मंगलवार, 5 जुलाई 2011

सीरियल सीरियसली हैं खतरनाक


शिव ओम गुप्‍ता
क्‍या आप भी किसी टीवी सीरियल की बहू, बेटी अथवा सास से प्रभावित हैं ?
यह सच है, वर्तमान दौर में टीवी चैनलों पर आने वाले रोजमर्रा के सास-बहू सीरियलों ने खासकर बहुओं और बेटियों के जीवन शैली को पूरी तरह से बदल डाला है, यहीं नहीं इसने उनके नजरिए पर भी कब्‍जा जमा लिया है। असर इतना है कि सीरियल के किरदारों के प्रभाव में हिप्‍नोटाइज होकर ऐसी बहू और बेटियां न केवल सीरियल के किरदारों की नकल कर रही हैं बल्कि वर्चुअल जिंदगी भी जीने को मजबूर हो रही हैं।
मैं, क्‍योंकि सास भी कभी बहू थी की तुलसी नहीं, जो हर जुल्‍म को आर्शीवाद समझ कर निगल जाऊंगी।
मैं, पवित्र रिश्‍ता की अर्चना नहीं हूं, जो सास के जुल्‍मों को आसानी से घूंट जाऊंगी, मुझे ईट का जबाव पत्‍थर से देना आता है।
क्‍या आपने अपनी बहू या बेटी को बंद कमरे में ऐसी खुसुर-पुसुर करते सुना है, यदि नहीं, तो अच्‍छी बात है लेकिन यदि हां, तो सावधान हो जाइए, क्‍योंकि सीरियसली यह सीरियल का असर है, जो उन्‍हें वास्‍तविक जिंदगी में भी वर्चुअल जिंदगी जीने के लिए मजबूर कर रही है। वाकई में यह चिंतनीय बिषय है, समाजविद्व इसका जब हल निकालेंगे तब निकालेंगे, लेकिन स्थिति भयावह हो, इससे पहले हमें खुद इससे निपटने की कवायद शुरू कर देनी चाहिए।
अभी हाल ही में एक रपट आई है कि घरेलू हिंसा के मामले में बहूएं सास से दो कदम आगे निकल गई हैं। रिपोर्ट कहती है कि वर्तमान समय की बहुएं आज अपनी सासों पर जुल्‍म ढाने लगी हैं। मतलब यह कि घरेलू हिंसा के मामले में बहुओं की जगह अब सास अधिक शिकार हो रही हैं। हालांकि इसके पीछे कई दूसरे कारण भी हो सकते हैं, लेकिन सीरियल के प्रभाव को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। दिलचस्‍प यह है कि पारंपरिक रूप से जहां पहले सास पर बहुओं को सताने का आरोप लगता था, आज वहीं आरोप अब बहुओं के मामले में तेजी से उभर कर सामने आ रहे हैं। टीवी सीरियल का योगदान इसमें कितना है, पता लगाना जरूरी है।
  पवित्र रिश्‍ता सीरियल में प्रतिज्ञा पर ढाए गए जुल्‍मों का असर आपकी बहू पर भी पड़ पर सकता है, ससुराल शिमर का सीरियल की शिमर की तरह आपकी बेटी भी आपके भरोसे और अरमानों के खिलाफ झंडा बुलंद कर सकती है और न आनो इस देश लाडो की अम्‍माजी के कारण आपकी सुशील और समझदार बहू पर बेवजह शामत आ सकती है। राहत वाली बात यह है टीवी सीरियल की आशिकी में मर्दों की संख्‍या काफी कम है वरना घरेलू महाभारत में कितने दुर्योधन और शकुनी रोज जन्‍म ले रहे होते, कहना मुश्किल है।

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