क्या ये सच है कि कुछ कुलीन से दिखने वाले लोगो को, गुजराती गुदड़ी पर बैठने
वाला देश के प्रधानमंत्री की नरम और गुदगुदी गद्दी पर बैठे देखना फूटी आँख
नहीं सुहा रहा है ? ये सवाल इसलिए है क्योकि दो दिन पहले मोदी ने खुद कहा
कि 'उनकी सरकार के खिलाफ साज़िश हो रही है' एक ऑडियो टेप भी सामने आ गया
साज़िश की बू और तेज़ महसूस होने लगी। कुलीन वर्ग के ये मुठ्ठी भर लोग जो
दशको से देश के पॉवर कॉरिडोर को बपौती समझ बैठे थे, बहुत ताकतवर हैं, सत्ता
की मलाई को अपने भोग विलास के लिए मनमाफिक इस्तेमाल कर रहे थे, वो अब
सरकारी रवायतें- रियायतें बंद होने से खिसियाए फिर रहे हैं। गृहमंत्रालय के
सूत्र बताते हैं कि ऐसे कुलीन वर्ग ,अकादमियों आयोगों, गैर सरकारी संगठनो
के ज़रिये खूब मलाई लूट रहे थे । 2014 में गरीब चाय बेचने वाले ने जब सत्ता
संभाली तो पाया कि ऐसे छद्म कुलीनों का मायाजाल तंत्र को खोखला कर रहा है ,
गरीबो और वंचितो के नाम पर सरकार से,कॉर्पोरेट से और विदेशो से खूब पैसा
लूटा जा रहा है। मोदी ने इस पर लगाम लगाने की भूल कर दी । अक्टूबर 2014 में
ऐसे 4200 NGO को नोटिस दे दिया कि पिछले तीन साल का आयकर रिटर्न दाखिल
करे, सिर्फ 250 NGO ने आयकर रिटर्न दाखिल किया। मार्च 2105 में फिर से
इनको नोटिस दिया गया कि पैसे का हिसाब किताब दे, लेकिन सत्ता के केंद्र पर
रसूख रखने वाले इन छद्म कुलीनों ने हिसाब नहीं दिया तो नहीं दिया । सभी का
FCRA लायसेंस सरकार ने रद्द कर दिया । इस FCRA लायसेंस के ज़रिये ये NGO
विदेशो से अरबो रूपये की दौलत बटोरते थे। इतना अकूत धन कहा खर्च होता था
इसका अंदाज़ा इस बात से लगेगा कि , तीस्ता शितलवाड़ के NGO ने पैसे का जो
हिसाब किताब दिया है गरीबो, बच्चों और वंचितो के नाम पर 5000 रूपये के
ब्यूटी पार्लर के बिल, 1200 से 2500 रूपये तक की महँगी विदेशी चॉकलेट के
बिल, कीमती कपड़ो के महँगे शोरूम की खरीदारी के बिल शामिल है। क्या यहीं
सत्ता के करीबी कुलीनों का असली गरीबो और वंचितो के लिए दुःख? क्या ऐसे ही
गरीब और गरीबी को दूर करने का अल्हड़ खेल दशको से हो रहा था? अब बर्र के
छत्ते में मोदी सरकार ने हाथ डाल दिया है तो डंक भी खाने होंगे लेकिन डंक
इतने ज़हरीले होंगे ये नहीं पता होगा ? पहला डंक झनझनाता हुआ चुभा,पता है कब
? जब दादरी कांड हुआ । न लेना एक न देना दो , मोदी से क्या लेना देना था
इसका ? लेकिन ऐसा तमाशा छद्म कुलीन साहित्यकारों ने खड़ा किया कि लगा मुल्क
की हर गली, चौपाल , चौराहे पर अख़लाक़ को मोदी मार डालेगा ! पुरुस्कार लौटा
दिए, हंगामा खड़ा किया, क्यों ? सरकारी विदेशी दौरे, सरकारी रेबड़िया सब बंद
जो हो गया ! भाई किसी पेट पर लात मारोगे तो वो तो तमाशा नहीं देखेगा न !
कुछ तो करेगा ! कर दिया , और ऐसा किया कि दुनिया भर में देश की बदनामी हो
गयी, लन्दन में मोदी से सवाल पूछा गया " भारत में असहिष्णुता क्यों बढ़ रही
है?" बदनाम तो हुआ देश न ! लेकिन इन निकम्मो को क्या ? अब तक नहीं सोचा तो
अब देश की परवाह क्यों करे? देश हिन्दू मुस्लिम में बाँट दिया अलग !
इतिहास इन्हें कभी माफ़ नहीं करेगा।कई सवाल पूछेगा ? जवाब देते हलक सूख
जायेगा इनका? मालदा पर मौत क्यों न आई तुम्हे ? बंगलौर पर बगले क्यों
झांकने लगे ? केरल में सुजीत की मौत पर साँप क्यों सूंघ गया ? और
....देशद्रोह के नारे पर फिर क्यों नाच उठे ?
निखट्टूओ अब भी जाग
जाओ, 30 साल बाद जनता ने गरीब के बेटे को दिल्ली की गद्दी पर पूरा बहुमत
देकर बैठाया है, जनता के बहुमत का सम्मान करो, उसको काम कर लेने दो!
दूसरो के लिए गड्डा खोदने वालो तुम्हारे नसीब खाई आएगी, ऊपर वाला यही न्याय
करेगा ! अब देखो JNU को, 10 साल से ये नक्सली हमले पर जश्न मना रहे हैं,
किसी गरीब के घर का बेटा शहीद होता है और ये उसकी मौत का जश्न मनाते हैं,
इनके लिए असली शहीद अफजल गुरु की बरसी का उत्सव करते हैं,भारत के टुकड़े
टुकड़े के नारे और बर्बादी की जंग का एलान भी करते हैं , फिर भी देशभक्त
होने का दम्भ भरते हैं ये कैसे ? किसी ने प्रधानमंत्री को ख़त लिखा और सलाह
दी कि देशद्रोह का कानून ब्रिटिश काल का है उसको रद्द कर दो ब्रिटेन ने भी
2010 में उस पुराने कानून को ख़त्म कर दिया है लेकिन उन्होंने ये नहीं बताया
की 2015 में ब्रिटेन ने देशद्रोह और आतंकवाद पर सबसे कड़ा कानून भी बनाया
है । विरोध के लिए विरोध मत करो, तथ्यों के साथ मैदान में आओ । माना
"मोदीद्रोह" में नाम मिलता है, चिठ्ठी लिखने का मौका मिलता है, लेकिन केरल
में सुजीत की हत्या पर कलम क्यों सूख ? मालदा पर मन क्यों नहीं तड़पा उठा ?
ये विरोधभास क्यों ? गुणवान हो, सामर्थ्यवान हो, कुछ नेक काम ही कर लो !
कुछ तो जैसे कसम खाकर बैठे हैं "मोदीद्रोही" का
मेडल लेकर ही ज़न्नत नसीब होगा उनको! काला चश्मे से उजला कैसे दिखेगा ?
नीतियों की निंदा हो कोई हर्ज़ नहीं, फैसलों का समीक्षा हो कोई शिकवा नहीं ।
लेकिन डंडा लेकर पीछे पड़ जाना, हर बार करोंदे को करेला कहना, सियार को शेर
बताना, भागो भागो भूत आया चिल्लाना ! साँप निकल जाने पर लकीर पीटना ! अरे
ऐसा भी क्या "मोदीद्रोह" ? अभी हाल में किसी ने आर्टिकल लिख दिया "मैं
एंटी नेशनल हूँ " किस लिए ? JNU के देशद्रोही नारे के साथ खड़े हो ? तो सीधे
लिख देते "पाकिस्तान ज़िंदाबाद" ! एक लाइन में सारा काम हो जाता, आठ कॉलम
लिखने का वक्त बचता, देश की कुछ स्याही भी बच जाती, किसी गरीब बच्चे के
काम आती, जो ख़राब लेखनी में "हिंदुस्तान ज़िंदाबाद" तो लिख देता ! स्याही
भी अपने भाग्य पर इठलाती ।
ये एक नमूना हैं "मोदीद्रोह" का 2002
से पीछे पड़े हैं छोड़ ही नहीं रहे हैं .... दूसरे भी कई है एक ने सब कुछ
काला कर दिया, उन्हें भी भूत सवार है "मोदीद्रोह" का, एक बार गुजरात में
देखा था, तब ढूंढ कर सूखा तालाब निकाला और बताने लगे कि गुजरात सूख रहा है
बर्बाद हो रहा है, तन, बदन और शब्द बाण इनकी चिंता की दुहाई दे रहे थे ।
लेकिन "भारत की बर्बादी का नारा" इनको बहूत सुहाता है, "भारत के टुकड़े"
इन्हें बहूत भाते हैं, मौला जाने किस टुकड़े में रहने का ख्वाब पाले बैठे
हैं ये जनाब ? ना .... ना बाबू कुछ नहीं टूटेगा अब ख्वाब ही देखियेगा "
मुंगेरीलाल की तरह " । शैली अच्छी है , ऊर्जावान भी है, ऊर्जा के स्त्रोत
बनिये अंधेरा क्यों फैला रहे हैं ? जैसे बिहार में तरक़्क़ी ही तरक्की दिखा
रहे थे। करोडो अरबो के घोटाले हुए, कुछ घर के भी नाम आये लेकिन तब भी रंगीन
टीवी ही दिखाते रहे , ये अचानक क्या हुआ ? पेट में इतनी मरोड़ क्यों उठी ?
इतने असहिष्णु क्यों हो गए दर्शक के साथ, यहाँ से इस्तीफा देने और रेडियो
जॉकी बनने , इस्तीफा मोदी के सर मढ़ देने का विक्लप तो खुला ही रहता...
दर्शक के साथ असहिष्णुता भी नहीं होती और रेडियो सेवा भी हो जाती और
"मोदीद्रोह" भी परवान चढ़ जाता। ऐसा लगता है कि "मोदीद्रोही" दिखने के लिए
ये जमात देशद्रोही के साथ भी खड़ी हो रही है, बस मोदी का विरोध करना है चाहे
देशद्रोही के समर्थक क्यों न बनना पड़े.... इतना भी अहंकार ठीक नहीं है
कबीर दास जी ने कहा है " ऐसी बनी बोलिये, मन का आपा खोय |
औरन को शीतल करै, आपौ शीतल होय ||
(मन के अहंकार को मिटाकर, ऐसे मीठे और नम्र वचन बोलो, जिससे दुसरे लोग सुखी हों और स्वयं भी सुखी हो )
राजनेता हो तो ठीक है वो राजनीती ही करेगा सत्ता पर गरीब का
बेटा बैठा है तो पेट में लोटन दर्द होगा, मुझसे ज़्यादा गरीब कोई कैसे हो
गया ? मुझसे ज़्यादा पिछडो का हमदर्द कैसे बने कोई , दलित के मसीहा तो हम ही
हैं, दूसरा कोई कैसे हमसे आगे निकल जाएगा ? ये गरीब के बेटे से गरीब को
छीनने का, पिछड़े के बेटे से पिछडो को छीनने का , दलित के बेटे से दलितो को
छीनने का षड़यंत्र है, रोहित वेमुला ने लिखा मेरी मौत का कोई ज़िम्मेदार नहीं
लेकिन मोदी को दोषी ठहरा दिया, अख़लाक़ की हत्या मोदी के माथे मढ़ दी, JNU
देशद्रोह, मोदी को दोषी ठहरा देगे।अब विद्वान कह रहे हैं कि JNU के छात्रो
को देशद्रोही मत कहो अभी आरोप सिद्ध नहीं हुये हैं , बिलकुल सहमत हूँ ,
लेकिन 2002 के दंगे पर मौत का सौदागर कह दिया , हत्यारा कह दिया, एनकाउंटर
स्पेशलिस्ट कह दिया , तब भी आरोप कहाँ सिद्ध हुये थे दोहरा पैमाना क्यों?
क्यों कि वो गरीब का बेटा है पिछड़े का बेटा है ! या कुलीन वर्ग के गोरखधंधे
बंद कर दिए हैं और उस कुलीन वर्ग की कठपुटली हम बने हुए हैं ?
सावधान .सावधान सावधान ..ये राजतन्त्र के कुलीनों का महा षड़यंत्र है।
*साभार-विकास भदौरिया-ABP News
Vikas Bhadauria