बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

क्या मोदी सरकार से आहत हैं न्यूज चैनल कारोबारी?

शिव ओम गुप्ता
अनायाश ही ऐसा भरोसा होता जा रहा है कि खासकर ब्रॉडकॉस्ट मीडिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के लगातार विस्तार से आहत ही नहीं, छटापटा सी रही है? 

मैं वजहों में नहीं जाते हैं , लेकिन टीवी मीडिया एक और राज्य में बीजेपी की सरकार बनता नहीं देखना चाहती है और केजरीवाल के पक्ष में एक एजेण्डा बनाने में मर-खप रही है, जो कतई मीडिया का काम नहीं है, और अगर है भी तो सबसे निचले दर्जे का काम है!

टीवी की घबड़ाहट और छटपटाहट की कई वजहें यहां गिनाई जा सकती हैं, जिनमें प्रमुख हैं मुद्दों की कमी और  24x7 का समाचार चैनल?

मीडिया धंधे (जगत) से जुड़े कई बड़े तबकों का मानना है कि अगर दिल्ली में भी मोदी नीत बीजेपी की सरकार बन गई तो समाचार चैनलों का सारा मसाला खत्म हो जायेगा अथवा समाचार चैनल्स बिना चीनी की फीकी चाय होकर रह जायेंगी?

शायद इसलिए ज्यादातर टीवी मीडिया सीधे-सीधे दिल्ली में बीजेपी को हारती हुई और केजरीवाल की पार्टी को जीतते हुए बतलाने को मजबूर हैं?

क्यों? सवाल अच्छा है, क्योंकि मोदी के सत्ता में आते ही जिस तरह से मीडियाकर्मियों की आवभगत में कमी आई है, वैसा पहले कभी किसी भी सरकार के कार्यकाल में नहीं हुआ?

दूसरे, मोदी के दिल्ली पधारने के बाद से ही मीडिया की विभिन्न मंत्रालयों की मलाई खाने और मसालेदार खबरें पाने के स्रोत भी सूखते गये है!

क्योंकि मोदी खुद ही नहीं, अपने सभी मंत्रालयों के मंत्रियों को भी मीडिया से एक निश्चित दूरी और पत्रकारों से निकटता कम रखने की सलाह दी है, जिससे टीवी मीडिया का पसंदीदा और प्रिय न्यूज बीट "मसाला न्यूज" बुलेटन से पूर्णतया विलुप्त हो चुका है!

मसालेदार खबरों का टीवी मीडिया में ऐसा नाता है कि जैसे जल बिन मछली,  लेकिन  मोदी के बाद चैनलों  में मसालेदार खबरों का ऐसा टोटा है कि टीवी पत्रकार ही नहीं, टीवी चैनलों के मालिक भी हैरान-"परेशान हैं कि करे तो क्या करें?

ऐसे में केजरीवाल को मोदी से ऊपर बताने और दर्शाने का खेल हो रहा है, और देखा जाये तो यह टीवी मीडिया की मजबूरी भी है!

भई, हर प्रदेश में मोदी नीत बीजेपी की सरकार सत्ता में आ गई तो धंधा तो चौपट हुआ समझो? भाई मसालेदार खबर कैसे मिलेंगे?

क्योंकि ज्यादातर टीवी न्यूज चैनलों का कारोबार ही मलाईदार और मसालेदार खबरों पर चलता है, क्योंकि भारतीय न्यूज चैनल विकास और सकारात्मक खबरों से नहीं चलती हैं, इन्हें हर पल मसालेदार ब्रेकिंग न्यूज चाहिए, जिसे सेन्सेनलाइज करके परोसा जा सके और ज्यादा से ज्यादा टीआरपी हासिल किया जा सके!

इन सब के बीच में पत्रकारिता और नौतिकता तेल लेने जाती है तो जाये तेल लेने, इनकी बला से!

छोटा सा उदाहरण-एबीपी न्यूज चैनल-नील्सन ने 26 जनवरी, 2015 के दिल्ली सर्वे में कुल 70 विधानसभा सीटों पर किए तथाकथित सर्वे के आधार पर बीजेपी को 37-40 सीटों पर जीतने का अनुमान किया और क्रमश: आप और कांग्रेस को दूसरी और तीसरी पार्टी घोषित किया!

लेकिन 2 फरवरी ,2015 को किये दूसरे सर्वे में एबीपी-निल्शन सर्वे में बीजेपी को दूसरे नंबर ढकेल दिया गया और आप पार्टी को पहले नंबर पर ठेल दिया,  एबीपी-निल्शन ने आप पार्टी को 39-42 सीट और बीजेपी को 29 सीटों पर सिमटने का शिगूफा छोड़ दिया!

लेकिन 2 फरवरी ,2015 को किये एबीपी-निल्शन सर्वे में से एक बात दर्शकों से बेहद ही चतुराई से छुपा ली गई,  वो यह कि 2 फरवरी के सर्वे में दिल्ली विधानसभा के केवल 35 सीटों पर सर्वे किये गये और 35 सीटों के आधार पर ही आप पार्टी को 39-42 सीटें दे दी गई और बीजेपी की सीटें घटाकर 29 कर दी गई?

समझिये, एबीपी-निल्शन और ऐसे ही उन तमाम न्यूज चैनलों के सर्वे की ही तरह, जो निजी हितों के लिए दिल्ली की जनता को गुमराह कर रहें हैं और संविधान के चौथे स्तंभ का जनाजा निकाल रहें हैं!

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