सोमवार, 10 अगस्त 2015

प्रशांत भूषण जैसे विक्षिप्त लोगों को सार्वजनिक मंच नहीं मिलना चाहिए?

शिव ओम गुप्ता
प्रशांत भूषण को जिस किसी ने भी उनके चेंबर में घुस कर मारा था, अब ऐसा लगता है कि उसने सही किया था, क्योंकि बंदे की हरकत कहीं से भी देश के लोकतांत्रिक और संवैधानिक दायरे में नहीं दिखती है।

सुना है बंदा अब याकुब मेमन की फांसी पर मीडिया चैनलों पर हुई कवरेज पर सरकार द्वारा दी गई नोटिस को मीडिया थ्रेट घोषित कर रहा है।

लोकतांत्रिक ढांचे के अंतर्गत ही सरकार मीडिया चैनलों से सवाल-जबाव कर रही है। आखिर उक्त मीडिया चैनलों ने राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को धता बताकर याकुब की फांसी पर लगातार कवरेज क्यों किया और मुंबई हमलें में दोषी करार अपराधी को जबरन हीरो बनाने की कोशिश क्यों की?

जबाव तो आने चाहिए न कि आखिर उक्त चैनलों ने देश के सर्वोच्च राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट को नीचा क्यों दिखाते हुए लगातार याकुब मेमन की फांसी पर इंसाफ और नाइंसाफी पर बहस क्यों की? जबकि 21 वर्षों के लंबे ट्रायल के बाद याकूब को फांसी की सजा हुई थी।

क्या उक्त चैनलों ने देश की संवैधानिक और न्यायिक संस्थाओं की अवमानना और अपमान नहीं किया है, जो अंतिम फैसला और दया याचिका रद्द किये जाने के बावजूद टीवी पर जोरों तक बहस करती रहीं कि क्या याकूब को फांसी दी जानी चाहिए अथवा नहीं?

प्रशांत भूषण जैसे लोगों की वजह से देश की एकता अखंडता को पहले भी नुकसान हो सकता था, जब प्रशांत भूषण ने पाकिस्तानी और कश्मीर में बैठे अलगाववादी ताकतों के सुर में सुर मिलाते हुए भारत के अभिन्न अंग कश्मीर में जनमत संग्रह की आवाज उठाते हैं।

प्रशांत भूषण की उक्त मांग देशद्रोह से कम छोटा अपराध नहीं है बावजूद इसके भारत में मौजूद मजबूत लोकतांत्रिक मूल्यों के चलते प्रशांत भूषण पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई, अगर पाकिस्तान होता तो प्रशांत भूषण के साथ क्या होता प्रशांत भूषण अच्छी तरह से जानते हैं ।

भारत सरकार ने लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के तहत उक्त चैनलों को नोटिस देकर जबाव तलब किया है, जिसका जबाव चैनल्स देंगे, लेकिन प्रशांत भूषण को इसमें भी बेवजह हीरो बनना है और मीडिया में बने रहने के लिए बकवास करना है।

जरा सोचिए? जो आदमी कश्मीर में जनमत संग्रह की बात कर सकता है, 257 से अधिक निर्दोष लोगों की मौत की साजिश करने वाले आतंकी याकूब मेमन के प्रति सहानुभूति रखता हो, ऐसा व्यक्ति देश को लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता है? क्या हमें ऐसे किसी की बात सुननी चाहिए?

प्रशांत भूषण की मकसद सिर्फ और सिर्फ हंगामा खड़ा करना और सुर्खियों में बने रहना है, भले ही उनकी हरकतों से देश की अस्मिता और सुरक्षा से समझौता हो जाये।

प्रशांत भूषण जैसे लोगों का मीडिया में ही नहीं, आम जनता में भी विरोध होना चाहिए ताकि ऐसे लोगों को कोई सार्वजनिक मंच न मिल सकें, जहां वे अपनी अराजक और देश विरोधी गतिविधियों को जन्म दे सकें। जय हिंद, जय भारत।

#PrashantBhushan #AAP #Kezriwal #YakubMemon #Referndom #Kashmir #MediaChannel #IBMinistry #Notice

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें