गुरुवार, 14 मई 2015

केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट ने बताई उसकी औकात!

दिल्ली के मुख्यमंत्री बनते ही मीडिया सर्कुलर के जरिये मीडिया का मुंह बंद करने की कोशिश करने वाले केजरीवाल के मुंह पर बहुत ही तगड़ा तमाचा लगा है, जिससे अब केजरीवाल को समझ आ जायेगा कि वो मीडिया से जन्में हैं, मीडिया उनसे नहीं?

कैसे इंसान अपनी औकात भूल जाता है, इसके ताजा उदाहरण केजरीवाल हैं। केजरीवाल के वैयक्तिक और व्यवहारिक भ्रष्टाचार पर सवाल उठे तो भाई साहब चले मीडिया को सबक सिखाने?

केजरीवाल की हरकत देख ऐसे लगा जैसे कोई धूप से बचने के लिए सूर्य को ढ़कने का सर्कुलर जारी कर दे।

ये वही केजरीवाल हैं जो महज मीडिया की उपज है, जिसका खुद का कोई अस्तित्व नहीं है, ये उसकी मीडिया सर्कुलर जैसी उन तमाम हरकतों से साबित हो चुका है।

सुप्रीम कोर्ट के तमाचे के बाद भी केजरीवाल की हरकतों पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है, क्योंकि इसकी क्रिया-कलापों से ऐसा ही लगता है।

अभी केजरीवाल टीवी पर एक विज्ञापन में नजर आ रहा है, जिसमें वह दिल्ली में भ्रष्टाचार कम करने की वाहवाही लूट रहा है।

केजरीवाल विज्ञापन में कहता हुआ देखा जा सकता है कि उसने दिल्ली वालों को  तथाकथित सस्ती बिजली और पानी और दिल्ली के किसानों को 50,000 प्रति एकड़ मुआवजा भ्रष्टाचार कम करके देने में सफल हुआ?

मतलब केजरीवाल अप्रत्यक्ष रुप से देश के उन सभी राज्यों को मुख्यमंत्रियों को भ्रष्टाचारी बता रहा है, जो अपने राज्यों के किसानों को 50,000 प्रति एकड़ मुआवजा नहीं दिया है।

संभव है जल्द ही राज्य सरकारें केजरीवाल के इस ऊल-जुलूल विज्ञापन और प्रचार भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठायेंगी।

बुधवार, 13 मई 2015

रिश्तों का इल्जाम न दो?

मैं उन दिनों सर्वोदय एनक्लेव में रहता था। एक मोहतरमा आईं और मेरी ही बिल्डिंग में मेरे ही पड़ोस के कमरे में शिफ्ट हों गईं।

अक्ल का पता नहीं पर मोहतरमा शक्ल से आकर्षक व सुंदर थीं, लेकिन शादीशुदा थी। नई-नई शादी हुई थी शायद?

पतिदेव दिल्ली में ही कार्यरत थे और मोहतरमा नौकरी तलाश रहीं थीं। दोनों साथ-साथ पड़ोस के कमरे में शिफ्ट हुए थे।

जो मुझे जानते हैं, वो जानते हैं कि मैं घुलने-मिलने में बहुत समय लेता हूं, वो चाहे लड़की हो या लड़का? कोई जेंडर भेदभाव नहीं!

उन दरम्यान कई बार ऑफिस को निकलते और ऑफिस से वापस आते समय एकदूसरे का दीदार हो जाया करता था, लेकिन बातचीत बिल्कुल नही?

न उन्होंने कभी पहल की और मैं तो पहल करता ही नहीं, चाहे बरस बीत जाये। एक महीने के अंतराल बाद एक दिन मोहतरमा ने सुबह-सुबह ही मेरे दरवाजे पर दस्तक दिया!

मैं अमूमन दरवाजे पर दस्तक को पसंद नहीं करता हूं, इसीलिए मकान मालिक को रेंट समय से पूर्व दे आता हूं। फिर भी कोई दरवाजा पीटता है तो बिना दरवाजा खोले निपटाने की कोशिश करता हूं ।

खट-खट की आवाज कई बार आई तो पूछ बैठा, " कौन?
आवाज आई , "मैं....मैं आपके पड़ोस में रहती हूं। मैंने दरवाजा खोला तो देखा सामने पड़ोस वाली मोहतरमा खड़ी थीं और मुझसे मेरा मोबाइल फोन मांग रहीं थी। शायद कोई एमरजेंसी कॉल करना था उनको?

उन्होंने बताया कि उनका फोन काम नहीं कर रहा है और उन्हें जरूरी कॉल करना है? मैंने फोन उठाकर दिया, लेकिन मोहतरमा को मेरे सामने ही बात करनेे की छूट दी और बात खत्म होते ही जैसे ही उन्होंने फोन वापस दिया, मैंने दरवाजा बंद कर लिया।

यह बात आई-गई हो गई और इस बात को कुल 3 माह बीत गये! न उन्होंने शुक्रिया कहा और न मैंने धन्यवाद किया!

मैं ऐसा ही हूं। जबरदस्ती के रिश्तों में जुड़ना पसंद नहीं है, क्योंकि आजकल के रिश्ते बहुआयामी हो गये हैं, लोग भैय्या बोलकर जिंदगी की नैया तक डूबो देते हैं, लेकिन यह अवसर न मैं लेता हूं और न ही किसी को देता हूं।

अमूमन जहां भी मैंने अभी तक काम किया है, वीकेंड मेरा बुधवार+गुरुवार होता है। यह मेरी खुद की च्वाइश होती है, अपवाद भी हुए हैं।

वीकेंड के एक दिन एक बार फिर मोहतरमा ने  दरवाजा खटखटाया और अंदर से बाहर आया तो सामने मोहतरमा खड़ी थी।

मोहतरमा मुझसे फिर कुछ मांगने की इच्छा लेकर आईं थी, लेकिन इस बार लगा लक्ष्य भिन्न था। वो मेरे फ्लैट के अंदर की रखी व्यवस्थित चीजों को बड़े कौतुहल से देख रहीं थी।

और फिर एकाएक मोहतरमा ने एक साथ दो सवाल उछाल दिये, " आप अकेले रहते हैं? आप क्या करते हैं?

परिचय पूरी होेने के बाद मोहतरमा वापस चलीं गईं और मैंने दरवाजा फिर पीटकर बंद कर लिया।

नि:संदेह मोहतरमा ने पूरे 6 महीने तक एक ही बिल्डिंग में पड़ोस में रहते हुये मेरे बारे में खूब रिसर्च कर लिया था और मुझसे किसी भी प्रकार की खतरे की आशंका और संभावना नहीं होने के प्रति आश्वश्त थीं?

अब आते-जाते, उठते-बैठते मोहतरमा से संवाद कायम होने लगा और उनके पतिदेव भी मुझसे बातचीत करने की कोशिश करने लगे। हालांकि पतिदेव शुरू में संवाद में आशंकित ही रहे।

स्थिति यह हो गई कि अब मेरी टीवी और फ्रिज आधी उनकी हो गई थी और मैं भी अब दरवाजे बंद करना भूल जाता था, क्योंकि मोहतरमा जब चाहे दरवाजा खटखटाने की आदी हो गईं थी।

मैं भी खुश था वीकेंड पर दिन अच्छा गुजरने लगा था। क्योंकि वीकेंड महसूस करने के लिए मल्टीप्लेक्स में घटिया फिल्मों का अनावश्यक फस्ट्रेशन बंद हो गया था।

मोहतरमा भी खुश थीं, मैं भी खुश था और मोहतरमा के पतिदेव भी खुश थे और हम एक परिवार की तरह अगले 3 महीने रहे, बस मेरे और महिला के रिश्ते परिभाषित नहीं थे, जिसको लेकर कभी-कभी मोहतरमा हिचक जाती थीं!

एक दिन अचानक फ्रिज से दूध निकालते समय मोहतरमा ने बात छेड़ने की अंदाज में न चाहते हुये बोलीं, "आपको मैं भैय्या बोलूं तो बुरा तो नहीं लगेगा?

मैं सवाल सुनकर बेचैन नहीं हुआ और उल्टा पूछ बैठा, क्यों क्या हुआ? पतिदेव ने कुछ कहा क्या?

मोहतरमा मुस्कराई और बोली, "नहीं ऐसा कुछ नहीं है, फिर भी अगर...मतलब हम भाई-बहन ही हुये न?

मैं गहरे सोच में पड़ गया? मोहतरमा जाने को हुईं तो मैंने रोक लिया। तुम कहती तो ठीक है, लेकिन ये आज तुम्हें क्यों सूझी?

मैंने आगे कहा, "तुम्हें रिश्ते को नाम देना है तो दे दो, मुझे कोई आपत्ति नहीं है पर हम हमारे रिश्ते को दोस्ती भी तो कह सकते हैं, जिसमें भाई-बहन जैसी ही मर्यादा है और आगे भी रह सकती है।"

मोहतरमा अवाक थीं पर बेचैन नहीं! वे कुछ देर चुप रहीं फिर बोली, " पर मेरा नाम तो आपको नहीं मालूम है?

मैं मुस्करा पड़ा और मोहतरमा वापस चलीं गईं। अब हम एक दूसरे को नाम से पुकारने लगे, न दीदी और न भैय्या?

मेरी पड़ोसन तो मुझसे भी वृहद सोच और नजरिये की महिला निकली और मैं समझता था कि एक महिला की दुनिया सामाजिक सरोकारी रिश्तों तक ही सिमटी रहती है। लेकिन ऐसे बहुत कम लोग हैं जो नाम से इतर जहीनी रिश्तों से जुड़ने की कोशिश कर पाते हैं।

क्योंकि "एक लड़की और एक लड़का कभी दोस्त नहीं हो सकते?" जैसे जुमले महिला और पुरुष की दोस्ती की परिभाषा को कभी मर्यादित परिभाषित कर ही नहीं सकते?

इस बीच एक महीने सब कुछ ठीक रहा, लेकिन एक महीने बाद ही मोहतरमा पतिदेव के साथ गुड़गांव शिफ्ट कर गईं और सवाल छोड़ गईं कि पुरुष से महिला की दोस्ती कितनी ही मर्यादित क्यों न हो पर अग्नि परीक्षा से एक महिला को ही गुजरना पड़ता है।

संसद में शहजादे की सुरक्षा में लगा है शहजादों का गिरोह?

कैसे पढ़े-लिखे गंवार लोकसभा में मौजूद हैं। मुझे हुड्डा परिवार में दीपेंद्र हुड्डा से थोड़ी-बहुत उम्मीद थी?

हरियाणा में किसानों की जमीन रॉबर्ट वाड्रा को मुफ्त देकर मुख्यमंत्री की कुर्सी गवां चुके भूपेंद्र हुड्डा के सुपुत्र दीपेंद हुड्डा अब किसानों के लिए संसद में घड़ियाली आंसू बहाते हुये मर्यादा भूल गये।

दीपेंद्र हुड्डा ने लोकसभा में आज अमेठी फूड पार्क मुद्दे पर महज झूठ के आधार लोकसभा स्पीकर पद की गरिमा से खिलवाड़ करके जता दिया है कि वे कितने बड़े बुद्धिजीवी हैं।

यही नहीं, संसद भवन में शहजादे राहुल गांधी के आसपास ऐसे राजनेताओ के सुपुत्रों की पूरी जमात है, जिनका काम सिर्फ शोर मचाना है, हो-हल्ला करना है और राहुल गांधी का कवच बने रहना है।

इनमें दीपेंद्र हुड्डा (भूपेंद् हुड्डा), गौरव गोगोई (तरुण गोगोई) अशोक चाह्वान प्रमुख हैं।

अब देश के चोर बतायेंगे थाने का पता?

चोरी और घोटालों की गिरोह चला रही कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष सही कह रहें हैं कि बड़े चोर सूट-बूट पहनकर आते हैं?

लंदन और इटली के ड्राई क्लीन्ड कपड़े पहनने वाले सूट-बूट वाले कांग्रेसी नेता व पूर्व प्रधानमंत्री से सारे परिचित है?

अरे! दामाद जी का तो जिक्र रह ही गया, वैसे सभी जानते हैं रॉबर्ट वाड्रा ने कितने किसानों की जमीन जबरन हथिया ली है और वे किसान अब खून के आंसू रो रहें हैं।

कोई नहीं, पप्पू अपने ही घर की पोल खोल रहा है? कांग्रेसी सोच रहें होंगे कि किस मनहूस घड़ी में 'राहु'ल पैदा हुआ?

मंगलवार, 12 मई 2015

पप्पू की फस्ट्रेशन का मोल नहीं, जनहित योजनाएं जरुरी!

मौजूदा केंद्र सरकार की योजनाएं देश और जन कल्याणकारी हो सकती हैं, जिनमें भूमि अधिग्रहण कानून प्रमुख है।

लेकिन वे लोग केंद्र सरकार की उक्त योजनाओं का विरोध सर्वाधिक विरोध कर रहें हैं, जो फस्ट्रेशन में हैं। इनमें कांग्रेस प्रमुख हैं, लेकिन ज्यादा तकलीफ में वे हैं जो अलग-थलग है, जैसे- #अरूणशौरी और #गोविंदाचार्य!

बीजेपी को मार्गदर्शक टीम के लिए कुछ और पद सृजित कर लेना चाहिए, क्योंकि खाली दिमाग शैतान का घर कहा जाता है।

रहा सवाल कांग्रेसी नेताओं का तो विपक्ष का काम ही होता है विरोध करना? अब पप्पू (#राहुलगांधी) एक बार फिर अपनी किस्मत आजमां रहा है तो आजमाने देना चाहिए?

पप्पू पास तो होने से रहा, क्योंकि रट्टा मारकर पप्पू साथी शहजादों के साथ बैठकर सिर्फ हो-हल्ला जरूर कर सकता है, लेकिन ऐन परीक्षा में फेल होना उसका तय है।

हालांकि पप्पू के पास हल्ला के लिए अभी पूरे 4 साल हैं, लेकिन केंद्र के पास काम करने के लिए अब महज 4 साल ही बचे है!

इसलिए केंद्र सरकार को बेखौफ अपना काम करना चाहिए और जन कल्याणकारी योजनाएं लागू करने और विपक्ष को संभालने के लिए साम-दाम-दंड-भेद के साथ-साथ कड़वी-मीठी गोली की फिक्र नहीं करनी चाहिए।

क्योंकि 5 साल बाद देश की जनता सिर्फ काम देखेगी और विशाल बहुमत होने के बावजूद केंद्र सरकार की वह छोटी-बड़ी असफलता के लिए किसी बहाने को माफ नहीं करेगी?

क्योंकि जनता सिर्फ वजूद में मौजूद कामों का हिसाब लेती है और फिर जनादेश लिखती है और वादों के मुताबिक किये गये विकास कार्यों के आगे पप्पू और विपक्ष के सच्चे-झूठे शोर नक्कारखाने में तूती की आवाज ही साबित होनी है।

तो प्रधानमंत्री जी सिर्फ काम कीजिये और शोर पर ध्यान मत दीजिये, देश को आपसे बहुत उम्मीद है!

#Pappu #RahulGandhi #Congress #Modi #BJP #LAB

सोमवार, 11 मई 2015

मीडिया के बाद अब केजरीनाल को धरने में भी दिखने लगी है साजिश?

हड़ताल और धरने की राजनीति से सत्ता तक जा पहुंचे केजरीवाल एंड टीम को अब डीटीसी कर्मियों के हड़ताल में साजिश नजर आ रही है?

तो क्यों न हम केजरीवाल और टीम के धरने-प्रदर्शन और रैली को सियासत में घुसने और दिल्ली की राजनीति की में प्रवेश करने की साजिश समझे?

झूठे आरोपों और कपट के सहारे केजरीवाल मुख्यमंत्री बन बैठे और अब उनके सिपहसालार धरने-प्रदर्शन को राजनीतिक साजिश करार दे रहें हैं?

भगवान ही मालिक है दिल्ली का और दिल्ली की जनता का, जिन्होंने जाने-अनजाने सिर पर भस्मासुर बैठा लिया है!
#Kezriwal #AAP #Protest #GopalRai #DTCBus

गुरुवार, 7 मई 2015

एक बार फिर पप्पू (राहुल गांधी) फेल हो गया!

पप्पू उर्फ राहुल गांधी को आलू और चिप्स के दाम नहीं पता है? क्योंकि पिछले 10 वर्ष सत्ता में पप्पू की अम्मा की सरकार ही थी!

पप्पू का कहना है कि 2 रुपये प्रति किलोग्राम के आलू से 10 रुपये के चिप्स बिकते है?

पप्पू के मुताबिक एक किलोग्राम आलू से महज 10 रुपये के चिप्स निर्मित हो पाते हैं? यानी किसान ही नहीं चिप्स बनाने वाली कंपनियां भी घाटे में हैं!

अब पप्पू से क्या उम्मीद की जा सकती है? किसी ने लिखकर दे दिया और पप्पू ने बोल दिया, इसमें पप्पू की क्या गलती है?

पप्पू को कोई बता दे कि एक किलोग्राम आलू में चिप्स बनाने वाली कंपनियां 10 रुपये नहीं, 100 रुपये कमाती हैं?

कहते हैं कि बकरे को शेर को खाल पहनाने से बकरा मिमियाना नहीं छोड़ देगा, पोल तो खुल ही जाती है?

केजरीवाल की हिम्मत देखो ?

महाराज पार्टी सदस्यों की तरह अब मीडिया को भी डिक्टेक्ट करने जा रहें है? सुना है भाई साहब ने टीवी न्यूज चैनलों के प्राइम टाइम शो की निगरानी करवाने के लिए एक कमेटी बना दी है ।

कहते हैं विनाश काल में बुद्धि विपरीत हो जाती है, लेकिन केजरीवाल की बुद्धि ही भ्रष्ट हो चुकी है, अब तो हो चुकी दिल्ली भ्रष्टाचार मुक्त!

क्योंकि भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए केजरीवाल पार्टी के भ्रष्ट नेताओं पर कार्यवाही करने के बजाय मीडिया पर लगाम कसने की तैयारी कर रहें हैं?

ईश्वर केजरीवाल एंड टीम को सद्बुद्धि प्रदान करें ताकि दिल्ली के वोटरों की हवाई ख्वाहिशें जिंदा बची रह सकें!

Why is Narendra Modi making more foreign visits?

Barack Obama and China supports India's bid for permanent UNSC seat.- $35 billion investment by Japan over a period of 5 years and along with it their expertise in making bullet trains.

Australia is set to sign a Nuclear Power deal with India to supply around 500 tonnes of Uranium to India.

Satya Nadella (Microsoft), Indra Nooyi (Pepsico), Sheryl Sandberg (Facebook), Jeff Bezos (Amazon), Mark Zuckerberg (Facebook) discussespossible investments.

Israel inks $5 million deal for Joint Educational Research programme.- $20 billion investment from Xi and his Chinese counterparts.

 2 billion Euros support from France for sustainable development in India.- Airbus to increase outsourcing in India from 400 million euros to 2 billion euros over the next five years.

French National Railways has agreed to co-finance an execution study for a semi-high speed project on upgradation of the Delhi-Chandigarh line to 200 kmph.

Canada agrees to supply 3,000 metric tonnes of uranium to India from this year to power Indian atomic reactors. While we are all yearning for a transformation, development, etc.

There is someone who is actually settingup the infrastructure for it. Marketingof 'Brand India' has never been so important !!

Number of days Modi stayed abroad touring 15 countries as a PM on official trips = 45.

Number of days Rahul stayed abroad (Bangkok) without informing his voters= 57.Let's be sensible to analysis & make a judgment !!!

Courtesy- Subham Chaudhary

सोमवार, 4 मई 2015

मीडिया को मिला भस्मासुर केजरीवाल!

शिव ओम गुप्ता
ऊल-जुलूलू हरकतों और गंदी भाषा शैली के आधार पर आज यह कहा जा सकता है कि अरविंद केजरीवाल भारतीय इतिहास का सबसे अमर्यादित मुख्यमंत्री है, जो भारतीय राजनीति को हमोशा कलंकित करता रहेगा।

ऐसी भाषा शैली और एप्रोच से केजरीवाल बोलता है कि लगता ही नहीं कि उक्त भाषा प्रदेश के शीर्ष पद पर बैठे मुख्यमंत्री की होगी।

एक उदाहरण-

केजरीवाल, "मीडिया ने आम आदमी पार्टी को बदनाम और बर्बाद करने की 'सुपारी' (गैंगस्टर की भाषा) ले रखी है।"

ये वहीं केजरीवाल हैं जिन्हें मीडिया ने हीरो से मुख्यमंत्री पद पर बैठा दिया है। मीडिया को भी अब चिंतन करना चाहिए कि उसका काम सिर्फ सूचना देना है, एजेंडा सेट करना नहीं?

वरना जनता को ही नहीं, मीडिया को भी केजरीवाल नामक भस्मासुर मिल सकता है, जो खुद को बनाने वाले को ही सबसे पहले भस्म करने की कोशिश करता है!

#Kezriwal#AAP #Media #DelhiCM #GobackIndianMedia #DontComeBackIndianMedia #NepalEarthquake

शनिवार, 2 मई 2015

देश को लूटने वाली कांग्रेस अब रॉबिनहुड बनीं फिर रही है!

जमीन बेची, खदान बेचा, खेत और खलिहान बेचा... देश में ऐसी कोई जगह नहीं बची है, जिसमें 68 सालों तक खान्ग्रेस ने घोटाले नहीं किये। गांधी खानदान की तो बात ही मत करो...

RTI से मिली जानकारी के अनुसार दिल्ली में सिर्फ 3
समाधि (गांधी, नेहरू और इंदिरा) के लिए कुल 6000 करोड़ रुपए किमत की जमीन पर कब्जा जमाये हुए हैं।
इस लिस्ट में अगर राजीव को शामिल करें तो पूरे देश में आंकडा 70000 करोड़ रूपये तक जाता है।

खान्ग्रेस के दामाद रोबट वद्रा ने ताकत आजमाईश से दिल्ली, हरियाणा, यूपी, राजस्थान और हिमाचल में किसानों की हजारों एकड़ जमीन और समेत कई प्राईम प्रॉपर्टीयां हडप ली...

एक तिहाई कश्मीर पाकिस्तान को और आधा अरुणाचल प्रदेश चीन को देने वाला पापी परिवार आज जमीन की बात करता है, और ये सब कुछ उसी अंग्रेजों के बनाए 'भूमि- अधिग्रहण कानून' के सहारें।

लेकिन जब किसान कुदरत की मार झेल रहा था, तब खान्ग्रेस के शहजादे 'पप्पू' 58 दिन विदेशों में मौज मना रहे थे, आज जब किसान के आँसू सुख गये तब पप्पू अचानक नौटंकबाजी करने चुनावी प्रचार में उतर आयें।

अरे मोदी को आए अभी साल भर भी नहीं हुआ... और 68 साल लुट मचा रही खान्ग्रेस और उसके एजेंट केजरीवाल यह दिखाने में लगे है की किसानों का सबसे बड़ा दुश्मन मोदी है... कमाल है।

इन्हें पता चल चूका है की नमो पांच साल में इनकी इतनी गहरी कब्र खोद देंगे की इनकी आने वाली पीढ़ियां भी उसमें से नहीं निकल पाएंगी।

Courtesy:- निर्मल शर्मा 

अरुण शौरी का फस्ट्रेशन उन्हें कहां ले जायेगा?

शिव ओम गुप्ता
भाजपा में फस्ट्रेटेड नेताओं की कमी नहीं है। अरुण शौरी को भी मार्गदर्शक मंडल वाली टीम में धक्का दे दिया जाना चाहिए, क्योंकि लाइमलाइट में न रहने की कमी सबको खलने लगती है?

मोदी सरकार की 'सबका साथ-सबका विकास' और जन-धन योजना को जहां अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिल गई है और कई देश उस पर अमल करने की बात कह रहें है।

यहां तक कि विश्व बैंक प्रमुख से लेकर वैश्विक रेटिंग एजेंसीज तारीफ कर रही हैं, ऐसे में शौरी और मीडिया प्रोपेगेंडा को समझना आसान है, जिनका मकसद ही कुछ और है!

एक बार मान भी लें कि अरूण शौरी की बात एक फीसदी सही भी है, तो शौरी उक्त बातें 'ज्ञानवर्धक बातें' पार्टी फोरम में भी उठा सकते थे? प्रधानमंत्री से स्वयं मिल सकते थे, लेकिन?

गुरुवार, 30 अप्रैल 2015

राहुल गांधी, 'घड़ियाली आंसू देख रहा है देश का वोटर!'

शिव ओम गुप्ता
परीक्षा में बैठने से पहले पुराने परीक्षा में जिन सवालों के जबाव नहीं दे सके थे राहुल गांधी एंड टीम को उससे सबक लेना चाहिए वरना शर्तिया फिर फेल हो जायेंगे!  

राहुल गांधी विशुद्ध कांग्रेसी ढर्रे की पुरातन राजनीति कर रहें हैं, जिसमें कुछ नया नहीं है, बल्कि बोरियत है।

 राहुल गांधी को अच्छी राजनीति करनी है तो पहले उन्हें केंन्द्र के 10 वर्ष की घोटालों और पिछले 15 वर्षों में कांग्रेस सरकार के दौरान महाराष्ट्र में किसानों की खुदकुशी की समीक्षा करके देश से गद्दारी के लिए माफी मांगनी चाहिये फिर किसानों के हित के घड़ियाली आंसू बहाने चाहिये।

याद रखिये अब कांग्रेस की परंपरागत गांधी परिवार प्रेमी वोटर नहीं रहे, जिसको वो आसानी से वे मूर्ख बनाकर सत्ता में पुनर्वापसी कर लेते थे?

लेकिन आज का युग बदल गया है, क्योंकि आज का युवा वोटर  राजनीतिक दुष्प्रचार को बढ़िया से समझती है और उन सभी दुष्प्रचारों का सच और झूठ सोशल मीडिया के जरिये उसके पास रिफाइन होकर पहुंचता है।

 राहुल को अगर कांग्रेस की पुरानी ढर्रे पर राजनीति में पुनर्वापसी करनी है तो भूल जाये वरना अभी भी समय है और गाली देने के बजाय विकास प्रेरित राजनीति की बात करनी शुरू करें।

 क्योंकि जनता राहुल गांधी को सुनना पसंद नहीं करती है, वह जानती है राहुल गांधी की बातें छिछली होती है और स्क्रिप्टेड ड्रामेबाजी होती है!

#RahulGandhi #Congress #Youth #Voter 

राहुल गांधी कच्चे नींबू हैं सबको पता है पर कांग्रेस?

राहुल गांधी किसानों की आड़ में राजनीतिक ड्रामा भले कर रहें हैं, लेकिन यह भूल गये हैं या भूलने का ड्रामा कर रहें है।

क्योंकि पिछले 10 वर्ष केंद्र और महाराष्ट्र में 15 वर्ष कांग्रेस की सरकारें रही है और उनके ही कार्यकाल में किसानों की सर्वाधिक मौत हुई है।

कोई कैसे इतनी दोगली बातें कर सकता है। गलती मानने वाले को माफी मांगने पर जनता एक बार माफ भी कर देती है, लेकिन चोरी करके सीनाजोरी करने वालों को देश की जनता कभी नहीं करेगी!

राहुल गांधी कच्चे नींबू हैं यह तो दुनिया को मालूम हैं, लेकिन पूरी कांग्रेसी जमात कच्चा नींबू निकलेगी? भरोसा नहीं हो रहा?

#RahulGandhi #Congress #Pappu #IndianFarmers #Suicide

बुधवार, 29 अप्रैल 2015

बचने से नहीं, लड़ने से मिलेगी जिंदगी?

शिव ओम गुप्ता
बचकर नहीं, डटकर तुम्हें चलना होगा?
तुम्हें जिंदगी से लड़कर आगे निकलना होगा?

राह दुश्मन सही, इरादे बदलकर चलना होगा?
तुम नहीं या हम नहीं, तय करके ही भिड़ना होगा?

है आन में अभिमान तो उसमें जान भी भरना होगा?
तू ठान ले बस फिर तो उसको पिछड़ना ही होगा?

मत गौर कर कब क्या किसे समझाना होगा?
सरेराह ही सबक तुम्हें उसे सिखलाना होगा?

अब आन पर नादान, जान हथेली पर लेना ही होगा?
है जान पर अभिमान तो कीमत बतलाना भी होगा?

इसलिए फौरन तुझे अब मौन को दफनाना होगा?
औरत तुझे अब हाथ में खड्ग तो उठाना होगा?

और हाथ लकड़ी में अब ज्वाला तुझे भड़काना होगा?
क्योंकि लड़की नहीं है अबला उन्हें अब बतलाना होगा?

मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

'चोर' कहता है कि मुझे चोर मत कहो, देश की बदनामी होती है?

पिछले 60 वर्षों तक देश को घोटालों और लूटमारी से पीछे ले जा रही कांग्रेस को अब बदनामी का भी डर सता रहा है और अपनी नाकामी और लूट को छिपाने के लिए अपने कुकर्म को भारत की बदनामी से जोड़ रही है।

अफसोस तो इस बात है कि कांग्रेसियों को घोटाला और देश के साथ गद्दारी करते हुए कभी यह एहसास ही नहीं हुआ कि उनके घोटालों से  दुनिया में देश का नाम रोशन हो रहा है कि बदनाम हो रहा है।

मतलब, कांग्रेसी अब चोरी को अपराध श्रेणी  से हटाने की वकालत कर रहें हैं। कहने का अर्थ है कि 'चोर' को चोर कहो, तो चोर कह रहा है कि मुझे चोर मत कहो? क्योंकि इससे उसकी नहीं, देश की बदनामी हे रही है?

सोमवार, 27 अप्रैल 2015

वादे पूरी करो केजरीवाल, वरना दिल्ली माफ नहीं करेगी ?

शिव ओम गुप्ता
कहते हैं कि जो निवाला मुंह में हो, पहले उसको निगलने की कोशिश करनी चाहिये? फिर दूसरे किसी निवाले के बारे में सोचना चाहिये?

लेकिन राजधानी दिल्ली में वादों के पिटारों से निकली और वजूद में आई आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार अब वादों से ही कन्नी काटती नजर आने लगी है जबकि उसे मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी और मुफ्त इंटरनेट जैसे 70 लोक लुभावन नारों से दिल्ली में ऐतिहासिक जनादेश हासिल किया था !

उल्लेखनीय है राजधानी दिल्ली के मतदाताओं ने  गत दिल्ली विधानसभा चुनाव में पारंपरिक पार्टियों को धता बताते हुये अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को 70 विधानसभा सीटों में से रिकॉर्ड 67 सीटों पर विजयश्री दिलाई थी जबकि देश की सबसे बड़ी पार्टी रही कांग्रेस खाता तक नहीं खोल पाई और केंद्र में सत्तासीन भाजपा को महज 3 सीटों से संतोष करना पड़ा!

बावजूद इसके राजधानी दिल्ली का मतदाता अब ठगा सा महसूस कर रही है, क्योंकि चुनाव जीतने के बाद वादों को पूरा करने में केजरीवाल सरकार फिसड्डी ही साबित नहीं हो रही है बल्कि मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा है कि उनकी सरकार अगर किये वादों का 40 से 50 फीसदी भी पूरा कर देती है तो कोई बुराई नहीं है?

गौरतलब है जिन वादों और ईमानदार कोशिशों के चक्कर में दिल्ली ने केजरीवाल को मुख्यमंत्री की गद्दी सौंप दी थी, वे केजरीवाल अब दिल्ली की राजनीति को छोड़ राष्ट्रीय राजनीति में हाथ-पांव आजमाने लग रहे है, जिससे अब दिल्ली की जनता के अरमान ही नहीं टूट रहें हैं, बल्कि वे अब खुद के निर्णय को भी कोसने लगे हैं!

इससे पूर्व भी केजरीवाल अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा और मंशा के चलते दिल्ली की गठबंधन सरकार 49 दिनों में छोड़कर लोकसभा चुनाव में कूद पड़े थे, लेकिन चारों खाने चित्त होने के बाद वे दोबारा दिल्ली लौटे और माफी मांग ली और दोबारा दिल्ली में पूर्ण बहुमत सरकार बनाने में कामयाब हुये।

हांलाकि केजरीवाल ने दिल्ली की गद्दी दोबारा संभालते ही किये 70 वादों में से दो लोक लुभावन वादे तत्काल पूरे कर दिये। इनमें 200 यूनिट तक बिजली के खर्च पर वर्तमान टैरिफ का 50 फीसदी कीमत चुकाने और रोजाना 666 लीटर मुफ्त पानी प्रमुख है, लेकिन बाकी के वादे अब तक पिटारे में ही बंद हैं!


लेकिन केजरीवाल की ईमानदारी पर आश्वश्त दिल्ली की जनता अब अधीर हुई जा रही है, क्योंकि उसे भरोसा था कि केजरीवाल सरकार किये वादों को पूरा करने में ईमानदार कोशिश जरूर करेगी, क्योंकि इस बार दिल्ली में पार्टी की पूर्ण बहुमत नहीं होने का बहाना भी नहीं है, पर पूर्ण बहुमत के बावजूद केजरीवाल दिल्ली के मुद्दों को छोड़ अब इधर-उधर की बातें करते अधिक दिखाई पड़ रहें हैं!

कभी केजरीवाल नई भूमि अधिग्रहण विधेयक में राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए दिल्ली में किसान ढूंढ लाते हो, फिर कभी मीडिया पब्लिसिटी के लिए उन्हें फसल बर्बादी का मुआवजा बांटने लगते हैं और तो और गत 22 अप्रैल को राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर सभी जिम्मेदारी छोड़कर धरने पर बैठ गये और किसान हितैशी बनते-बनते राजस्थान के एक किसान गजेंद्र सिंह चौहान को ही सूली पर चढ़ा दिया!

दिल्ली पुलिस का आरोप है कि केजरीवाल और पार्टी कार्यकर्ताओं के सामने गजेंद्र फांसी पर झूल गया, लेकिन केजरीवाल समेत पार्टी के तमाम बड़े नेता राजनीतिक माईलेज के लिए गजेंद्र की मौत पर मौन रहे और सारे के सारे गजेंद्र की मौत का तमाशा असंवेदनशीलता से तब तक देखते रहे जब तक गजेंद्र पेड़ से झूल नहीं गया?

ध्यान रहे, ये वही केजरीवाल है, जिन्होंने रामलीला मैदान में दोबारा मुख्यमंत्री पद के शपथ ग्रहण समारोह के मंच से घोषणा की थी कि वे और उनकी पार्टी अब पूरे 5 साल दिल्ली की ही राजनीति करेगी और दिल्लीवालों की उम्मीदों को ही पूरा करने में लगेगी।


यही नहीं, केजरीवाल ने दिल्ली से किये गये वादों का हवाला देते हुए पार्टी के दूसरे संस्थापक सदस्यों को इसलिए पार्टी से बाहर कर दिया, क्योंकि वे दिल्ली से बाहर पार्टी को विस्तार देने की बात कर रहे थे? इनमें योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, प्रोफेसर आनंद कुमार और अजीत झा शामिल हैं, जिन्हें अब पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से भी बाहर किया जा चुका है?

सवाल उठता है कि अगर पार्टी दिल्ली से बाहर अभी विस्तार नहीं चाहती है तो भूमि अधिग्रहण विधेयक और मुआवजे की राजनीति क्यों कर रही थी? जबकि दिल्ली में किसान और किसानी भी नाममात्र हैं?

केजरीवाल पर यह भी आरोप लगता रहा है कि वे पार्टी को एक तानाशाह की तरह चलाते हैं और पार्टी में उनकी ही चलती है और जो भी उनसे सहमत नहीं होता, उसे पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है, इनमें पार्टी के तथाकथित आंतरिक लोकपाल एडमिरल रामदास का उदाहरण ही काफी है!

सवाल घूम फिर कर फिर वहीं पहुंच जाती है कि आखिर दिल्ली से किये वादों का क्या? जिसे पूरा करने को लेकर केजरीवाल खुद संजीदा नहीं दिख रहे जबकि पार्टी और पार्टी के नेता लगातार विवादों में घिरे रहते है।

जंतर-मंतर पर किसान गजेंद्र की फांसी मामले में पार्टी के सभी बड़े नेताओं का घिरना लगभग तय है, जहां किसान की हत्या और फांसी के लिए उकसाने का मुकदमा पुलिस दायर कर चुकी है।

क्योंकि मंच पर मृतक गजेंद्र की तथाकथित चिट्ठी की लिखावट पर गजेंद्र का परिवार पहले ही सवाल उठा चुका है और गजेंद्र की गरीबी और तंगहाली पर भी सवाल खड़े हो चुके है?

केजरीवाल एंड पार्टी अपने किये वादे पूरे जब करेगी तब करेगी, लेकिन काम कब करेगी यह बड़ा सवाल है। ये तो वही बात हो गई कि चील का उड़ना कम और चिल्लाना ज्यादा?

शनिवार, 25 अप्रैल 2015

कांग्रेसी मूर्ख बनाकर ही वोट लेंगे क्या? राहुल भी इसी राह पर!

शिव ओम गुप्ता
लांचिंग-रीलांचिंग, पिकनिक-हॉलीडे और रिहर्सल-भाषण के बाद बहरुपिये राहुल गांधी एक बार फिर अपनी पुश्तैनी मांद में घुसने जा रहें हैं?

सब कुछ गंवा चुकी कांग्रेस की थिंकटैक एक बार फिर पुराने ढर्रे पर लौटते हुए राहुल गांधी को हिंदू वोटरों को एक फिर ताड़ने के लिए हिंदू तीर्थों के चक्कर लगवा रही है, ताकि हिंदू बहुसंख्यक राहुल गांधी को इटलीवासी नहीं, हिंदुवादी समझे?

जैसा कि उनके पिता राजीव गांधी से अयोध्या राम जन्मभूमि का ताला खुलवा कर किया गया था और हिंदू बहुसंख्यकों को इमोशनल फूल (मूर्ख) बनाते रहे!

क्या कांग्रेस थिंकटैंक 2014 लोकसभा चुनाव की ऐतिहासिक पराजय के बाद अभी भी यह मानती है कि आज की नई जनरेशन भी गांधी परिवार के मोह में इमोशनल फूल बन जायेगी और स्वघोषित पप्पू राहुल गांधी को भी अपना वोट देगी?

आज जहां देश का युवा विकास, तकनीकी और रोजगार की बात कर रहा है, वहीं कांग्रेस एक बार फिर इमोशनल फूल बनाने वाले कॉर्ड पर दांव खेल रही है और पप्पू तो पप्पू? पप्पू की मम्मी भी राजी हैं!

तो क्या विश्व के सबसे बड़े युवा मतदाताओं वाला देश पप्पू के लिए इमोशनल फूल बनने को राजी हैं, क्योंकि कांग्रेस थिंक टैंक तो देश को पप्पू को थोपने पर अमादा दिखती है और वो हर वो चोचले आजमाने की कोशिश करती दिख रही है, जिसके जरिये उसने भारत को 5 दशक तक बर्बाद किया?

#RahulGandhi #Pappu #Congress #Youth  #SoniaGandhi #Voters #GandhiFamily 

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

केजरीवाल एंड पार्टी का मास्टर प्लान बैक फायर हो गया!

#केजरीवाल एंड पार्टी का #मास्टरस्ट्रोक जो उनके ही लिए #हॉर्टस्ट्रोक साबित हो गयी?

मास्टर स्ट्रोक प्लान की पटकथा-

"तैयारी हो गयी ?"
"हाँ हो गयी"
"वो आदमी कौन है जो पेड़ पे चढ़ कर थोड़ा ड्रामा करे, उसे क्या बोलना है सब समझा दिया ना",
"हां, लिख कर दे दिया है",
"कौन है वो?"
"बीजेपी का था अब बस टाइमपास है",
"चलो अच्छा है, कल को कुछ गलत हुआ तो #बीजेपी के सर पे दे मारेंगे के तुम्हारा बन्दा हमारी सभा में ड्रामा कर रहा था।
देखो सब ठीक से हो? बहुत ज्यादा देर तक पेड़ पे ना रहे। जब हल्ला मचे उसे आराम से उतारवा लेना और मंच में ले आना।
वही से उसका भाषण करा देंगे"
"बहुत क्रन्तिकारी होगा, मोदी साब तो हिल जायेंगे हमारे मास्टर स्ट्रोक से !"

हॉर्ट स्ट्रोक- बैक फायर्ड-स्क्रिप्ट:

"लटक गया"
'यह सब किसान आंदोलन को रोकने की साजिश है, बीजेपी चाहती है कि आम आदमी पार्टी को बदनाम किया जाये"
"हमारी कोई गलती नहीं, हमने गजेंद्र को उतारने की अपील की थी"
"#गजेंद्र अगली बार अगर पेड़ से लटका तो खुद केजरीवाल पेड़ पर चढ़ेंगे, शाखाओं पर जायेंगे और खुद उसे उतारेंगे"
हम से गलती हो गयी जी, हम माफी मांगते हैं जी"
#Gajendra #Kezriwal #AAP #Farmer #Suicide #KumarBiswas

सावधान! एक और बहरुपिया आया?


शिव ओम गुप्ता
क्योंकि अगर राहुल गांधी सचमुच हिंदू धर्म का पालन करते है या हिंदू धर्म को जानते हैं तो यह भी जानते होंगे कि हिंदू धामों की यात्रा एक हिंद धर्मावलंबी कब शुरू करता है?

और अगर राहुल गांधी केदारनाथजी यात्रा को जरिये हिंदुओं के दिलों में पुनर्वापसी की कोशिश है, तो यह छिछोरापन से अधिक कुछ नहीं है ।

ये तो वहीं बात हुई कि 100 चूहे खाकर बिल्ली चली हज को? वो कहते हैं न कि कपड़े बदलने से शक्ल नहीं बदलती है और राहुल गांधी आपकी काबिलियत और कारिस्तानी से देश का बच्चा परिचित है।

अच्छा होगा अगर आप आज राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर लो, क्योंकि देश की जनता का कोई भरोसा नहीं है, क्योकि अभी भी देश की अधिकांश जनसंख्या इतनी समझदार नहीं हुई है, क्योंकि वह आज भी अपना वोट जाति-बिरादरी और भावनाओं और जज्बातों से ही करती है?

एक नहीं, कईयों ऐसे उदाहरण हैं जिन्हें चाहे-अनचाहे देश/राज्यों को झेलना पड़ता है, क्योंकि वोट देने के बाद जनता सिर्फ  झेल सकती है। यानी, जब चिड़िया चुग गई खेत?

जैसे-पिछले 10 वर्ष देश को मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के रुप में झेलना पड़ा, उत्तर प्रदेश में पुत्तर अखिलेश को प्रदेशवासी  झेल रहें हैं और अब दिल्ली में केजरीवाल जैसे बहरूपिये को दिल्लीवाले होश-जोश खोकर वोट देकर झेलने को मजबूर हैं!

तो राहुल गांधी भी निकल पड़े बहरुपिये बनने और हिंदू वोट और जज्बाती वोटरों के दिल में जगह बनाने चल पड़े धार्मिक यात्रा पर...क्योंकि काबिलियत तो है ही नहीं, अब वोट तो ऐसे ही हासिल हो सकते हैं।

तो देश की जनता, आंख-नाक-कान खोल को रखो, क्योंकि मनमोहन सिंह, अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल के बाद अब राहुल गांधी बहरुपिये की खाल पहन चुके हैं, बस वादों का पिटारा खोल आपसे वोट मांगने वाले है, तो तैयार रहिये?