शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

कश्मीर मुद्दा और कांग्रेस: जिसने देश को दांव पर लगा दिया ?

शिव ओम गुप्ता
पाकिस्तान और भारत दोनों की राजनीतिक पार्टियां कश्मीर मुद्दे पर सियासत करके ही अब तक अपनी और अपने परिवार की ही दाल-रोटी का जुगाड़ करती आई हैं, देश पिछले 68 वर्षों से आतंकवाद और सांप्रदायिकता की आंच में जलता आया है।

और जब भी दोनों पड़ोसी देशों के गैर- पारंपरिक राजनीतिक दल कश्मीर मुद्दे पर कोई बहस और बातचीत शुरू करना चाहता है तो उन लोगों को इसमें अपनी सियासी व राजनीतिक हत्या ही नजर आती है और बात को बीच में ही अटका दी जाती है।

याद कीजिये, जिन्होंने पिछले 68 वर्षों से कश्मीर मुद्दे पर अपने देश की भोली-भाली जनता को बहकाकर, उनकी भावनाएं भड़काकर सत्ता में लगातार पहुंचती रहीं हैं और अपनी कई पीढ़ियों के लिए पैसा जोड़ती आ रहीं हैं, वे ऐसे मुद्दे को कैसे हाथ से जाने दे सकती है?

भारतीय राजनीति में शीर्ष पर रही कांग्रेस सत्ता में प्रत्यक्ष और परोक्ष रुप से पिछले 68 वर्षों में से 60 वर्ष तक काबिज रही है, लेकिन कांग्रेस ने कभी भी कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के लिए कोई वास्तविक कदम व पहल नहीं की है, जबकि दो देशों के द्विपक्षीय मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले जाकर मुद्दे को जीवित रखने की अथक कोशिश की है, कारण स्पष्ट है?

कांग्रेस सत्ता में रहती है तो दिखावा-प्रदर्शन के लिए कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान की सत्तासीन राजनीतिक पार्टी से बातचीत का नाटक करती हैं, क्योंकि दोनों देशों की सियासी पार्टियां कश्मीर मुद्दे का हल नहीं होने देना चाहती हैं।

यही कारण है कि पिछले 68 वर्षों में महज कश्मीर मुद्दे को उलझाकर सत्ता की मलाई काट रहीं ऐसी पार्टियों को जब भी लगता है कि मुद्दा हाथ से निकल जायेगा तो मुद्दे को सुलझाने का नाटक रहीं दोनों देशों की पार्टियां पाला बदल लेती हैं और प्रस्तावित बातचीत का विरोध करने लगती है।

हालांकि अभी तक मोदी सरकार लगातार कंस्ट्रक्टिव राजनीति करती दिख रही है। इनमें आजादी के बाद से नासूर की तरह देश को खोखला कर रहे दो प्रमुख मुद्दे "बांग्लादेश से बार्डर समझौता" और "नागालैंड उग्रवादी संगठन" से बातचीत के जरिये मुद्दे को सुलझाना एक बड़ी सफलता है और मोदी सरकार इसी क्रम में कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के प्रयास में दिख रही है।

उल्लेखनीय है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने पश्चिमी, पूर्वी, दक्षिणी और उत्तरी एशियाई देशों का हालिया और आगामी दौरा इसी प्रयास का नतीजा है ताकि पाकिस्तान पर बातचीत और समझौते का दबाव बनाया जा सके।

लेकिन भारतीय राजनीति में पिछले 10 वर्षों तक सत्ता में रहीं कांग्रेस का स्टैंड और स्टंट का इतिहास देखिये और समझिये?

कांग्रेस ने पिछले 10 वर्षों के कार्यकाल में कश्मीर मुद्दे को सुलझाने का दिखावा-प्रदर्शन के अलावा कुछ नहीं किया। कांग्रेस कार्यकाल के  दौरान देश ने पाकिस्तान पोषित आतंकवादियों के 26/11 मुंबई हमले जैसे दर्जनों हमले झेलने, बार्डर पर संघर्ष विराम के लगातार उलंघन झेले और उस दौरान विपक्षी पार्टियों द्वारा लगातार बातचात के विरोध करने के बावजूद पाकिस्तान के साथ बातचीत जारी रखने पर भी कांग्रेस लगातार कायम रही।

यहीं नहीं, कांग्रेस पार्टी ने क्रॉस बॉर्डर आतंकवाद और सरहद पर भारतीय सैनिक हेमराज का सिर काट कर ले जाने के बावजूद न केवल पाकिस्तान में सत्तासीन राजनीतिक पार्टियों से बातचीत जारी रखने का समर्थन किया बल्कि उनको बुलाकर बिरयानी भी खिलाई।

लेकिन अब जब केंद्र में सत्तासीन गैर-कांग्रेसी मोदी सरकार पाकिस्तान में सत्तासीन नवाज सरकार द्वारा पोषित आतंकवाद और संघर्ष विराम उलंघन पर एनएसए लेबल की बातचीत शुरू करने की कोशिश कर रही है तो वहीं कांग्रेस विरोध कर रही है, जो सत्ता में बैठकर बातचीत नहीं रोकने की हिमायत करती रहीं हैं।

देखिये और समझिये? यही है कांग्रेस की कुंठित और सत्तालोलुप राजनीति का सच, जहां सत्ता में वापसी व सत्ता में बने रहने के लिए न केवल वह लगातार देश के साथ गद्दारी करती आ रही है बल्कि देश को परोक्ष रुप से कश्मीर मुद्दे पर उलझाये रख कर भारत को अशांत और अविकसित रखने की भी जिम्मेदार रही है। 

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