शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

इस्लाम को आतंकवाद का पर्याय बनने से रोकना होगा?

'अल्लाह हो अकबर' के उद्घोष के साथ फ्रांस, फिर माली और फिर यमन में आतंकी हमले इस्लाम धर्म को काफी नुकसान पहुंचा रहें हैं। डर तो यह है कि इस्लाम धर्म और आतंकवाद को कहीं एक दूसरे के पूरक न देखा जाने लगे, क्योंकि रिर्कॉर्ड में दर्ज इतिहास भी इस्लाम धर्म के अनुयायी यानी मुस्लिम सर्वाधिक आतंकवाद से प्रभावित दिखते हैं।

क्या आतंक और इस्लाम पर्याय बनकर नहीं उभर रहें हैं? अगर ऐसा ही चलता रहा तो दृष्टिगोचर हो रहीं तस्वीरें दृष्टिकोण में कभी भी तब्दील हो सकती हैं और फिर तब इस्लाम मतलब आतंकवाद आम राय भी हो सकती है।

इसलिए जरूरी है कि देश-दुनिया के सभी इस्लाम धर्म के अनुयायी मुस्लिम समुदाय के लोग इस्लाम धर्म की छवि को खराब कर रहें कुछ चंद और मुट्ठी भर लोगों के खिलाफ खड़े हों और इन चरमपंथियों के कामों और मौत के खेल का खुलकर विरोध करें।

ऐसा कहा जाता है कि कुछ कठमुल्ले, कट्टर और धर्मांध लोगों ने इस्लाम धर्म और पवित्र ग्रंथ कुरआन की गलत व्याख्या करके भोले-भाले मुस्लिम युवकों को बहकाकर चरमपंथियों के दल शामिल करते हैं, जिनमें कट्टरपंथी सोच वाले वहाबी विचारधारा वाले लोग सबसे ऊपर हैं।

गौरतलब है इराक और सीरिया में मौत और आतंक का तांडव करने वाले और इस्लामिक स्टेट की स्थापना करने की कोशिश करने वाले ज्यादातर मतलब परस्त मुस्लिम इन्हीं वहाबी विचारधारा से आते हैं।

सबसे महत्वपूर्ण यह है कि मुस्लिम जहां कहीं भी बसते हैं उनको ऐसे आततायी चरमपंथियों के संपर्क से दूर रखना होगा। दूसरा,  मुस्लिम धर्म को मानने वाले के संतानों व बच्चों की परवरिश और शिक्षा व्यवस्था को आधुनिक और हुनरमंद बनाने पर जोर देना होगा, क्योंकि पेट के लिए इंसान सारे जुर्म में भागीदार बनता है और धर्म सबसे बाद में आता है।

इतिहास गवाह है कि संयुक्त राष्ट्र में सूचीबद्ध 193 देशों में से 51 देश इस्लामिक देश हैं, जहां सर्वाधिक रूप से अशिक्षा,  गरीबी और धार्मिक कट्टरता देखी और सुनी जाती है। संयुक्त राष्ट्र को चाहिए कि इन इस्लामिक देशों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए विशेष पाइलेट प्रोजेक्ट चलाये ताकि कट्टरपंथी आने वाली पीढ़ी को धर्म के नाम पर गुमराह न कर पायें।

ऐसे चरमपंथियों के चंगुल से बचाकर ही इस्लाम धर्म को पुनः परिष्कृत किया जा सकता है, वरना मतलब परस्त दहशतगर्त अपनी निजी हितों के लिए भोले-भाले और जरूरतमंद मुस्लिम युवकों को हूरों और जन्नत के ख्वाब दिखाकर आतंकवाद का खूनी खेल खेलते रहेंगे। 

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