शुक्रवार, 3 जुलाई 2015

कहानी: एक लड़का था, एक लड़की थी और...?

शिव ओम गुप्ता
यारी...दोस्ती...फ्रेंड्सशिप! एक ऐसा दोस्त...जिससे दिल की अपनी हर बात शेयर कर सकें...और जिससे दिल खोलकर छककर बात कर सकें?
किसे नहीं अच्छे लगते ऐसे दोस्त...और ऐसे दोस्तों की दोस्ती, जिनका साथ और जिनकी यादें एक ऐसे सुनहरे जंगल में हमें ले जाती हैं कि बस... गुम हो जाने को दिल करता है...

पर दोस्ती का भी अपना एक धर्म और जेंडर होता है...? यह पेशे से पत्रकार अक्षय वर्मा को तब पता चला जब वह नीलू से मिला...नीलू यानी अक्षय नई नवेली पड़ोसन?

दिल्ली का सर्वोदय एनक्लेव, जहां अक्षय की नीलू से मुलाकात से हुई। हाल ही में नीलू अक्षय के पड़ोस वाले फ्लैट में शिफ्ट हुईं थी। आकर्षक और मासूम सी नीलू की नई-नई शादी हुई थी शायद?

नीलू और नीलू के पति अमन शादी के तुरंत बाद ही दिल्ली शिफ्ट हो गये थे ? गुड़गांव के किसी प्राईवेट फर्म में सेल्स मैनेजर अमन इंजीनियरिंग ग्रेजुएट नीलू के लिए भी नौकरी तलाश रहे थे?

वह शायद वीकेंड का दिन था जब अक्षय ने नीलू को पहली बार सामने से देखा और नीलू...बिना एक्सप्रेशन अपनी फ्लैट की ओर ऐसे दौड़ गई, जैसे कोई शैतान देख लिया हो? सकपका सा गया था अक्षय...आखिर पड़ोसी थे दोनों, नीलू वेलकम नोट में मुस्करा देती तो क्या चला जाता उसका?

हालांकि खुद अक्षय भी अजनबियों से घुलने-मिलने में समय लेता है, लेकिन दोस्ती-दुश्मनी में कोई जेंडर भेद नहीं रखता।

इस बात को अब 3 माह बीत चुके थे और अक्षय कोशिश करता कि कैसे भी नीलू के सामने न पड़े।

इस दरम्यान एक नहीं, कई बार फ्लैट से निकलते- घुसते वक्त दोनों एक दूसरे से टकराये होंगे, लेकिन अक्षय नीलू से यह पूछने की हिम्मत नहीं जुटा सका कि वह उसे देखकर भागी क्यों थी?

अक्षय और नीलू को पड़ोसी हुए अब 6 महीने बीत चुके थे...पर 6 माह पहले अक्षय को देखकर नीलू का भागना...अक्षय को अब तक अंदर तक सालता रहा था...

फिर एक दिन अचानक सुबह दरवाजे पर दस्तक हुई! कई मामलों में अक्खड़ अक्षय अमूमन दरवाजे पर दस्तक को पसंद नहीं करता?

कई बार खट-खट हुई तो पूछा, " कौन?

नीलू की आवाज थी शायद, "मैं...मैं आपकी पड़ोसन, दरवाजा खोलिए प्लीज ?

अक्षय डरा सकपकाया सा बुदबुदाने लगा..."अब क्या हो गया, मैंने अब क्या कर दिया?"

अक्षय ने दरवाजा खोला तो देखा सामने नीलू ही खड़ी थीं। घबड़ाई सी थी नीलू, जाने क्या बात हुई ?

क्या आप मुझे अपना मोबाइल फोन दे सकते हैं? मेरा फोन खराब हो गया...एक इमरजेंसी कॉल करना है...उनको?

