7 फरवरी, 2015 यानी आज की एक बात बिल्कुल पल्ले नहीं पड़ी कि दिल्ली विधानसभा का चुनाव आम आदमी पार्टी ही लड़ रही थी या कोई और?
क्योंकि एग्जिट पोल के नतीजों पर तथाकथित वरिष्ठ पत्रकारों का समूह केजरीवाल एंड पार्टी की तुलना में कुछ ज्यादा ही खुमारी में दिखी, जबकि टीवी स्क्रीन की विंडो से झांक रहा कोई भी AAP नेता नतीजों से उतना उछलता-कूदता नहीं दिखा जितना तथाकथित पत्रकार बिरादरी उछल रही थी...
यकीन न हो तो किसी भी नामी-गिरामी पत्रकार की फेसबुक-टि्वटर अकाउंट और टाइम लाइन पर मुंह मार आइये, सबूत वहीं बिखरे पड़े हैं!
क्या भाई, क्या चल रहा है सब? पत्रकारिता तो गिरवी नहीं रख दी आप लोगों ने, गिरेबां झांक लो अपने-अपने? या फिर राजनीति में प्रवेश का इंतजाम हो रहा है, लाइक-आशुतोष, लाइक आशीष खेतान ?
एक बात तो समझ में आती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पत्रकार बिरादरी को वो तवज्जों नहीं देते है, जैसा तवज्जों उन्हें पिछली सरकारों (कांग्रेस सरकार) में पाने की आदत मिली है? हो सकता है इससे पत्रकारों का एक तबका नाराज हो?
क्योंकि यह सार्वजनिक सच है कि दिल्ली में मोदी सरकार बनने के बाद तथाकथित नामी-गिरामी पत्रकारों की इज्जत पर बट्टा लगा है, वो इसलिए कि मोदी पत्रकारों को अधिक मुंह नहीं लगाते हैं और विदेशी दौरों पर भी उन्होंने पत्रकारों को मुफ्त की सैर पर रोक लगा दी है?
कहीं ये तो नहीं, कहीं वो तो नहीं और कहीं वैसा तो नहीं, अरे नहीं कही ऐसा तो नहीं, जिससे पत्रकार पत्रकारिता की साख पर रिवेंज का खेल तो नहीं खेल रहें हैं?
वरना बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना टाइप हमारे वरिष्ठतम पत्रकार क्यों झुम रहे होते? कुछ तो गड़बड़ है, वैसे- कब है १० फरवरी हैं, कब है १० फरवरी?
क्योंकि एग्जिट पोल के नतीजों पर तथाकथित वरिष्ठ पत्रकारों का समूह केजरीवाल एंड पार्टी की तुलना में कुछ ज्यादा ही खुमारी में दिखी, जबकि टीवी स्क्रीन की विंडो से झांक रहा कोई भी AAP नेता नतीजों से उतना उछलता-कूदता नहीं दिखा जितना तथाकथित पत्रकार बिरादरी उछल रही थी...
यकीन न हो तो किसी भी नामी-गिरामी पत्रकार की फेसबुक-टि्वटर अकाउंट और टाइम लाइन पर मुंह मार आइये, सबूत वहीं बिखरे पड़े हैं!
क्या भाई, क्या चल रहा है सब? पत्रकारिता तो गिरवी नहीं रख दी आप लोगों ने, गिरेबां झांक लो अपने-अपने? या फिर राजनीति में प्रवेश का इंतजाम हो रहा है, लाइक-आशुतोष, लाइक आशीष खेतान ?
एक बात तो समझ में आती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पत्रकार बिरादरी को वो तवज्जों नहीं देते है, जैसा तवज्जों उन्हें पिछली सरकारों (कांग्रेस सरकार) में पाने की आदत मिली है? हो सकता है इससे पत्रकारों का एक तबका नाराज हो?
क्योंकि यह सार्वजनिक सच है कि दिल्ली में मोदी सरकार बनने के बाद तथाकथित नामी-गिरामी पत्रकारों की इज्जत पर बट्टा लगा है, वो इसलिए कि मोदी पत्रकारों को अधिक मुंह नहीं लगाते हैं और विदेशी दौरों पर भी उन्होंने पत्रकारों को मुफ्त की सैर पर रोक लगा दी है?
कहीं ये तो नहीं, कहीं वो तो नहीं और कहीं वैसा तो नहीं, अरे नहीं कही ऐसा तो नहीं, जिससे पत्रकार पत्रकारिता की साख पर रिवेंज का खेल तो नहीं खेल रहें हैं?
वरना बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना टाइप हमारे वरिष्ठतम पत्रकार क्यों झुम रहे होते? कुछ तो गड़बड़ है, वैसे- कब है १० फरवरी हैं, कब है १० फरवरी?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें