बुधवार, 9 सितंबर 2015

आधुनिकता और आध्यात्मिकता का पर्याय है हिंदू जीवनशैली!

कट्टरता-लोचनियता,  कठिन-सरल और गृहस्थ-संन्यास हिंदू धर्म या हिंदू होने की विलक्षणता है, जो जैसा वहन करना चाहता है अंगीकार कर सकता है, कोई रोक-असंतोष नहीं!

बतौर हिंदू व्यक्ति हमेशा नैसर्गिक आधुनिकता में जीता है वरना अनुष्ठान और क्रिया-कलापों में निहित धर्म लोगों को मजबूर बनाते हैं, लेकिन हिंदू हमेशा स्वतंत्र व स्वछंद रहता है! मसलन, यथा भक्ति जथा शक्ति!

एक बीमार, लाचार और जरुरतमंद व्यक्ति पूजा-पाठ और धर्म से जुड़े अनुष्ठानों में अधिक रमता-रंगता है, लेकिन वह जीवन जनित लाचारगी से उबरते ही सफलता की अभ्यासों में रम जाना चाहता है पर अनुष्ठानों वाले धर्म और उसकी धार्मिक कट्टरता व्यक्ति का मार्ग रोक लेती है!

एक लाचार और अनगढ़ व्यक्ति (किसी भी धर्म को मानने वाला) धार्मिक अनुष्ठानों में, पूजा-पाठ में अधिक रमा व लगा रहता है, लेकिन ज्ञान प्राप्त होने अथवा इच्छित सफलता की ओर बढ़ने पर कर्म प्रधान होने लगता है!

रोजाना दो घंटे कर्मकांडों में बिताने वाले व्यक्ति को अनुष्ठान के लिए दो सेकेंड निकालना भी मुश्किल लगता है, क्योकि सफलता और ज्ञान से व्यक्ति समझ चुका होता है कि कर्म ही पूजा है!

असफल, अज्ञानी और परजीवी व्यक्ति ही अनुष्ठानों में अधिक रमते हैं, क्योंकि ऐसों के ज्ञान चक्षु खुलते नहीं हैं या खोलना नहीं चाहते हैं,?

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