फ्लैट के बाहर पड़ोसन को देख अक्षय वैसे ही परेशान था, चुपचाप अंदर गया, टेबल से फोन उठाया और नीलू के हाथ पर रख दिया।

नीलू ने पति को फोन किया और फोन वापस मिलते ही अक्षय ऐसे गायब हुआ जैसे गधे के सिर से सींग।

फोन करने के बाद नीलू वापस चली गई। न नीलू ने 'थैंक्यू' कहा और न ही अक्षय को 'योर वेलकम' कहने का मौका दिया। बात आई-गई हो गई, और 3 महीने बीत गये।

अगले ही वीकेंड सुबह-सुबह अक्षय घर की रसोई में नाश्ता तैयार कर रहा था कि एक बार फिर दरवाजे पर दस्तक हुई और अक्षय ने दरवाजा खोला तो बड़ी-बड़ी आंखों वाली नीलू सामने खड़ी थी।

दरवाजे के मुहाने पर खड़ी नीलू अक्षय के फ्लैट को ऐसे निहार रहीं थी। लगा जैसे अक्षय ने उनकी कोई चीज चुरा ली है,  और जिसे ढूंढ़ती नीलू फ्लैट पर छापा डालने पहुंची हों? नीलू फ्लैट के अंदर रखी लगभग सभी चीज को कौतुहल से घूरे जा रहीं थी।

अक्षय संभलता और कुछ समझने की कोशिश करता इसके पहले नीलू ने दो सवाल उछाल दिये, " आप...क्या अकेले रहते हैं? आप... क्या करते हैं?

परिचय पूरी होेने के बाद नीलू वापस चली गईं और अक्षय ने सिर धुनते हुए दरवाजा पीटकर फिर बंद कर लिया।

नि:संदेह नीलू ने पूरे 9 महीनों में अक्षय बारे में काफी रिसर्च कर ली थी और अक्षय से किसी भी प्रकार के खतरे की आशंका के प्रति निश्चिंत थीं?

अब तो आते-जाते, उठते-बैठते अक्षय और नीलू से बातचीत शुरु हो गयी और अब नीलू के साथ नीलू के पति अमन भी अक्षय से...और अक्षय को इंटरटेन करने लगे।

अगले दो-चार दिनों में अक्षय की टीवी और फ्रिज आधी नीलू की हो गई। इतना ही नहीं, अक्षय का रुम अब दोनों फ्लैटों का ऑफिशियल ड्रॉइंग रुम में तब्दील हो गया और अक्षय भी अब अपने फ्लैट के दरवाजे बंद करने भूल जाता था, क्योंकि नीलू अब जब चाहे दरवाजा खटखटाने की आदी हो गईं थी।

अक्षय भी खुश था, क्योंकि वीकेंड पर उसका दिन अच्छा गुजरने लगा था... क्योंकि वीकेंड महसूस करने के लिए मल्टीप्लेक्स में अब घटिया फिल्मों का अनावश्यक फस्ट्रेशन जो बंद हो गया था।

हालांकि अमन वीकेंड के दिनों के अलावा अक्षय की कंपनी को कम इंज्वॉय करते थे, क्योंकि नीलू और अक्षय के बीच हंसी-ठहाके और दोनों के बीच की केमेस्ट्री ने अमन को आशंकित और आतंकित कर दिया था।

उसका ही असर था कि अगले दिन फ्रिज से दूध निकालते वक्त न चाहते हुए नीलू ने अक्षय से पूछ ही लिया, "अक्षय, मैं आपको भैय्या बोलूं तो बुरा तो नहीं लगेगा ?

और नीलू के मुंह से अचानक यह सुनते ही अक्षय का मुंह भी खुला का खुला रह गया था।

नीलू के मुंह से एकाएक ऐसे सवाल सुनकर अक्षय बेचैन हो गया, लेकिन खुद को शांत किया और चेहरे पर हल्की मुस्कान के साथ नीलू की ओर देखता रहा ..फिर कौतुहल से पूछा, " क्या हुआ नीलू? अमन ने कुछ कहा क्या?

नीलू मुस्कराई और बोली, "नहीं ऐसा कुछ नहीं है, फिर भी अगर...मतलब, "हम भाई-बहन ही हुये न?"

अक्षय थोड़ी देर के लिए फिर गहरी सोच में पड़ गया? नीलू जाने को हुई तो अक्षय ने नीलू का हाथ पकड़ कर कमरे में ही रोक लिया।

"तुम कहती तो ठीक है नीलू, लेकिन यह आज तुम्हें क्यों सूझा?" तुम्हें हमारे रिश्ते को नाम देना है तो दे दो, मुझे कोई आपत्ति नहीं है!

