गुरुवार, 30 अप्रैल 2015

राहुल गांधी, 'घड़ियाली आंसू देख रहा है देश का वोटर!'

शिव ओम गुप्ता
परीक्षा में बैठने से पहले पुराने परीक्षा में जिन सवालों के जबाव नहीं दे सके थे राहुल गांधी एंड टीम को उससे सबक लेना चाहिए वरना शर्तिया फिर फेल हो जायेंगे!  

राहुल गांधी विशुद्ध कांग्रेसी ढर्रे की पुरातन राजनीति कर रहें हैं, जिसमें कुछ नया नहीं है, बल्कि बोरियत है।

 राहुल गांधी को अच्छी राजनीति करनी है तो पहले उन्हें केंन्द्र के 10 वर्ष की घोटालों और पिछले 15 वर्षों में कांग्रेस सरकार के दौरान महाराष्ट्र में किसानों की खुदकुशी की समीक्षा करके देश से गद्दारी के लिए माफी मांगनी चाहिये फिर किसानों के हित के घड़ियाली आंसू बहाने चाहिये।

याद रखिये अब कांग्रेस की परंपरागत गांधी परिवार प्रेमी वोटर नहीं रहे, जिसको वो आसानी से वे मूर्ख बनाकर सत्ता में पुनर्वापसी कर लेते थे?

लेकिन आज का युग बदल गया है, क्योंकि आज का युवा वोटर  राजनीतिक दुष्प्रचार को बढ़िया से समझती है और उन सभी दुष्प्रचारों का सच और झूठ सोशल मीडिया के जरिये उसके पास रिफाइन होकर पहुंचता है।

 राहुल को अगर कांग्रेस की पुरानी ढर्रे पर राजनीति में पुनर्वापसी करनी है तो भूल जाये वरना अभी भी समय है और गाली देने के बजाय विकास प्रेरित राजनीति की बात करनी शुरू करें।

 क्योंकि जनता राहुल गांधी को सुनना पसंद नहीं करती है, वह जानती है राहुल गांधी की बातें छिछली होती है और स्क्रिप्टेड ड्रामेबाजी होती है!

#RahulGandhi #Congress #Youth #Voter 

राहुल गांधी कच्चे नींबू हैं सबको पता है पर कांग्रेस?

राहुल गांधी किसानों की आड़ में राजनीतिक ड्रामा भले कर रहें हैं, लेकिन यह भूल गये हैं या भूलने का ड्रामा कर रहें है।

क्योंकि पिछले 10 वर्ष केंद्र और महाराष्ट्र में 15 वर्ष कांग्रेस की सरकारें रही है और उनके ही कार्यकाल में किसानों की सर्वाधिक मौत हुई है।

कोई कैसे इतनी दोगली बातें कर सकता है। गलती मानने वाले को माफी मांगने पर जनता एक बार माफ भी कर देती है, लेकिन चोरी करके सीनाजोरी करने वालों को देश की जनता कभी नहीं करेगी!

राहुल गांधी कच्चे नींबू हैं यह तो दुनिया को मालूम हैं, लेकिन पूरी कांग्रेसी जमात कच्चा नींबू निकलेगी? भरोसा नहीं हो रहा?

#RahulGandhi #Congress #Pappu #IndianFarmers #Suicide

बुधवार, 29 अप्रैल 2015

बचने से नहीं, लड़ने से मिलेगी जिंदगी?

शिव ओम गुप्ता
बचकर नहीं, डटकर तुम्हें चलना होगा?
तुम्हें जिंदगी से लड़कर आगे निकलना होगा?

राह दुश्मन सही, इरादे बदलकर चलना होगा?
तुम नहीं या हम नहीं, तय करके ही भिड़ना होगा?

है आन में अभिमान तो उसमें जान भी भरना होगा?
तू ठान ले बस फिर तो उसको पिछड़ना ही होगा?

मत गौर कर कब क्या किसे समझाना होगा?
सरेराह ही सबक तुम्हें उसे सिखलाना होगा?

अब आन पर नादान, जान हथेली पर लेना ही होगा?
है जान पर अभिमान तो कीमत बतलाना भी होगा?

इसलिए फौरन तुझे अब मौन को दफनाना होगा?
औरत तुझे अब हाथ में खड्ग तो उठाना होगा?

और हाथ लकड़ी में अब ज्वाला तुझे भड़काना होगा?
क्योंकि लड़की नहीं है अबला उन्हें अब बतलाना होगा?

मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

'चोर' कहता है कि मुझे चोर मत कहो, देश की बदनामी होती है?

पिछले 60 वर्षों तक देश को घोटालों और लूटमारी से पीछे ले जा रही कांग्रेस को अब बदनामी का भी डर सता रहा है और अपनी नाकामी और लूट को छिपाने के लिए अपने कुकर्म को भारत की बदनामी से जोड़ रही है।

अफसोस तो इस बात है कि कांग्रेसियों को घोटाला और देश के साथ गद्दारी करते हुए कभी यह एहसास ही नहीं हुआ कि उनके घोटालों से  दुनिया में देश का नाम रोशन हो रहा है कि बदनाम हो रहा है।

मतलब, कांग्रेसी अब चोरी को अपराध श्रेणी  से हटाने की वकालत कर रहें हैं। कहने का अर्थ है कि 'चोर' को चोर कहो, तो चोर कह रहा है कि मुझे चोर मत कहो? क्योंकि इससे उसकी नहीं, देश की बदनामी हे रही है?

सोमवार, 27 अप्रैल 2015

वादे पूरी करो केजरीवाल, वरना दिल्ली माफ नहीं करेगी ?

शिव ओम गुप्ता
कहते हैं कि जो निवाला मुंह में हो, पहले उसको निगलने की कोशिश करनी चाहिये? फिर दूसरे किसी निवाले के बारे में सोचना चाहिये?

लेकिन राजधानी दिल्ली में वादों के पिटारों से निकली और वजूद में आई आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार अब वादों से ही कन्नी काटती नजर आने लगी है जबकि उसे मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी और मुफ्त इंटरनेट जैसे 70 लोक लुभावन नारों से दिल्ली में ऐतिहासिक जनादेश हासिल किया था !

उल्लेखनीय है राजधानी दिल्ली के मतदाताओं ने  गत दिल्ली विधानसभा चुनाव में पारंपरिक पार्टियों को धता बताते हुये अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को 70 विधानसभा सीटों में से रिकॉर्ड 67 सीटों पर विजयश्री दिलाई थी जबकि देश की सबसे बड़ी पार्टी रही कांग्रेस खाता तक नहीं खोल पाई और केंद्र में सत्तासीन भाजपा को महज 3 सीटों से संतोष करना पड़ा!

बावजूद इसके राजधानी दिल्ली का मतदाता अब ठगा सा महसूस कर रही है, क्योंकि चुनाव जीतने के बाद वादों को पूरा करने में केजरीवाल सरकार फिसड्डी ही साबित नहीं हो रही है बल्कि मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा है कि उनकी सरकार अगर किये वादों का 40 से 50 फीसदी भी पूरा कर देती है तो कोई बुराई नहीं है?

गौरतलब है जिन वादों और ईमानदार कोशिशों के चक्कर में दिल्ली ने केजरीवाल को मुख्यमंत्री की गद्दी सौंप दी थी, वे केजरीवाल अब दिल्ली की राजनीति को छोड़ राष्ट्रीय राजनीति में हाथ-पांव आजमाने लग रहे है, जिससे अब दिल्ली की जनता के अरमान ही नहीं टूट रहें हैं, बल्कि वे अब खुद के निर्णय को भी कोसने लगे हैं!

इससे पूर्व भी केजरीवाल अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा और मंशा के चलते दिल्ली की गठबंधन सरकार 49 दिनों में छोड़कर लोकसभा चुनाव में कूद पड़े थे, लेकिन चारों खाने चित्त होने के बाद वे दोबारा दिल्ली लौटे और माफी मांग ली और दोबारा दिल्ली में पूर्ण बहुमत सरकार बनाने में कामयाब हुये।

हांलाकि केजरीवाल ने दिल्ली की गद्दी दोबारा संभालते ही किये 70 वादों में से दो लोक लुभावन वादे तत्काल पूरे कर दिये। इनमें 200 यूनिट तक बिजली के खर्च पर वर्तमान टैरिफ का 50 फीसदी कीमत चुकाने और रोजाना 666 लीटर मुफ्त पानी प्रमुख है, लेकिन बाकी के वादे अब तक पिटारे में ही बंद हैं!


लेकिन केजरीवाल की ईमानदारी पर आश्वश्त दिल्ली की जनता अब अधीर हुई जा रही है, क्योंकि उसे भरोसा था कि केजरीवाल सरकार किये वादों को पूरा करने में ईमानदार कोशिश जरूर करेगी, क्योंकि इस बार दिल्ली में पार्टी की पूर्ण बहुमत नहीं होने का बहाना भी नहीं है, पर पूर्ण बहुमत के बावजूद केजरीवाल दिल्ली के मुद्दों को छोड़ अब इधर-उधर की बातें करते अधिक दिखाई पड़ रहें हैं!

कभी केजरीवाल नई भूमि अधिग्रहण विधेयक में राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए दिल्ली में किसान ढूंढ लाते हो, फिर कभी मीडिया पब्लिसिटी के लिए उन्हें फसल बर्बादी का मुआवजा बांटने लगते हैं और तो और गत 22 अप्रैल को राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर सभी जिम्मेदारी छोड़कर धरने पर बैठ गये और किसान हितैशी बनते-बनते राजस्थान के एक किसान गजेंद्र सिंह चौहान को ही सूली पर चढ़ा दिया!

दिल्ली पुलिस का आरोप है कि केजरीवाल और पार्टी कार्यकर्ताओं के सामने गजेंद्र फांसी पर झूल गया, लेकिन केजरीवाल समेत पार्टी के तमाम बड़े नेता राजनीतिक माईलेज के लिए गजेंद्र की मौत पर मौन रहे और सारे के सारे गजेंद्र की मौत का तमाशा असंवेदनशीलता से तब तक देखते रहे जब तक गजेंद्र पेड़ से झूल नहीं गया?

ध्यान रहे, ये वही केजरीवाल है, जिन्होंने रामलीला मैदान में दोबारा मुख्यमंत्री पद के शपथ ग्रहण समारोह के मंच से घोषणा की थी कि वे और उनकी पार्टी अब पूरे 5 साल दिल्ली की ही राजनीति करेगी और दिल्लीवालों की उम्मीदों को ही पूरा करने में लगेगी।


यही नहीं, केजरीवाल ने दिल्ली से किये गये वादों का हवाला देते हुए पार्टी के दूसरे संस्थापक सदस्यों को इसलिए पार्टी से बाहर कर दिया, क्योंकि वे दिल्ली से बाहर पार्टी को विस्तार देने की बात कर रहे थे? इनमें योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, प्रोफेसर आनंद कुमार और अजीत झा शामिल हैं, जिन्हें अब पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से भी बाहर किया जा चुका है?

सवाल उठता है कि अगर पार्टी दिल्ली से बाहर अभी विस्तार नहीं चाहती है तो भूमि अधिग्रहण विधेयक और मुआवजे की राजनीति क्यों कर रही थी? जबकि दिल्ली में किसान और किसानी भी नाममात्र हैं?

केजरीवाल पर यह भी आरोप लगता रहा है कि वे पार्टी को एक तानाशाह की तरह चलाते हैं और पार्टी में उनकी ही चलती है और जो भी उनसे सहमत नहीं होता, उसे पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है, इनमें पार्टी के तथाकथित आंतरिक लोकपाल एडमिरल रामदास का उदाहरण ही काफी है!

सवाल घूम फिर कर फिर वहीं पहुंच जाती है कि आखिर दिल्ली से किये वादों का क्या? जिसे पूरा करने को लेकर केजरीवाल खुद संजीदा नहीं दिख रहे जबकि पार्टी और पार्टी के नेता लगातार विवादों में घिरे रहते है।

जंतर-मंतर पर किसान गजेंद्र की फांसी मामले में पार्टी के सभी बड़े नेताओं का घिरना लगभग तय है, जहां किसान की हत्या और फांसी के लिए उकसाने का मुकदमा पुलिस दायर कर चुकी है।

क्योंकि मंच पर मृतक गजेंद्र की तथाकथित चिट्ठी की लिखावट पर गजेंद्र का परिवार पहले ही सवाल उठा चुका है और गजेंद्र की गरीबी और तंगहाली पर भी सवाल खड़े हो चुके है?

केजरीवाल एंड पार्टी अपने किये वादे पूरे जब करेगी तब करेगी, लेकिन काम कब करेगी यह बड़ा सवाल है। ये तो वही बात हो गई कि चील का उड़ना कम और चिल्लाना ज्यादा?

शनिवार, 25 अप्रैल 2015

कांग्रेसी मूर्ख बनाकर ही वोट लेंगे क्या? राहुल भी इसी राह पर!

शिव ओम गुप्ता
लांचिंग-रीलांचिंग, पिकनिक-हॉलीडे और रिहर्सल-भाषण के बाद बहरुपिये राहुल गांधी एक बार फिर अपनी पुश्तैनी मांद में घुसने जा रहें हैं?

सब कुछ गंवा चुकी कांग्रेस की थिंकटैक एक बार फिर पुराने ढर्रे पर लौटते हुए राहुल गांधी को हिंदू वोटरों को एक फिर ताड़ने के लिए हिंदू तीर्थों के चक्कर लगवा रही है, ताकि हिंदू बहुसंख्यक राहुल गांधी को इटलीवासी नहीं, हिंदुवादी समझे?

जैसा कि उनके पिता राजीव गांधी से अयोध्या राम जन्मभूमि का ताला खुलवा कर किया गया था और हिंदू बहुसंख्यकों को इमोशनल फूल (मूर्ख) बनाते रहे!

क्या कांग्रेस थिंकटैंक 2014 लोकसभा चुनाव की ऐतिहासिक पराजय के बाद अभी भी यह मानती है कि आज की नई जनरेशन भी गांधी परिवार के मोह में इमोशनल फूल बन जायेगी और स्वघोषित पप्पू राहुल गांधी को भी अपना वोट देगी?

आज जहां देश का युवा विकास, तकनीकी और रोजगार की बात कर रहा है, वहीं कांग्रेस एक बार फिर इमोशनल फूल बनाने वाले कॉर्ड पर दांव खेल रही है और पप्पू तो पप्पू? पप्पू की मम्मी भी राजी हैं!

तो क्या विश्व के सबसे बड़े युवा मतदाताओं वाला देश पप्पू के लिए इमोशनल फूल बनने को राजी हैं, क्योंकि कांग्रेस थिंक टैंक तो देश को पप्पू को थोपने पर अमादा दिखती है और वो हर वो चोचले आजमाने की कोशिश करती दिख रही है, जिसके जरिये उसने भारत को 5 दशक तक बर्बाद किया?

#RahulGandhi #Pappu #Congress #Youth  #SoniaGandhi #Voters #GandhiFamily 

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

केजरीवाल एंड पार्टी का मास्टर प्लान बैक फायर हो गया!

#केजरीवाल एंड पार्टी का #मास्टरस्ट्रोक जो उनके ही लिए #हॉर्टस्ट्रोक साबित हो गयी?

मास्टर स्ट्रोक प्लान की पटकथा-

"तैयारी हो गयी ?"
"हाँ हो गयी"
"वो आदमी कौन है जो पेड़ पे चढ़ कर थोड़ा ड्रामा करे, उसे क्या बोलना है सब समझा दिया ना",
"हां, लिख कर दे दिया है",
"कौन है वो?"
"बीजेपी का था अब बस टाइमपास है",
"चलो अच्छा है, कल को कुछ गलत हुआ तो #बीजेपी के सर पे दे मारेंगे के तुम्हारा बन्दा हमारी सभा में ड्रामा कर रहा था।
देखो सब ठीक से हो? बहुत ज्यादा देर तक पेड़ पे ना रहे। जब हल्ला मचे उसे आराम से उतारवा लेना और मंच में ले आना।
वही से उसका भाषण करा देंगे"
"बहुत क्रन्तिकारी होगा, मोदी साब तो हिल जायेंगे हमारे मास्टर स्ट्रोक से !"

हॉर्ट स्ट्रोक- बैक फायर्ड-स्क्रिप्ट:

"लटक गया"
'यह सब किसान आंदोलन को रोकने की साजिश है, बीजेपी चाहती है कि आम आदमी पार्टी को बदनाम किया जाये"
"हमारी कोई गलती नहीं, हमने गजेंद्र को उतारने की अपील की थी"
"#गजेंद्र अगली बार अगर पेड़ से लटका तो खुद केजरीवाल पेड़ पर चढ़ेंगे, शाखाओं पर जायेंगे और खुद उसे उतारेंगे"
हम से गलती हो गयी जी, हम माफी मांगते हैं जी"
#Gajendra #Kezriwal #AAP #Farmer #Suicide #KumarBiswas

सावधान! एक और बहरुपिया आया?


शिव ओम गुप्ता
क्योंकि अगर राहुल गांधी सचमुच हिंदू धर्म का पालन करते है या हिंदू धर्म को जानते हैं तो यह भी जानते होंगे कि हिंदू धामों की यात्रा एक हिंद धर्मावलंबी कब शुरू करता है?

और अगर राहुल गांधी केदारनाथजी यात्रा को जरिये हिंदुओं के दिलों में पुनर्वापसी की कोशिश है, तो यह छिछोरापन से अधिक कुछ नहीं है ।

ये तो वहीं बात हुई कि 100 चूहे खाकर बिल्ली चली हज को? वो कहते हैं न कि कपड़े बदलने से शक्ल नहीं बदलती है और राहुल गांधी आपकी काबिलियत और कारिस्तानी से देश का बच्चा परिचित है।

अच्छा होगा अगर आप आज राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर लो, क्योंकि देश की जनता का कोई भरोसा नहीं है, क्योकि अभी भी देश की अधिकांश जनसंख्या इतनी समझदार नहीं हुई है, क्योंकि वह आज भी अपना वोट जाति-बिरादरी और भावनाओं और जज्बातों से ही करती है?

एक नहीं, कईयों ऐसे उदाहरण हैं जिन्हें चाहे-अनचाहे देश/राज्यों को झेलना पड़ता है, क्योंकि वोट देने के बाद जनता सिर्फ  झेल सकती है। यानी, जब चिड़िया चुग गई खेत?

जैसे-पिछले 10 वर्ष देश को मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के रुप में झेलना पड़ा, उत्तर प्रदेश में पुत्तर अखिलेश को प्रदेशवासी  झेल रहें हैं और अब दिल्ली में केजरीवाल जैसे बहरूपिये को दिल्लीवाले होश-जोश खोकर वोट देकर झेलने को मजबूर हैं!

तो राहुल गांधी भी निकल पड़े बहरुपिये बनने और हिंदू वोट और जज्बाती वोटरों के दिल में जगह बनाने चल पड़े धार्मिक यात्रा पर...क्योंकि काबिलियत तो है ही नहीं, अब वोट तो ऐसे ही हासिल हो सकते हैं।

तो देश की जनता, आंख-नाक-कान खोल को रखो, क्योंकि मनमोहन सिंह, अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल के बाद अब राहुल गांधी बहरुपिये की खाल पहन चुके हैं, बस वादों का पिटारा खोल आपसे वोट मांगने वाले है, तो तैयार रहिये?

गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

Inhumane CM Kezriwal! Thank God, It was Delhi?

Shiv Om Gupta
Delhi you are lucky enough! because what you did in assembly election of Delhi by own your hand at polling booth, never been easy 5 years for you?

Otherwise you can't imagine what will happen with you such so called new age politics of Kezriwal!

Yesterday, Everyone witnessed Kezriwal & his party's characteristic! Kezriwal shown his worsen class by his dirty face of politics at Jantar-Mantar, Delhi where an farmer suicide at front of him and Delhi CM kezriwal continuously does political speech inhumanely?

Think once, If Kezriwal fought election from Haryana or Rajasthan assembly election and they got mandate like Delhi?

I just felt numb to think about it, because if it was in Haryana or Rajasthan then they could have uncontrolled and does whatever they want?

Today indeed National capital of Delhi people will feel relaxed by its own Delhi status that has been controlled by Central government.

बुधवार, 22 अप्रैल 2015

किसान राजनीति में केजरीवाल ने किसान को मार डाला!

शिव ओम गुप्ता
देश में राजनीति बदलने और सुधार करने की बात करने वाले हवशी अरविंद केजरीवाल ने राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर स्वार्थ प्रेरित राजनीति का ऐसा नंगा नाच खेला कि बड़े-बड़े राजनीतिक दलों ने दांतों तले उंगुली दबा ली। मतलब कि केजरीवाल ने महज केंद्रीय राजनीति में हैसियत जताने और अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा दिखाने के लिए एक निर्दोष किसान की बलि ले ली!

केजरीवाल की देहरी पर फरियाद लेकर पहुंचे दौसा, राजस्थान के किसान गजेंद्र ने केजरीवाल की भारी उम्मीदों के बीच हार कर मौत को गले लगाना ही पड़ा!

नि:संदेह दौसा का वह किसान बेमौसमी बरसात से खराब हुए फसल से उपजे आर्थिक तंगी के कारण नाउम्मीदी में था और केजरीवाल से उम्मीदों में आत्महत्या का धमकी दे रहा था!

वरना दो घंटे पहले पेड़ पर चढ़ कर बैठे व्यक्ति ने आत्महत्या में इतनी देर क्यों की? क्योंकि आर्थिक तंगी से परेशान किसान नाउम्मीदी से भरा था और चाह रहा था कि केजरीवाल या पार्टी का कोई सदस्य उसकी बात सुने, लेकिन कोई उसके पास नहीं गया ?

किसान की नाउम्मीदी और उस पर केजरीवाल की अनदेखी से किसान के पास कोई चारा नहीं बचा! शायद किसान केजरीवाल की रैली में उनके अलग राजनीति करने की झांसे से प्रभावित था, जैसे दिल्ली विधानसभा चुनाव में दिल्ली की जनता झांसे में आ गई थी!

हालांकि खुद को बचाने के लिए किसान ने कई बार चिल्लाकर, गमछा हिलाकर और पर्ची फेंककर कोशिश भी की ताकि कोई आये और उसको उतार कर उसकी बात सुने और उसकी सहायता करे!

लेकिन किसान राजनीति में हाथ धोने में जुटे केजरीवाल ने ध्यान देना जरूरी नहीं समझा और किसान नाउम्मीदी में गमछे को फंदा बनाकर झूल गया! 

सोमवार, 20 अप्रैल 2015

Rahul's scripted speech doesn't touch hearts!

Propaganda of congress doesn't reflect reality of Indian farmers. It seems congress did not learned anything from defeat.

Hibernated Vice president Mr Rahul Gandhi, who came after 56 days of holiday (Honeymoons) from famous (infamous) Bangkok spoke like shit again.

Because his scripted speech doesn't touch hearts of people, although political malfunctioned speech of his hurts more.

#RahulGandhi #Congress #LandAcquisitionBill #IndianFarmers

फिर धरने पर केजरीवाल, उन 70 वादों का क्या?

शिव ओम गुप्ता
अबे जो निवाला मुंह में ले रखा है पहले उसको निगल? फिर दूसरे निवाले के बारे में सोचना?

कहने का मतलब है कि भाई केजरीवाल पहले उन 70 वादों को पूरा करो, जिसके चक्कर में दिल्ली ने तुम्हें मुख्यमंत्री की गद्दी सौंप दी है?

और तुम हो कि इधर-उधर की बातें करके दिल्लीवालों को बेवकूफ पर बेवकूफ बनाये जा रहे हो?

कभी दिल्ली में किसान ढूंढ लाते हो, फिर फिजूल की पब्लिसिटी के लिए उन्हें मुआवजा बांटने का तिकड़म करते हो और दिल्ली को जिम्मेदारी छोड़कर धरने पर बैठने जा रहे हो?

भाई केजरीवाल, तूने ही कहा था कि दिल्ली को छोड़कर तुम्हारी पार्टी कहीं और के बारे नहीं सोचेगी और पूरा ध्यान दिल्लीवालों की उम्मीदों को पूरा करने में देगी।

और फिर तुमने इसीलिए तो योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को किनारे लगाया क्योंकि वे दिल्ली से बाहर पार्टी का विस्तार चाहते थे और ऐसा तुम नहीं चाहते थे, सच है कि नही?

अब अगर पार्टी दिल्ली से बाहर अभी विस्तार नहीं चाहती है तो भूमि अधिग्रहण विधेयक और मुआवजे की राजनीति क्यों कर रही है?

ये तो वही बात हो गई कि चील का उड़ना कम और चिल्लाना ज्यादा? कुछ काम कर लो बेटा केजरीवाल वरना कहीं ऐसा न हो कि चौबे जी गये छब्बे बनने और दूबे बनकर लौटे?

#Kezriwal #AAP #Delhi #LandAcquisitionBill #Congress

शनिवार, 18 अप्रैल 2015

किसानों के भेष में राहुल गांधी से मिलने पहुंचे कांग्रेसी कार्यकर्ता!

शिव ओम गुप्ता
राहुल गांधी से मुलाकात करने पहुंचे अधिकांश लोग किसान की भेष में कांग्रेसी कार्यकर्ता हैं, क्योंकि किसान कांग्रेस या राहुल गांधी के नारें क्यों लगायेंगे भला?

राहुल गांधी ने मुलाकात के बाद इसकी पुष्टि कर दी है, उन्होंने कहा, ज्यादा से ज्यादा किसानों को रैली में लेकर आओ?

अब किसान नेता तो किसानों की रैली का खर्च उठा नहीं सकते? क्योंकि राहुल गांधी के आवास पर जुटा लोगों का हुजुम किसान नहीं, बल्कि कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का है और किसानों को बसों में भर कर भीड़ जुटायेंग?

वैसे, बेमौसमी बरसात से फसल बर्बाद होने सेे किसान खाली हैं उन्हें मुफ्त दिल्ली यात्रा में क्या परेशानी हो सकती है।

राहुल गांधी की रीलांचिंग ही करनी है तो करो भाई, किसानों को क्यों बदनाम कर रहे हो, वे किसान जो स्वाभिमान से जीना पसंद करता है, किसी से कुछ मांगने से बेहतर आत्महत्या कर लेता है, उसके भेष में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को खड़ाकर राहुल गांधी के नारे लगवा कर किसे मूर्ख बनाना चाह रहें हैं ।

दुनिया प्रसंशा कर रही है, कांग्रेस समेत विपक्षी छाती पीट रहीं हैं?

शिव ओम गुप्ता
प्रधानमंत्री #नरेंद्रमोदी के काम-काज और कार्य शैली की चारों तरफ जय जयकार हो रही है, लेकिन यह सुनकर सत्ता गंवा चुके  विपक्षी पार्टियों की छाती पर सांप लोटने लगते हैं, तो इसमें कोई क्या कह सकता है!

#अमेरिकीराष्ट्रपति #बराकओबामा ने #टाइम्समैगजीन में लिखे अपने लेख में मोदी को सबसे बड़ा #सुधारक बताया तो कांग्रेस रो पड़ी, अब #विश्वबैंक प्रमुख #जिमयोंगकिम ने प्रधानमंत्री #जनधनयोजना की प्रशंसा की है और मोदी की #दूरदर्शिता की प्रशंसा करते हुए जन धन योजना को एक दूरदर्शी प्रयोग करार दिया है, लेकिन कांग्रेस समेत का रोना ही खत्म ही नहीं हो रहा?

अरे भाई! #विपक्षीपार्टी का मतलब यह थोड़े न होता है कि कुछ भी हो झंडा लेकर खड़े हो जाओ? आंख-नाक-कान खोल के रखों भाई? 

भारतीय योजनाओं की देश-विदेश में प्रशंसा हो रही है और आप हैं कि अभी भी हार के गम में आंसू बहा रहें है? अब तो संभलों, वो जनता अब नहीं रही जो आप सुनाओगे, वो वहीं सुनेगी? 

थोड़ी तो समझदारी दिखाओं? क्योंकि आज का #युवावोटर परिवार और भावना में बहकर वोट नहीं कर रहा है, वह काम और दूरदर्शिता को वोट और सलाम करता है, तो भूल जाओ कि तुम्हारे विरोध और उलटबांसी भरे बयानों से युवा जनता को कोई फर्क पड़ने वाला है? 

भई, जो मोदी सरकार अच्छा कर रही हैं, बतौर विपक्षी पार्टी प्रशंसा नहीं कर सकते हैं तो चुप रहो? कम से कम मुंह खोलकर महज विरोध करने के लिए विरोध के नारे मत लगाओ? 

क्योंकि जनता सब जानती है और सब देख रही है, ये मत समझना कि अब हो-हल्ला करके, रैली और भगदड़ करके उन युवा #मतदाताओं के वोट हासिल कर लोगे, तो भूल जाओ।

हालांकि अभी भी देर नहीं हुई है और पुरातन पद्धति को छोड़कर आगे बढ़ो, क्योंकि अब #बीजेपी से ही नहीं, लोग #केजरीवाल से भी हिसाब करने लगे हैं और फिर कांग्रेस नेता सिर्फ छाती पीट रहे हैं?

#Modi #BJP #JanDhanYojna #JimYongKim #WorldBank #BarrackObama #Congress #OppositionParty

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

धरना नहीं, अब होगा धर्म परिवर्तन धरना?

शिव ओम गुप्ता
क्या अजीबोगरीब स्थिति आ गई है, अब लोग अवैध निर्माण, अवैध कार्यों को कानूनी व वैध बनाने के लिए #धर्मपरिवर्तन की धमकी देंगे और मांगे नहीं पूरी होने तक धर्म बदल लेंगे और मांगे पूरी होते ही पुन: अपने धर्म में लौट आयेंगे?

यानी 'धरना' अब 'धर्म परिवर्तन धरना' से जाना जायेगा, जिसको अपनी मांगे पूरी करवानी होगी, वे लोग अब धरना नहीं, बल्कि धर्म परिवर्तन धरना करेंगे?

गौरतलब है #जनलोकपाल के लिए धरना-प्रदर्शन करके केजरीवाल जैसे लोग मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गये और ऐसी पूरी संभावना है कि कल कुछ और लोगों का समूह सड़कों पर जनलोकपाल के लिए सड़कों पर कब्जा कर ले?

लेकिन इस बार वे धरना नहीं, बल्कि धर्म परिवर्तन धरना शुरू कर देंगे? और नारा होगा, " हमारी मांगे पूरी करो, वरना धर्म परिवर्तन कर लेंगे!

क्योंकि धरना-प्रदर्शन का माइलेज तो #केजरीवाल सरीखे तमाशाई ले उड़े, जिससे अब सामान्य आदमी का धरना-प्रदर्शनों से भरोसा उठ गया है इसलिए अब कुछ नया जुगाड़ करना ही पड़ेगा?

तो अब वैध-अवैध लोकतांत्रिक अधिकारों और हकों के लिए कुछ तमाशाई लोग अगर धर्म परिवर्तन धरना की अगुवाई करते दिखे तो आश्चर्य मत कीजियेगा।

 क्योंकि धरना-प्रदर्शन के जरिये राजनीति में पहुंचे लोगों ने इसकी आत्मा को मलिन कर दिया है, जिससे अब धरने के उद्दश्यों पर प्रश्नचिह्न लग गया है, क्योंकि धरना-प्रदर्शनों में अब न जनता को भरोसा है और न ही देश के हुक्मरानों में भरोसा बचा है!
#Protest #Democracy #AAP #Kezriwal #Conversion

गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

तो आजम खां साहब, कब जा रहें हैं देश छोड़कर?

यूपी के कबीना मंत्री आज़म खान की बददिमागी और हिकारत पूर्ण भाषा शैली देख-सुनकर देश ही नहीं, खुद हमबिरादर मुस्लिम भी दुखी रहते हैं, लेकिन राजनीति चमकाने के लिए कुछ भी कर गुजरने में खां साहब उस्ताद हैं, जिनका पूरा साथ सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव महज मुस्लिम वोट बैंक के लिए देते है। डर है कि ऐसे एक-आध नेता और पैदा हो गए तो देश का क्या होगा? अच्छा है खां साहब परवेज मुशर्रफ की तरह कहीं निकल जायें।

एक ऐसा नेता, जो डंके की चोट पर कह सकता है कि वह जानबूझकर ठीक चुनाव से पूर्व ऐसी सांप्रदायिक, दुर्भावनापूर्ण और भड़काऊं बयान देता है ताकि मुस्लिम एकजुट हों, वोटों का ध्रुवीकरण हो? ऐसे नेताओं का देश छोड़ देना ही उचित है, क्योंकि इससे देश की एकता को ही नहीं, एकरसता को भी खतरा है।

मुझे लगता है, भारत का कोई भी मुस्लिम आजम खान के कट्टर सोच और कुत्सित मानसिकता को सेल्युट नहीं करता, क्योकि देश का कोई भी नागरिक अब हिन्दू-मुस्लिम को नहीं, शुचिता और प्रगति को सैल्युट करता है!

आज देश का प्रत्येक नागरिक देश की तरक्की के बारे में पहले सोचता है, क्योंकि महंगाई, भ्रष्टाचार, घोटालों और बेरोजगारी से परेशान देश सपने देखने लगा है, लेकिन आजम खां जैसे लोग हमबिरादरी मुस्लिम वोटरों को उनके विकास और तरक्की के मुद्दों से इतर रखकर भटकाने कोशिश करते रहे हैं, ताकि समाजवादी पार्टी में उनकी राजनौतिक हैसियत ऊंची हो सके, लेकिन मुस्लिम भाईयों के विकास का क्या? जिनको महज भड़काकर और उनके वोटों का हाईजैक करने के बाद उन्हें उनके नसीब पर छोड़ दिया जाता है?

वैसे ही, अधिकांश मुस्लिम वोटरों पर आरोप लगता है कि वे मौलानाओं व इमामों के फतवों पर वोट करती हैं, उनकी कोई अपनी राय नहीं होती?

लेकिन लगता है कि अब वो दिन लदने वाले हैं,  क्योंकि अब मोदी-बीजेपी का डर दिखाकर वोट मांगने और उल्लू बनाने वाले को मुस्लिम भाई भी समझ चुके हैं!

सच्चाई यह है कि देश की महंगाई का सबसे अधिक नुकसान मुस्लिम भाईयों पर पड़ता है, कैसे? यह सभी मुस्लिम भाई-बहन बहुत अच्छी तरीके से जानते है?

जबाव है, मु्स्लिम समुदाय का रहन-सहन और उनकी पारंपरिक जीवन शैली? देखा गया है कि अधिकांश मुस्लिम आबादी रोज की जरूरत के अनुसार अपनी गृहस्थी की सामग्री खरीदते हैं, इसीलिए बढ़ती महंगाई के मुताबिक इन्हें हर दिन रोजमर्रा की जरुरतों पर दूसरों की तुलना में अधिक खर्च करना पड़ता है।

हालांकि इसके पीछे एक अन्य वजह मुस्लिम परिवारों का बड़ा होना और फिर जल्द ही परिवार में भाई-भाईयों के बीच (न्यूक्लियर फेमली) होने वाला बिखराव भी है?

इसलिए जरूरी है कि हिन्दू-मुस्लिम नहीं, जाति-बिरादरी नहीं, बल्कि विकास को सलामी देना जरुरी है, क्योंकि विकास ही वह कुंजी है, जिससे महंगाई, बेरोजगारी और बेकारी को दूर किया जा सकता है!

नि:संदेह हिंदू-मुस्लिम, जाति-बिरादरी से देश नहीं चलता है और जो लोग इस प्रकार की राजनीति करना चाहते हैं उन्हें बिना देर किये देश छोड़ देना चाहिए, क्योंकि ऐसी राजनीति को हां कहने के लिए देश की नई पीढ़ी बिल्कुल तैयार नहीं है। तो खां साहब कहीं शरणार्थी वीजा के लिए अप्लाई कर लें, क्योंकि आपको नागरिकता तो पाकिस्तान भी नहीं देगा? क्योंकि पाकिस्तान में ऐसे नेताओं की भरमार है।

बुद्धु अब बुद्धु नहीं रहा, अब वह राहुल हो गया है?

राहुल गांधी की घर वापसी के बाद सभी मीडिया चैनलों पर एक ही पंच लाइन है, "लौट के राहुल घर को आये"

त्राहिमाम! राहुल गांधी ने 'बुद्धु' को रिप्लेस कर दिया है। मतलब, बुद्धु का नया नामकरण अब राहुल हो गया है!

बधाई हो, क्योंकि बुद्धु अब बुद्धु नहीं रहा, अब वह राहुल हो गया है?

रविवार, 12 अप्रैल 2015

एक पोर्न स्टार को आदर्श बनाने पर क्यों तुला है ABP न्यूज चैनल?

