी हो गईं थी।

मैं भी खुश था वीकेंड पर दिन अच्छा गुजरने लगा था। क्योंकि वीकेंड महसूस करने के लिए मल्टीप्लेक्स में घटिया फिल्मों का अनावश्यक फस्ट्रेशन बंद हो गया था।

मोहतरमा भी खुश थीं, मैं भी खुश था और मोहतरमा के पतिदेव भी खुश थे और हम एक परिवार की तरह अगले 3 महीने रहे, बस मेरे और महिला के रिश्ते परिभाषित नहीं थे, जिसको लेकर कभी-कभी मोहतरमा हिचक जाती थीं!

एक दिन अचानक फ्रिज से दूध निकालते समय मोहतरमा ने बात छेड़ने की अंदाज में न चाहते हुये बोलीं, "आपको मैं भैय्या बोलूं तो बुरा तो नहीं लगेगा?

मैं सवाल सुनकर बेचैन नहीं हुआ और उल्टा पूछ बैठा, क्यों क्या हुआ? पतिदेव ने कुछ कहा क्या?

मोहतरमा मुस्कराई और बोली, "नहीं ऐसा कुछ नहीं है, फिर भी अगर...मतलब हम भाई-बहन ही हुये न?

मैं गहरे सोच में पड़ गया? मोहतरमा जाने को हुईं तो मैंने रोक लिया। तुम कहती तो ठीक है, लेकिन ये आज तुम्हें क्यों सूझी?

मैंने आगे कहा, "तुम्हें रिश्ते को नाम देना है तो दे दो, मुझे कोई आपत्ति नहीं है पर हम हमारे रिश्ते को दोस्ती भी तो कह सकते हैं, जिसमें भाई-बहन जैसी ही मर्यादा है और आगे भी रह सकती है।"

मोहतरमा अवाक थीं पर बेचैन नहीं! वे कुछ देर चुप रहीं फिर बोली, " पर मेरा नाम तो आपको नहीं मालूम है?

मैं मुस्करा पड़ा और मोहतरमा वापस चलीं गईं। अब हम एक दूसरे को नाम से पुकारने लगे, न दीदी और न भैय्या?

मेरी पड़ोसन तो मुझसे भी वृहद सोच और नजरिये की महिला निकली और मैं समझता था कि एक महिला की दुनिया सामाजिक सरोकारी रिश्तों तक ही सिमटी रहती है। लेकिन ऐसे बहुत कम लोग हैं जो नाम से इतर जहीनी रिश्तों से जुड़ने की कोशिश कर पाते हैं।

क्योंकि "एक लड़की और एक लड़का कभी दोस्त नहीं हो सकते?" जैसे जुमले महिला और पुरुष की दोस्ती की परिभाषा को कभी मर्यादित परिभाषित कर ही नहीं सकते?

इस बीच एक महीने सब कुछ ठीक रहा, लेकिन एक महीने बाद ही मोहतरमा पतिदेव के साथ गुड़गांव शिफ्ट कर गईं और सवाल छोड़ गईं कि पुरुष से महिला की दोस्ती कितनी ही मर्यादित क्यों न हो पर अग्नि परीक्षा से एक महिला को ही गुजरना पड़ता है।

संसद में शहजादे की सुरक्षा में लगा है शहजादों का गिरोह?

कैसे पढ़े-लिखे गंवार लोकसभा में मौजूद हैं। मुझे हुड्डा परिवार में दीपेंद्र हुड्डा से थोड़ी-बहुत उम्मीद थी?

हरियाणा में किसानों की जमीन रॉबर्ट वाड्रा को मुफ्त देकर मुख्यमंत्री की कुर्सी गवां चुके भूपेंद्र हुड्डा के सुपुत्र दीपेंद हुड्डा अब किसानों के लिए संसद में घड़ियाली आंसू बहाते हुये मर्यादा भूल गये।

दीपेंद्र हुड्डा ने लोकसभा में आज अमेठी फूड पार्क मुद्दे पर महज झूठ के आधार लोकसभा स्पीकर पद की गरिमा से खिलवाड़ करके जता दिया है कि वे कितने बड़े बुद्धिजीवी हैं।

यही नहीं, संसद भवन में शहजादे राहुल गांधी के आसपास ऐसे राजनेताओ के सुपुत्रों की पूरी जमात है, जिनका काम सिर्फ शोर मचाना है, हो-हल्ला करना है और राहुल गांधी का कवच बने रहना है।

इनमें दीपेंद्र हुड्डा (भूपेंद् हुड्डा), गौरव गोगोई (तरुण गोगोई) अशोक चाह्वान प्रमुख हैं।

अब देश के चोर बतायेंगे थाने का पता?

चोरी और घोटालों की गिरोह चला रही कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष सही कह रहें हैं कि बड़े चोर सूट-बूट पहनकर आते हैं?

लंदन और इटली के ड्राई क्लीन्ड कपड़े पहनने वाले सूट-बूट वाले कांग्रेसी नेता व पूर्व प्रधानमंत्री से सारे परिचित है?

अरे! दामाद जी का तो जिक्र रह ही गया, वैसे सभी जानते हैं रॉबर्ट वाड्रा ने कितने किसानों की जमीन जबरन हथिया ली है और वे किसान अब खून के आंसू रो रहें हैं।

कोई नहीं, पप्पू अपने ही घर की पोल खोल रहा है? कांग्रेसी सोच रहें होंगे कि किस मनहूस घड़ी में 'राहु'ल पैदा हुआ?

मंगलवार, 12 मई 2015

पप्पू की फस्ट्रेशन का मोल नहीं, जनहित योजनाएं जरुरी!

मौजूदा केंद्र सरकार की योजनाएं देश और जन कल्याणकारी हो सकती हैं, जिनमें भूमि अधिग्रहण कानून प्रमुख है।

लेकिन वे लोग केंद्र सरकार की उक्त योजनाओं का विरोध सर्वाधिक विरोध कर रहें हैं, जो फस्ट्रेशन में हैं। इनमें कांग्रेस प्रमुख हैं, लेकिन ज्यादा तकलीफ में वे हैं जो अलग-थलग है, जैसे- #अरूणशौरी और #गोविंदाचार्य!

बीजेपी को मार्गदर्शक टीम के लिए कुछ और पद सृजित कर लेना चाहिए, क्योंकि खाली दिमाग शैतान का घर कहा जाता है।

रहा सवाल कांग्रेसी नेताओं का तो विपक्ष का काम ही होता है विरोध करना? अब पप्पू (#राहुलगांधी) एक बार फिर अपनी किस्मत आजमां रहा है तो आजमाने देना चाहिए?

पप्पू पास तो होने से रहा, क्योंकि रट्टा मारकर पप्पू साथी शहजादों के साथ बैठकर सिर्फ हो-हल्ला जरूर कर सकता है, लेकिन ऐन परीक्षा में फेल होना उसका तय है।

हालांकि पप्पू के पास हल्ला के लिए अभी पूरे 4 साल हैं, लेकिन केंद्र के पास काम करने के लिए अब महज 4 साल ही बचे है!

इसलिए केंद्र सरकार को बेखौफ अपना काम करना चाहिए और जन कल्याणकारी योजनाएं लागू करने और विपक्ष को संभालने के लिए साम-दाम-दंड-भेद के साथ-साथ कड़वी-मीठी गोली की फिक्र नहीं करनी चाहिए।

क्योंकि 5 साल बाद देश की जनता सिर्फ काम देखेगी और विशाल बहुमत होने के बावजूद केंद्र सरकार की वह छोटी-बड़ी असफलता के लिए किसी बहाने को माफ नहीं करेगी?

क्योंकि जनता सिर्फ वजूद में मौजूद कामों का हिसाब लेती है और फिर जनादेश लिखती है और वादों के मुताबिक किये गये विकास कार्यों के आगे पप्पू और विपक्ष के सच्चे-झूठे शोर नक्कारखाने में तूती की आवाज ही साबित होनी है।

तो प्रधानमंत्री जी सिर्फ काम कीजिये और शोर पर ध्यान मत दीजिये, देश को आपसे बहुत उम्मीद है!

#Pappu #RahulGandhi #Congress #Modi #BJP #LAB

सोमवार, 11 मई 2015

मीडिया के बाद अब केजरीनाल को धरने में भी दिखने लगी है साजिश?

हड़ताल और धरने की राजनीति से सत्ता तक जा पहुंचे केजरीवाल एंड टीम को अब डीटीसी कर्मियों के हड़ताल में साजिश नजर आ रही है?

तो क्यों न हम केजरीवाल और टीम के धरने-प्रदर्शन और रैली को सियासत में घुसने और दिल्ली की राजनीति की में प्रवेश करने की साजिश समझे?

झूठे आरोपों और कपट के सहारे केजरीवाल मुख्यमंत्री बन बैठे और अब उनके सिपहसालार धरने-प्रदर्शन को राजनीतिक साजिश करार दे रहें हैं?

