बुधवार, 16 दिसंबर 2015

दर्शकों को बड़ी और संकुचित सोच में बांटकर शाहरूख दिलवाले हिट कराना चाहते हैं?

शाहरूख खान जैसे बकलोल ने कहा है कि कुछ संकुचित  सोच वाले लोग उनका विरोध कर रहें हैं, लेकिन इस दोगले को कोई यह बताये कि संकुचित इसकी थी, जिसने अपनी छोटी और ओछी सोच से देश के प्यार और आशीर्वाद पर असहिष्णुता कहकर बट्टा लगा दिया है।

कमीना को 18 दिसंबर को रिलीज होने जा रही अपनी नई फिल्म #दिलवाले को सुपरहिट करवानी है, इसलिए कमीने ने दर्शकों को संकुचित और बड़ी सोच में बांटकर उन्हें बेवकूफ बनाने की साजिश रची है।

ताकि एक बड़ा दर्शक वर्ग बड़ी सोच का दिखावा करने के लिए दिलवाले के खिलाफ घोषित -अघोषित बाइकाट से अलग-थलग हो जाये और दिलवाले बॉक्स ऑफिस पर कमाई कर सके?
#Dilwale #ShahRukhKhan #BoxOffice #Bollywood

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

You really changed the face of corruption Mr.Kezriwal?

Dear Delhites...Did you heard 400 % hike in your voted/elected MLA's salary?

Yeah it's true, Your so called revolutionary government AAP approved this sin and looted govt treasure/people's money at front?

Can't remember such thief like AAP party who stealing money in front of each eye with beating drums.

AAP leader Arvind kezriwal shows his style of corruption & loot against people's money!

Shame on you krzriwal... You said inncent people of Delhi that helplessly you joined Politics to clean the corruption because everyone political party are corrupt?

Now Mr. Kezriwal see your face in the mirror and decide who is most corrupt today? Think once...you got answer...?

Mr.Kezriwal... You are most corrupt leader of today who looted public money/Govt treasure in front of elected people.

You really change face of corruption Mr. Kezriwal?

#Kezriwal #AAP #Corruptipn #SalaryHike

गुरुवार, 3 दिसंबर 2015

कांग्रेसी नेता कु. सैलजा भी मान गईं कि कांग्रेसी सरकारें नकारा थीं!

कांग्रेस और कांग्रेसी नेताओं की फस्ट्रेशन देखते ही बनती है। कभी यूनियन मिनिस्टर रहीं कुमारी सैलजा कहती है कि वर्ष 2013 में जब वह द्वारका स्थित मंदिर गईं थीं तो उनसे उनकी जाति पूछा गया था?

सैलजा मैडम, जब यह सवाल अगर 2013 में पूछा गया था तो बतौर यूनियन मिनिस्टर तब क्यों नहीं कुछ उखाड़ लिया और अब क्यों गड़े मुर्दे उखाड़ रही हो?

हद है मतलब...कुछ भी? क्या सैलजा जैसे नेता देश की जनता को अभी भी मूर्ख समझती हैं कि जो भी बकलोली वो करेंगी वो मान जायेगी।

सैलजा मैडम जो काम पिछले 60-65 वर्षों में कांग्रेस की कोई सरकारें नहीं कर पाई, उसे वह बीजेपी सरकार के 18 महीने के कार्यकाल में ही देखना चाहती है या मकसद कुछ और है।

मैडम सैलजा यह 5, 000 वर्ष पुरानी संस्कृति है, जिसे सुधरने में वक्त लगता है और आपने कुछ किया होता तो आपको अपना मुंह खोलने हक भी होता और अब महज सरकार को बदनाम करने के लिए बनावटी असहिष्णुता का झूठा मातम कर रहीं हैं।

मैडम सैलजा ही नहीं, ऐसे तमाम कांग्रेसी नेता समाज सुधार की लुकाठी लिए जहां-तहां घूमते फिर रहें हैं, लेकिन इनमें यह बताने की जरा भी संकोच और शर्म नहीं है कि देश पर प्रत्यक्ष और परोक्ष 60 वर्ष से अधिक शासन करने वाली कांग्रेसी नेताओं ने सरकार में रहते हुए मलाई काटने के अतिरिक्त अब तक कुछ क्यों नहीं किया था?

मतलब, आज हर कांग्रेसी नेता समाज और संस्कृति सुधार के लिए निकल पड़े हैं, जिसको देखो वही ज्ञान पेल रहा है कि देश में फलां गलत है और ढेमका को सही होना चाहिए, लेकिन यह नहीं बताते उन्होंने क्या उखाड़ लिया था?

यानी कांग्रेसी यह मान चुके हैं कि देश में कुछ भी अच्छा व सुधार हो सकता है तो वह मोदी (बीजेपी) सरकार ही कर सकती है और अब तक चुनी गई कांग्रेसी सरकारें नकारा थी, जिन्होंने सिर्फ अपनी जेबें भरीं और कुछ नहीं किया?
#KumariShailja #Congress #Intolerance

बुधवार, 2 दिसंबर 2015

मुस्लिमों को निजी हकों के लिए हितैषियों की जरूरत नहीं है!

शिव ओम गुप्ता
कांग्रेस समेत जितनी भी राजनीतिक पार्टियां और पार्टी के नेता मुस्लिम हितैषी होने की बात करते हैं, मुस्लिमों को सर्वाधिक इन्हीं लोगों ने ठगा है।

हिंदुस्तान में मुस्लिम की आबादी जहां कहीं भी है, वहां मुस्लिमों ने चाहते और न चाहते हुए इन्हीं चिकनी -चुपड़ी बात करने वाले राजनीतिक पार्टियों को वोट दिया है और आजादी के बाद से लेकर अब तक की मुस्लिमों की हालत किसी से छिपी नहीं है।

बात उत्तर प्रदेश की हो, या पश्चिम बंगाल अथवा बिहार की, बात साउथ की हो या नॉर्थ की। ऐसा लगता है कि देश का मुस्लिम मतदाता और मुस्लिम मतों का विभाजन अपने-अपने पाले में करने वाली पार्टियां एक दूसरे पर एहसान कर रहीं हैं?

 "हमें तो वोट तुम्हें देना ही था, नहीं तो तुम कहां जाओगे" (तथाकथित मुस्लिम हितैषी राजनीतिक दल)
"हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन पार्टी सरकार बनाती है, बस फलां को वोट नहीं करना है।" ( एक आम मुस्लिम)

मतलब, देश के मुस्लिम मतदाताओं को तथाकथित मुस्लिम हितैषी दलों ने इस कदर डरा और धमका रखा है कि देश के प्रत्येक चुनाव में हिस्सा तो जरूर लेते हैं लेकिन उनके हकों की हिस्सेदारी कभी योजनाओं में, तो कभी दान-अनुदान तक सिमट जाती है।

देश के नागरिक के तौर पर मुस्लिम प्रत्येक 5 वर्ष तक अपना राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक हक तथाकथित मुस्लिम हितैषी दलों के घर गिरवी रख आता है, लेकिन जो उन्हें सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक मोर्चे पर सबल और सशक्त बनाना चाहता है, उससे उन्हें साजिश की बू आती है।

इतिहास गवाह है कि पिछले 60-65 वर्षों से देश का मुस्लिम ऐसे दंश चुपचाप झेलता आ रहा है, क्योंकि तथाकथित मुस्लिम हितैषी दलों ने उन्हें डर के चंगुल में दबा रखा है, जिससे बाहर निकल कर मुस्लिम न सोच पाते हैं और न बोल पाये हैं।

उस पर तुर्रा यह है कि मुस्लिम वोट के जरिये धन पशु बन चुके ऐसे तमाम राजनीतिक दल देश में मुस्लिमों की हालत पर मातम करते हैं और फिर डराये गये मुस्लिम हर बार डरे, सहमें और भरमे फिर उन्हीं में अपना रहनुमा भी खोज लेते हैं।

देश के मुस्लिम हितैषी राजनीतिक पार्टियां अभी देश के मुस्लिमों को असहिष्णुता नामक चोचलेबाजी से डरा रहीं है, जिसका परिणाम हम आप देख ही रहें हैं और अगर देश के सो रहे मुस्लिम नहीं जागे तो यह सिलसिला यूं ही अगले 60-65 वर्ष तक चलता ही रहेगा।

तो देश के मुस्लिम जागो और इन मुस्लिम हितैषी दलों को बता दो कि यह देश तुम्हारा है और डराने और धमकाने की राजनीति के लिए तुम्हारा वोट अब उनको नहीं मिलेगा। मुस्लिम खुद सोचें कि जब यह देश तुम्हारा है और तुम उसके नागरिक हो तो कोई कैसे भी राजनीतिक दल आपके नागरिक हितों से समझौता कर सकता है, फिर पार्टी की चेहरा लाल हो या हरा? क्या फर्क पड़ता है?

शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

People who has eyes & can't see Modi's achievement?

Narendra Modi:- First Prime minister who has been criticized for working hard.

Since last few days, I have  seen quite a few jokes on Narendra Modi's foreign visits.... and all people are curious why Narendra Modi visits so many countries and what is India achieving from it. Few hidden because the main stream media will purposely ignore them) achievements are given below:

1. BJP Govt. convinced Saudi Arabia not to charge “On-Time Delivery 1Premium charges" on Crude Oil – Young Petroleum Minister Dharmendra Pradhan & External Affairs Minister Sushma Swaraj sealed the deal. Saved the country thousands of crores...

2. India will build 4 Hydroelectric power stations + Dams in Bhutan (India will get lion's share in Green energy that will be produced in future from these projects) . .

3. India will build Biggest ever dam of Nepal (China was trying hard to get that) – India will get 83% Green energy produce from that hydro power station for free – in future. . .
4. Increased relationship with Japan and they agreed to invest $30 Billion in DMIC (Delhi –Mumbai Investment Corridor)..

5. Increased strategic relationship with Vietnam and Vietnam has now agreed to give contract of Oil exploration to ONGC-Videsh (UPA was not ready to take this at all because they were worried about China – and getting into a conflict of interests on south China sea)

6. Increase Oil Imports from Iran, despite the ban by USA. Iran agreed to sell in Indian Rupees and it saved our Forex, not just for now, but protected India from future currency fluctuations. India also gets to build “Chabahar” port of Iran, encircling Pakistan. Because we well have exclusive access for our Naval ships in this port.

7. Australia- despite Australia being a major supplier of Coal & Uranium. . NaMo was able to convince Tony Abbott and now Australia will supply Uranium for our energy production.

8. China leaning President Rajapakse lost elections in Sri Lanka – Remember UPA lost “Hambantota” port development – read latest report of CIA, where they mention RAW has played a major role in power shift of Sri Lanka. Sri Lanka has backed out of Chinese contract and shifted to Indian project managers.

9. With China, as Trade Deficit was increasing, NaMo forced their hand. Anti-Dumping will come soon so China will invest heavily into India. – China has already committed $ 20 billion Investment in India. That's nearly ₹140,000 crores.

10. On Security – I think adding Ajit Doval to his team is the best decision by NaMo. See the recent tie-up with Pentagon, Israel & Japan. . Now see how we stopped the Terror Boat and listen to his words … “Any Mumbai like attack from Pakistan and Pakistan will lose Baluchistan!" That's the language of deterrence that I want to hear as an Indian. We won't hit first, but if you do, we surely won't turn the other cheek....

11. India approved the border road in the NorthEast and around India- China border – Remember just because of China’s opposition, the ADB (Asian Development Bank) didn’t give us funds during UPA regime and UPA held that file under “Environment Ministry control – Remember the infamous “JAYANTHI TAX "? No one bothered about the disastrous effect on our armed forces.

12. India managed to bring back 4,500+ Indians from War zone in Yemen and also brought foreign nationals of 41 different countries, which put India’s name onto the highest platform globally in conducting that rescue mission – PM Narendra Modi specially talked to the new Saudi Arabian king Salman and told him to allow Indian Airforce planes to fly – as Saudi Arabia was attacking on Yemen and Yemen skies was declared NO-FLY Zone: thanks to this we got an assured clear window of a few hours and guys guess who coordinated this? Ajit Doval, Sushama Swaraj and Gen V K Singh. All in person.... When was the last time you ever heard of ministers involved personally in such efforts that didn't fetch thousands of crores?? Guess the religion of those rescued?? But it isn't secular.

13. India’s Air defense was getting weaker by the day, UPA was very happy to let it happen despite repeated specific inputs from the armed forces, NaMo renegotiated Rafale fighter Jets deal with France personally and bought 36 Jets on ASAP basis. At better than rack rates. No middlemen, no commissions

14. For the first time after 42 yrs Indian Prime Minister visited Canada not to attend some meeting but as a specific state visit, in a Bilateral deal, India was able convince to Canada to supply Uranium for India’s Nuclear reactors for next 5 years. It will be of great help to Resolve India’s Power problems. . . .

15. Canada approves visa on arrival for all Indian tourists.

16. Till recently we were exclusively buying Nuclear Reactors from Russia or USA and it was much like beggar kind of situation because they were worried about usage of Nuclear reactor for some other use. So only what they opted to give us, we could get. Now Narendra Modi was able to convince France and now France will make Nuclear reactors with the latest technology in India. On MAKE IN INDIA
       efforts with collaboration with an Indian company as a partner  
 
17. During 26th Jan. visit of Barack Obama , NaMo convinced USA to drop rule of Nuclear fuel tracking and sorted out Liabilities rules which now open the gates for next 16 Nuclear power plant projects. . . . Isn't this good enough to improve the lot of India?

The paid media will ensure you never get to hear this.. Spread the word.. It's worth the trouble..

Nice to see a PM with vision and patriotism

इस्लाम को आतंकवाद का पर्याय बनने से रोकना होगा?

'अल्लाह हो अकबर' के उद्घोष के साथ फ्रांस, फिर माली और फिर यमन में आतंकी हमले इस्लाम धर्म को काफी नुकसान पहुंचा रहें हैं। डर तो यह है कि इस्लाम धर्म और आतंकवाद को कहीं एक दूसरे के पूरक न देखा जाने लगे, क्योंकि रिर्कॉर्ड में दर्ज इतिहास भी इस्लाम धर्म के अनुयायी यानी मुस्लिम सर्वाधिक आतंकवाद से प्रभावित दिखते हैं।

क्या आतंक और इस्लाम पर्याय बनकर नहीं उभर रहें हैं? अगर ऐसा ही चलता रहा तो दृष्टिगोचर हो रहीं तस्वीरें दृष्टिकोण में कभी भी तब्दील हो सकती हैं और फिर तब इस्लाम मतलब आतंकवाद आम राय भी हो सकती है।

इसलिए जरूरी है कि देश-दुनिया के सभी इस्लाम धर्म के अनुयायी मुस्लिम समुदाय के लोग इस्लाम धर्म की छवि को खराब कर रहें कुछ चंद और मुट्ठी भर लोगों के खिलाफ खड़े हों और इन चरमपंथियों के कामों और मौत के खेल का खुलकर विरोध करें।

ऐसा कहा जाता है कि कुछ कठमुल्ले, कट्टर और धर्मांध लोगों ने इस्लाम धर्म और पवित्र ग्रंथ कुरआन की गलत व्याख्या करके भोले-भाले मुस्लिम युवकों को बहकाकर चरमपंथियों के दल शामिल करते हैं, जिनमें कट्टरपंथी सोच वाले वहाबी विचारधारा वाले लोग सबसे ऊपर हैं।

गौरतलब है इराक और सीरिया में मौत और आतंक का तांडव करने वाले और इस्लामिक स्टेट की स्थापना करने की कोशिश करने वाले ज्यादातर मतलब परस्त मुस्लिम इन्हीं वहाबी विचारधारा से आते हैं।

सबसे महत्वपूर्ण यह है कि मुस्लिम जहां कहीं भी बसते हैं उनको ऐसे आततायी चरमपंथियों के संपर्क से दूर रखना होगा। दूसरा,  मुस्लिम धर्म को मानने वाले के संतानों व बच्चों की परवरिश और शिक्षा व्यवस्था को आधुनिक और हुनरमंद बनाने पर जोर देना होगा, क्योंकि पेट के लिए इंसान सारे जुर्म में भागीदार बनता है और धर्म सबसे बाद में आता है।

इतिहास गवाह है कि संयुक्त राष्ट्र में सूचीबद्ध 193 देशों में से 51 देश इस्लामिक देश हैं, जहां सर्वाधिक रूप से अशिक्षा,  गरीबी और धार्मिक कट्टरता देखी और सुनी जाती है। संयुक्त राष्ट्र को चाहिए कि इन इस्लामिक देशों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए विशेष पाइलेट प्रोजेक्ट चलाये ताकि कट्टरपंथी आने वाली पीढ़ी को धर्म के नाम पर गुमराह न कर पायें।

ऐसे चरमपंथियों के चंगुल से बचाकर ही इस्लाम धर्म को पुनः परिष्कृत किया जा सकता है, वरना मतलब परस्त दहशतगर्त अपनी निजी हितों के लिए भोले-भाले और जरूरतमंद मुस्लिम युवकों को हूरों और जन्नत के ख्वाब दिखाकर आतंकवाद का खूनी खेल खेलते रहेंगे। 

मंगलवार, 10 नवंबर 2015

बिहार के मतदाताओं ने लालू को वोट किया, क्यों? यह बड़ा सवाल है!

'अल्लाह हो अकबर' के उद्घोष के साथ फ्रांस, फिर माली और फिर यमन में आतंकी हमले इस्लाम धर्म को काफी नुकसान पहुंचा रहें हैं। डर तो यह है कि इस्लाम धर्म और आतंकवाद को कहीं एक दूसरे के पूरक न देखा जाने लगे, क्योंकि रिर्कॉर्ड में दर्ज इतिहास भी इस्लाम धर्म के अनुयायी यानी मुस्लिम सर्वाधिक आतंकवाद से प्रभावित दिखते हैं।

क्या आतंक और इस्लाम पर्याय बनकर नहीं उभर रहें हैं? अगर ऐसा ही चलता रहा तो दृष्टिगोचर हो रहीं तस्वीरें दृष्टिकोण में कभी भी तब्दील हो सकती हैं और फिर तब इस्लाम मतलब आतंकवाद आम राय भी हो सकती है।

इसलिए जरूरी है कि देश-दुनिया के सभी इस्लाम धर्म के अनुयायी मुस्लिम समुदाय के लोग इस्लाम धर्म की छवि को खराब कर रहें कुछ चंद और मुट्ठी भर लोगों के खिलाफ खड़े हों और इन चरमपंथियों के कामों और मौत के खेल का खुलकर विरोध करें।

ऐसा कहा जाता है कि कुछ कठमुल्ले, कट्टर और धर्मांध लोगों ने इस्लाम धर्म और पवित्र ग्रंथ कुरआन की गलत व्याख्या करके भोले-भाले मुस्लिम युवकों को बहकाकर चरमपंथियों के दल शामिल करते हैं, जिनमें कट्टरपंथी सोच वाले वहाबी विचारधारा वाले लोग सबसे ऊपर हैं।

गौरतलब है इराक और सीरिया में मौत और आतंक का तांडव करने वाले और इस्लामिक स्टेट की स्थापना करने की कोशिश करने वाले ज्यादातर मतलब परस्त मुस्लिम इन्हीं वहाबी विचारधारा से आते हैं।

सबसे महत्वपूर्ण यह है कि मुस्लिम जहां कहीं भी बसते हैं उनको ऐसे आततायी चरमपंथियों के संपर्क से दूर रखना होगा। दूसरा,  मुस्लिम धर्म को मानने वाले के संतानों व बच्चों की परवरिश और शिक्षा व्यवस्था को आधुनिक और हुनरमंद बनाने पर जोर देना होगा, क्योंकि पेट के लिए इंसान सारे जुर्म में भागीदार बनता है और धर्म सबसे बाद में आता है।

इतिहास गवाह है कि संयुक्त राष्ट्र में सूचीबद्ध 193 देशों में से 51 देश इस्लामिक देश हैं, जहां सर्वाधिक रूप से अशिक्षा,  गरीबी और धार्मिक कट्टरता देखी और सुनी जाती है। संयुक्त राष्ट्र को चाहिए कि इन इस्लामिक देशों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए विशेष पाइलेट प्रोजेक्ट चलाये ताकि कट्टरपंथी आने वाली पीढ़ी को धर्म के नाम पर गुमराह न कर पायें।

ऐसे चरमपंथियों के चंगुल से बचाकर ही इस्लाम धर्म को पुनः परिष्कृत किया जा सकता है, वरना मतलब परस्त दहशतगर्त अपनी निजी हितों के लिए भोले-भाले और जरूरतमंद मुस्लिम युवकों को हूरों और जन्नत के ख्वाब दिखाकर आतंकवाद का खूनी खेल खेलते रहेंगे। 

शनिवार, 7 नवंबर 2015

असहिष्णुता की पीपड़ी से शुरू हुआ 'कांग्रेस बचाओ' अभियान फेल

अरुंधती राय और इरफान हबीब जैसे भारत विरोधी कुख्यात लोगों ने कांग्रेस प्रायोजित तथाकथित असहिष्णुता (Intolerance) की नौटंकी शामिल होकर न केवल इसकी हवा निकाल दी है बल्कि इसकी प्रसांगिकता पर भी सवाल उठा दिये हैं।

दिलचस्प बात यह है कि असहिष्णुता की नौटंकी के जरिये 'कांग्रेस बचाओ' अभियान की शुरुआत करने वाली सोनिया गांधी पर आज क्या बीत रही होगी?  सोनिया गांधी न इन्हें अब रोक सकती हैं और न उन्हें भगा पा रहीं हैं।

शायद इसे ही कहते है बुरी नीयत से शुरु किये हुये कामों का अंजाम हमेशा ही बुरा होता है और सोनिया गांधी आप तो असहिष्णुता की पीपड़ी से देश में अराजकता फैलाने से भी नहीं चूक रहीं?

सोनियाजी, ऐसा क्या पुत्र मोह, जो देश की शांति और समरसता से ऊपर हो गया? सॉरी मैं किससे बात कर रहा हूं, जो देश का ही नहीं है।

#Intolerance #Congress #MarchForIndia

शुक्रवार, 6 नवंबर 2015

असहिष्णुता के ड्रामे के बीच 9 विधायकों ने छोड़ा कांग्रेस, पहुंचे बीजेपी!

ये लो कांग्रेसी और कांग्रेस समर्थक एवॉर्ड वापसी-वापसी का खेल -खेल रहें हैं, उधर असम में कांग्रेसियों की बारात लुट गई।

कहते है जब नीयत अच्छी हो तो हाथ से हो रहा बुरा काम भी फलदायी न हो तो नुकसानदायी नहीं होती, लेकिन बुरी नीयत से किया गया काम हमेशा बुरा फल देती है।

खबर है कि असम में कांग्रेस के 9 मौजूदा विधायकों ने कांग्रेसी को गरियाते हुए बीजेपी (मोदी ) का दामन थाम लिया है।

डर है कहीं अब कांग्रेसी इसे भी असहिष्णुता न ठहरा दें कि देश में बढ़ती असहिष्णुता के कारण लोग कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी ज्वाइन कर रहें हैं।
#Congress #Intolerance #Drama #AssomMLA #JoinedBJP #DitchCongress

गुरुवार, 5 नवंबर 2015

मोदी विरोधी विरोध में बीमार हैं, प्लीज उन पर ध्यान मत दीजिये?

दरअसल बात यह है कि आपको शुरुआत से ही मोदी पसंद नहीं है, बीजेपी पसंद नहीं है, संघ पसंद नहीं हैं और देश के लोगों को द्वारा बीजेपी को चुना जाना पसंद नहीं है।

आप रोज सुबह से शाम देश भर की घटनाओं में से ऐसी खबरें छंटते हैं जिसे शेयर कर मोदी को कटघडे में खड़ा कर सकें। उसे हूट कर सकें। और आपमें से अधिकतर लोग ऐसे हैं जिन्हें माहौल असहिष्णु लग रहा है।

आप विरोध कर रहे हैं, शिकायतें कर रहे हैं, अवार्ड लौटा रहे हैं। मगर किस लिए? देश को सहिष्णु माहौल देने के लिये? नहीं। आप बस इतना चाहते हैं कि कैसे भी तो यह सरकार गिर जाये। केजरीवाल गिरा दे, नीतीश गिरा दें और चाहे तो लालू ही गिरा दें।

बिहार चुनाव में भी आपकी टकटकी इसलिए है कि आप मोदी को हारता देखना चाहते हैं। आपको बिहार के लोगों की कोई फ़िक्र नहीं है। बस आपको एक हार चाहिए। चाहे जैसे भी हो। बनारस में पंचायत चुनाव में बीजेपी हार जाती है तो आपके लिए जश्न का मौका होता है। केरल में कोई हिंदूवादी कुछ सिरफिरा बयान दे दे तो आप उसे राष्ट्रीय मुद्दा बनाने में जुट जाते हैं।

आपको यार अहसास नहीं है कि आप बीमार हो गये हो। लोकतंत्र में अपने पसंद की सरकार न हो तो भी उसे झेलना पड़ता है। हमारा काम यह है कि गलत काम का विरोध करें। सरकार पर दबाव बनाएं ताकि वह अच्छे काम करे। यह नहीं कि सुबह शाम आलोचना की छड़ी लेकर घूमते रहें। इतनी आलोचना अगर आप अपने बच्चे की करेंगे तो वह पागल हो जायेगा। आपकी बात सुनना बंद कर देगा।

दादरी का मसला सचमुच शर्मनाक था। और इस मुद्दे पर मोदी का स्टैंड भी कमजोर था। उदय प्रकाश और अशोक वाजपेयी का सम्मान लौटाना बेहतर कदम था। इससे मैसेज भी गया। मगर उसके बाद सिर्फ तमाशा हुआ। कुछ पुराने सरकार के लाभुक, कुछ फेसबुकिया जो 24 घंटा मोदी विरोध के मोड में रहते हैं और कुछ मुनव्वर राणा टाइप पोलिटिकली कन्फ्यूज्ड लोगों ने इसे प्रहसन बना दिया।

काम सिर्फ इतना था कि मोदी पर दबाव बनाया जाये कि दादरी कांड पर उनकी तरफ से जिन लोगों ने भड़काऊ बयान दिए हैं उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई हो। गुनहगारों को सख्त सजा दिलाई जाये और मोदी का एक बयान आये जिससे अल्पसंख्यक इस देश में सुरक्षित महसूस करे। मगर आप देखिये असहिष्णुता की लड़ाई के लीडर राहुल गाँधी के पीछे कतार लगा रहे हैं।

ऐसे कैसे चलेगा मियां। अगर आप कार्रवाई के लिए सरकार पर दबाव बनाना चाहते हैं तो फिर हम साथ हैं। अगर आप दादरी के बहाने सरकार गिराना चाहते हैं तो फिर तो आप अपने घर, हम अपने घर...
★साभार

महागठबंधन अगर गलती से जीती, तो बिहार व बिहारियों की हार होगी!

शिव ओम गुप्ता
आगामी 8 नवंबर को बिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम अगर महागठबंधन के अनुकूल जाती है तो यह बिहार और बिहार के तथाकथित इंटलेक्चुअल्स की हार होगी।

इससे पहले गुजरात, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी के मुख्यमंत्री क्रमश: नरेंद्र मोदी, शिवराज चौहान और रमन सिंह ने एंटी इनकमबेंसी के चरित्र को झुठलाकर हैट्रिक लगाई है, वह भी पार्टी आदर्शों को ताख पर रखे बिना।

लेकिन सुशासन बाबू के रूप में मशहूर नीतीश को बिहार में लालू के जंगलराज के खिलाफ वोट देकर सरकार बनवाने वाली जनता का फैसला बिहार का भविष्य तय करेगा।

क्योंकि नीतीश ने महज सत्ता के लिए 10 वर्ष राज करने के बाद लालू के टट्टू बन गये, जिनका विरोध हासिल करके उन्होंने बिहार पर राज किया और देखना यह है बिहार की जनता क्या जनादेश देती है।

नीतीश कुमार महज सत्ता हासिल करने के लिए चारा चोर और जंगलराज के कुख्यात नेता लालू के साथ गलबहियां ही कर ली, बल्कि पार्टी आदर्शों और वसूलों को कूंएं में डाल दिया।

जबकि इसके उलट बीजेपी ने कभी भी वसूलों से समझौता नहीं किया और तीनों राज्यों में अपने बलबूते सफलता हासिल की।

नीतीश और लालू महागठबंधन अगर सफल भी होता हैं तो यह उनकी ही नहीं, बिहार और बिहारियों की हार होगी, जो खुद को इंटलेक्चुअल बताने से नहीं अघाते हैं।
#BiharPolls #LaluYadav #NitishKumar #BJP

AN OPEN LETTER TO SHAH RUKH KHAN By A Fan

Swati Rawal
Twenty years ago, you opened your arms wide,  your signature pose,  your unruly mop of hair and that mesmerizing smile I  was smitten.  Everytime you came on the wide-screen I would blush and have that silly smile on my face.

My friends especially the men would criticise you. My sons were embarrassed to see me swoon at the mention of your name. You were my superstar.  You sang for me and me alone.  You could do nothing wrong.

My meeting you face to face was perhaps one ofthe most amazing things to happen to me.

And like all good things. ..this fascination  this devotion has now come to an end.

In all my years of being your ardent fan the one thing that stood out for me was your intelligence. So today I stand here shocked and disappointed.

You too Shahrukh? ? Yes you are entitled to an opinion.  Yes you have every right as an Indian citizens  to voice whatever you feel strongly about. But....why have you been quiet till now. Enough has happened before, terrible terrible atrocities, injustices and inhumane acts , you have never stood up and spoken before. So why now? What has compelled you to feel so. How has the so called intolerance escalated in just 18 months that you have taken it upon yourself to speak out.

Explain to your million fans who have never bothered to check if you are tall enough handsome enough intelligent enough or which back ground you belong to. Tell us how our beautiful nation has made you feel that we are intolerant.

I do not endorse any of the rubbish statements by fringe elements. Let's ignore them as that's what they deserve. But I do feel if you have gone on record to say what you have you must explain yourself further. Surely you realize your words influence not just us Indians but also the opinion of others worldwide . Did you stop to think what you were doing to reputation  of our country

I waited two days for a clarification from you and when none was forthcoming I have chosen to write this on my fb page.

Today is my last day as your fan. Whether you read this or not. Whether i make a difference to you  or not. Whether you address these question or not.I feel too strongly about the unity of our country to allow you or anyone else to speak like this without explanation.

A sad ex- fan Swati Raval 

बुधवार, 4 नवंबर 2015

सुधीन्द्र कुलकर्णी के बहाने पर असहिष्णुता पर रोने वाले मुंह छिपाते फिर रहें हैं!

शिव ओम गुप्ता
पाकिस्तान में सुधीन्द्र कुलकर्णी के भारत विरोधी बयान सुन-देख कर आज पूरा भारत शिवसेना द्वारा कुलकर्णी पर कालिख पोतने की कार्रवाई पर गर्व महसूस कर रहा होगा!

पाकिस्तान में दिये कुलकर्णी के भारत विरोधी बयान का वीडियो देखने और सुनने के बाद वो लोग जो तब कुलकर्णी पर कालिख पोतने की भर्त्सना कर रहे थे आज आत्महत्या कर लेना चाहेंगे?

तो थूक कर चाटने में उस्ताद लोग कुलकर्णी द्वारा  पाकिस्तान में दिये बयान का वीडियो न देखें वरना आज फिर थूके हुए को चाटना पड़ेगा?

#SudhindraKulkarni #PakistanTour #Inkthrow #ShivSena #Intolerance

क्या भारत में मुस्लिम अरब या खाड़ी देशों से आये हैं?

जिस दिन भारतीय मुस्लिम यह स्वीकार कर लेंगे कि वो मुस्लिम बाद में पहले भारतीय है, उस दिन से उनका राजनीतिक इस्तेमाल भारत में बंद हो जायेगा। यह देश जितना हिंदू का है उतना ही मुस्लिम का है। कौन किस धर्म में आस्था रखता है या नहीं इससे उसकी भारतीयता में कोई कमी नहीं आती है। 
क्योंकि भारत में रह रहे मुस्लिम अरब अथवा खाड़ी देश से पलायन करके भारत में नहीं बसे हैं। यह अकाट्य सच है कि सभी भारत-पाकिस्तान में रह रहे मुस्लिम और उनके पूर्वज हिंदुस्तानी हैं, जिन्हें कभी मुस्लिम आक्रमणकारियों ने जबरन मुस्लिम बना दिया था,यह सच सभी भारतीय मुस्लिम जानते भी हैं।
भारतीय संस्कृति या हिंदू संस्कृति में सहिष्णुता स्वायत्य रुप से विद्यमान है, जिसमें सभी धर्म, संस्कृति और पंथ को मानने वालों का सम्मान सर्वोपरि है, लेकिन मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाले राजनीतिक मुस्लिमों को डराकर और उनमें असुरक्षा की भावना भड़काकर सदा अपनी रोटियां सेंकी है और मुस्लिम हमेशा ठगा गया है।
‪#‎Muslim‬ ‪#‎Hindu‬ ‪#‎Intolerance‬ ‪#‎Insecurity‬ ‪#‎Congress‬ ‪#‎VoteBank‬

राहुल गांधी थोपने के लिए असहिष्णुता का स्वांग बंद करो सोनिया गांधी?

शिव ओम गुप्ता
सत्ता सुख का फस्ट्रेशन कांग्रेस को देश विरोधी काम करने के लिए भी रोक नहीं पाती है। उदाहरण है कांग्रेस का तथाकथित असहिष्णुता (Intolerance) का हाईप्रोफाइल ड्रामा?

एक इंसान दिन रात एक करके देश की छवि बदलने के लिए देश-विदेश से भारत में निवेश बढ़ाने के लिए काम कर रहा है और कांग्रेस, जिसका 60 वर्षों का काला इतिहास है, वह मारे फस्ट्रेशन और जलन में असहिष्णुता का गाना गा रही है।

हां, वो कांग्रेस, वही कांग्रेस... जिसने 3000 निर्दोष सिखो को महज बदले के लिए मौत के घाट उतरवा दिया, वो कांग्रेस जिसने राजनीतिक फायदे के लिए सबसे पहले राम जन्म भूमि मंदिर का ताला खुलवाया, अरे वहीं कांग्रेस जिसने पिछले 10 वर्षों के कार्यकाल में घोटालों और भ्रष्टाचार करके देश की साख गिरा कर जग हंसाई करा आई?

आज वही कांग्रेस देश को असहिष्णुता के ऊपर ज्ञान दे रही है। मतलब बगुला भगत हमें ज्ञान दे रहा है, जिसका पूरा का पूरा शरीर ऐसी राजनीति के लहू से सना हुआ है।

सोनिया एंड पार्टी को शर्म आनी चाहिये कि वो किसे मूर्ख बना रहें हैं। अब जनता इतनी भी भुलक्कड़ नहीं है कि वो भूल जायेगी कि पिछले 10 वर्षों में कांग्रेस नीत यूपीए सरकार और उसके तथाकथित प्रधानमंत्री ने देश -विदेश में भारत का कितना बेड़ा गर्क किया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कारण महज 18 महीने के कार्यकाल मे भारत की छवि न केवल बदल गई है बल्कि भारत के साथ आज हर महाशक्तिशाली देश खड़ा होना चाहता है, लेकिन देश में छोटी सी हुई इक्का-दुक्का घटनाओं की आड़ में देश की जनता कांग्रेस को राजनीति की दुकान सजाने नहीं देगी।

और वो कांग्रेसी दुकान, जिस पर पूरा देश लानत भेजता है, जिसके कार्यकाल में हुए बड़े-बड़े घोटालों और भ्रष्टाचार पर पूरा देश आज भी शर्मिंदा है।

चुल्लु भर पानी में डूब मरो कांग्रेसियों? तुम्हें क्या लगता है देश की जनता तुम्हारी राजनीतिक ढकोसलों, नौटंकियों और दुष्प्रचारक कारगुजारियों पर यकीन करेगी और तुम्हारे पिछले पापों को माफ कर देगी, तो तुम्हारी बड़ी भूल है।

सोनिया गांधी और कांग्रेस को अब यह अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि देश अब थोपे हुए पप्पू और रिमोट संचालित प्रधानमंत्री को सहन करने वाला नहीं है। सोनिया गांधी और कांग्रेस जब तक पप्पू उर्फ राहुल गांधी को सेट करने के लिए राजनीतिक लड़ाई लड़ेंगी, देश की जनता उनका साथ नहीं देने वाली है।

क्योंकि देश की जनता गांधी परिवार की वैचारिक और भावुक गुलामी से बाहर आ चुकी है और अब वह कांग्रेसी विकास के बजाय देश और स्वयं के विकास की ओर देख रही है और जो विकास की बात करेगा वहीं भारत पर राज करेगा वह चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस, कोई फर्क नहीं पड़ता।

भारत देश की जनता आज युवा है और आज का युवा भावनाओं और वैचारिकता में नहीं, विकास प्रेरित राजनीति को समर्थन करती है।

तो कांग्रेसियों अब भी वक्त है, सुधर जाओ और असहिष्णुता का स्वांग छोड़ कर मुद्दों पर आ जाओ वरना 2019 लोकसभा चुनाव असहिष्णुता पर जीत पाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है।

क्योंकि हिंदू और हिंदुस्तान की पहचान ही सहिष्णुता है, जहां पता नहीं कितने आतताई आये और चले गये, लेकिन हिंदूस्तान सांस्कृतिक और धार्मिक रुप से सदा सहिष्णु और आबाद रहा था और आगे भी आबाद रहेगा।

तो कांग्रेसियों असहिष्णुता का स्वांग छोड़कर, वास्तविकता की धरती पर लौट आओ और देश को राहुल गांधी थोपने का विचार छोडकर कुछ ऐसी बातें करो जो लोगों के भेजे में जाये, उनका भेजा फ्राय मत करो।
#Congress #SoniaGandhi #Intolrance #MarchDrama #Modi #UPA #SikhMurder

मंगलवार, 3 नवंबर 2015

कांग्रेस समझती है कि असहिष्णुता (डर की राजनीति) फिर उन्हें सत्ता दिलायेगी?

शिव ओम गुप्ता
मैडम सोनिया जी, देश आपकी घटिया राजनीति को समझ रहा है। देश को पता चल चुका है कि मोदी सरकार के विकासोन्मुख कामकाज से कांग्रेस कितने फस्ट्रेशन से गुजर रही है।
देश यह भी समझता है कि कांग्रेस के पास करने और कहने को अभी कुछ नहीं है, क्योंकि जो पार्टी पिछले 60 वर्षों में देश के लिए कुछ नहीं कर सकी, वह आगे क्या करेगी?
अच्छा है कि असहिष्णुता (Intolerance) का हवाई पुल बना लिया है, इससे अब जल्द ही आपको यह भी एहसास हो जायेगा कि देश में कितने कांग्रेस भक्त और गांधी परिवार प्रेमी बचे हुए हैं जो विकास के बजाय कांग्रेसी विनाश के पैरोकार है।
मैडमजी, हाथ-पांव समेटने का वक्त आ गया है अब? याद रखिये, यह देश अब उतना मूर्ख और भावुक नहीं रहा, जितना पहले रहा था, देश का हर नागरिक अब विकास के प्रति अधिक संजीदा है और उसी ओर देख रहा है।
बदलना है तो खुद को बदलिए और कांग्रेस की आइडियोलॉजी को बदलिए, जो सिर्फ सत्ता में आते ही सिर्फ अपना विकास करना जानती है और सत्ता से दूर होते फस्ट्रेशन में चली जाती है और ऐसे ऊल-जुलूल मूर्ख बनाने वाले असहिष्णुता वाले मुद्दे बनाने की कोशिश करती है, जिनका भारत जैसे सहिष्णु देश में अस्तित्व ही नहीं है।
हिंदुस्तान की सहिष्णुता ही है कि बहुसंख्यक होते हुए भी हिंदू सब के साथ प्रेम और सद्भाव से सदियों से रहता आया है, जिसके लिए हिंदू को किसी राजनीतिक पार्टी से सीखने की जरूरत नहीं है, कम से कम कांग्रेस जैसी पार्टी से तो बिल्कुल नहीं, जिसने सत्ता सुख के लिए और सत्ता हासिल करने के लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष रुप से देश को दंगों और फसादों में ढकेलती रही है।
‪#‎SoniaGandhi‬ ‪#‎Fake_Intolerance‬ ‪#‎Modi‬

सोमवार, 2 नवंबर 2015

और अब असहिष्णुता (Intolerance) की दुकानें भी खुल रहीं है?

शिव ओम गुप्ता
साउथ बेस्ट दिल्ली के कटवारिया सराय में पिछले 5 वर्षों से रह रहा हूं, जहां 100 फीसदी आबादी हिंदुओं की है, लेकिन पूरे गांव में आज कल का नजारा बिल्कुल बदला-बदला नजर आ रहा है।

यकीन मानिए, पिछले पांच वर्ष में इक्का-दुक्का छोड़कर  चिकन-मटन की दुकान नहीं थी, लेकिन पिछले 3 महीने के अंतराल में एक के बाद एक तकरीबन 5 दुकानें मुरादाबादी- हैदराबादी चिकन-मटन बिरयानी खुल गई है।

लेकिन आज गांव का नजारा अलग था, गांववाले कुकुरमुत्तों की तरह अचानक उग आये ऐसे दुकानों के खिलाफ लामबंद हो गये और पुलिस प्रशासन को बीच-बचाव के लिए पहुंचना पड़ा।

क्या है ये? कहीं ये तथाकथित असहिष्णुता (Intolerance) के समर्थन को हवा देने के लिए की जा रही साजिश तो नहीं है? अगर नहीं? तो यह ऐसा अचानक क्यों हो रहा है।

मसलन, जबरन ऐसी दुकानें खुलवाई जा रहीं हैं ताकि हिंदू समुदाय थोपे जा रहें इन दुकानों का स्वाभाविक विरोध करें और असहिष्णुता का मुद्दा और प्रभावी और प्रासंगिक लगने लगे?

क्या यह कांग्रेसी साजिश का हिस्सा नहीं है, जो पिछले कई महीनों से यह सब चुपचाप देख रही है और हिंदू-मुस्लिम को एकता का एक भी संदेश नहीं दिया। और आज इसी मुद्दे को भुनाने कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी राष्ट्रपति से मिलने जा रहीं हैं?

सवाल आप से है और आप खुद तय कीजिये, क्योंकि कांग्रेस ने सत्ता के लिए पहले भी ऐसी हरकतें की है और लोगों की बलि लेकर सत्ता हासिल करने की कोशिश की है।

स्वयं विचार कीजिये और नजर दौड़ाइये कि कहीं आप के इलाके में भी मुरादाबादी- हैदराबादी चिकन-मटन बिरयानी की दुकानों की संख्या तो नहीं बढ़ रही?

अगर हां, तो संयम न खोयें और धैर्य से काम लें, क्योंकि ऐसी साजिशों से राजनीतिकों को उनके मकसद में कामयाब नहीं होने देना है, जो एक-दूसरे को लड़ाकर राजनीतिक फायदा लेती आईं हैं।

कटवारिया सराय की उक्त घटना संकेत है कि कोई तो साजिशन हमें विकास के मुद्दे से इतर ले जाना चाहता है और अब आप पर है कि इनसे आपको कैसे निपटना है।

दुकानें खुल रहीं हैं तो खुलने दीजिये, विरोध मत कीजिये, ऐसी दुकानें जैसे खुली है, वैसे ही बंद हो जायेंगे, क्योंकि इनका मकसद दुकानदारी नहीं, कुछ और है।

#Nexes #Intolrance #Congress #Riots  #Hindu_Muslim #Bihar_Polls #Vote_Bank

रविवार, 1 नवंबर 2015

सोनियाजी, देश में असहिष्णुता की फसल पक गई है..बस काट लीजिये?

सोनिया गांधी कह रहीं है कि देश में फैल रहे असहिष्णुता को दूर करने के लिए कदम उठाउंगी।

हां सोनिया मैडम जी, जरूर...फसल लहलहा रही है.. आइये काटिये? तुम्हारे दरबारी कवियों और पाले हुए गुर्गों ने अच्छा काम किया है।

लेकिन इतना ध्यान रखियेगा कि यह देश सहिष्णुता की मिसाल है, आपकी नौटंकी से न घटेगा और न बढ़ेगा? हां, आपकी फस्ट्रेशन को थोड़ी राहत जरूर मिल जायेगी।

थोड़े बयान दे लीजिये और थोड़े प्रेस कांफ्रेंस की लफ्फाजी कर लीजिये बाकी देश कांग्रेसी हकीकतों से वाकिफ है तभी तो उखाड़कर फेंक दिया था। बस नामोंनिशान मिटाना बाकी रह गया है।

सोनियाजी, यह भी हो जायेगा, बस यह नौटंकी जारी रखियेगा, क्योंकि देश की नई पीढ़ी अब गांधी परिवार की भावुक गुलामी में नहीं, विकास की ओर देख रहा है।

#Congress #Frustration #Intoleance #GandhiFamily #AwardReturn #Modi

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

असहिष्णुता की बीन जबरन बजाई और साजिशन सुनाई जा रही है?

कल रात एनडीटीवी प्राइम टाइम पर रवीश कुमार के शो पर तथाकथित असहिष्णुता पर जारी बहस पर तब पानी पड़ गया जब लोकगायिका मालिनी अवस्थी की एंट्री हुई।

हिंदुस्तान की जीवनशैली में सहिष्णुता के विद्यमान होने और देश में असहिष्णुता को लेकर लेखकों के बाद अब फिल्मकारों द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार वापसी को राजनीति प्रेरित बताकर मालिनी जी ने नि:संदेह सरेआम सबकी पोल खोल दी।

जनसत्ता के पूर्व संपादक ओम थानवी तो शर्म से पानी-पानी हुए जा रहे थे कि असहिष्णुता के लिए उनकी बनी बनाई झूठी हवा बहस के अंत में हवाहवाई हो गई।

#Intolrance #Media #Congress #Rumors #Nexes #Modi #DelibrateAction

बुधवार, 28 अक्तूबर 2015

क्यों दिल्ली को मूर्ख पर मूर्ख बना रहे हो केजरीवाल?

तुम अच्छी तरह जानते हो केजरीवाल कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली कभी भी पूर्ण प्रदेश का दर्जा हासिल नहीं कर सकती है, बावजूद इसके तुमने झूठे वादों पिटारा खोलकर दिल्लीवालों को मूर्ख बनाकर वोट ले लिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री बन बैठे और अब अपनी नाकामी छुपाने के लिए दिल्ली पुलिस की अधीनता हासिल करने का स्वांग रच रहे हो?

केजरीवाल बंद करो अपनी नौटंकी, क्योंकि दिल्ली की जनता समझ चुकी है कि उनसे भारी गलती हो चुकी है और अब वह तुम्हारे बेफिजूल के झांसे में नहीं आने वाली है।

मियां केजरीवाल, पहले चीनी, प्याज की बिक्री और खरीद घोटाले का हिसाब दो और खुद को पाक साफ होने की सफाई दो? एक तो चोरी और उस पर पुलिस पर भी अधिकार चाहिए, फुद्दू समझ रखा है क्या? काम कर ले!
#Kezriwal #AAP #DelhiPolice #Modi #RapeCapital

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2015

Intolerance (असहिष्णुता) कांग्रेसी तमाशा है, हार का फस्ट्रेशन है।

कांग्रेस जब जब चुनाव हारती है तब तब मुस्लिम-हिंदू को एक दूसरे को भिड़ाने की कोशिश करती रही है। बात आजादी से पहले की करें या बाद करें।

जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री बनना चाहते थे इसीलिए हिंदुस्तान हिंदू-मुस्लिम में बांट दिया गया और आजादी के बाद जब जब कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई है वह हिंदू-मुस्लिम को भिड़ाने वाले वारदात को अंजाम देती आई है।

आज देश में हिंदू-मुस्लिम असहिष्णुता का जो बकवास हो रहा है, इसके पीछे भी कांग्रेस की साजिश है। देश में माहौल बिगाड़ने के लिए कांग्रेस ऐसे प्रायोजित कार्यक्रम कर रही है, ताकि मौजूदा सरकार को बदनाम कर सत्ता के नजदीक पहुंचा जा सके।
#Congress #Frustration #Intolrance #Hatred #Nexes #Dadri #Dalit

बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

शिवसेना पाकिस्तान विरोधी नहीं, आतंकवाद विरोधी है?

शिव ओम गुप्ता
शिवसेना के पाकिस्तान के प्रति परंपरागत रवैये के लिए बीजेपी को दोषी ठहराने और इसको देश में असहिष्णुता बढ़ने की बात कहने मूर्खता ही महामूर्खता की श्रेणी में गिने जायेंगे ।
क्यों? क्योंकि शिवसेना सत्ता में रही हो या न रही हो, उसने हमेशा पाकिस्तान और पाकिस्तानियों के खिलाफ ही अपनी राजनीतिक साख और छवि बनाई है और अगर वोट देकर महाराष्ट्र की जनता ने उन्हें अपना प्रतिनिधि बनाया है तो शिवसेना के विरोध को जनता का विरोध का विरोध समझना चाहिए ।
शिवसेना के इतिहास पर थोड़ा अपना भेजा फ्राई की कोशिश करेंगे तो कांग्रेस समेत उन तमाम पार्टियों के नेताओं का मुंह काला हो जायेगा, जो शिवसेना के परंपरागत गतिविधियों को लेकर बीजेपी सरकार पर निशाना साधते बकवास कर रहीं हैं कि देश में असहिष्णुता और भाईचारा खत्म हो गया है।
अभी अंतर सिर्फ इतना आया है कि शिवसेना महाराष्ट्र की साझा सरकार में शामिल है, इसीलिए ज्यादा हो-हल्ला हो रहा है जबकि पाकिस्तानी और पाकिस्तान के खिलाफ शिवसेना ने पिचें तक खुदवा दी थीं और इतना हल्ला नहीं हुआ था और न ही तब असहिष्णुता की पीपड़ी बजाई जा रही थी।
हांलाकि शिवसेना के रवैये में थोड़ा बहुत अंतर की बात करें तो शिवसेना ने अपने पारंपरागत स्टैंड से इतर पहली बार किसी पाकिस्तानी को सपोर्ट किया है और वो हैं नोबल शांति पुरस्कार विजेता मलाला युसुफजई।
शिवसेना ने मलाला युसुफजई के भारत आगमन का स्वागत किया है, लेकिन यह खबर किसी मीडिया में नहीं हैं। सबको पता है कि मलाला युसुफजई पाकिस्तान पोषित आतंकवादियों की शिकार हुईं थी और उनके खिलाफ झंडा बुलंद किया था।

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2015

हताश कांग्रेस मीडिया के जरिये देश विरोधी गेम खेल रही है!

शिव ओम गुप्ता
कांग्रेस की दोगली और खोखली राजनीति का भयावह सच यह है कि दरबारी साहित्यकारों ने अवॉर्ड लौटाकर चुनी हुई एक लोकतांत्रिक सरकार का ही नहीं, जनादेश का अपमान किया है। कांग्रेस की साजिश का हिस्सा बनकर जनता द्वारा चुनी गई एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार के खिलाफ ये राजद्रोह कर रहें है।

असल में कांग्रेस के इशारे में हो रहे इन सारे नौटंकी में मकसद प्रधानमंत्री मोदी के विकासवादी चेहरे को उनके भगवावादी मूल पहचान में घसीट कर बदनाम करना है, जिसमें मीडियाकर्मी कांग्रेस के एक मोहरे भर की तरह इस्तेमाल हो रहें हैं।

मीडिया के सहयोग से कांग्रेस जनता में यह संदेश फैलाना की असफल कोशिश कर रहीं है कि भारत को फासीवाद की तरफ ढकेला जा रहा है, जिससे जनता को एक बार फिर मूर्ख बना कर कांग्रेस देश में सत्ता वापसी का बीज रोप सके।

मतलब, कांग्रेस वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रही है, जिस कारण देश में लगातार जहर की खेती और जहर फैलाये जा रहे हैं और असहिष्णुता और भगवाकरण की नुमाइशी चेहरे को मीडिया के चैनलों पर कालिख पोतकर लटकाया जा रहा है ताकि अगले चुनाव में सांप्रदायिक और संकीर्ण राजनीति की फसल काटी जा सके।

आप समझ गये हैं, कांग्रेस का यही प्लान है। बीजेपी पर असहिष्णुता और भगवाकरण की आरोप कांग्रेस का एक महज प्रायोजित कार्यक्रम है, जो सत्ता से बाहर होते ही कांग्रेस हमेशा करती रही है। यह कोई नई और छिपी बात नहीं है, इतिहास उठाकर देख लीजिये।

#Congress #BJP #Communal #Secular #Intolrance #AwardReturn #Modi #Media

सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

शर्म करो टाइम्स नाऊ, बंद करो आग फैलाने वाली रिपोर्टिंग शैली!

शिव ओम गुप्ता
मीडिया गैर-जिम्मेदाराना तरीके से जबरन तिल का ताड़ बनाकर खबरों को पेश कर रही है। कश्मीर में हिंदू भावनाओं को उकसाने के लिए गौ मांस की पार्टी करने वाले विधायक राशिद इंजीनियर पर स्याही फेंकने की घटना को पिछले 2 घंटे से टाइम्स नाऊ दिखा रही है।

निः संदेह ऐसा लगता है कि मीडिया मौजूदा सरकार के  खिलाफ ऐसा माहौल तैयार करने में जुटी हुई दिखती है, जिससे देश में ऐसा संदेश जा रहा है कि देश गृह युद्ध की ओर बढ़ रहा है।

मुझे कोफ्त है ऐसे मीडिया संस्थानों से जो महज टीआऱपी के लिए (बिजनेस के लिए) छोटी सी छोटी खबरों का बेहिसाब दोहन कर रहीं है ताकि लोग भड़के और उनको और टीवी कवरेज मिले।

क्या मीडिया की जिम्मेदारी नहीं है कि वह खबरों के संचयन और संपादन में समझदारी बरते और हवा के विपरीत एजेंडा आधारित खबरों को कम दिखाए, जिससे समाज में शांति बरकरार रह सके।

लेकिन टाइम्स नाऊ के कवरेज को देखकर लगता है कि टाइम्स नाऊ न केवल दंगे भड़कवाना चाहती है बल्कि दंगे की आग में हाथ भी सेंकना पसंद करती है। इंक फेंकने की घटना निंदनीय है, लेकिन आग की लपटों के साथ टीवी पर न्यूज रिपोर्टिंग की शैली उससे कम घातक नही हैं।
#TimesNow #Media #Reporting #Kashmir #Rashid #Riots

मोदी के विकासवादी मुद्दे को पीछे ढकलेने के लिए हो रहें प्रायोजित कार्यक्रम!

शिव ओम गुप्ता
देश में आजकल कांग्रेस प्रायोजित स्पांसर कार्यक्रम खूब चल रह रहें है, तो देखिये और भूल जाइये। क्योंकि न्यूज चैनलों पर दिखाये जा रहे ये स्पांसर प्रोग्राम वास्तविक नहीं, आभासी हैं, जिसके पीछे के मकसद कुछ और है।

विकास की बात को पीछे करने के लिए कांग्रेस जैसे फस्ट्रेटेड राजनीतिक दल गौमांस, असहिष्णुता और भगवाकरण की झूठी राजनीति कर रहीं है, जिन्हें बिकी हुई चैनल्स हवा दे रहें हैं, तो ऐसे जैसे कार्यक्रमों को ऐसे झेले जैसे अपनी मनपसंद प्रोग्राम देखने के लिए विज्ञापन झेलना पड़ता है।

और ज्यादा अच्छा होगा कि तथाकथित क्रांतिकारी चैनलों से कुछ दिनों के लिए तौबा कर लें, क्योंकि प्रायोजित कार्यक्रम तब तक ही चलते हैं जब तक टीआरपी है, तो मनोरंजन चैनल की ओर ट्यून कीजिये और इनटोलरेंस की आभासी की दुकान बंद करने में मदद कीजिये!
#Intolrance #Congress #Hindu #Modi

रविवार, 18 अक्तूबर 2015

असहिष्णुता और धर्मनिरपेक्षता की आड़ में स्वार्थ प्रेरित रायता फैला रहें हैं साहित्यकार!

शिव ओम गुप्ता
सहिष्णुता ही हर हिंदू और हिंदुस्तानी की पहचान है। हां राजनीति के लिए नेताओं ने धर्म और धर्मनिरपेक्षता का चोचला भारतीय संविधान में ले आये और सब मिल कर मलाई काट रहें हैं।

भरोसा नहीं तो आंकड़े उठाकर देख लीजिये? क्योंकि हमेशा सच बयां करते हैं। हिंदू और हिंदुत्व की सहिष्णुता का प्रमाण है कि हिंदू_मुस्लिम आधार पर वर्ष 1947 में हुए भारत_पाकिस्तान के बंटवारे के बाद दोनों देशों में वर्ष 1951 में हुए पहली #जनगणना सारी कहानी बता देते हैं।

दोनों देशों द्वारा जारी किये गये वर्ष 1951 की जनगणना के मुताबिक पाकिस्तान में हिंदू_आबादी कुल पाकिस्तान की 12.9 फीसदी थी जबकि इसी वर्ष भारत में मुस्लिम_आबादी कुल हिंदुस्तान की आबादी 9.8 फीसदी थी।

लेकिन वर्ष 2011 में हिंदुस्तान के जनगणना के आंकड़े और वर्ष 1998 में पाकिस्तान के आखिरी जनगणना के आंकड़े हिंदुओं की सहिष्णुता और मुस्लिमों की असहिष्णुता को पोल खोल देते हैं।

पाकिस्तान में वर्ष 1998 में हुए आखिरी जनगणना के मुताबिक पाकिस्तान में हिंदू आबादी 14.2 से घट कर महज 1.6 फीसदी रह गई, जो वर्ष 1951 में कराये गये पाकिस्तानी जनगणना के घोषित हिंदू आबादी से करीब 13 फीसदी कम हो गया।

जबकि वर्ष 2011 में हिंदुस्तान में आखिरी जनगणना के जारी रिपोर्ट के मुताबिक हिंदुस्तान में मुस्लिम आबादी 9.8 फीसदी से बढ़कर 12.9 फीसदी पहुंच गई है, जो वर्ष 1951 में कराये गये हिंदुस्तान की पहली जनगणना के घोषित आबादी से 3 फीसदी से अधिक बढ़ा है।

इन आंकड़ों की रोशनी में अब आप तय कर सकते हैं कि हिंदू और हिंदुस्तान कितना सहिष्णु और भाईचारा प्रेमी है। खुद तय कीजिये कि कौन सहिष्णु है और कौन असहिष्णुता के नाम की राजनीति करते आ रहें हैं और सत्ता की मलाई काटते रहें हैं।

ये आंकड़े उन दोगले नेताओं और साहित्यकारों के मुंह पर तमाचा मारता है, जो तथाकथित सेकुलरिज्म (धर्मनिरपेक्षता) की आड़ में झूठ और धोखे की राजनीति करके धार्मिक उन्माद को हवा देते रहें हैं।

देश में धार्मिक असहिष्णुता ने नाम पर जो झूठ फैलाकर हिंदू-मुस्लिम के बीच उन्माद फैलाकर राजनीतिक रोटियां सेंकी जा रही है, उनको जबाव उन्हें ही देना होगा जिनको आजादी के बाद से कांग्रेस समेत पार्टियां मूर्ख बनाते आ रहें हैं और उनका वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करती रहीं हैं ।
#Intolerance #Secularism #Pakistan #Hindustan #Congress #Modi #BJP 

शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2015

मुझे मोदी भक्त कहें परवाह नहीं? पर थोड़े अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाएं?

शिव ओम गुप्ता
प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने से पूर्व से नरेंद्र मोदी की छवि एक प्रगतिमूलक और विकासवादी सोच रखने वाले और अपनी कथनी को करनी में तब्दील कर दिखाने वाले नेता के रुप में मशहूर थी। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने के लिए वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले कितने अग्निपरिक्षाओं से गुजरना पड़ा यह किसी से छिपा नहीं है।

सबका साथ और सबका विकास की सोच को आगे रखकर चलने के बावजूद नरेंद्र मोदी को कांग्रेस समेत उन सभी भयाक्रांत पार्टियों के बेबुनियाद और फिजूल आरोपों-विरोधों का ही सामना नहीं करना पड़ा, बल्कि अपने ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के उत्कंठा प्रेरित प्रतिरोध भी झेलना पड़ा।

बावजूद इसके नरेंद्र मोदी अडिग रहे और देश की जनता ने मोदी के विकासवादी सोच पर भरोसा किया और उन्हें भारी बहुमत देकर प्रधानमंत्री पद पर बैठा दिया, क्योंकि देश की जनता कांग्रेसी डर और विकास की डोर के अंतर को अच्छी तरह समझ गई थी।

बगैर किसी ठोस आधार के गुजरात दंगे में नरेंद्र मोदी के दोषी होने का दुष्प्रचार फैलाकर
कांग्रेस ने मोदी को लगातार राष्ट्रीय राजनीति से दूर रखने की कोशिश की, लेकिन देश के सर्वोच्च न्यायालय से सभी आरोपों से बरी होकर और क्लीन चिट मिलने के बाद मोदी खरे सोने की तरह तप कर न केवल बाहर निकले बल्कि कांग्रेस के झूठ, कपट और डराने वाली राजनीति को परास्त कर देश के प्रधानमंत्री मोदी भी बने।

प्रधानमंत्री पद पर बैठने से पूर्व और बैठने के बाद से ही 'सबका साथ और विकास' की सोच को ही आगे रखकर चलने वाले नरेंद्र मोदी ने 18 महीने के अपने कार्यकाल में वह कर दिखाया, जो पहले कोई प्रधानमंत्री नहीं कर पाया, लेकिन इस बीत कभी भी सांप्रदायिक राजनीति का समर्थन नहीं किया और बार-बार खुद मुखर विरोध किया है।

लेकिन लगातार मोदी की विकासवादी छवि चमकने और 'सबका साथ और सबका' विकास नारे की स्वीकार्यता बढ़ने से मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करने वाली पार्टिया कांग्रेस-सपा समेत करीब सभी विपक्षी पार्टियां हैरान-परेशान हो गई हैं, क्योंकि मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले और बाद से वे लगातार हार दर हार झेल रहीं हैं।

आंकड़ें भी कहती हैं लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत से जीत के बाद प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता में लगातार वृद्धि हुई है, जिसके बाद बीजेपी मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में न केवल दोबारा सत्ता हासिल करने में कामयाब रही, बल्कि राजस्थान, महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा में भी पार्टी ने कांग्रेसी सरकारों को उठाकर फेंक दिया है।

कारण साफ है ऐसे में कांग्रेस और ऐसी तमाम पार्टियां घबड़ाई हुई हैं और हैरान और परेशान हैं कि ऐसे ही चलता रहा तो बिहार के बाद उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी की सरकार बनना लगभग तय है।

पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के दंगे और हाल के दादरी में हुए अति सांप्रदायिक घटनायें इस ओर इशारा कर रही हैं कि कौन क्या कर रहा है और क्यूं कर रहा है, क्योंकि अस्तित्व खो देने के संकट से जूझ रहीं है पार्टियां ही ऐसी आग को हवा दे सकती हैं और अब तक मिले तथ्य भी इसी की ओर इशारा कर रहीं हैं।

क्योंकि सांप्रदायिक दंगों के जरिये समुदाय विशेष को डराकर वोटों के ध्रुवीकरण की जरूरत उन्हें है जो अस्तित्व संकट से जूझ रहीं हैं, उन्हें नहीं जो लगातार लोकप्रियता हासिल कर रही है। सवाल है कि इन दंगों से किसका भला हो सकता है अथवा कौन लाभ लेने की कोशिश कर रहा है?

कारण स्पष्ट है! यह सारी सांप्रदायिक घटनाएं एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है, यह जानबूझ करवाये जा रहें हैं, जिसके जरिये मोदी विरोधी मोदी पर कीचड़ उछाल कर एक विशेष समुदाय वर्ग के वोटों का ध्रुवीकरण कर सकें, लेकिन क्या ये सफल होंगे?

बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हालत सबको पता है, लेकिन सुशासन बाबू नीतीश कुमार की पार्टी हालत किसी से छिपी नहीं है और चारा घोटाले में सजायाफ्ता और अभी जमानत पर रिहा चल रहें लालू यादव के महागठबंधन की हकीकत भी किसी से छिपी नहीं है।

देख सकते हैं कि बिहार विधानसभा चुनाव में
महज सत्ता पाने के लिए कैसे सांप, नेवले और छछूंदर एक बिल में बैठने को मजबूर हो गये हैं और सभी आदर्शों को ताख पर रख कर नीतीश बाबू राजद के जंगलराज और कांग्रेस के 2जी, कोलगेट और कॉमनवेल्थ घोटाले से बदनाम पार्टियों से गठजोड़ करके बिहार की जनता से एक बार फिर जनादेश मांगने को मजबूर हैं?

नोएडा के दादरी में हुई सांप्रदायिक घटना के मायने बिहार विधानसभा चुनाव मद्देनजर देखे जाने होंगे, क्योंकि मोदी विरोधी सभी पार्टियों के पास अभी कोई और दूसरा हथियार नहीं हैं, जिससे वे बीजेपी को बिहार में जीत से रोक सकें।

30 से अधिक साहित्यकारों द्वारा पुरस्कार लौटाने की कवायद भी इसी रणनीति का हिस्सा है, जिसके जरिये बिहार की जनता (मुस्लिम समुदाय) को डराया जा रहा है ताकि वे बीजेपी को वोट न करें।

मतलब, ऐसे कोमल हृदय साहित्यकार पर सवाल उठ रहें हैं, जो एक अदने से दादरी की घटना से इतने आहत हो गये हैं कि अपने-अपने पुरस्कार लौटा रहें हैं, लेकिन इनका कोमल हृदय तब जरा भी नहीं आहत हुआ जब पिछले वर्ष  मुजफ्फरनगर दंगे में 60 से अधिक लोग मौत के घाट उतार दिये गये और तब भी नहीं जब वर्ष1992 में मुंबई सांप्रदायिक दंगों में सुलग गया, जब 1984 में सिख मौत के घाट उतारे गये, और तब भी जब वर्ष 1984 में ही हजारों भोपाल गैस त्रासदी में मारे गये और कांग्रेस ने दोषी वॉरेन एंडरसन को देश से भगा दिया था।

कहते हैं राजनीति में सब जायज होता है, लेकिन साहित्यकार भी राजनीतिक पार्टियों के मोहरे की तरह इस्तेमाल होंगे, यह सोचकर ही डर लगता है। लेकिन 'लिया है तो चुकाना ही पड़ेगा' की तर्ज पर पुरस्कार पाने वाले साहित्यकार फर्ज निभाये तो कोई क्या कह सकता है। आखिर कहीं तो वफादारी निभानी ही पड़ती?

कहते हैं कि लोकतंत्र में सबको अपनी बात कहने की आजादी होती है। मतलब, फ्रीडम ऑफ स्पीच। लेकिन मोदी विरोधी (राजनीतिक नेता-बुद्धिजीवी वर्ग) बीजेपी नेताओं के फ्रीडम ऑफ स्पीच को उचित नहीं मानते?

कहने का अर्थ है बीजेपी नेता किसी भी सांप्रदायिक दंगा प्रभावित इलाके का दौरा करते हैं और कुछ कहते हैं तो गलत है और वहीं दूसरे किसी पार्टी का नेता कुछ कहते हैं और दौरा करते है तो वह 'फ्रीडम ऑफ नीड' हो जाता है? जिसकी मुखालफत कोई नहीं करता?

दादरी घटना के बाद सबसे पहले कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी पहुंचे, फिर एमआईएम नेता असुद्दीन ओवैसी पहुंचा, फिर क्रांतिकारी नेता केजरीवाल गये, तब तक कुछ नहीं हुआ, लेकिन बीजेपी नेताओं के वहां पहुंचने पर राजनीतिक रोटी सेंक रहें तथाकथित सेकुलर असहज हो गये।

क्रांतिकारी टाइप के कुछ मीडिया भी बीजेपी नेताओं के दादरी दौरे पर असहज होकर रिपोर्टिंग करने लगी और बीजेपी नेताओं को छोड़कर अन्य विपक्षी दलों के नेताओं के दौरे और बयानों को मीडिया ने मरहूम अखलाक के मरहम साबित करते नहीं थके।

अब इतनी समझ तो देश की जनता को खुद में विकसित करनी ही होगी कि कौन सी पार्टी और कौन सी सोच उनके विकास और प्रगति में सहायक हो सकती है और कौन नहीं?

देश के प्रत्येक वर्ग को अपनी और देश की माली हालत पता है और देश के अलग-अलग समुदायों को कभी जाति, तो कभी वर्ग में बांटकर वोट बैंक समझने वाली लुटेरी कांग्रेस को भी समझती है, जिसने देश को पिछले 68 वर्ष तक लूटा है और जनता उन पार्टियों दशा-दिशा भी उसे बखूबी समझती है जो उनके विकास के नाम पर अपना और अपने परिवार का विकास करती आईं है।
#Modi #BJP #Congress #Muslim #VoteBank #BiharPolls #DadriLynching

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

पुरस्कार लौटाकर आकाओं को रिटर्न गिफ्ट दे रहें हैं तथाकथित साहित्यकार?

शिव ओम गुप्ता
उत्तर प्रदेश सरकार ने साहित्य जगत में तथाकथित ख्याति प्राप्त करीब 80 लोगों को रेवड़ी की तरह यश भारती पुरस्कार बांटे थे और जिन्हें पुरस्कार मिले थे उनमें 90 फीसदी साहित्यकार मुस्लिम और यादव थे।
सवाल उठता है अब साहित्यकार क्या मुस्लिमों और यादवों के घर का पता लेकर पैदा होने लगे हैं या और लोग गौ पालक हो गये या हुनर-धंधेबाज हो गये?
सीधी सी बात है अब सरकारें ऐसी साहित्यकारों की फौज को पुरस्कारों के एवज में राजनीतिक इस्तेमाल के लिए गढ़ती है, जिसका रिटर्न जरूरत के समय किया जाता है।
अभी कांग्रेस फसल काट रही है और अगले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में आसन्न हार के बाद सपा सरकार भी फसल काटेगी? अब भाई बिना बीज रोपे फसल थोड़े काटा जा सकता है?
धन्य हो ऐसी राजनीति और ऐसे दरबारी साहित्य और साहित्यकारों की, जिन्होंने पुरस्कार को दुकान और साहित्य को सामान बनाकर बेंच और खरीद रहें हैं।
यह सवाल इसलिए आबरू रखते हैं, क्योंकि जिन्होंने पुरस्कार लौटाएं हैं अथवा पद छोड़ा है, उनका दिल, दिमाग और गुर्दा कांग्रेस के शासनकाल में हुए विकराल नरसंहार और दंगों में नहीं पसीजा था।
‪#‎Riots‬ ‪#‎Intolrence‬ ‪#‎Litrate‬ ‪#‎Resign‬ ‪#‎Dadri‬

सुधींद्र कुलकर्णी का मुंह ही नहीं, आत्मा भी काली लगती है!

षिव ओम गुप्ता
वाह रे सुधींद्र कुलकर्णी मुंह तुम्हारा काला हुआ तो तुमने पूरे देश का मुंह काला करने की कोशिश कर डाला। उस पाकिस्तानी खुर्शीद कसूरी के बुक प्रमोशन के लिए भले ही तुमने मुंह से काला रंग उतार दिया, लेकिन तुम्हारी आत्मा अभी भी काली होगी।

क्योंकि जिस नापाक इंसान कसूरी के बुक प्रमोशन के लिए तुमने अपना ईमान और राष्ट्रप्रेम को ताख पर रख दिया उस कमीने मे तुम्हारे राष्ट्र के प्रधानमंत्री का अपमान किया है।

कमीने कसूरी ने पूर्व प्रधानमंत्री बाजपेयी की आड़ में प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधने की हिम्मत की है। उसने कहा है कि बाजपेयी ने जो शांति वार्ता शुरू की थी वह प्रधानमंत्री मोदी के शासनकाल में खत्म हो गया है।

कमीने कसूरी को कोई बताये कि उस शांति वार्ता की आड़ में परवेज मुशर्रफ और तत्कालीन विदेश मंत्री खुर्शीद ने भारत की पीठ से छूरा घोंपा था और भारत को कारगिल का युद्ध लड़ना पड़ा था!

लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के ईट के बदले पत्थर वाले जबाव की कार्रवाई से हैरान-परेशान पाकिस्तानी डरे-सहमे ऐसे बौखलाहट वाले बयान दे रहें हैं। डूब मरो सुधींद्र कुलकर्णी!
#SudhindraKulkarni #Pakistan #KhurshidKasuri

रविवार, 11 अक्तूबर 2015

प्रगति पथ पर है भारत, बस लाभ से कोई वर्ग वंचित न रहे?

शिव ओम गुप्ता
किसी भी देश की खुशहाल जनता ही उस देश की तरक्की और प्रगति का पैमाना होती है और भारत की तो बात ही अलग है।

हम सभी जानते हैं कि किसी भी समाज के उत्थान के लिए वहां रह रहे प्रत्येक वर्ग विशेष को एक समान शिक्षा, स्वास्थ्य और बेरोजगारी जैसी मूल जरूरतों को मुहैया कराना जरूरी है।

लेकिन भारत देश कई मामलों में अलहदा है, क्योंकि यहां के लोग अनुकूल और विपरीत परिस्थितियों में भी मेहनतकश होते हैं, फिर चाहे वह मध्यम वर्ग हो अथवा गरीब वर्ग?

यानी सरकार अगर देश की बीमारी, बेकारी और बेचारगी को दूर करने में कदम उठाती है तो मेहनत करके ऊपर उठना और आगे बढ़ना हमारे देश की जनता अच्छी तरह से जानती है।

मौजूदा मोदी सरकार ने सामाजिक सुरक्षा के लिए पहली बार ऐसे कई कदम उठायें  है, जो अगर देश के हरेक नागरिक तक पहुंच गये तो विकास ही नहीं, विकास की अम्मा, नानी और दादी को भी आने से कोई रोक नहीं सकता है।

देश में पहली बार एक अभियान की तरह शुरू हुए जन धन योजना के तहत गरीब से गरीब लोगों का बैंक खाता खुलना एक बड़ी उपलब्धि है, जिससे सरकारी सहायता जरूरतमंदों को बिना बिचौलियों को सीधे उन्हें मिलने शुरू हो चुके हैं।

बैंकिंग सुविधा से गरीब और मध्यम वर्ग को एक तरफ जहां सरकारी मदद और योजनाओं के लाभ सीधे मिलने शुरू हो गये हैं, दूसरी तरफ 1 रुपये प्रतिमाह की सस्ती दुर्घटना बीमा, 230 रुपये प्रतिमाह में पेंशन योजना से उनकी सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य की अनिश्च्तता की चिंता पर विराम लगा दिया है।

मोदी सरकार की चुनौती बस इतनी सी है कि वह शुरू किये सभी सामाजिक सुरक्षा योजना का लाभ प्रत्येक वर्ग तक पहुंचाये और उसके अमल में भी तेजी लाये, ताकि उक्त योजनाओं से जुड़े जरूरतमंदों को उनकी जरूरत पर किसी का मुंह न देखना पड़े।



मंगलवार, 6 अक्तूबर 2015

लॉ एंड ऑर्डर नहीं, मुआवजा वाली है अखिलेश सरकार!

शिव ओम गुप्ता
कौन नहीं जानता कि उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार प्रदेश इतिहास की सबसे नकारा और निकम्मी सरकार है और उसके नकारापन और निकम्मेपन को छिपाने के लिए अखिलेश के दायें-बायें हमेशा रहने वाले अदृश्य मुख्यमंत्रियों की टोली दंगा और मुआवजे का गंदा खेल रच रही है।

उत्तर प्रदेश में जब से अखिलेश यादव की सरकार सत्तासीन हुई है प्रदेश की लॉ एंड ऑर्डर भगवान भरोसे चल रहीं है, जिसके लिए रोजाना मीडिया की खबरें ही नहीं, पिता मुलायम ही मुख्यमंत्री को लताड़ते रहें हैं।

पिछले 3 वर्षों में उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व में प्रदेश की हालत बद से बद्दतर हुई है और तथाकथित मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कुछ करने के बजाय मुआवजा राजनीति कर रहें हैं।

अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री पद के शपथ के दिन से लेकर उत्तर प्रदेश लॉ एंड ऑर्डर की समस्या बिकराल होती गईं है, क्योंकि गुंडों और अपराधियों के हौसले बुलंद है।

अखिलेश सरकार के कार्यकाल में प्रदेश की हालत के लिए अपराध के आंकड़े की देखने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह सरकार अपराध नहीं, अपराधियों के जाति-संप्रदाय के आधार पर कार्रवाई करती नजर आई है।

मुजफ्फर नगर और दादरी जैसे मामले प्रदेश सरकार की नकारा और तुष्टिकरण की राजनीति के कारण जन्म लेते है, जिसका सीधा जुड़ाव लॉ एंड ऑर्डर के फेलियर से है।

उत्तर प्रदेश में अपराध और अपराधियों के हौसले बुलंद है, क्योंकि वहां एक नहीं, पांच-पांच मुख्यमंत्री काम कर रहें हैं। अपराधी किसी भी समुदाय से हो, उसे पता है कि कुछ होना जाना नहीं है, मुआवजा बांटकर इतिश्री कर लेगी अखिलेश सरकार ।

#AkhileshYadav #UPGovernment #LawAndOrders #Riots #Failurs 

मीडिया रिपोर्टिंग और नाच-नौटंकी के बीच फर्क खत्म हो गया है?

शिव ओम गुप्ता
वह दिन दूर नहीं जब दंगा और फसाद के लिए मीडियाकर्मी और मीडिया का नाम सर्वोपरि होगा।

दादरी में मरहूम अखलाक की मौत के मामले को न्यूज चैनल्स जिस तरीके से खींच कर रबड़ बना रहें हैं और महज टीआरपी की रेस में बने रहने के लिए रोते-बिलखते परिजनों का फुटेज वोट बैंक और टीआरपी के बीच मरहूम अखलाक कहीं नहीं है?

वोट की राजनीति में मरहूम अखलाक की मौत महज एक राजनीतिक और न्यूज चैनलों का फंसाना बनकर रह गयी है, जहां संवेदना नाम की चीज नहीं दिखती है।

एक तरफ जहां 24 घंटे सियासी रोटियां सेंककर राजनीतिक दल वोट बैंक पुख्ता कर रहें हैं, तो दूसरी तरफ 24 घंटे की ऊल-जुलुल रिपोर्टिंग करके न्यूज चैनल्स टीआरपी रेटिंग में थोड़े उछल मारने में लगे हैं।

लेकिन इस सब के बीच अखलाक और उसके परिवार के सदस्य महज तमाशाई बनके रह गये हैं और पीड़ित परिवार के आसपास रह रहा समाज भी मूक दर्शक की तरह सब तमाशा देख रहा है और समझने की कोशिश कर रहा है कि आखिर हो क्या रहा है?

क्योंकि गलती किसी की भी थी, लेकिन राजनीतिक दल और मीडियाकर्मी वहां रह रहे पूरे समाज को बांट रहें हैं, जिनके साथ ही पीड़ित परिवार को आगे भी रहना है और इस सब से आगे भी बढ़ना है।

#Dadri #Incident #Akhlaq #Politics #VoteBank #Media #TRP  बार -बार लहराया और चलाया जा रहा है, वह बेहद की उत्तेजक और घातक है।

चैनल्स के उक्त घातक प्रयास समुदाय विशेष में गलत संदेश और उत्तेजना फैलाने की कोशिश कर रहें हैं, जिससे देश के अलग-अलग इलाकों में दंगा-फसाद फैल जाये इससे इनकार नहीं जा सकता?

मीडिया वालों कुछ तो होश में आओ और अपनी तुच्छ और कुत्सित मानसिकता को छोड़ कर वास्तविक पत्रकारिता का उदाहरण पेश करो वरना वह दिन दूर नहीं जब मीडियाकर्मी किसी भी घटना-दुर्घटना पर लोगों से बात करने को तरस जायेंगे और जहां जायेंगे जूते और खाकर लौटेंगे! सोचो? अभी भी वक्त है!

#Media #Reporting #TRP #Prestitutes

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2015

लालू मतलब जंगलराज की वापसी: कौन करेगा महागठबंधन को वोट?

शिव ओम गुप्ता
चारा चोर लालू यादव को पता है कि उनको अब बतौर राजनेचा कभी सम्मानजनक जीवन नहीं मिलने वाला है और आज नहीं, तो कल बाकी की सजा काटने जेल में वापस जाना ही पड़ेगा?

शायद यही कारण है कि लालू यादव दोनों बेटों का राजनीतिक भविष्य बनाने के लिए नीतीश कुमार के साथ गठजोड़ कर खून के आंसू पी रहें हैं और अपने हवाई सपनों के संभावित अड़चनों से डरे -सहमें लालू यादव गाली-गलौज पर उतर आये हैं।

लालू यादव को थोड़ा आत्मचिंतन करना चाहिए कि बिहार में जंगलराज मतलब लालू यादव ही होता है और चारा घोटाला आरोप नहीं है, बल्कि लालू न्यायालय द्वारा  घोषित अपराधी और सजायाफ्ता है, जो जमामत पर बाहर हैं।

समझ नहीं आता है कि लालू यादव को सुन कौन रहा है और बिहार में कौन ऐसा मतदाता होगा जो लालू मतलब जंगलराज को वोट देकर बिहार में वापसी कराना चाहेगा?

लालू नीतीश का जोड़ी का सत्ता से जाना चो लगभग तय हैं, देखना यह है कि बिहार की जनता इनकी कैसी विदाई करेगा?

क्योंकि लालू और नीतीश दोनों को बिहार में आसन्न भयानक हार की आशंका हो गई है, जिसे दोनों के वागियात बयानों से समझा भी जा सकता है।

#LaluYadav #NitishKumar #BiharPolls #Jungalraaj #FodderScam #JDU #RJD

गुरुवार, 24 सितंबर 2015

राहुल बाबा नाम रोशन करके लौटाना!

कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने बताया है कि राहुल गांधी अमेरिका के कोलोरेडो स्थित एसपिन में एक कांफ्रेंस में भाग लेने के लिए बिहार का चुनाव प्रचार छोड़कर भागे हैं।

यही नहीं, सुरजेवाला ने बताया कि उक्त इंटरनेशनल लेबल के कांफ्रेंस में तमाम देशों के ख्याति प्राप्त लोगों को बुलाया गया है और भारत से उन्होंने पप्पू को विशेष आग्रह करके बुलाया है।

वैसे रंगीनमिजाजी के लिए कुख्यात एसपिन में कैसा कांफ्रेंस होगा, जिसमें राहुल गांधी निमंत्रित हैं? हालांकि भाई लोगों ने काफी जांच पड़ताल के बाद पाया है कि एसपिन में होने वाले किसी भी कांफ्रेंस सूची में पप्पू का नाम नहीं बरामद हो सका है।

अब एसपिन में कोई पप्पूगिरी पर कांफ्रेंस आयोजित हो रहा हो और उसमें अपने पप्पू को आमंत्रित किया गया हो, तो अलग बात है।

वैसे राहुल बाबा ऐसे किसी कांफ्रेंस में आमंत्रित किये गये हैं तो नीतीश और लालू ही नहीं, हम सभी खुश होंगे।

ऐसा लगता है कि राहुल बाबा किसी पप्पूगिरी कांफ्रेंस में भारतीय प्रतिनिधुत्व कर रहें हैं। राहुल बाबा नाम रोशन करके लौटाना, बिहार चुनाव की चिंता मत करना?

#Rahul_Gandhi #Congress #Aspen #Pappu

जर्नलिज्म करूं या पैसे कमाऊं?

शिव ओम गुप्ता
मैंने जर्नलिज्म के लिए ही जर्नलिज्म ज्वाइन किया है, नौकरी करने के लिए जर्नलिज्म में ज्वाइन नहीं किया?

अपनी मनपंसद के काम करने के लिए मुझे 24 घंटे भी कम मालूम पड़ते हैं, लेकिन 8 घंटे ऑफिस में बैठने के लिए कंपनी स्टैंडर्ड की जितनी भी सैलेरी परोसती है उसे बोनस मानता हूं (और फिर रूम रेंट वगैरा भी तो निपटाना होता है)

न हताशा, न प्रत्याशा ? बल्कि खुशी! कि जो करना चाहता हूं वो कर रहा हूं,  पैसा कमाना कभी मेरी शौक में ही शामिल नहीं रहा, क्योंकि पैसे बचपन से कमा रहा हूं, कसम से!

हालांकि तथाकथित बुद्धिजीवी और निहायत ही परजीवी टाइप के लोगों को मेरी बातें हजम नहीं होंगी?

सवाल उठाते हुए कहेंगे, 'भैय्या, करने को तो हम भी जर्नलिज्म करने आए थे, लेकिन जर्निलज्म अब होता कहां है?'

डॉयलाग भी मारेंगे, "तुम्हारे आदर्शों और जर्नलिज्म को गूंथ कर रोटी नहीं बनाई जा सकती"

मत बनाओ रोटी, और क्यूं बनेगा रोटी? रोटी बनानी है तो ढाबे की दुकान खोलो, रोटी ही नहीं, नॉन-बटर नॉन बनाओ, लेकिन जर्नलिज्म को जर्नलिज्म ही रहने दो?

क्योंकि जर्नलिज्म को रोटी बनाने वालों ने ही इसको चोटी से उतार कर बोटी-बोटी किया है और अब आपस में बांटकर खा रहें हैं!

बावजूद इसके मैं अपनी जर्नलिज्म से खुश हूं, क्योंकि मुझे मांगकर नहीं, पाकर खुशी मिलती है...मसलन, मुझे कोई मेरे पसंदीदा काम की एवज में आगे बढ़ने का मौका दे रहा है?

कोई मेरे द्वारा मुझसे कमाई कर रहा है तो कमाए मुझे क्या? क्योंकि अगर कमा रहा तो बांट भी रहा है, किसी को 20 टका मिल रहा है तो वहीं किसी को 20 करोड़ भी दे रहा है...

और हां, जर्नलिज्म करते हुए यदि कोई कंपनी मुझे 20 टका से बढ़ाकर 20 लाख देती है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है, बनिया हूं भाई...पैसे ने किसी को काटा है कभी? हां, नौकरी करते हुए तो करोड़पति भी बनते-बिगड़ते रहते है!

चूंकि मैं सौभाग्य से बनिया हूं इसलिए समझता हूं कि पैसे काम पर खर्चे जाते हैं नौकरी या नौकरी करने वाले पर नहीं?

अब अगर आप जर्नलिज्म करने निकले हैं तो जर्नलिज्म ही करना पड़ेगा? लेकिन अधिकांश जर्नलिज्म की नौकरी करने आए है, जहां जर्नलिज्म छोड़ वो सब करते है, तुर्रा यह कि कहेंगे, 'अब वो जर्नलिज्म कहां? अब जिसके पास पैसा वहीं बड़ा जर्नलिस्ट?'

फिर कहेंगे अब वो मिशन जर्नलिज्म कहां है, अब तो चोरी, बलात्कार और सेक्स की खबरें बिकती हैं?

अब सवाल उठता है कि मिशन जर्नलिज्म क़्या बला है? भई, गुलामी के दौर में अग्रेजों के अन्यायों को उदघाटित करते लेख और न्याय की गुहार की रिपोर्टिंग को ही मिशन जर्नलिज्म कहते है?

तो क्या हमारे देश में सबको न्याय मिल गया, कोई शोषित, वंचित और अश्पृश्य नहीं बचा, जिन पर हो रहे अन्या़यों की रक्षा के लिए हमारे कंप्युटर के की बोर्ड न्याय की गुहार वाली रिपोर्टिंग व आर्टिकल छाप सके?

जर्नलिज्म में पैसा कमाने आए हो तो पैसा कमाओ, बातें मत बनाओ? बड़े आए मिशन जर्नलिज्म का डेफिनेशन बताने वाले?

तो पैसा ही कमाओ भैय्या, वैसे पैसे ही कमाना है तो जर्नलिज्म में क्या कर रहे हो, जाओ कोई और काम करो, जिसमें नैतिकता और मूल्यों का कोई लोचा नहीं है और दबा कर कमाओ?

कम से कम तुम्हारे जैसे लोगों की वजह से जर्नलिस्ट बताते ही पुलिस वाला दो सोटे अधिक तो नहीं मारेगा?

बुधवार, 9 सितंबर 2015

आधुनिकता और आध्यात्मिकता का पर्याय है हिंदू जीवनशैली!

कट्टरता-लोचनियता,  कठिन-सरल और गृहस्थ-संन्यास हिंदू धर्म या हिंदू होने की विलक्षणता है, जो जैसा वहन करना चाहता है अंगीकार कर सकता है, कोई रोक-असंतोष नहीं!

बतौर हिंदू व्यक्ति हमेशा नैसर्गिक आधुनिकता में जीता है वरना अनुष्ठान और क्रिया-कलापों में निहित धर्म लोगों को मजबूर बनाते हैं, लेकिन हिंदू हमेशा स्वतंत्र व स्वछंद रहता है! मसलन, यथा भक्ति जथा शक्ति!

एक बीमार, लाचार और जरुरतमंद व्यक्ति पूजा-पाठ और धर्म से जुड़े अनुष्ठानों में अधिक रमता-रंगता है, लेकिन वह जीवन जनित लाचारगी से उबरते ही सफलता की अभ्यासों में रम जाना चाहता है पर अनुष्ठानों वाले धर्म और उसकी धार्मिक कट्टरता व्यक्ति का मार्ग रोक लेती है!

एक लाचार और अनगढ़ व्यक्ति (किसी भी धर्म को मानने वाला) धार्मिक अनुष्ठानों में, पूजा-पाठ में अधिक रमा व लगा रहता है, लेकिन ज्ञान प्राप्त होने अथवा इच्छित सफलता की ओर बढ़ने पर कर्म प्रधान होने लगता है!

रोजाना दो घंटे कर्मकांडों में बिताने वाले व्यक्ति को अनुष्ठान के लिए दो सेकेंड निकालना भी मुश्किल लगता है, क्योकि सफलता और ज्ञान से व्यक्ति समझ चुका होता है कि कर्म ही पूजा है!

असफल, अज्ञानी और परजीवी व्यक्ति ही अनुष्ठानों में अधिक रमते हैं, क्योंकि ऐसों के ज्ञान चक्षु खुलते नहीं हैं या खोलना नहीं चाहते हैं,?

मंगलवार, 8 सितंबर 2015

नकारेपन पर हो रही फजीहत से फस्ट्रेशन में हैं सोनिया गांधी

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी एक के बाद एक कीर्तिमान रच रही मोदी सरकार के कामों से कितनी फ्रस्ट्रेशन में हैं कि वो छुपा भी नहीं पा रहीं हैं।

बात चाहे ब्लैक मनी पर एसआईटी गठन की हो या बात नगालैंड उग्रवादी समझौते की हो या बांग्लादेश से बार्डर समझौते की हो अथवा 42 वर्ष बाद वन रैंक वन पेंशन को लागू करने पर हो रही मोदी सरकार की वाहवाही और कांग्रेसी के नकारेपन पर हो रही फजीहत की हो।

कोई पार्टी कितनी बेशर्म हो सकती है इसका जिंदा उदाहरण कोई है तो वो है कांग्रेस पार्टी, कोई और पार्टी होता तो चुल्लू भर पानी में डूब मरती, लेकिन कम से कम अपने नकारेपन पर सीनाजोरी नहीं करती?

कहते हैं कि लोग गलतियों से सीखते हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी के लिए यह लागू नहीं होती? नि:संदेह कांग्रेस अगर देश की जनता से अपने नकारेपन और घोटालेपन की हरकतों के लिए माफी मांगती तो जनता माफ कर देती, लेकिन?

हमारे सामने ताजा उदाहरण है कि दिल्ली की जनता ने प्रधानमंत्री बनने की लोभ में दिल्ली छोड़कर भागे केजरीवाल को दिल्ली की जनता ने माफी मांगने के बाद माफ कर दिया और दिल्ली का मुखिया बना दिया, वो अलग बात है कि केजरीवाल की हरकतों से वाकिफ नहीं थी दिल्ली की जनता और अब पछता रही है।

सोमवार, 7 सितंबर 2015

PM Modi increased fascination by ride on Delhi metro!

Prime minister #Narendra_Modi certainly increased his fan following in country & world by his surprised yesterday visit in Delhi metro.

People who were traveling in #Delhi_Metro along with prime minister modi seemingly seen so attached & emotional in released pictures.

Indeed people of our country the first time gone through such experience where #Prime_minister_of_India sitting parallel & next to them.

I'm dame sure whoever viewing this picture of Modi in Delhi metro's surprise visit, they will not only fascinated although attached to gesture of PM Modi too.

If you Like someone doesn't mean you Love him?

Mean, if you think the thing of liking someone are love? Then you are on wrong track? because if some how result turned out becomes sour? you will become violent but loves never be violent by nature?

So don't mix like and love as same emotions and consider both has different taste and in between has big difference as sky to earth.

However, If love exists then husband-wife's fighting story never happen? Understand its simply liking and an human likes always changes like nature but love never change because its belongs to only self liabilities?

So if you think you love someone by liking her/his face and figure think once again? Because liking are not a love and such relationships later turn out to be bad that's you considering today as love?

So be first ready by wealthy & healthy to handle love liability then start liking someone for love/life partner? Because love deals by two way method and likes with always by one way?

Otherwise who the hell in this world who likes her/his own partner after marriage if there are no involvement of money, property & other related liabilities for his/her respective livelihood.

शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

क्या है बलात्कार? आखिर क्यों होते हैं बलात्कार?

कहते हैं कि एक सभ्य समाज का निर्माण एकाएक नहीं, धीरे-धीरे होता है और ऐसे सभ्य समाज की परिकल्पना, जिसमें स्त्री-पुरुष, बड़े-छोटे और अमीर-गरीब को समान शिक्षा और समान अवसर की उपलब्धता सुनिश्चित हो तो समाज से द्वेष, हिंसा और बलात्कार जैसे कोढ़ हद तक मिटाये जा सकते हैं।

आप क्या सोचते हैं? हमारे समाज में स्त्रियों के खिलाफ लगातार बढ़ते बलात्कार का क्या वास्तविक कारण है? लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई, लड़कियों का घर से बाहर निकलना, लड़कियों द्वारा जींस पहनना और मोबाइल फोन रखना अथवा एक लड़की द्वारा हर क्षेत्र में लड़कों को पीछे छोड़ देना भी कारण है?

अगर आप उपरोक्त कारण बलात्कार के कारणों के लिए सही मानते हैं तो आप गलत दिशा में जा रहें है, क्योंकि यह सभी कारण वास्तविक नहीं है बल्कि कृत्रिम हैं और गढ़े गये कारण है? सच्चाई तो कुछ और ही है!

आप जरा सोचिए, दिमाग लगाइये और गुणा-भाग कीजिये, क्योंकि आपके प्रत्येक विचार और दी गई तथ्यात्मक जानकारी यह  लगाने में काफी उपयोगी होगी कि आखिर बलात्कारी मानसिक रोगी होते हैं या शारीरिक?

तो भेजिये अपने विचार कमेंट बॉक्स में अथवा मुझे मेल करें। धन्यवाद!

मेरा मेल आईडी- gupta.shivom@gmail.com