मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

पुरस्कार लौटाकर आकाओं को रिटर्न गिफ्ट दे रहें हैं तथाकथित साहित्यकार?

शिव ओम गुप्ता
उत्तर प्रदेश सरकार ने साहित्य जगत में तथाकथित ख्याति प्राप्त करीब 80 लोगों को रेवड़ी की तरह यश भारती पुरस्कार बांटे थे और जिन्हें पुरस्कार मिले थे उनमें 90 फीसदी साहित्यकार मुस्लिम और यादव थे।
सवाल उठता है अब साहित्यकार क्या मुस्लिमों और यादवों के घर का पता लेकर पैदा होने लगे हैं या और लोग गौ पालक हो गये या हुनर-धंधेबाज हो गये?
सीधी सी बात है अब सरकारें ऐसी साहित्यकारों की फौज को पुरस्कारों के एवज में राजनीतिक इस्तेमाल के लिए गढ़ती है, जिसका रिटर्न जरूरत के समय किया जाता है।
अभी कांग्रेस फसल काट रही है और अगले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में आसन्न हार के बाद सपा सरकार भी फसल काटेगी? अब भाई बिना बीज रोपे फसल थोड़े काटा जा सकता है?
धन्य हो ऐसी राजनीति और ऐसे दरबारी साहित्य और साहित्यकारों की, जिन्होंने पुरस्कार को दुकान और साहित्य को सामान बनाकर बेंच और खरीद रहें हैं।
यह सवाल इसलिए आबरू रखते हैं, क्योंकि जिन्होंने पुरस्कार लौटाएं हैं अथवा पद छोड़ा है, उनका दिल, दिमाग और गुर्दा कांग्रेस के शासनकाल में हुए विकराल नरसंहार और दंगों में नहीं पसीजा था।
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