मंगलवार, 6 अक्तूबर 2015

मीडिया रिपोर्टिंग और नाच-नौटंकी के बीच फर्क खत्म हो गया है?

शिव ओम गुप्ता
वह दिन दूर नहीं जब दंगा और फसाद के लिए मीडियाकर्मी और मीडिया का नाम सर्वोपरि होगा।

दादरी में मरहूम अखलाक की मौत के मामले को न्यूज चैनल्स जिस तरीके से खींच कर रबड़ बना रहें हैं और महज टीआरपी की रेस में बने रहने के लिए रोते-बिलखते परिजनों का फुटेज वोट बैंक और टीआरपी के बीच मरहूम अखलाक कहीं नहीं है?

वोट की राजनीति में मरहूम अखलाक की मौत महज एक राजनीतिक और न्यूज चैनलों का फंसाना बनकर रह गयी है, जहां संवेदना नाम की चीज नहीं दिखती है।

एक तरफ जहां 24 घंटे सियासी रोटियां सेंककर राजनीतिक दल वोट बैंक पुख्ता कर रहें हैं, तो दूसरी तरफ 24 घंटे की ऊल-जुलुल रिपोर्टिंग करके न्यूज चैनल्स टीआरपी रेटिंग में थोड़े उछल मारने में लगे हैं।

लेकिन इस सब के बीच अखलाक और उसके परिवार के सदस्य महज तमाशाई बनके रह गये हैं और पीड़ित परिवार के आसपास रह रहा समाज भी मूक दर्शक की तरह सब तमाशा देख रहा है और समझने की कोशिश कर रहा है कि आखिर हो क्या रहा है?

क्योंकि गलती किसी की भी थी, लेकिन राजनीतिक दल और मीडियाकर्मी वहां रह रहे पूरे समाज को बांट रहें हैं, जिनके साथ ही पीड़ित परिवार को आगे भी रहना है और इस सब से आगे भी बढ़ना है।

#Dadri #Incident #Akhlaq #Politics #VoteBank #Media #TRP  बार -बार लहराया और चलाया जा रहा है, वह बेहद की उत्तेजक और घातक है।

चैनल्स के उक्त घातक प्रयास समुदाय विशेष में गलत संदेश और उत्तेजना फैलाने की कोशिश कर रहें हैं, जिससे देश के अलग-अलग इलाकों में दंगा-फसाद फैल जाये इससे इनकार नहीं जा सकता?

मीडिया वालों कुछ तो होश में आओ और अपनी तुच्छ और कुत्सित मानसिकता को छोड़ कर वास्तविक पत्रकारिता का उदाहरण पेश करो वरना वह दिन दूर नहीं जब मीडियाकर्मी किसी भी घटना-दुर्घटना पर लोगों से बात करने को तरस जायेंगे और जहां जायेंगे जूते और खाकर लौटेंगे! सोचो? अभी भी वक्त है!

#Media #Reporting #TRP #Prestitutes

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