ये तो वहीं बात हुई कि मां के पेट में 9 महीने पलने वाले बच्चे को भी मां का दूध पीने के लिए भी ट्रेनिंग देनी होगी?
हर बात की चीर-फाड करने वाले अति उत्साही तथाकथित सेलिब्रेटीज और लेखकों को समझनी चाहिए कि कुछ बातें प्रकृति पर छोड़ दी चाहिए?
क्योंकि आंखें अपनी सुरक्षा के लिए पलकें खुद झपकाती है, उसके लिए कोई ट्रेनिंग नहीं देनी पड़ती है, ठीक ऐसे ही सेक्स है।
सोचिए, आदम और हौवा को किसने सेक्स की ट्रेनिंग दी थी, जिनकी हम सब संतानें हैं? यह तर्क बेहद ही बकवास और बेहूदा है कि सेक्स ज्ञान के लिए पोर्नग्राफी को छूट देना आवश्यक है।
वह दिन लद गये जब हम सोने की चिड़िया कहलाते थे और जब हमने खुजराहो और कामसूत्र जैसी वृहद सोच वाली कलाकृतिया विकसित की थीं और बनाई थीं।
अब वह जमाना नहीं रहा? अभी भी हमारे देश की 30 फीसदी जनता एक वक्त का खाना ठीक से खा पाती है, तो सबसे पहले हम ठीक से रोटी, कपड़ा और मकान तो जुटा लें, सेक्स और सेक्स टॉय की दुकान खोलने की वकालत फिर कर लेंगे।
पोर्नग्राफी को रोटी, कपड़ा और मकान के समकक्ष रखने वाले ऐसे मठाधीशों को मालूम होना चाहिए कि जिस उच्छश्रृखलता की वो बातें कर रहें हैं, वह स्वत: स्फूर्त: आता है।
ऐसी मनोदशा के लिए मानसिक नहीं, बल्कि आर्थिक और सामाजिक तरक्की की आवश्यकता होती हैं और यह बात विदेशी की तात्कालिक खुलेपन और तरक्की को देखकर और जाकर समझने की जरुरत नहीं, बल्कि हमवतन की स्थितियों-परिस्थितियों को समझकर लिखने और बताने की जरुरत है।
#Pornography #SexEducation #Banned
हर बात की चीर-फाड करने वाले अति उत्साही तथाकथित सेलिब्रेटीज और लेखकों को समझनी चाहिए कि कुछ बातें प्रकृति पर छोड़ दी चाहिए?
क्योंकि आंखें अपनी सुरक्षा के लिए पलकें खुद झपकाती है, उसके लिए कोई ट्रेनिंग नहीं देनी पड़ती है, ठीक ऐसे ही सेक्स है।
सोचिए, आदम और हौवा को किसने सेक्स की ट्रेनिंग दी थी, जिनकी हम सब संतानें हैं? यह तर्क बेहद ही बकवास और बेहूदा है कि सेक्स ज्ञान के लिए पोर्नग्राफी को छूट देना आवश्यक है।
वह दिन लद गये जब हम सोने की चिड़िया कहलाते थे और जब हमने खुजराहो और कामसूत्र जैसी वृहद सोच वाली कलाकृतिया विकसित की थीं और बनाई थीं।
अब वह जमाना नहीं रहा? अभी भी हमारे देश की 30 फीसदी जनता एक वक्त का खाना ठीक से खा पाती है, तो सबसे पहले हम ठीक से रोटी, कपड़ा और मकान तो जुटा लें, सेक्स और सेक्स टॉय की दुकान खोलने की वकालत फिर कर लेंगे।
पोर्नग्राफी को रोटी, कपड़ा और मकान के समकक्ष रखने वाले ऐसे मठाधीशों को मालूम होना चाहिए कि जिस उच्छश्रृखलता की वो बातें कर रहें हैं, वह स्वत: स्फूर्त: आता है।
ऐसी मनोदशा के लिए मानसिक नहीं, बल्कि आर्थिक और सामाजिक तरक्की की आवश्यकता होती हैं और यह बात विदेशी की तात्कालिक खुलेपन और तरक्की को देखकर और जाकर समझने की जरुरत नहीं, बल्कि हमवतन की स्थितियों-परिस्थितियों को समझकर लिखने और बताने की जरुरत है।
#Pornography #SexEducation #Banned
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