ABP न्यूज चैनल में काम करने वालों कर्ताधर्ताओं की बुद्धि भ्रष्ट हो गयी लगती है। एक ऐसे व्यक्तित्व को व्यक्ति विशेष का तमगा दे दिया है, जिसके बारे में चर्चा करने मात्र से हमें एक ऐसी इंडस्ट्री के बारे में चर्चा करनी पड़ती है, जिसके बारें में शायद ही कोई घर-परिवार की सदस्य अपने संबंधियों के बीच खुलकर चर्चा कर पायें!

कोई क्या करता है, यह व्यक्ति विशेष की व्यक्तिगत पसंद होती है, किसी को इससे कोई समस्या नहीं है, लेकिन महज भारतीय होने के करण किसी पोर्न स्टार को महिमामंडित करके लोगों के घरों में पहुंचा देना एक सामाजिक अपराध है।

ABP चैनल एक पोर्न स्टार के कहानी के जरिये क्या संदेश देना चाहती थी?

एक पोर्न स्टार को लोगों का रोल मॉडल बनाने पर क्यों अमादा है ABP चैनल?

एक पोर्न स्टार के संघर्ष से क्या लेना-देना है हमारे समाज का?. (पोर्न मजबूरी का पेशा नहीं)

क्या चैनल भारत में पोर्न इंडस्ट्री को बढ़ावा देने के लिए पोर्न स्टार का महिमा मंडन कर रहा है?

वेश्वावृति जैसे दंश से पहले ही अभिसप्त हमारे समाज में एक कोढ़ है, जहां लड़कियों को जबरन घसीटा जाता है?

क्या चैनल पोर्न इंडस्ट्री को एक अवसर के रुप में भारत में परोसने व दिखाने की कोशिश नहीं कर रहा है?

ABP चैनल की बौद्धकिता के दर्शन तो हो गये, जो टीआरपी के ईंधन से संचालित होते है, लेकिन क्या चैनल को समीज के जिम्मेदारी सिखाने के लिए भारत की आईबी मिनिस्ट्री कुछ करेगी, यह अधिक महत्वपूर्ण है।

सरकार को तुरंत चैनल को कारण बताओ नोटिस भेजना चाहिए और चैनल के प्रसारण पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए!

#ABPNews #NewsChannel #IBMinitery #PornStar #SunnyLeone

शनिवार, 11 अप्रैल 2015

वे कौन लोग हैं जो फूहड़ बयानों पर भी दहाड़े मारकर हंसते हैं?

शिव ओम गुप्ता
भारत में जब भी कोई नेता निहायत ही वाहियात और गंदा बयान दे रहा होता है तो वो कौन लोग होते हैं जो बेहद ही फूहड़ता और बददिमागी से दहाड़े मारकर चुटीली हंसी हंस रहे होते है?

नहीं मालूम? ये वहीं लोग हैं जिनकी #चापलूसी में मास्टरी ही नहीं, डॉक्ट्रेट भी होती है, जिन्हें कोई नहीं फर्क पड़ता कि उनका चापलूस पंसद नेता क्या बोलेगा या क्या बोल रहा है, क्योंकि ऐसों का काम सिर्फ और सिर्फ ताली बजाना है और खीसे निपोरना है!

इसका ताजा उदाहरण #जदयू नेता #शरदयादव के #पद्मसम्मान के बारे में दिये गये अवव्ल दर्जे के बेहूदा और #विवादास्पद बयान में देखा-सुना जा सकता है।

#PadamSamman #SharadYadav #MulayamYadav #ControversialStatement

सोते को जगाना आसान है, लेकिन जागे हुये को क्या जगाना?

शिव ओम गुप्ता
वे लोग जो किसी समाज द्वारा बनाई सांस्कृतिक सभ्यता और मान्यताओं में भरोसा रखते हैं और अमल करने में विश्वास रखते हैं, ऐसे अगर भटक भी जायें तो उनकी सुधरने की उम्मीद हो सकती है?

लेकिन वे लोग जो अपनी ही विरासत, संस्कृति और मान्यताओं में यकीन ही रखते या रखना ही नहीं चाहते और सबको धता बता कर नये समाज और उसूल की कल्पना कर रहें हैं, उनसे क्या उम्मीद की जा सकती है?

बात हो रही है सामाजिक विद्रूपता की। हमारा समाज परिवार में पैदा हुये लड़का-लड़की को भाई-बहन की मान्यता देती हैं और दोनों से जुड़े उन तमाम रिश्तों को भी एक सारगर्भित रिश्तों से जोड़ती है, लेकिन आज कल तमाम ऐसी खबरें मीडिया में सुर्खियों में होती हैं, जो समाजिक ताने-बाने को न केवल तोड़ रहीं हैं, बल्कि नष्ट करके कुछ नया करने पर अमादा हैं!

हां, हम बात कर रहें है, ऐसी खबरों की जो अमर्यादित रिश्तों से जुड़ी होती हैं, जहां पिता-बेटी, भाई-बहन, चाचा-भतीजी और मामा-भांजी के रिश्तों को नष्ट कर रही है?

कौन है जिम्मेदार, यह तो तय करना जरूरी है, वरना समाज का यह चेहरा वसूलों को ही नहीं, रिश्तों को भी खत्म कर देगा!

गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

Finally, End of identity crisis of journalist?

Presstitute: What a innovative word invent by vk singh, Thanks to vk singh for this invention, because nowadays Press sounds and conclude them self near and there?

Hats off VK singh! You shown the mirror those one who throw out such holy profession into dark word for his personal growth, Seems such gets  identity now!

Finally, End of identity crisis for such people, otherwise everyone behaving like journalist who works in press world!

#presstitute #VKSingh #Press #Journalism

रविवार, 5 अप्रैल 2015

मुस्लिम को क्रिसमस और हिंदू को ईद पर छुट्टी क्यों?

शिव ओम गुप्ता 
सुप्रीम कोर्ट जज जोसेफ कुरियन की खिलंदड़ता और हल्केपन पर तरस ही खाया जा सकता है, लेकिन इस प्रकरण ने एक अच्छे विचार को जन्म दे दिया है!

वो यह कि सरकार को अब सरकारी छुट्टियां संप्रदाय/धर्म विशेष के आधार पर नहीं देना चाहिए? मतलब हिंदुओं को ईसाइयों के त्यौहार गुड फ्राईडे और क्रिसमस पर सरकारी छुट्टी क्यों? मुस्लिम को हिंदुओं के त्यौहार होली, दीवाली और दशहरा पर सरकारी छुट्टी क्यों? इसी तरह ईसाइयों को हिंदू, मुस्लिम या अन्य धर्मों के अनुयायियों के त्यौहारों पर छुट्टी क्यों ?

यह सर्वविदित सत्य है कि दूसरे धर्मों के त्यौहारों पर मिली छुट्टियों पर लोग इंजॉय नहीं करते हैं, तो उन्हें जबरन घर पर बैठाने से बेहतर है वे दफ्तर जाकर जनता के काम निपटायें, जिससे सरकारी मशीनरी में सुधार भी होगा और अलग-अलग धर्मों के त्यौहारों पर सरकारी दफ्तर भी खुले रह सकते है। इसका सीधा फायदा पब्लिक को ही मिलेगा और इससे सरकारी  कार्यों का निष्पादन भी बिना व्यवधान चल सकेगा?

हालांकि सरकारी कर्मचारी यह स्वैच्छिक/ऐच्छिक भी कर सकते है, जिसके लिए उन्हें इंसेंटिव भी दिया जा सकता है। बाद में, सरकार भिन्न-भिन्न मंत्रालयों/दफ्तरों/ऑफिसों में भिन्न मतावलंबी कर्मचारियों की एक अदद टुकड़ी भी रिक्रूट करने की कोशिश कर सकती है, जिसका फायदा यह होगा कि अन्य मतावलंबी कूलीग की त्यौहारी छुट्टियों में भी सरकारी दफ्तर अनवरत खुले रह सकेंगे और पब्लिक और सरकारी मशीनरी भी बिना व्यवधान सुचारू रुप से चल सकेंगी!

सरकार, बिना किसी विरोध के इसे आसानी से लागू भी कर सकती है, क्योंकि इसमें किसी भी कर्मचारी को अड़चन नहीं होगी, क्योंकि ऐसा कई बार होता रहा है जब भिन्न मतालंबियों के त्यौहारों के संयोग एक क्रम में, एक सप्ताह में और एक साथ में पड़ जाते हैं? जैसे कि वर्ष 2015 के मार्च माह का आखिरी और अप्रैल का पहला हफ्ता?

हां, कुछ फिजूल की राजनीतिक रोटियों इसमें सेंकी जा सकती हैं, लेकिन संभावना कम है और सरकार द्वारा इसे अमल में लाने में किसी भी मतावलंबी को कोई असुविधा भी नहीं होगी, क्योंकि इसका लाभ सरकारी कर्मचारी के साथ-साथ पब्लिक को भी मिलेगा और यह देश के दैनेंदिन विकास को भी उत्तरोत्तर प्रभावित करेगा!

#GovtHoliday #Guggeted #GovtEmpolyee #Leave #Festival #GovtOffice #Development 

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

खबरों को छोड़, अब एजेंडा बनाने में जुटी मीडिया!

शिव ओम गुप्ता
पिछले कई वर्षों में मीडिया खबरों का काम छोड़, देश-प्रदेश और निकाय चुनावों में परोक्ष रुप से एजेंडा सेट करने में जुटी अधिक दिखाई देती है।

हालांकि #मीडिया संगठन देश/पार्टी का #एजेंडा बनाने की कोशिश पहले भी करते रहे हैं, लेकिन आजकल मीडिया को गुमान हो चला है कि वे देश की जनता को अधिक जानते हैं और उनको अपने मुताबिक अधिक भड़का भी सकते हैं।

वैसे, #ओपिनियनपोल और #एग्जिटपोल सर्वे के नाम पर दर्शकों का समय बर्बाद करने व बरगलाने वाली मीडिया को जनता ने अपने फैसलों से कई बार धोबीपाट दिया है, लेकिन आदत सुधर भी जायें पर लत का इलाज नहीं है।

मीडिया कभी देश का ओपिनियन जानने का दंभ भरती थी, लेकिन अब मीडिया देश का एजेंडा बनाने का दंभ भरने लगी है, क्योंकि आज के पत्रकारों को लगता है कि वे देश की जनता का नब्ज जानते हैं और जबां-तहां उंगली रखकर शरीर का तापमान घटा-बढ़ा सकते हैं।

#दिल्लीविधानसभाचुनाव में #बीजेपी की हार और AAP की जीत के बाद मीडिया को कुछ अधिक गुमान हो गया, जो अब बल्लियों उछाल मार रहा है। शायद यही कारण है कि आजकल मीडिया हर दूसरे दिन सर्वें और ओपिनियन पोल का खेल खेलती नजर आती है।

समस्या यह है कि मीडिया खबरों का #कारोबार करते-करते अब #एक्सटार्शन ( #उगाही) के कारोबार में उतर गई दीखती है।

यहीं नहीं, मीडिया समूह अब भिन्न-भिन्न पार्टियों की एजेंडा बनाने की मशीन बनकर रह गई हैं, जहां वो किसी एक पार्टी को फायदे-नुकसान पहुंचाने के लिए सर्वें और सर्वेक्षण का व्यूह नहीं, चक्रव्यूह भी रचते हैं।

#Media #OpinionPoll #TVServey #ExitPoll #TRP #Voters #EC #BJP #Congress #AAP #News #Press #Agenda

मीडिया वाहियात ही नहीं, बचकाना हो गई है!

यह मीडिया का क्या बेवकूफियाना है, जो केजरीवाल पार्टी नहीं संभाल पा रहा है, दिल्लीवालों को मूर्ख बनाकर सीएम की कुर्सी पर बैठकर एक-एक कर अपने ही पार्टी नेताओं को किनारे लगा रहा है, उसको पीएम पद की उम्मीदवारी के समक्ष रखना बचकाना ही नहीं, वाहियात कहा जा सकता है!

किसी को अब शंका नहीं है कि केजरीवाल जैसे व्यक्ति को दिल्ली की गद्दी पर बैठाने में मीडिया प्रोपेगेंडा ने महत्वपूर्ण योगदान किया, डर है कि अगर ऐसा जारी रहा तो मीडिया अपनी बची-खुची विश्वसनीयता भी खो देगा।

#Kezriwal #AAP #Media #Agenda #Sting