पर...हम हमारे रिश्ते को दोस्ती भी तो कह सकते हैं, जिसमें भाई-बहन जैसी ही मर्यादा है।"

नीलू अक्षय की बातें सुनकर अवाक थीं, लेकिन वह बेचैन बिल्कुल भी नहीं थी और न ही अक्षय के जबाव से असंतुष्ट ही दिखी।

नीलू कुछ देर चुप रहीं और फिर अक्षय के सिर पर हाथ फेरते हुए मुस्कराकर बोली, " पर मेरा नाम तो तुम्हें मालूम नहीं है?"

अक्षय ने भी बदले में मुस्करा दिया और नीलू फ्रिज से दूध लेकर वापस चली गईं और जाते- जाते अक्षय को अपना नाम भी बता गई। अब अक्षय और नीलू एक दूसरे को नाम से पुकारने लगे, न दीदी और न भैय्या?

नीलू वापस चली गई थी, लेकिन अक्षय हतप्रभ सा दीवार पर लगी एक ऐसी तस्वीर को लगातार घूरता रहा जिसमें कोई आकृति ही नहीं थीं?

अक्षय खुद से बातें करने लगता है.."मुझे अपनी ब्रॉड माइंड सोच पर बड़ा गुमान था...और मुझे भरोसा नहीं हो पा रहा है कि एक पारंपरिक परिवेश में पली-बढ़ी होने के बावजूद नीलू न केवल मुझसे अधिक बहादुर है, बल्कि मुझसे बड़ी सोच और नजरिये वाली महिला है?"

"नीलू से मिलने से पहले मेरा मानना था कि एक महिला की दुनिया सामाजिक सरोकारों वाले रिश्तों तक ही सिमटी रहती है और वह समाज के तथाकथित ठेकेदारों द्वारा खींची गई लक्ष्मण रेखा के बाहर जाने की हिम्मत नहीं दिखा पाती है ?"

"ऐसे उदाहरण बहुत कम मिलते हैं, जहां महिलायें नाम से इतर जहीनी रिश्तों से जुड़ने की कोशिश कर पाती हैं।"

"कहते भी हैं कि एक लड़की और एक लड़का कभी दोस्त नहीं हो सकते?" शायद ऐसे ही जुमलों ने महिला-पुरुष की दोस्ती को कभी मर्यादित परिभाषित नहीं होने दिया होगा?"

"मैं अकेला फ्लैट में रहता हूं और हमारा समाज किसी बैचलर के साथ घुलने- मिलने से झिझकता है। देखा जाये तो सुरक्षा की दृष्टिकोण से अमन की सोच पूरी तरह से पारंपरिक थी और उसमें कुछ गलत नहीं था, शायद मैं भी यही करता?"

....लेकिन फ्लैट शेयर करने के बाद पूरे 9 महीने तक अमन- नीलू और मैंने कितनी गलतफहमियों की दीवार को लांघ कर एक अंजान शहर में एक दूसरे पर भरोसा किया था, जिसमें हम तीनों काफी खुश थे और एक परिवार की तरह रहने भी लगे थे, लेकिन ....

उधर, जैसे ही नीलू पति अमन के पास पहुंची तो अमन जैसे नीलू की ही राह देख रहा था।

क्या हुआ? कुछ बताओ भी...तुमने अक्षय से बात की क्या?

नहीं, मैंने नहीं की...अक्षय से कोई बात? तुम्हें अक्षय से समस्या है तो जाओ खुद क्यों नहीं जाकर बात कर लेते? कहकर नीलू किचन में घुस गई।

देखो नीलू...मेरी बात सुनो? अक्षय से मुझे कोई शिकायत नहीं है, बस तुम दोनों एक दूसरे को भाई-बहन बना लो और अक्षय को राखी बांध दो?

मैं अक्षय को राखी नहीं बांध सकती? अक्षय और मैं एक अच्छे दोस्त हैं और हमारी दोस्ती भाई-बहन जैसी ही है, तुम्हें कोई समस्या है तो छोड़ दो यह फ्लैट...हम कहीं और शिफ्ट हो जाते हैं!

अमन गुस्से से लाल हुआ जा रहा था..."लेकिन जब अक्षय राखी बंधवाने के लिए तैयार है तो तुम्हें क्या प्रॉब्लम है?"

"तुम्हें पता है कि शहर में इतने अच्छे पड़ोसी ढूंढने से भी नहीं मिलेंगे और जहां कहीं अब शिफ्ट करेंगे तो क्या गारंटी है कोई खराब पड़ोसी न मिल जाये?"

"देखो, तुम एक काम करो...गुड़गांव के आसपास कोई फ्लैट देख लो! तुम्हारे ऑफिस के भी नजदीक रहेगा और इस झंझट से भी मुक्ति मिल जायेगी।"

लेकिन नीलू...मेरे समझ नहीं आता कि हमें यह फ्लैट छोड़ने की जरुरत क्या है, जब कोई बात ही नहीं है?

नीलू बिफर पड़ी..." यस! जब कोई बात ही नहीं है तो क्यों जबरदस्ती अक्षय को रिश्तों में बांधने की कोशिश कर रहे हो।"

"तुम्हें अच्छा पड़ोसी भी चाहिए, लेकिन शर्त यह है कि वह तुम्हारी बीवी का ऑफिशियल भाई बने? अमन, रिश्ते नाम के मोहताज नहीं होतें?"

"तुम्हें पता है हमारी खुशी के लिए अक्षय मेरा ऑफिशियल भाई बनने को भी तैयार हो गया...लेकिन मैंने मना कर दिया।"

उधर, नीलू के सवालों ने अक्षय को झकझोड़ दिया था और तीनों को वहीं लाकर खड़ाकर किया था, जहां तीनों 9 महीने पहले खड़े थे।

अक्षय, "हमारा समाज ऐसे रिश्तों को शक की निगाह से क्यों देखता है, जिनमें खून का रिश्ता न हो या जिसमें कोई सामाजिक बंधन न हो। मसलन शादी? और हमेशा की तरह यह सवाल सबसे बड़ा हो जाता है कि एक लड़की और लड़का कभी दोस्त नहीं हो सकते?

दिल्ली में एक ही बिल्डिंग के दो फ्लैट में रहने वाले पडो़सी पति-पत्नी अमन और नीलू बैचलर अक्षय वर्मा से बढ़ती नजदीकियों से एक तरफ तो खुश हैं, लेकिन दूसरी ओर अमन नीलू और अक्षय के रिश्तों के लेकर आशंकित हो उठता हैं और अमन की आशंकाओं के बीच अक्षय के साथ अपने निजी रिश्तों को सुलझाने के लिए नीलू को अक्षय को भैय्या कहकर पुकारती है, लेकिन दोनों ऐसे रिश्तों में बंधने से इनकार कर देते हैं। अब आगे सुनिए...

अमन नीलू के प्रत्याशित व्यवहार से निराश होता है, लेकिन नीलू बिना अपनी बात पर टिकी रहती है कि अब उन्हें अक्षय के पड़ोस में नहीं रहना चाहिए।

नीलू की बातों से अमन गुस्से में आ जाता है और घर के बाहर निकल जाता है। दूसरे दिन अमन और अक्षय एक दूसरे से मिलते जरूर हैं, लेकिन अक्षय से नजरे मिलाने से कतराता हैं अमन।
अमन कुछ कहता कि अक्षय ने पुकार लिया, कैसे हैं भाई साहब?

अमन मुंह घुमा कर वापस अपने फ्लैट की ओर चला गया। फ्लैट में वापस आने के बाद अमन ने नीलू को घूरते हुए कहा, तुम क्यों नहीं जाकर अक्षय को राखी बांध आती हो, हमें फ्लैट छोड़ने की कोई जरूरत नहीं है, छोड़ना है तो अक्षय छोड़ के जाये....आखिर नीयत उसकी बुरी है।
नीलू की ओर इशारा करते हुए अमन ने कहा,

...और तुम भी कुछ कम नहीं हो? मुझे पता है तुम दोनों के बीच दोस्ती की आड़ में कौन सा गुल खिल रहा है।

इतना सुनते ही नीलू का गुस्सा सातवें आसमान पर था....अमन ने नीलू को कभी ऐसे गुस्से में नहीं देखा था...वो कुछ कहता इससे पहले नीलू बेडरूम में चली गई...पीछे-पीछे अमन भी नीलू के पीछे चला गया....

नीलू बस मैं इतना कह रहा हूं कि समाज में एक लड़की और एक लड़की के रिश्तों को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता है। फर्ज करो, कल को कोई हमारा और तुम्हारा रिश्तेदार हमारे घर आया तो क्या तुम अक्षय को कैसे उनके सामने इंट्रोड्यूस करोगी, बोलो?

नीलू कुछ देर तक अमन को एक टक देखती रही और बिना कुछ बोले चुपचाप नींद आने का बहाना करके सोने का नाटक करती है और अमन भी चुपचाप सो जाता है।

रात भर कश्मकश में बीती रात के बाद अगले दिन सुबह ही नीलू अमन से गुड़गांव में शिफ्ट होने की बात कहती है, लेकिन अमन अभी भी अपनी बात पर अड़ा है...जब कोई बात ही नहीं है तो यह फ्लैट छोड़ने की जरूरत क्या है नीलू...

नीलू आपे से बाहर हो जाती है...देखिये मुझे यहां अब नहीं रहना है और जो तुम कहने को कह रहे हो, वो अब मुझसे नहीं होगा...अच्छा होगा कि हम यहां से शिफ्ट हो जायें और अक्षय को भी कुछ कहने की जरूरत नहीं है कि हम यह फ्लैट छोड़ रहें हैं।                                                                                                        
नीलू और अमन में करार हो गया था कि दोनों अगले महीने गुड़गांव शिफ्ट होने तक अक्षय के साथ रिश्ते का सामान्य बना कर रखेंगे और तकरीबन एक महीने सब कुछ ठीक रहा, लेकिन अगले ही महीने अक्षय को बिना कुछ बताये अचानक नीलू और अमन गुड़गांव शिफ्ट हो गये और सैकड़ों अनसुलझे सवाल छोड़ गये ?

अक्षय यह देख-सुनकर हैरान और पशोपेश में था और मन में सवाल कौंध रहा था कि एक पुरुष और एक महिला की दोस्ती कितनी भी मर्यादित क्यों न हो, अग्नि परीक्षा से सिर्फ और सिर्फ एक महिला को ही गुजरना पड़ता है।

अक्षय मन ही मन काफी दुखी हो रहा था कि काश अमन की बात मान लेता और नीलू के हाथ से राखी बंधवा लेता? क्या-क्या सुनना पड़ा होगा नीलू को मेरी वजह से...

नीलू ने गुड़गांव शिफ्ट होने के बाद कभी भी अक्षय से संपर्क नहीं किया और न ही कोई सफाई देने की जरूरत समझी। अक्षय ने भी बातचीत करने की बिल्कुल कोशिश नहीं की।

जो कुछ भी घटित हुआ... सोचकर अक्षय का दिल बैठा जा रहा था और उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसकी दोस्ती में अग्निपरीक्षा सिर्फ नीलू को ही क्यों देनी पड़ी।

अक्षय और नीलू ने सामाजिक खांचे से इतर एक रिश्ता गढ़ने की एक असफल कोशिश की थी, लेकिन एक पवित्र रिश्ते को पतित और मलिन सिर्फ इसलिए होना पड़ा, क्योंकि समाज में उसकी कोई मान्यता नहीं है?

मेरी और नीलू की दोस्ती भाई-बहन के रिश्तों की तरह पवित्र थी, लेकिन समाज ऐसी छोटी मानसिकता से क्या कभी उबर पायेगा? एक लड़का और एक लड़की की दोस्ती को कभी स्वीकार करेगा?

भीतर तक हिला हुआ अक्षय खुद को समझाने की कोशिश करता है, लेकिन यह मानने को मजबूर हो जाता है कि रिश्तों का वजूद शायद एक अदद नाम के बगैर कुछ नहीं है और एक लड़के और एक लड़की की दोस्ती के रिश्ते हमारे समाज के लिए बेमानी होते हैं?

क्योंकि ऐसे रिश्तों का कोई वजूद नहीं है, जहां एक लड़का और लड़की सिर्फ दोस्त हों? और ऐसे रिश्ते भाई-बहन, ब्वॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड के खांचे से इतर भी स्वीकार्य और सम्मानित हो?

शायद इसीलिए... बदलते परिवेश और जीवन शैली में हमारे पुरातन समाजिक ताने-बाने में दरार उभरने लगे हैं, जहां आये दिन अवांछित रिश्तों की खबरें अखबारों की सुर्खियां बनती हैं, क्योंकि हमारे सामाजिक रिश्तों में दोस्ती कम, मजबूरी अधिक होती हैं, जिसमें इंसान छटपटाता है और बस छटपटाता है...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें