मीडिया जगत में काम कर चुके एक पीढ़ी के कुछ पत्रकारों ने लोकसभा चुनाव 2014 के दौरान अपनी पेशेगत निष्पक्षता और ईमानदारी को गिरवी रख तत्कालीन सरकार के पक्ष में और पीएम मोदी के विरुद्ध माहौल तैयार करने में अपनी एड़ी-चोटी की जोर लगा रखी थी, लेकिन नतीजा शून्य रहा!
उनमें से कुछ चेहरे तो बाकायदा सामने भी आए और हम उनकी फजीहत भी देख चुके हैं, लेकिन शेष बचे ऐसे कई चेहरे अभी और भी हैं, जो मृत्यु की ओर उन्मुख कांग्रेस को छोड़ आम आदमी का समर्थन में नारे लगाते अभी भी देखे जा सकते हैं!
ये लोग आपकी आंखों के सामने रोज होते हैं टीवी की बहसों में, चैनल कोई भी बदल लो?
आपको इन्हें पहचानने में जरा भी दिमाग लगाने की जरुरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि ये लोग इतनी फर्स्ट्रेशन में हैं कि बहस के दौरान बेसिरपैर की बातों से मुद्दे को व्यक्तिगत बना लेते हैं और ऐसे दलील देते हैं कि एंकर ही नहीं, प्रोड्युसर भी सोचने लगते हैं कि मुद्दा और एजेंडा क्या था, जिस पर वो बहस कर रहे थे?
क्योंकि उपरोक्त पीढ़ी के पत्रकार जब टीवी पर बहस करते हैं तो मुद्दे और एजेंडे कुछ भी हो, सब पीछे छोड़ अपनी पूरी एनर्जी मोदी सरकार के खिलाफ बोलने व उसकी कमियां निकालने में झोंकने लगते हैं!
फर्स्ट्रेशन इसकी नहीं है कि मोदी सरकार अच्छा कर रही है या बुरा कर रही है, बल्कि फर्स्ट्रेशन इस बात का है कि
कांग्रेस के बाद AAP पार्टी भी डूब गई तो उनका भविष्य क्या होगा?
मतलब, पत्रकारिता भी गई और राजनीति में पैर पसारने का मौका भी हाथ न आया यानी ना माया मिली ना राम!
उनमें से कुछ चेहरे तो बाकायदा सामने भी आए और हम उनकी फजीहत भी देख चुके हैं, लेकिन शेष बचे ऐसे कई चेहरे अभी और भी हैं, जो मृत्यु की ओर उन्मुख कांग्रेस को छोड़ आम आदमी का समर्थन में नारे लगाते अभी भी देखे जा सकते हैं!
ये लोग आपकी आंखों के सामने रोज होते हैं टीवी की बहसों में, चैनल कोई भी बदल लो?
आपको इन्हें पहचानने में जरा भी दिमाग लगाने की जरुरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि ये लोग इतनी फर्स्ट्रेशन में हैं कि बहस के दौरान बेसिरपैर की बातों से मुद्दे को व्यक्तिगत बना लेते हैं और ऐसे दलील देते हैं कि एंकर ही नहीं, प्रोड्युसर भी सोचने लगते हैं कि मुद्दा और एजेंडा क्या था, जिस पर वो बहस कर रहे थे?
क्योंकि उपरोक्त पीढ़ी के पत्रकार जब टीवी पर बहस करते हैं तो मुद्दे और एजेंडे कुछ भी हो, सब पीछे छोड़ अपनी पूरी एनर्जी मोदी सरकार के खिलाफ बोलने व उसकी कमियां निकालने में झोंकने लगते हैं!
फर्स्ट्रेशन इसकी नहीं है कि मोदी सरकार अच्छा कर रही है या बुरा कर रही है, बल्कि फर्स्ट्रेशन इस बात का है कि
कांग्रेस के बाद AAP पार्टी भी डूब गई तो उनका भविष्य क्या होगा?
मतलब, पत्रकारिता भी गई और राजनीति में पैर पसारने का मौका भी हाथ न आया यानी ना माया मिली ना राम!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें