सोमवार, 27 अप्रैल 2015

वादे पूरी करो केजरीवाल, वरना दिल्ली माफ नहीं करेगी ?

शिव ओम गुप्ता
कहते हैं कि जो निवाला मुंह में हो, पहले उसको निगलने की कोशिश करनी चाहिये? फिर दूसरे किसी निवाले के बारे में सोचना चाहिये?

लेकिन राजधानी दिल्ली में वादों के पिटारों से निकली और वजूद में आई आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार अब वादों से ही कन्नी काटती नजर आने लगी है जबकि उसे मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी और मुफ्त इंटरनेट जैसे 70 लोक लुभावन नारों से दिल्ली में ऐतिहासिक जनादेश हासिल किया था !

उल्लेखनीय है राजधानी दिल्ली के मतदाताओं ने  गत दिल्ली विधानसभा चुनाव में पारंपरिक पार्टियों को धता बताते हुये अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को 70 विधानसभा सीटों में से रिकॉर्ड 67 सीटों पर विजयश्री दिलाई थी जबकि देश की सबसे बड़ी पार्टी रही कांग्रेस खाता तक नहीं खोल पाई और केंद्र में सत्तासीन भाजपा को महज 3 सीटों से संतोष करना पड़ा!

बावजूद इसके राजधानी दिल्ली का मतदाता अब ठगा सा महसूस कर रही है, क्योंकि चुनाव जीतने के बाद वादों को पूरा करने में केजरीवाल सरकार फिसड्डी ही साबित नहीं हो रही है बल्कि मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा है कि उनकी सरकार अगर किये वादों का 40 से 50 फीसदी भी पूरा कर देती है तो कोई बुराई नहीं है?

गौरतलब है जिन वादों और ईमानदार कोशिशों के चक्कर में दिल्ली ने केजरीवाल को मुख्यमंत्री की गद्दी सौंप दी थी, वे केजरीवाल अब दिल्ली की राजनीति को छोड़ राष्ट्रीय राजनीति में हाथ-पांव आजमाने लग रहे है, जिससे अब दिल्ली की जनता के अरमान ही नहीं टूट रहें हैं, बल्कि वे अब खुद के निर्णय को भी कोसने लगे हैं!

इससे पूर्व भी केजरीवाल अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा और मंशा के चलते दिल्ली की गठबंधन सरकार 49 दिनों में छोड़कर लोकसभा चुनाव में कूद पड़े थे, लेकिन चारों खाने चित्त होने के बाद वे दोबारा दिल्ली लौटे और माफी मांग ली और दोबारा दिल्ली में पूर्ण बहुमत सरकार बनाने में कामयाब हुये।

हांलाकि केजरीवाल ने दिल्ली की गद्दी दोबारा संभालते ही किये 70 वादों में से दो लोक लुभावन वादे तत्काल पूरे कर दिये। इनमें 200 यूनिट तक बिजली के खर्च पर वर्तमान टैरिफ का 50 फीसदी कीमत चुकाने और रोजाना 666 लीटर मुफ्त पानी प्रमुख है, लेकिन बाकी के वादे अब तक पिटारे में ही बंद हैं!


लेकिन केजरीवाल की ईमानदारी पर आश्वश्त दिल्ली की जनता अब अधीर हुई जा रही है, क्योंकि उसे भरोसा था कि केजरीवाल सरकार किये वादों को पूरा करने में ईमानदार कोशिश जरूर करेगी, क्योंकि इस बार दिल्ली में पार्टी की पूर्ण बहुमत नहीं होने का बहाना भी नहीं है, पर पूर्ण बहुमत के बावजूद केजरीवाल दिल्ली के मुद्दों को छोड़ अब इधर-उधर की बातें करते अधिक दिखाई पड़ रहें हैं!

कभी केजरीवाल नई भूमि अधिग्रहण विधेयक में राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए दिल्ली में किसान ढूंढ लाते हो, फिर कभी मीडिया पब्लिसिटी के लिए उन्हें फसल बर्बादी का मुआवजा बांटने लगते हैं और तो और गत 22 अप्रैल को राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर सभी जिम्मेदारी छोड़कर धरने पर बैठ गये और किसान हितैशी बनते-बनते राजस्थान के एक किसान गजेंद्र सिंह चौहान को ही सूली पर चढ़ा दिया!

दिल्ली पुलिस का आरोप है कि केजरीवाल और पार्टी कार्यकर्ताओं के सामने गजेंद्र फांसी पर झूल गया, लेकिन केजरीवाल समेत पार्टी के तमाम बड़े नेता राजनीतिक माईलेज के लिए गजेंद्र की मौत पर मौन रहे और सारे के सारे गजेंद्र की मौत का तमाशा असंवेदनशीलता से तब तक देखते रहे जब तक गजेंद्र पेड़ से झूल नहीं गया?

ध्यान रहे, ये वही केजरीवाल है, जिन्होंने रामलीला मैदान में दोबारा मुख्यमंत्री पद के शपथ ग्रहण समारोह के मंच से घोषणा की थी कि वे और उनकी पार्टी अब पूरे 5 साल दिल्ली की ही राजनीति करेगी और दिल्लीवालों की उम्मीदों को ही पूरा करने में लगेगी।


यही नहीं, केजरीवाल ने दिल्ली से किये गये वादों का हवाला देते हुए पार्टी के दूसरे संस्थापक सदस्यों को इसलिए पार्टी से बाहर कर दिया, क्योंकि वे दिल्ली से बाहर पार्टी को विस्तार देने की बात कर रहे थे? इनमें योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, प्रोफेसर आनंद कुमार और अजीत झा शामिल हैं, जिन्हें अब पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से भी बाहर किया जा चुका है?

सवाल उठता है कि अगर पार्टी दिल्ली से बाहर अभी विस्तार नहीं चाहती है तो भूमि अधिग्रहण विधेयक और मुआवजे की राजनीति क्यों कर रही थी? जबकि दिल्ली में किसान और किसानी भी नाममात्र हैं?

केजरीवाल पर यह भी आरोप लगता रहा है कि वे पार्टी को एक तानाशाह की तरह चलाते हैं और पार्टी में उनकी ही चलती है और जो भी उनसे सहमत नहीं होता, उसे पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है, इनमें पार्टी के तथाकथित आंतरिक लोकपाल एडमिरल रामदास का उदाहरण ही काफी है!

सवाल घूम फिर कर फिर वहीं पहुंच जाती है कि आखिर दिल्ली से किये वादों का क्या? जिसे पूरा करने को लेकर केजरीवाल खुद संजीदा नहीं दिख रहे जबकि पार्टी और पार्टी के नेता लगातार विवादों में घिरे रहते है।

जंतर-मंतर पर किसान गजेंद्र की फांसी मामले में पार्टी के सभी बड़े नेताओं का घिरना लगभग तय है, जहां किसान की हत्या और फांसी के लिए उकसाने का मुकदमा पुलिस दायर कर चुकी है।

क्योंकि मंच पर मृतक गजेंद्र की तथाकथित चिट्ठी की लिखावट पर गजेंद्र का परिवार पहले ही सवाल उठा चुका है और गजेंद्र की गरीबी और तंगहाली पर भी सवाल खड़े हो चुके है?

केजरीवाल एंड पार्टी अपने किये वादे पूरे जब करेगी तब करेगी, लेकिन काम कब करेगी यह बड़ा सवाल है। ये तो वही बात हो गई कि चील का उड़ना कम और चिल्लाना ज्यादा?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें