गुरुवार, 24 सितंबर 2015

राहुल बाबा नाम रोशन करके लौटाना!

कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने बताया है कि राहुल गांधी अमेरिका के कोलोरेडो स्थित एसपिन में एक कांफ्रेंस में भाग लेने के लिए बिहार का चुनाव प्रचार छोड़कर भागे हैं।

यही नहीं, सुरजेवाला ने बताया कि उक्त इंटरनेशनल लेबल के कांफ्रेंस में तमाम देशों के ख्याति प्राप्त लोगों को बुलाया गया है और भारत से उन्होंने पप्पू को विशेष आग्रह करके बुलाया है।

वैसे रंगीनमिजाजी के लिए कुख्यात एसपिन में कैसा कांफ्रेंस होगा, जिसमें राहुल गांधी निमंत्रित हैं? हालांकि भाई लोगों ने काफी जांच पड़ताल के बाद पाया है कि एसपिन में होने वाले किसी भी कांफ्रेंस सूची में पप्पू का नाम नहीं बरामद हो सका है।

अब एसपिन में कोई पप्पूगिरी पर कांफ्रेंस आयोजित हो रहा हो और उसमें अपने पप्पू को आमंत्रित किया गया हो, तो अलग बात है।

वैसे राहुल बाबा ऐसे किसी कांफ्रेंस में आमंत्रित किये गये हैं तो नीतीश और लालू ही नहीं, हम सभी खुश होंगे।

ऐसा लगता है कि राहुल बाबा किसी पप्पूगिरी कांफ्रेंस में भारतीय प्रतिनिधुत्व कर रहें हैं। राहुल बाबा नाम रोशन करके लौटाना, बिहार चुनाव की चिंता मत करना?

#Rahul_Gandhi #Congress #Aspen #Pappu

जर्नलिज्म करूं या पैसे कमाऊं?

शिव ओम गुप्ता
मैंने जर्नलिज्म के लिए ही जर्नलिज्म ज्वाइन किया है, नौकरी करने के लिए जर्नलिज्म में ज्वाइन नहीं किया?

अपनी मनपंसद के काम करने के लिए मुझे 24 घंटे भी कम मालूम पड़ते हैं, लेकिन 8 घंटे ऑफिस में बैठने के लिए कंपनी स्टैंडर्ड की जितनी भी सैलेरी परोसती है उसे बोनस मानता हूं (और फिर रूम रेंट वगैरा भी तो निपटाना होता है)

न हताशा, न प्रत्याशा ? बल्कि खुशी! कि जो करना चाहता हूं वो कर रहा हूं,  पैसा कमाना कभी मेरी शौक में ही शामिल नहीं रहा, क्योंकि पैसे बचपन से कमा रहा हूं, कसम से!

हालांकि तथाकथित बुद्धिजीवी और निहायत ही परजीवी टाइप के लोगों को मेरी बातें हजम नहीं होंगी?

सवाल उठाते हुए कहेंगे, 'भैय्या, करने को तो हम भी जर्नलिज्म करने आए थे, लेकिन जर्निलज्म अब होता कहां है?'

डॉयलाग भी मारेंगे, "तुम्हारे आदर्शों और जर्नलिज्म को गूंथ कर रोटी नहीं बनाई जा सकती"

मत बनाओ रोटी, और क्यूं बनेगा रोटी? रोटी बनानी है तो ढाबे की दुकान खोलो, रोटी ही नहीं, नॉन-बटर नॉन बनाओ, लेकिन जर्नलिज्म को जर्नलिज्म ही रहने दो?

क्योंकि जर्नलिज्म को रोटी बनाने वालों ने ही इसको चोटी से उतार कर बोटी-बोटी किया है और अब आपस में बांटकर खा रहें हैं!

बावजूद इसके मैं अपनी जर्नलिज्म से खुश हूं, क्योंकि मुझे मांगकर नहीं, पाकर खुशी मिलती है...मसलन, मुझे कोई मेरे पसंदीदा काम की एवज में आगे बढ़ने का मौका दे रहा है?

कोई मेरे द्वारा मुझसे कमाई कर रहा है तो कमाए मुझे क्या? क्योंकि अगर कमा रहा तो बांट भी रहा है, किसी को 20 टका मिल रहा है तो वहीं किसी को 20 करोड़ भी दे रहा है...

और हां, जर्नलिज्म करते हुए यदि कोई कंपनी मुझे 20 टका से बढ़ाकर 20 लाख देती है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है, बनिया हूं भाई...पैसे ने किसी को काटा है कभी? हां, नौकरी करते हुए तो करोड़पति भी बनते-बिगड़ते रहते है!

चूंकि मैं सौभाग्य से बनिया हूं इसलिए समझता हूं कि पैसे काम पर खर्चे जाते हैं नौकरी या नौकरी करने वाले पर नहीं?

अब अगर आप जर्नलिज्म करने निकले हैं तो जर्नलिज्म ही करना पड़ेगा? लेकिन अधिकांश जर्नलिज्म की नौकरी करने आए है, जहां जर्नलिज्म छोड़ वो सब करते है, तुर्रा यह कि कहेंगे, 'अब वो जर्नलिज्म कहां? अब जिसके पास पैसा वहीं बड़ा जर्नलिस्ट?'

फिर कहेंगे अब वो मिशन जर्नलिज्म कहां है, अब तो चोरी, बलात्कार और सेक्स की खबरें बिकती हैं?

अब सवाल उठता है कि मिशन जर्नलिज्म क़्या बला है? भई, गुलामी के दौर में अग्रेजों के अन्यायों को उदघाटित करते लेख और न्याय की गुहार की रिपोर्टिंग को ही मिशन जर्नलिज्म कहते है?

तो क्या हमारे देश में सबको न्याय मिल गया, कोई शोषित, वंचित और अश्पृश्य नहीं बचा, जिन पर हो रहे अन्या़यों की रक्षा के लिए हमारे कंप्युटर के की बोर्ड न्याय की गुहार वाली रिपोर्टिंग व आर्टिकल छाप सके?

जर्नलिज्म में पैसा कमाने आए हो तो पैसा कमाओ, बातें मत बनाओ? बड़े आए मिशन जर्नलिज्म का डेफिनेशन बताने वाले?

तो पैसा ही कमाओ भैय्या, वैसे पैसे ही कमाना है तो जर्नलिज्म में क्या कर रहे हो, जाओ कोई और काम करो, जिसमें नैतिकता और मूल्यों का कोई लोचा नहीं है और दबा कर कमाओ?

कम से कम तुम्हारे जैसे लोगों की वजह से जर्नलिस्ट बताते ही पुलिस वाला दो सोटे अधिक तो नहीं मारेगा?

बुधवार, 9 सितंबर 2015

आधुनिकता और आध्यात्मिकता का पर्याय है हिंदू जीवनशैली!

कट्टरता-लोचनियता,  कठिन-सरल और गृहस्थ-संन्यास हिंदू धर्म या हिंदू होने की विलक्षणता है, जो जैसा वहन करना चाहता है अंगीकार कर सकता है, कोई रोक-असंतोष नहीं!

बतौर हिंदू व्यक्ति हमेशा नैसर्गिक आधुनिकता में जीता है वरना अनुष्ठान और क्रिया-कलापों में निहित धर्म लोगों को मजबूर बनाते हैं, लेकिन हिंदू हमेशा स्वतंत्र व स्वछंद रहता है! मसलन, यथा भक्ति जथा शक्ति!

एक बीमार, लाचार और जरुरतमंद व्यक्ति पूजा-पाठ और धर्म से जुड़े अनुष्ठानों में अधिक रमता-रंगता है, लेकिन वह जीवन जनित लाचारगी से उबरते ही सफलता की अभ्यासों में रम जाना चाहता है पर अनुष्ठानों वाले धर्म और उसकी धार्मिक कट्टरता व्यक्ति का मार्ग रोक लेती है!

एक लाचार और अनगढ़ व्यक्ति (किसी भी धर्म को मानने वाला) धार्मिक अनुष्ठानों में, पूजा-पाठ में अधिक रमा व लगा रहता है, लेकिन ज्ञान प्राप्त होने अथवा इच्छित सफलता की ओर बढ़ने पर कर्म प्रधान होने लगता है!

रोजाना दो घंटे कर्मकांडों में बिताने वाले व्यक्ति को अनुष्ठान के लिए दो सेकेंड निकालना भी मुश्किल लगता है, क्योकि सफलता और ज्ञान से व्यक्ति समझ चुका होता है कि कर्म ही पूजा है!

असफल, अज्ञानी और परजीवी व्यक्ति ही अनुष्ठानों में अधिक रमते हैं, क्योंकि ऐसों के ज्ञान चक्षु खुलते नहीं हैं या खोलना नहीं चाहते हैं,?

मंगलवार, 8 सितंबर 2015

नकारेपन पर हो रही फजीहत से फस्ट्रेशन में हैं सोनिया गांधी

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी एक के बाद एक कीर्तिमान रच रही मोदी सरकार के कामों से कितनी फ्रस्ट्रेशन में हैं कि वो छुपा भी नहीं पा रहीं हैं।

बात चाहे ब्लैक मनी पर एसआईटी गठन की हो या बात नगालैंड उग्रवादी समझौते की हो या बांग्लादेश से बार्डर समझौते की हो अथवा 42 वर्ष बाद वन रैंक वन पेंशन को लागू करने पर हो रही मोदी सरकार की वाहवाही और कांग्रेसी के नकारेपन पर हो रही फजीहत की हो।

कोई पार्टी कितनी बेशर्म हो सकती है इसका जिंदा उदाहरण कोई है तो वो है कांग्रेस पार्टी, कोई और पार्टी होता तो चुल्लू भर पानी में डूब मरती, लेकिन कम से कम अपने नकारेपन पर सीनाजोरी नहीं करती?

कहते हैं कि लोग गलतियों से सीखते हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी के लिए यह लागू नहीं होती? नि:संदेह कांग्रेस अगर देश की जनता से अपने नकारेपन और घोटालेपन की हरकतों के लिए माफी मांगती तो जनता माफ कर देती, लेकिन?

हमारे सामने ताजा उदाहरण है कि दिल्ली की जनता ने प्रधानमंत्री बनने की लोभ में दिल्ली छोड़कर भागे केजरीवाल को दिल्ली की जनता ने माफी मांगने के बाद माफ कर दिया और दिल्ली का मुखिया बना दिया, वो अलग बात है कि केजरीवाल की हरकतों से वाकिफ नहीं थी दिल्ली की जनता और अब पछता रही है।

सोमवार, 7 सितंबर 2015

PM Modi increased fascination by ride on Delhi metro!

Prime minister #Narendra_Modi certainly increased his fan following in country & world by his surprised yesterday visit in Delhi metro.

People who were traveling in #Delhi_Metro along with prime minister modi seemingly seen so attached & emotional in released pictures.

Indeed people of our country the first time gone through such experience where #Prime_minister_of_India sitting parallel & next to them.

I'm dame sure whoever viewing this picture of Modi in Delhi metro's surprise visit, they will not only fascinated although attached to gesture of PM Modi too.

If you Like someone doesn't mean you Love him?

Mean, if you think the thing of liking someone are love? Then you are on wrong track? because if some how result turned out becomes sour? you will become violent but loves never be violent by nature?

So don't mix like and love as same emotions and consider both has different taste and in between has big difference as sky to earth.

However, If love exists then husband-wife's fighting story never happen? Understand its simply liking and an human likes always changes like nature but love never change because its belongs to only self liabilities?

So if you think you love someone by liking her/his face and figure think once again? Because liking are not a love and such relationships later turn out to be bad that's you considering today as love?

So be first ready by wealthy & healthy to handle love liability then start liking someone for love/life partner? Because love deals by two way method and likes with always by one way?

Otherwise who the hell in this world who likes her/his own partner after marriage if there are no involvement of money, property & other related liabilities for his/her respective livelihood.

शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

क्या है बलात्कार? आखिर क्यों होते हैं बलात्कार?

कहते हैं कि एक सभ्य समाज का निर्माण एकाएक नहीं, धीरे-धीरे होता है और ऐसे सभ्य समाज की परिकल्पना, जिसमें स्त्री-पुरुष, बड़े-छोटे और अमीर-गरीब को समान शिक्षा और समान अवसर की उपलब्धता सुनिश्चित हो तो समाज से द्वेष, हिंसा और बलात्कार जैसे कोढ़ हद तक मिटाये जा सकते हैं।

आप क्या सोचते हैं? हमारे समाज में स्त्रियों के खिलाफ लगातार बढ़ते बलात्कार का क्या वास्तविक कारण है? लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई, लड़कियों का घर से बाहर निकलना, लड़कियों द्वारा जींस पहनना और मोबाइल फोन रखना अथवा एक लड़की द्वारा हर क्षेत्र में लड़कों को पीछे छोड़ देना भी कारण है?

अगर आप उपरोक्त कारण बलात्कार के कारणों के लिए सही मानते हैं तो आप गलत दिशा में जा रहें है, क्योंकि यह सभी कारण वास्तविक नहीं है बल्कि कृत्रिम हैं और गढ़े गये कारण है? सच्चाई तो कुछ और ही है!

आप जरा सोचिए, दिमाग लगाइये और गुणा-भाग कीजिये, क्योंकि आपके प्रत्येक विचार और दी गई तथ्यात्मक जानकारी यह  लगाने में काफी उपयोगी होगी कि आखिर बलात्कारी मानसिक रोगी होते हैं या शारीरिक?

तो भेजिये अपने विचार कमेंट बॉक्स में अथवा मुझे मेल करें। धन्यवाद!

मेरा मेल आईडी- gupta.shivom@gmail.com

गुरुवार, 3 सितंबर 2015

फ्री वाई फाई और नौकरी के सब्जबाग में दिल्ली अब नहीं फंसेगी?

ऐसा लगता है केजरीवाल ने मूर्ख बनाने का ठेका ले रखा है और उसे लगता है कि दिल्ली के युवा एक बार फिर मूर्ख बन जायेंगे?

सुना है दिल्ली यूनीवर्सिटी छात्र संघ चुनाव में भी आम आदमी पार्टी के चेले चुनाव लड़ रहें हैं और वे केजरीवाल जो दिल्ली सरकार के 6 माह पूरे होने के बाद भी किया एक वादा नहीं पूरा कर सके वे अब छात्रों को मूर्ख बनाने के लिए फिर वादों का पिटारा खोल रहें है।

केजरीवाल को वोट देकर दिल्ली तो पछता ही रही है और अब यूनीवर्सिटी के छात्र चुनाव में भी केजरीवाल ने वादों का रायता फैला दिया है, देखो अभी दिल्ली में कितने मूर्ख बचे हैं, जो केजरीवाल के भरोसे बैठेंगे और उसके चेलों को सिर पर बैठायेंगे?

वैसे केजरीवाल की छात्र नेता जसलीन कौर का एपीसोड ज्यादा पुराना नहीं हुआ है, जब केजरीवाल की तरह रायता फैलाकर उसने टीवी कैमरा का एक्शन ड्रॉमा किया था और लोगों को मूर्ख बनाने की कोशिश की।

लेकिन बाद  में पता चला था कि छेड़ने वाला और छिड़वाने वाली दोनों केजरीवाल के चेले निकले और दोनों हंगामा करके किसे मूर्ख बना रहे थे, दिल्ली को और दिल्ली यूनीवर्सिटी के छात्रों को? किस लिए जी? छात्र संघ चुनाव में वोट पाने के लिए ?

चूंकि जसलीन कौर एपीसोड का रायता उल्टा फैल गया है तो केजरीवाल ने एक बार 1 लाख नौकरी और फ्री वाई फाई का शिगूफा छोड़ दिया है, तो भाई ले लो फ्री नौकरी और वाई फाई और यूनीवर्सिटी में भी केजरीवाल के चेलों को रायता फैलाने की अनुमति दे दो?

#Kezriwal #AAP #Delhi_University #Student_Election

केजरीवाल अब दिल्ली में ऑनलाइन जनमत संग्रह करवायेंगे?

आम आदमी पार्टी अब एक ऑनलाइन ट्रैकर विकसित करने की बात कह रही है, जिससे वह दिल्ली से अपनी 6 माह पुरानी सरकार के बारे में राय जान सके?

केजरीवाल एंड पार्टी को बखूबी पता है कि पार्टी ने पूरे छह महीने में रायता फैलाने के सिवाय कुछ नहीं किया है, इसलिए खुद ही वकील और खुद ही जज बनने की कोशिश कर रही है।

केजरीवाल एंड पार्टी को अपने नाकारा सरकार के कामकाज का अंदाजा तभी लग जाना चाहिए जब पार्टी ने अपनी सरकार के छह माह पूरा होने पर विज्ञापन छपवाये, जिसमें वह कुछ नया नहीं बता पाने में असमर्थ नजर आई दिखी?

दिल्ली मेट्रो में आजकल केजरीवाल सरकार के छह महीने पूरे होने के विज्ञापन चिपकाये हैं, लेकिन विज्ञापन में कुछ नया नहीं है। ऐसा लगता है कि विज्ञापन बनाने वाली कंपनी ने पुराने विज्ञापन में सिर्फ छह माह की सरकार अतिरिक्त रुप से जोड़ दिये हैं, क्योंकि बताने के लिए केजरीवाल के पास सिवाय रायते के कुछ नहीं था।

आपको भरोसा नहीं है तो मेट्रो रेल में सफर कर लीजिये और केजरीवाल एंड पार्टी के नये विज्ञापन को देख लीजिये, यकीन हो जायेगा!

#Kezriwal #AAP #DelhiCM #DirtyPolitics

बुधवार, 2 सितंबर 2015

Stop spreading IS Group Inhuman videos, You are being trapped?

We need to spread awareness towards all web/tv broadcaster of world to restrict or ban such video of inhumanity that uploaded by ISIS militant group.

Its a inhuman activity where innocent people being killed by killers groups and we are supporting them by showing his cruel activity live in our platform?

Please stop this non sense race of broadcast where publicly you guys trading inhumanity for demand and supply meatheads.

Look it yourself guys its trap? And you being trapped? Because by showing the killers group video...you literally supporting his job and spreading violence towards society.

So let's start banning such video and clipping released by IS group...by this activity we can stop such killers to enter in our world.

#ISIS #Inhumanity #Militant_Group #IS #Video 

रविवार, 30 अगस्त 2015

केजरीवाल ट्रेनिंग कैंप से निकले नेता दिल्ली को शेखचिल्ली बनाकर छोड़ेंगे?

वाह रे जसलीन कौर...क्या रायता फैलाया तूने?  दिल्लीवाले पहले ही तमाशाई थे और तूने अपनी नौटंकी से कुछ बचे-कुचे दिलवालों को भी डरा दिया है कि अब वे किसी की मदद को हाथ आगे कर सकें?

ये आम आदमी पार्टी में भर्ती होने के लिए कोई खास कुशलता है क्या? कि पार्टी में एंट्री के लिए नौटंकीबाजी का कौशल होना आवश्यक हुनर है, और लगता खुद केजरीवाल ऐसे होनहारों की पहचान करते होंगे?

वरना पार्टी से जुड़े सब के सब नेता रायता फैलाने में उस्ताद नहीं होते...मुझे तो लगता है फील्ड ट्रेनिंग के लिए खुद केजरीवाल इनकी रायता ट्रेनिंग क्लास भी लेता होगा।

भगवान बचाये...हमें ऐसी पार्टी से और दिल्ली को इस पार्टी के संक्रमण से...वरना आम आदमी पार्टी की ट्रेनिंग कैंप से निकले नेताओं के फैलाये रायतों से एक दिन दिल्ली का नाम भी बदलकर शेखचिल्ली जरूर हो जायेगा?

चोरों-घोटालेबाजों के साथ नीतीश के गठबंधन को वोट नहीं करेगा बिहार

बिहार में आयोजित महागठबंधन रैली को भले स्वाभिमान नाम दिया गया है, लेकिन महागठबंधन में शामिल पार्टियों का इतिहास जानने वाली जनता में इनके प्रति मुश्किल से स्वाभिमान जाग पायेंगे?

चारा घोटाले में सजायाफ्ता लालू यादव की पार्टी की काला इतिहास, कोलगेट, रेलगेट, कॉमवेल्थ, 2जी और जीजा जी घोटाले वाली कांग्रेस और बिहार को विकास के रास्ते से उतार चोरों और घोटालेबाजों का साथ देने वाली पार्टी जनता दल यू को बिहार की जनता सिरमाथे निश्चित नहीं बिठायेगी।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि बिहार विधानसभा से आगामी चुनाव में यह महागठबंधन (महाठगबंधन) बुरी तरह हार का सामना करेगी, क्योंकि जिस तरह से ईमानदारी छवि वाले मोदी के खिलाफ सारे कुख्यात पार्टियां एकजुट हुईं है उससे जनता में मोदी के प्रति भरोसे को और बढ़ा दिया है।

बिहार की जनता देख रही है कि कैसे बीजेपी को केवल हराने के लिए चोरी और घोटालों को दोषी और आरोपी आपस में किस तरह हाथ से मिला रहें हैं।

नीतीश कुमार अपनी पुरानी साख, विकासवादी शक्ल और सुशासनवादी छवि के साथ अगर अकेले आगामी विधानसभा चुनाव लड़ते तो शायद अपनी और पार्टी की इज्जत बचा लेते, लेकिन चोरो और घोटालेबाजों को अपने साथ बैठा लेने वाले नीतीश कुमार अब कांग्रेस और आरजेडी की मौत ही मरते दिखाई दे रहें हैं।

#Nitish_Kumar #JDU #Lalu_Yadav #RJD #Congress #SoniaGandhi #MahaGathbandhan

बिहार को डसने के लिए सांप खुद दूध मांगने निकल पड़े हैं!

सत्ता हासिल करने या सत्ता में भागीदारी पाने के लिए राजनीतिक कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाते है।

मतलब, कुत्ते- बिल्ली की दोस्ती, सांप-नेवले की दोस्ती और रात और दिन की दोस्ती असंभव है, लेकिन राजनीति में सब संभव है।

यही नहीं, राजनीति में दो धुर विरोधी मतलब के लिए न केवल एक दूसरे के गले मिल लेते हैं बल्कि गली के कुत्ते की तरह कभी लड़ रहे नेता एकदूसरे के कसीदे काढ़ रहें हैं।

राजनीति में रसातल तो बहुत आये, लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव में कई परस्पर धुर विरोधी दल कांग्रेस, जदयू, राजद गले में हाथ डाले ऐसे खड़े हैं जैसे डसने के लिए सांप खुद बोलकर दूध पिलाने की अपील कर रहा है।
;-)  ;-)  ;-)

गुरुवार, 27 अगस्त 2015

दिल्ली पब्लिक ट्रांसपोर्ट में घुसते ही लोग भूल जाते हैं कि वो इंसान भी हैं?

राजधानी दिल्ली में ट्रैफिक की समस्या को सुलझाने के लिए कार चालकों को दोषी ठहराया जाता है, लेकिन मेट्रो रेल के बावजूद दिल्ली का पब्लिक ट्रांसपोर्ट मसलन बस, ऑटो, टैक्सी सेवाएं बद से बदतर हालत की हैं।

कई बुद्धिजीवियों की सलाह के बाद बढ़ती ट्रैफिक में कमी लाने के लिए कार पूलिंग की बाते की जाने लगी, लेकिन डीटीसी बसों की फ्रीक्वेंट सर्विस नहीं होने और अब मेट्रो फीडर बसों का ब्लू लाइन बसों में तब्दील हो जाने से दिल्ली की पब्लिक मजबूरी न हो तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट लेना पसंद नहीं करती है।

ब्लू लाइन बस सर्विस याद है न? जिसमें पब्लिक ट्रांसपोर्ट से चलने वाले बसों में भेड़-बकरी की तरह ठूंसे जाते थे, लेकिन अब उसकी कमी मेट्रो फीडर पूरी कर रही है।

किसकी हिम्मत होगी जो पब्लिक ट्रांसपोर्ट को यूज करेगा? इसलिए न चाहते हुए लोग मजबूरी में पर्सनल कारें यूज करते है।

भले ही कार लेकर चलने से दिल्लीवाले खुद और दूसरों को जाम में घंटों फंसा कर रखते है, लेकिन वे कम से कम खुद को इंसान तो महसूस करते हैं वरना दिल्ली पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सवार होते ही लोग भूल जाते हैं कि वे इंसान भी हैं।

आम आदमी की सरकार के नाम से दिल्ली के मुख्यमंत्री बन बैठे केजरीवाल को राजनीति करने से फुरसत मिले तो वो कुछ करें? उन्हें तो बस प्रधानमंत्री बनना है इसलिए गुजरात में आरक्षण का आग फैलाने के बाद राजनीति करने बिहार घूम रहें हैं।

#Delhi #Public_Transport #AAP #Kezriwal #Metro_Feeder_Bus #Traffic_Problem

आत्मनिर्भरता और आजादी के सीधा कनेक्शन को कब समझेंगी लड़कियां?

शिव ओम गुप्ता
लड़कियां न ही अबला रहेंगी और न ही लड़कों से कमजोर रहेंगी, जिस दिन लड़कियां आत्मनिर्भर रहना सीख लेंगी?

क्योंकि एक महिला से जुड़े तमाम अपराध मसलन दहेज, शोषण और दोयम रवैये कड़ी उसकी दूसरे पर निर्भरता से जुड़ी हुई है।

चाहे वह निर्भरता पिता पर हो, जो दहेज का जन्मदाता है, चाहे निर्भरता पति पर हो, जो तमाम शोषण का जन्मदाता है, चाहे निर्भरता परिवारिक हो, जो महिला को आर्थिक और सामाजिक मोर्चे पर दोयम बनाती है।

चूंकि महिला आत्मनिर्भर नहीं है, कमाती नहीं है, परिवार के खर्च में उसकी समान सहभागिता नहीं है, तो फैसलों पर उसकी राय भी मायने रखी जाती हैं और न ही सुनी जाती है।

कहने का मतलब है कि महिला की सक्षमता और उसकी आजादी का कनेक्शन आत्मनिर्भरता से सीधा जुड़ा हुआ है, जो इस अर्थ कनेक्शन के अर्थ को समझ गयी है, वो अपनी ही नहीं, दूसरों की जिंदगी को भी संवार रही है।

लेकिन समस्या यह है कि महिलाएं आज समान अधिकार और समान व्यवहार की बात तो करती हैं, लेकिन वे इसके लिए जरुरी आत्मनिर्भरता के अर्थ कनेक्शन को समझने की कोशिश नहीं करती हैं।

प्रियदर्शन की फिल्म खट्टा-मीठा का एक डॉयलाग है, जिसमें कुलभूषण खरबंदा अपने नकारे बेटे से कहते हैं,  "जिनकी जेबों में पैसे न हों, वे अधिकारों, आदर्शों, नैतिकता की बातें न करें"

आत्मनिर्भरता और सम्मान का कनेक्शन सिर्फ लड़कियों के अधिकारों और उनकी समानता से नहीं जुड़ा है, यही बात लड़कों पर लागू होता है।

यानी पारिवारिक मसलों पर बोलने का हक उन्हीं लड़कों को मिलता है, जो आत्मनिर्भर हैं या पारिवारिक खर्च में योगदान देते हैं और जो लड़के परिवार पर निर्भर होते हैं, उनको भी अधिकारों की लड़ाई हारनी पड़ती है।

#Women_Right #Independency #Money_Matter #Equality #Morality

बुधवार, 26 अगस्त 2015

किसी शातिर का महज मोहरा है कच्चा नींबू हार्दिक पटेल?

गुजरात में पटेल समुदाय के आरक्षण आंदोलन को हवा देने वाला हार्दिक पटेल कच्चा नींबू है। जी न्यूज के रिपोर्टर अमित प्रकाश ने सवाल किया कि धरना देने से पहले प्रशासन अनुमति लेनी पड़ती है, क्या आपने अनुमति ली थी?

हार्दिक पटेल, "कोई आतंकवादी हमला करने से पहले अनुमति लेता है क्या? वो तो बस हमला कर देता है? "

मतलब? हार्दिक पटेल खुद को और अपने जुटाये भीड़ को आतंकवादी कार्रवाई करार दे रहें हैं, जिसके लिए अनुमति की जरुरी नहीं है।

यानी जिसको लोकतांत्रिक और आतंकी कार्रवाई का अंतर नहीं मालूम है, वह क्या किसी का नेतृत्व कर सकता है।

नि: संदेह 21-22 वर्षीय हार्दिक पटेल एक कच्चा नींबू है और हार्दिक को चेहरा और मोहरा बनाकर कोई छिपकर शतरंज का खेल खेलता आ रहा है और हम तमाशा देख रहें हैं।
#Patel #Protest #Hardik_Patel #Reservation 

बिहार की राजनीति से नीतीश का राजनीतिक पतन शुरू हो गया है!

शिव ओम गुप्ता
नीतीश कुमार की राजनीतिक पतन का दौर चल रहा है और तेजी से नीतीश पतन की ओर बढ़ रहें हैं।

नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री बनने की आकांक्षा में एनडीए से गठबंधन तोड़ा और लोकसभा चुनाव के बाद फटेहाल हो गये।

चुनाव बाद खिसियाये नीतीश ने बिहार की जनता को भगवान भरोसे छोड़ बिहार की गद्दी छोड़ कर इसलिए अलग हो गये ताकि प्रधानमंत्री बिहार दौरे पर कभी आयें तो अगवानी न करने पड़े,

नीतीश का दांव फिर उल्टा पड़ गया और फिर माफी मांगते हुए मुख्यमंत्री पद संभालना पड़ा और जिसके लिए मुख्यमंत्री का पद त्यागा था, झक मारकर प्रधानमंत्री की अगवानी करनी ही पड़ी।

नीतीश का पतन का संकेत नीतीश और लालू गठबंधन भी दे रहा है। लालू प्रायोजित जंगलराज और भ्रष्टाचार के खिलाफ बिहार की जनता से वोट लेकर मुख्यमंत्री बने नीतीश अब लालू यादव के साथ एक बार फिर बिहार में जंगलराज की वापसी करवाना चाहते हैं।

कहते हैं कि जब इंसान का बुरा वक्त आता है ईश्वर उसकी बुद्धि पहले छीन लेते हैं। कुछ ऐसा ही अब नीतीश कुमार के साथ हो रहा है।

सुना है आज दिल्ली में एक प्रेस कांफ्रेंस में आयोजित में नीतीश कुमार ने मोदी सरकार द्वारा घोषित 1.25 लाख करोड़ रुपये के विशेष पैकेज को हवाई करार दिया है।

अब नीतीश का पतन तो कोई रोक नहीं सकता है, क्योंकि बिहार अब जंगलराज की ओर मुड़ने के लिए लालू+नीतीश के महाठगबंधन को वोट देने से तो रहा, लेकिन विकास के लिए केंद्र सरकार द्वारा घोषित ऐतिहासिक पैकेज पर राजनीतिक नुक्ताचीनी कर रहे नीतीश को सबक भी सिखायेगी।

तो नीतीश जी बार-बार बिहार की बात बिहार में कहने के लिए दिल्ली आने की जहमत मत उठाइये, क्योंकि बिहार की जनता आगामी विधानसभा चुनाव में आपको परमानेंट बिहार से निकालकर दिल्ली फेंकने जा रही है और राज्यसभा सीट संसद में धुनी रमाते रहियेगा?

#Nitish_Kumar #Bihar_Poll #Lalu_Yadav #RJD_JDU #Special_Package #Modi 

मंगलवार, 25 अगस्त 2015

हार्दिक पटेल में केजरीवाल के अराजकता का विस्तार दिखता है?

शिव ओम गुप्ता
लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बात रखना और प्रदर्शन करना लोकतांत्रिक जड़ों को मजबूत करती हैं लेकिन जब से धरना-प्रदर्शन की राजनीति करके केजरीवाल एंड पार्टी ने दिल्ली में सरकार बना ली है लोकतंत्र रसातल की ओर बढ़ चला है।

इसका ताजा उदाहरण आजकल गुजरात में देखने को मिल रहा है, जहां एक नौजवान कांधे पर बंदूक रखकर लोकतांत्रिक लड़ाई लड़ने की पहचान बना रहा है और भाई लोग और मीडिया भी चुपचाप तमाशाई बने हुए हैं ।
बंदूकधारी हार्दिक पटेल

सीरिया और इराक में आईएस आतंकियों का मनोबल ऐसे ही नहीं बढ़ा होगा जब वे बंदूक से न्याय दिलाने के लिए उठ खड़े हुये और देखते ही देखते पहले उन्होंने उन्हीं को खत्म किया, जो चुपचाप तमाशा देख रहे थे।

हार्दिक पटेल नामक उक्त बंदूकधारी युवक को जिस तरह महिमा मंडित करके से पेश किया जा रहा है, वह बिलकुल ठीक नहीं है। लोकतंत्र में बंदूक के लिए कोई जगह नहीं है, लेकिन जबरन हार्दिक पटेल को फोटो सहित प्रचारित किया जाना बेहद ही खतरनाक स्थिति को जन्म दे सकता है।

केजरीवाल एंड पार्टी का साइड इफैक्ट हम देख रहें हैं, जिसने अपने वैयक्तिक और छुपे राजनीतिक कैरियर के लिए लोकतांत्रिक टोटकों व तरीकों के जरिये लोगों को बखूबी मूर्ख बनाया और मुख्यमंत्री बन बैठा, लेकिन अब केजरीवाल की खाल में छुपे भेड़िये एक -एक कर बाहर आ रहें है और वोट देकर ठगे जा चुके लोगों की आंखें अब खुली ही नहीं रहीं हैं बल्कि फट जा रहीं हैं।

मैंने तो यहां तक सुना है कि यह बंदूकधारी हार्दिक पटेल केजरीवाल समर्थक भी है। इसने लोकसभा चुनाव के दौरान केजरीवाल को समर्थन भी दिया था? सोचिये केजरीवाल और केजरीवाल समर्थित युवक की बंदूक वाली तस्वीर के बारे में और कल्पना कीजिये?

केजरीवाल तो कथित रुप से खुद को अनाचारी अराजक घोषित पहले ही कर चुका है और लगता है बंदूकधारी हार्दिक पटेल केजरीवाल की अराजकता का विस्तार है। अब तो भगवान ही बचाये?

#Kezriwal #AAP #Hardik_Patel #Reservation #Protest #GunPoint #Gujarat

शनिवार, 22 अगस्त 2015

थैंक्यू भैय्या की जगह, सिर्फ थैक्यू ही बोल देती...तो क्या चला जाता?

रोजाना मैट्रो रेल से ही आवास से ऑफिस की दूरी तय करता हूं, लेकिन मेट्रो स्टेशन पहुंचने के लिए अक्सर ऑटो विद शेयरिंग (इकोनॉमी, यू नो) प्रीफर करता हूं!

पर आज ऑटो विद शेयरिंग में मुझे लेकर दो ही वंदे ही थे, हमें एक और वंदे की तलाश थी पर १० मिनट इंतजार के बाद भी कोई नहीं आया और ऑफिस पहुंचने की जल्दी में हम थोड़ा झेलने को राजी हो गए और जैसे ही ऑटो वाले से कहा, 'चलो भैय्या' तभी जोर की एक लड़की की आवाज गूंजी, भैय्या हौज खास मेट्रो जाएंगे क्या?
ऑटो वाले ने बोला, हां...आ जाइए!

लड़की १८-२१ की रही होगी,  उसने एक सरसरी नजर मुझपर और मेरे सहयात्री पर दौड़ाई और न कहने वाली थी मैं बोल पड़ा (इकोनॉमी, यू नो) आप हौज खास मेट्रो जाएंगी, डोन्ट वरी यू कैन सिट हीअर...

लड़की ने अनमने ढंग से फिर हमें घूरा और मानों हमें और हमारी औकात को तौल लिया हो और मेरे बगल वाली सीट पर धंस गई (जल्दी में थी शायद)

मैंने ऑटो वाले से कहा, चलो भैय्या...और ऑटो वाला गर्र..र्र..र्र..र्र..से आगे बढ़ लिया....हम ऑल मोस्ट पहुंचने ही वाले थे कि आईआईटी गेट के पास ऑटो गर्र गर्र करके बंद हो गई, मेट्रो स्टेशन वहां से वॉकिंग डिस्टेंस पर है,  हम निश्चिंत थे पर वो लड़की परेशान हो गई, मेरी तरफ देखते हुए, अब...?

मैंने उसकी ओर देखा (बेहद खूबसूरत आंखें) और हड़बड़ाते हुए बोला...अब, कुछ नहीं...पैसे देते हैं ऑटो वाले को और निकलते हैं...पास में ही है हौज खास मेट्रो स्टेशन...वाकिंग डिस्टेंस? ऑटो वाले ने भी विश्वास दिलाया, हां...मैडम, ओवरब्रिज पार करते ही स्टेशन है!

लड़की ने पैसे दिए और घबड़ाते -सकुचाते हुए हमारे साथ चल पड़ी,  उसके भारी बैग हमें अपने कंधों पर उठाने पड़े (घर जा रही होगी, शायद)

मेट्रो स्टेशन दो कदम दूरी पर ही था, लेकिन भारी बैग ने हमारी कचूमड़़ निकाल दी थी...खैर जैसे- तैसे मेट्रो में दाखिल हुए।

हौज खास से राजीव चौक स्टेशन के बीच हम दोनों के बीच काफी बातें हुई औऱ हमने एकदूसरे के नाम भी शेयर किए। लेकिन न मैंने नंबर मांगे और न उसने दिए।

लेकिन राजीव चौक स्टेशन पर उतरते वक्त विदाई स्वरूप उसने जो कहे उससे दिल जल गया, उसने जाते हुआ कहा, थैक्यू भैय्या....आई थॉट, व्हाट? व्हाई भैय्या, सी नोज माय नेम...थैक्यू शिव ही बोल देती...

हम दोस्त भी तो हो सकते थे, क्यों कोई लड़की किसी लड़के को दोस्त नहीं बना पाती (तब जब वह 18 वर्ष की हो, युवा हो)..कौन सा हम मिलने वाले थे, महज इंसानियत के नाते या कह लो पैसे बचाने के लिए हमने मदद की कोशिश की।

देखा जाए तो मैंने एक भाई की तरह उसका ख्याल रखा, एक दोस्त की तरह उसके बोझ उठाए और अभिभावक की तरह मार्गदर्शन भी किया, तो रिश्तों में बांध देना जरुरी है, इंसानियत ही मान लेती!

और...बदले में कुछ भी नहीं, कभी नही..कम से कम मैं नहीं चाहता, न कभी चाहुंगा कभी भी किसी से भी...क्योंकि मुझे तो आजकल नैसर्गिक रिश्ते (भाई-बहन, चाचा-ताऊ) भी बोझ लगते है...तो फिर कृत्रिम रिश्ते कितने दिन चलेंगे..

मैं आज तक नहीं समझ पाता हूं कि आखिर क्यों, कोई, किसी को, किसी अनचाहे रिश्तों में बांधना चाहता है...जबकि इंसान वैयक्तिक रिश्तों को निभाने में असमर्थ है।

मैं तो किसी से दूसरी मुलाकात में तब तक बात नहीं करता, जब तक वो खुद पहल न करे, चाहे वो लड़की हो अथवा लड़का?

मतलब, न भेद न भाव?  न भेद करता हूं न भाव देता हूं, सिंपल!

शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

कश्मीर मुद्दा और कांग्रेस: जिसने देश को दांव पर लगा दिया ?

शिव ओम गुप्ता
पाकिस्तान और भारत दोनों की राजनीतिक पार्टियां कश्मीर मुद्दे पर सियासत करके ही अब तक अपनी और अपने परिवार की ही दाल-रोटी का जुगाड़ करती आई हैं, देश पिछले 68 वर्षों से आतंकवाद और सांप्रदायिकता की आंच में जलता आया है।

और जब भी दोनों पड़ोसी देशों के गैर- पारंपरिक राजनीतिक दल कश्मीर मुद्दे पर कोई बहस और बातचीत शुरू करना चाहता है तो उन लोगों को इसमें अपनी सियासी व राजनीतिक हत्या ही नजर आती है और बात को बीच में ही अटका दी जाती है।

याद कीजिये, जिन्होंने पिछले 68 वर्षों से कश्मीर मुद्दे पर अपने देश की भोली-भाली जनता को बहकाकर, उनकी भावनाएं भड़काकर सत्ता में लगातार पहुंचती रहीं हैं और अपनी कई पीढ़ियों के लिए पैसा जोड़ती आ रहीं हैं, वे ऐसे मुद्दे को कैसे हाथ से जाने दे सकती है?

भारतीय राजनीति में शीर्ष पर रही कांग्रेस सत्ता में प्रत्यक्ष और परोक्ष रुप से पिछले 68 वर्षों में से 60 वर्ष तक काबिज रही है, लेकिन कांग्रेस ने कभी भी कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के लिए कोई वास्तविक कदम व पहल नहीं की है, जबकि दो देशों के द्विपक्षीय मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले जाकर मुद्दे को जीवित रखने की अथक कोशिश की है, कारण स्पष्ट है?

कांग्रेस सत्ता में रहती है तो दिखावा-प्रदर्शन के लिए कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान की सत्तासीन राजनीतिक पार्टी से बातचीत का नाटक करती हैं, क्योंकि दोनों देशों की सियासी पार्टियां कश्मीर मुद्दे का हल नहीं होने देना चाहती हैं।

यही कारण है कि पिछले 68 वर्षों में महज कश्मीर मुद्दे को उलझाकर सत्ता की मलाई काट रहीं ऐसी पार्टियों को जब भी लगता है कि मुद्दा हाथ से निकल जायेगा तो मुद्दे को सुलझाने का नाटक रहीं दोनों देशों की पार्टियां पाला बदल लेती हैं और प्रस्तावित बातचीत का विरोध करने लगती है।

हालांकि अभी तक मोदी सरकार लगातार कंस्ट्रक्टिव राजनीति करती दिख रही है। इनमें आजादी के बाद से नासूर की तरह देश को खोखला कर रहे दो प्रमुख मुद्दे "बांग्लादेश से बार्डर समझौता" और "नागालैंड उग्रवादी संगठन" से बातचीत के जरिये मुद्दे को सुलझाना एक बड़ी सफलता है और मोदी सरकार इसी क्रम में कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के प्रयास में दिख रही है।

उल्लेखनीय है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने पश्चिमी, पूर्वी, दक्षिणी और उत्तरी एशियाई देशों का हालिया और आगामी दौरा इसी प्रयास का नतीजा है ताकि पाकिस्तान पर बातचीत और समझौते का दबाव बनाया जा सके।

लेकिन भारतीय राजनीति में पिछले 10 वर्षों तक सत्ता में रहीं कांग्रेस का स्टैंड और स्टंट का इतिहास देखिये और समझिये?

कांग्रेस ने पिछले 10 वर्षों के कार्यकाल में कश्मीर मुद्दे को सुलझाने का दिखावा-प्रदर्शन के अलावा कुछ नहीं किया। कांग्रेस कार्यकाल के  दौरान देश ने पाकिस्तान पोषित आतंकवादियों के 26/11 मुंबई हमले जैसे दर्जनों हमले झेलने, बार्डर पर संघर्ष विराम के लगातार उलंघन झेले और उस दौरान विपक्षी पार्टियों द्वारा लगातार बातचात के विरोध करने के बावजूद पाकिस्तान के साथ बातचीत जारी रखने पर भी कांग्रेस लगातार कायम रही।

यहीं नहीं, कांग्रेस पार्टी ने क्रॉस बॉर्डर आतंकवाद और सरहद पर भारतीय सैनिक हेमराज का सिर काट कर ले जाने के बावजूद न केवल पाकिस्तान में सत्तासीन राजनीतिक पार्टियों से बातचीत जारी रखने का समर्थन किया बल्कि उनको बुलाकर बिरयानी भी खिलाई।

लेकिन अब जब केंद्र में सत्तासीन गैर-कांग्रेसी मोदी सरकार पाकिस्तान में सत्तासीन नवाज सरकार द्वारा पोषित आतंकवाद और संघर्ष विराम उलंघन पर एनएसए लेबल की बातचीत शुरू करने की कोशिश कर रही है तो वहीं कांग्रेस विरोध कर रही है, जो सत्ता में बैठकर बातचीत नहीं रोकने की हिमायत करती रहीं हैं।

देखिये और समझिये? यही है कांग्रेस की कुंठित और सत्तालोलुप राजनीति का सच, जहां सत्ता में वापसी व सत्ता में बने रहने के लिए न केवल वह लगातार देश के साथ गद्दारी करती आ रही है बल्कि देश को परोक्ष रुप से कश्मीर मुद्दे पर उलझाये रख कर भारत को अशांत और अविकसित रखने की भी जिम्मेदार रही है।