सोमवार, 2 नवंबर 2015

और अब असहिष्णुता (Intolerance) की दुकानें भी खुल रहीं है?

शिव ओम गुप्ता
साउथ बेस्ट दिल्ली के कटवारिया सराय में पिछले 5 वर्षों से रह रहा हूं, जहां 100 फीसदी आबादी हिंदुओं की है, लेकिन पूरे गांव में आज कल का नजारा बिल्कुल बदला-बदला नजर आ रहा है।

यकीन मानिए, पिछले पांच वर्ष में इक्का-दुक्का छोड़कर  चिकन-मटन की दुकान नहीं थी, लेकिन पिछले 3 महीने के अंतराल में एक के बाद एक तकरीबन 5 दुकानें मुरादाबादी- हैदराबादी चिकन-मटन बिरयानी खुल गई है।

लेकिन आज गांव का नजारा अलग था, गांववाले कुकुरमुत्तों की तरह अचानक उग आये ऐसे दुकानों के खिलाफ लामबंद हो गये और पुलिस प्रशासन को बीच-बचाव के लिए पहुंचना पड़ा।

क्या है ये? कहीं ये तथाकथित असहिष्णुता (Intolerance) के समर्थन को हवा देने के लिए की जा रही साजिश तो नहीं है? अगर नहीं? तो यह ऐसा अचानक क्यों हो रहा है।

मसलन, जबरन ऐसी दुकानें खुलवाई जा रहीं हैं ताकि हिंदू समुदाय थोपे जा रहें इन दुकानों का स्वाभाविक विरोध करें और असहिष्णुता का मुद्दा और प्रभावी और प्रासंगिक लगने लगे?

क्या यह कांग्रेसी साजिश का हिस्सा नहीं है, जो पिछले कई महीनों से यह सब चुपचाप देख रही है और हिंदू-मुस्लिम को एकता का एक भी संदेश नहीं दिया। और आज इसी मुद्दे को भुनाने कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी राष्ट्रपति से मिलने जा रहीं हैं?

सवाल आप से है और आप खुद तय कीजिये, क्योंकि कांग्रेस ने सत्ता के लिए पहले भी ऐसी हरकतें की है और लोगों की बलि लेकर सत्ता हासिल करने की कोशिश की है।

स्वयं विचार कीजिये और नजर दौड़ाइये कि कहीं आप के इलाके में भी मुरादाबादी- हैदराबादी चिकन-मटन बिरयानी की दुकानों की संख्या तो नहीं बढ़ रही?

अगर हां, तो संयम न खोयें और धैर्य से काम लें, क्योंकि ऐसी साजिशों से राजनीतिकों को उनके मकसद में कामयाब नहीं होने देना है, जो एक-दूसरे को लड़ाकर राजनीतिक फायदा लेती आईं हैं।

कटवारिया सराय की उक्त घटना संकेत है कि कोई तो साजिशन हमें विकास के मुद्दे से इतर ले जाना चाहता है और अब आप पर है कि इनसे आपको कैसे निपटना है।

दुकानें खुल रहीं हैं तो खुलने दीजिये, विरोध मत कीजिये, ऐसी दुकानें जैसे खुली है, वैसे ही बंद हो जायेंगे, क्योंकि इनका मकसद दुकानदारी नहीं, कुछ और है।

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