भगवान ही मालिक है दिल्ली का और दिल्ली की जनता का, जिन्होंने जाने-अनजाने सिर पर भस्मासुर बैठा लिया है!
#Kezriwal #AAP #Protest #GopalRai #DTCBus

गुरुवार, 7 मई 2015

एक बार फिर पप्पू (राहुल गांधी) फेल हो गया!

पप्पू उर्फ राहुल गांधी को आलू और चिप्स के दाम नहीं पता है? क्योंकि पिछले 10 वर्ष सत्ता में पप्पू की अम्मा की सरकार ही थी!

पप्पू का कहना है कि 2 रुपये प्रति किलोग्राम के आलू से 10 रुपये के चिप्स बिकते है?

पप्पू के मुताबिक एक किलोग्राम आलू से महज 10 रुपये के चिप्स निर्मित हो पाते हैं? यानी किसान ही नहीं चिप्स बनाने वाली कंपनियां भी घाटे में हैं!

अब पप्पू से क्या उम्मीद की जा सकती है? किसी ने लिखकर दे दिया और पप्पू ने बोल दिया, इसमें पप्पू की क्या गलती है?

पप्पू को कोई बता दे कि एक किलोग्राम आलू में चिप्स बनाने वाली कंपनियां 10 रुपये नहीं, 100 रुपये कमाती हैं?

कहते हैं कि बकरे को शेर को खाल पहनाने से बकरा मिमियाना नहीं छोड़ देगा, पोल तो खुल ही जाती है?

केजरीवाल की हिम्मत देखो ?

महाराज पार्टी सदस्यों की तरह अब मीडिया को भी डिक्टेक्ट करने जा रहें है? सुना है भाई साहब ने टीवी न्यूज चैनलों के प्राइम टाइम शो की निगरानी करवाने के लिए एक कमेटी बना दी है ।

कहते हैं विनाश काल में बुद्धि विपरीत हो जाती है, लेकिन केजरीवाल की बुद्धि ही भ्रष्ट हो चुकी है, अब तो हो चुकी दिल्ली भ्रष्टाचार मुक्त!

क्योंकि भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए केजरीवाल पार्टी के भ्रष्ट नेताओं पर कार्यवाही करने के बजाय मीडिया पर लगाम कसने की तैयारी कर रहें हैं?

ईश्वर केजरीवाल एंड टीम को सद्बुद्धि प्रदान करें ताकि दिल्ली के वोटरों की हवाई ख्वाहिशें जिंदा बची रह सकें!

Why is Narendra Modi making more foreign visits?

Barack Obama and China supports India's bid for permanent UNSC seat.- $35 billion investment by Japan over a period of 5 years and along with it their expertise in making bullet trains.

Australia is set to sign a Nuclear Power deal with India to supply around 500 tonnes of Uranium to India.

Satya Nadella (Microsoft), Indra Nooyi (Pepsico), Sheryl Sandberg (Facebook), Jeff Bezos (Amazon), Mark Zuckerberg (Facebook) discussespossible investments.

Israel inks $5 million deal for Joint Educational Research programme.- $20 billion investment from Xi and his Chinese counterparts.

 2 billion Euros support from France for sustainable development in India.- Airbus to increase outsourcing in India from 400 million euros to 2 billion euros over the next five years.

French National Railways has agreed to co-finance an execution study for a semi-high speed project on upgradation of the Delhi-Chandigarh line to 200 kmph.

Canada agrees to supply 3,000 metric tonnes of uranium to India from this year to power Indian atomic reactors. While we are all yearning for a transformation, development, etc.

There is someone who is actually settingup the infrastructure for it. Marketingof 'Brand India' has never been so important !!

Number of days Modi stayed abroad touring 15 countries as a PM on official trips = 45.

Number of days Rahul stayed abroad (Bangkok) without informing his voters= 57.Let's be sensible to analysis & make a judgment !!!

Courtesy- Subham Chaudhary

सोमवार, 4 मई 2015

मीडिया को मिला भस्मासुर केजरीवाल!

शिव ओम गुप्ता
ऊल-जुलूलू हरकतों और गंदी भाषा शैली के आधार पर आज यह कहा जा सकता है कि अरविंद केजरीवाल भारतीय इतिहास का सबसे अमर्यादित मुख्यमंत्री है, जो भारतीय राजनीति को हमोशा कलंकित करता रहेगा।

ऐसी भाषा शैली और एप्रोच से केजरीवाल बोलता है कि लगता ही नहीं कि उक्त भाषा प्रदेश के शीर्ष पद पर बैठे मुख्यमंत्री की होगी।

एक उदाहरण-

केजरीवाल, "मीडिया ने आम आदमी पार्टी को बदनाम और बर्बाद करने की 'सुपारी' (गैंगस्टर की भाषा) ले रखी है।"

ये वहीं केजरीवाल हैं जिन्हें मीडिया ने हीरो से मुख्यमंत्री पद पर बैठा दिया है। मीडिया को भी अब चिंतन करना चाहिए कि उसका काम सिर्फ सूचना देना है, एजेंडा सेट करना नहीं?

वरना जनता को ही नहीं, मीडिया को भी केजरीवाल नामक भस्मासुर मिल सकता है, जो खुद को बनाने वाले को ही सबसे पहले भस्म करने की कोशिश करता है!

#Kezriwal#AAP #Media #DelhiCM #GobackIndianMedia #DontComeBackIndianMedia #NepalEarthquake

शनिवार, 2 मई 2015

देश को लूटने वाली कांग्रेस अब रॉबिनहुड बनीं फिर रही है!

जमीन बेची, खदान बेचा, खेत और खलिहान बेचा... देश में ऐसी कोई जगह नहीं बची है, जिसमें 68 सालों तक खान्ग्रेस ने घोटाले नहीं किये। गांधी खानदान की तो बात ही मत करो...

RTI से मिली जानकारी के अनुसार दिल्ली में सिर्फ 3
समाधि (गांधी, नेहरू और इंदिरा) के लिए कुल 6000 करोड़ रुपए किमत की जमीन पर कब्जा जमाये हुए हैं।
इस लिस्ट में अगर राजीव को शामिल करें तो पूरे देश में आंकडा 70000 करोड़ रूपये तक जाता है।

खान्ग्रेस के दामाद रोबट वद्रा ने ताकत आजमाईश से दिल्ली, हरियाणा, यूपी, राजस्थान और हिमाचल में किसानों की हजारों एकड़ जमीन और समेत कई प्राईम प्रॉपर्टीयां हडप ली...

एक तिहाई कश्मीर पाकिस्तान को और आधा अरुणाचल प्रदेश चीन को देने वाला पापी परिवार आज जमीन की बात करता है, और ये सब कुछ उसी अंग्रेजों के बनाए 'भूमि- अधिग्रहण कानून' के सहारें।

लेकिन जब किसान कुदरत की मार झेल रहा था, तब खान्ग्रेस के शहजादे 'पप्पू' 58 दिन विदेशों में मौज मना रहे थे, आज जब किसान के आँसू सुख गये तब पप्पू अचानक नौटंकबाजी करने चुनावी प्रचार में उतर आयें।

अरे मोदी को आए अभी साल भर भी नहीं हुआ... और 68 साल लुट मचा रही खान्ग्रेस और उसके एजेंट केजरीवाल यह दिखाने में लगे है की किसानों का सबसे बड़ा दुश्मन मोदी है... कमाल है।

इन्हें पता चल चूका है की नमो पांच साल में इनकी इतनी गहरी कब्र खोद देंगे की इनकी आने वाली पीढ़ियां भी उसमें से नहीं निकल पाएंगी।

Courtesy:- निर्मल शर्मा 

अरुण शौरी का फस्ट्रेशन उन्हें कहां ले जायेगा?

शिव ओम गुप्ता
भाजपा में फस्ट्रेटेड नेताओं की कमी नहीं है। अरुण शौरी को भी मार्गदर्शक मंडल वाली टीम में धक्का दे दिया जाना चाहिए, क्योंकि लाइमलाइट में न रहने की कमी सबको खलने लगती है?

मोदी सरकार की 'सबका साथ-सबका विकास' और जन-धन योजना को जहां अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिल गई है और कई देश उस पर अमल करने की बात कह रहें है।

यहां तक कि विश्व बैंक प्रमुख से लेकर वैश्विक रेटिंग एजेंसीज तारीफ कर रही हैं, ऐसे में शौरी और मीडिया प्रोपेगेंडा को समझना आसान है, जिनका मकसद ही कुछ और है!

एक बार मान भी लें कि अरूण शौरी की बात एक फीसदी सही भी है, तो शौरी उक्त बातें 'ज्ञानवर्धक बातें' पार्टी फोरम में भी उठा सकते थे? प्रधानमंत्री से स्वयं मिल सकते थे, लेकिन?