मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

शादी क्या लड़की की जिंदगी से ज्यादा जरुरी है?

बेटी की शादी की जल्दबाजी हर मां-बाप को रहती है, जिसको वो अपनी जिम्मेदारी से अधिक मर्यादा से जोड़कर अधिक देखते हैं,  ऐसा क्यों?

काफी पड़ताल के बाद पता चला कि लड़कियों की शादी के दौरान मां-बाप वैयक्तिक व सामाजिक सुख अधिक तलाशते हैं बजाय विवाहित लड़की के सुख के!

मां-बाप लड़की के सुख के साधनों का इंतजाम दहेज और पैसे के जरिए तो कर सकते हैं,  लेकिन लड़की  की सुखों का क्या?

लड़की मां-बाप की बात मानें तो गुणवान, चरित्रवान और शीलवान और इनकार तो कर ही नहीं सकती और करने की कोशिश भी करती है तो हजार मसले हो जाऐंगे कि लड़की बेशर्म है, बददिमाग है और हाथ से निकल गई है।

मुद्दा है कि लड़कियों की शादी में मां-बाप का हस्तक्षेप कितना जरुरी है? और शादी के लिए लड़की की रजामंदी कितनी जरुरी है?

क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि मां-बाप शादी से पहले बेटी की पसंद-नापसंद जानने के अलावा अमीर-गरीब के तराजू भी किनारे रख दें?

कहने का मतलब है कि बेटी की शादी किसी ऐसे होनहार, ईमानदार और मेहनती लड़के के साथ करने की कोशिश  कर सकते हैं, जिसके पास शादी  से पहले बंगला, गाड़ी और बैंक बैलेंस की  शर्तें ना लागू हो?

हर एक मां-बाप शादी के बाद बेटी को सुखी देखना चाहता है,  शायद यही वजह है कि मां-बाप बेटी की शादी के लिए दहेज बेटी के जन्म से ही जुटाना शुरू कर देते हैं, अब ये धन बेटी की मनपसंद लड़के से हुई अरेंज शादी के बाद बेटी-दामाद के भविष्य में भी सहायक ही नहीं अमूल्य साबित हो सकते हैं!

ऐसी शादियों से दो बातें बिल्कुल पक्की हो जाएंगी। पहला, दहेज अपराध शून्यता की ओर अग्रसर हो जाएंगे। दूसरा,  घरेलू हिंसा में तेजी से सुधार संभव होगा, लिख के ले लो!

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