सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

मोदी के विकासवादी मुद्दे को पीछे ढकलेने के लिए हो रहें प्रायोजित कार्यक्रम!

शिव ओम गुप्ता
देश में आजकल कांग्रेस प्रायोजित स्पांसर कार्यक्रम खूब चल रह रहें है, तो देखिये और भूल जाइये। क्योंकि न्यूज चैनलों पर दिखाये जा रहे ये स्पांसर प्रोग्राम वास्तविक नहीं, आभासी हैं, जिसके पीछे के मकसद कुछ और है।

विकास की बात को पीछे करने के लिए कांग्रेस जैसे फस्ट्रेटेड राजनीतिक दल गौमांस, असहिष्णुता और भगवाकरण की झूठी राजनीति कर रहीं है, जिन्हें बिकी हुई चैनल्स हवा दे रहें हैं, तो ऐसे जैसे कार्यक्रमों को ऐसे झेले जैसे अपनी मनपसंद प्रोग्राम देखने के लिए विज्ञापन झेलना पड़ता है।

और ज्यादा अच्छा होगा कि तथाकथित क्रांतिकारी चैनलों से कुछ दिनों के लिए तौबा कर लें, क्योंकि प्रायोजित कार्यक्रम तब तक ही चलते हैं जब तक टीआरपी है, तो मनोरंजन चैनल की ओर ट्यून कीजिये और इनटोलरेंस की आभासी की दुकान बंद करने में मदद कीजिये!
#Intolrance #Congress #Hindu #Modi

रविवार, 18 अक्तूबर 2015

असहिष्णुता और धर्मनिरपेक्षता की आड़ में स्वार्थ प्रेरित रायता फैला रहें हैं साहित्यकार!

शिव ओम गुप्ता
सहिष्णुता ही हर हिंदू और हिंदुस्तानी की पहचान है। हां राजनीति के लिए नेताओं ने धर्म और धर्मनिरपेक्षता का चोचला भारतीय संविधान में ले आये और सब मिल कर मलाई काट रहें हैं।

भरोसा नहीं तो आंकड़े उठाकर देख लीजिये? क्योंकि हमेशा सच बयां करते हैं। हिंदू और हिंदुत्व की सहिष्णुता का प्रमाण है कि हिंदू_मुस्लिम आधार पर वर्ष 1947 में हुए भारत_पाकिस्तान के बंटवारे के बाद दोनों देशों में वर्ष 1951 में हुए पहली #जनगणना सारी कहानी बता देते हैं।

दोनों देशों द्वारा जारी किये गये वर्ष 1951 की जनगणना के मुताबिक पाकिस्तान में हिंदू_आबादी कुल पाकिस्तान की 12.9 फीसदी थी जबकि इसी वर्ष भारत में मुस्लिम_आबादी कुल हिंदुस्तान की आबादी 9.8 फीसदी थी।

लेकिन वर्ष 2011 में हिंदुस्तान के जनगणना के आंकड़े और वर्ष 1998 में पाकिस्तान के आखिरी जनगणना के आंकड़े हिंदुओं की सहिष्णुता और मुस्लिमों की असहिष्णुता को पोल खोल देते हैं।

पाकिस्तान में वर्ष 1998 में हुए आखिरी जनगणना के मुताबिक पाकिस्तान में हिंदू आबादी 14.2 से घट कर महज 1.6 फीसदी रह गई, जो वर्ष 1951 में कराये गये पाकिस्तानी जनगणना के घोषित हिंदू आबादी से करीब 13 फीसदी कम हो गया।

जबकि वर्ष 2011 में हिंदुस्तान में आखिरी जनगणना के जारी रिपोर्ट के मुताबिक हिंदुस्तान में मुस्लिम आबादी 9.8 फीसदी से बढ़कर 12.9 फीसदी पहुंच गई है, जो वर्ष 1951 में कराये गये हिंदुस्तान की पहली जनगणना के घोषित आबादी से 3 फीसदी से अधिक बढ़ा है।

इन आंकड़ों की रोशनी में अब आप तय कर सकते हैं कि हिंदू और हिंदुस्तान कितना सहिष्णु और भाईचारा प्रेमी है। खुद तय कीजिये कि कौन सहिष्णु है और कौन असहिष्णुता के नाम की राजनीति करते आ रहें हैं और सत्ता की मलाई काटते रहें हैं।

ये आंकड़े उन दोगले नेताओं और साहित्यकारों के मुंह पर तमाचा मारता है, जो तथाकथित सेकुलरिज्म (धर्मनिरपेक्षता) की आड़ में झूठ और धोखे की राजनीति करके धार्मिक उन्माद को हवा देते रहें हैं।

देश में धार्मिक असहिष्णुता ने नाम पर जो झूठ फैलाकर हिंदू-मुस्लिम के बीच उन्माद फैलाकर राजनीतिक रोटियां सेंकी जा रही है, उनको जबाव उन्हें ही देना होगा जिनको आजादी के बाद से कांग्रेस समेत पार्टियां मूर्ख बनाते आ रहें हैं और उनका वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करती रहीं हैं ।
#Intolerance #Secularism #Pakistan #Hindustan #Congress #Modi #BJP 

शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2015

मुझे मोदी भक्त कहें परवाह नहीं? पर थोड़े अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाएं?

शिव ओम गुप्ता
प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने से पूर्व से नरेंद्र मोदी की छवि एक प्रगतिमूलक और विकासवादी सोच रखने वाले और अपनी कथनी को करनी में तब्दील कर दिखाने वाले नेता के रुप में मशहूर थी। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने के लिए वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले कितने अग्निपरिक्षाओं से गुजरना पड़ा यह किसी से छिपा नहीं है।

सबका साथ और सबका विकास की सोच को आगे रखकर चलने के बावजूद नरेंद्र मोदी को कांग्रेस समेत उन सभी भयाक्रांत पार्टियों के बेबुनियाद और फिजूल आरोपों-विरोधों का ही सामना नहीं करना पड़ा, बल्कि अपने ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के उत्कंठा प्रेरित प्रतिरोध भी झेलना पड़ा।

बावजूद इसके नरेंद्र मोदी अडिग रहे और देश की जनता ने मोदी के विकासवादी सोच पर भरोसा किया और उन्हें भारी बहुमत देकर प्रधानमंत्री पद पर बैठा दिया, क्योंकि देश की जनता कांग्रेसी डर और विकास की डोर के अंतर को अच्छी तरह समझ गई थी।

बगैर किसी ठोस आधार के गुजरात दंगे में नरेंद्र मोदी के दोषी होने का दुष्प्रचार फैलाकर
कांग्रेस ने मोदी को लगातार राष्ट्रीय राजनीति से दूर रखने की कोशिश की, लेकिन देश के सर्वोच्च न्यायालय से सभी आरोपों से बरी होकर और क्लीन चिट मिलने के बाद मोदी खरे सोने की तरह तप कर न केवल बाहर निकले बल्कि कांग्रेस के झूठ, कपट और डराने वाली राजनीति को परास्त कर देश के प्रधानमंत्री मोदी भी बने।

प्रधानमंत्री पद पर बैठने से पूर्व और बैठने के बाद से ही 'सबका साथ और विकास' की सोच को ही आगे रखकर चलने वाले नरेंद्र मोदी ने 18 महीने के अपने कार्यकाल में वह कर दिखाया, जो पहले कोई प्रधानमंत्री नहीं कर पाया, लेकिन इस बीत कभी भी सांप्रदायिक राजनीति का समर्थन नहीं किया और बार-बार खुद मुखर विरोध किया है।

लेकिन लगातार मोदी की विकासवादी छवि चमकने और 'सबका साथ और सबका' विकास नारे की स्वीकार्यता बढ़ने से मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करने वाली पार्टिया कांग्रेस-सपा समेत करीब सभी विपक्षी पार्टियां हैरान-परेशान हो गई हैं, क्योंकि मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले और बाद से वे लगातार हार दर हार झेल रहीं हैं।

आंकड़ें भी कहती हैं लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत से जीत के बाद प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता में लगातार वृद्धि हुई है, जिसके बाद बीजेपी मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में न केवल दोबारा सत्ता हासिल करने में कामयाब रही, बल्कि राजस्थान, महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा में भी पार्टी ने कांग्रेसी सरकारों को उठाकर फेंक दिया है।

कारण साफ है ऐसे में कांग्रेस और ऐसी तमाम पार्टियां घबड़ाई हुई हैं और हैरान और परेशान हैं कि ऐसे ही चलता रहा तो बिहार के बाद उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी की सरकार बनना लगभग तय है।

पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के दंगे और हाल के दादरी में हुए अति सांप्रदायिक घटनायें इस ओर इशारा कर रही हैं कि कौन क्या कर रहा है और क्यूं कर रहा है, क्योंकि अस्तित्व खो देने के संकट से जूझ रहीं है पार्टियां ही ऐसी आग को हवा दे सकती हैं और अब तक मिले तथ्य भी इसी की ओर इशारा कर रहीं हैं।

क्योंकि सांप्रदायिक दंगों के जरिये समुदाय विशेष को डराकर वोटों के ध्रुवीकरण की जरूरत उन्हें है जो अस्तित्व संकट से जूझ रहीं हैं, उन्हें नहीं जो लगातार लोकप्रियता हासिल कर रही है। सवाल है कि इन दंगों से किसका भला हो सकता है अथवा कौन लाभ लेने की कोशिश कर रहा है?

कारण स्पष्ट है! यह सारी सांप्रदायिक घटनाएं एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है, यह जानबूझ करवाये जा रहें हैं, जिसके जरिये मोदी विरोधी मोदी पर कीचड़ उछाल कर एक विशेष समुदाय वर्ग के वोटों का ध्रुवीकरण कर सकें, लेकिन क्या ये सफल होंगे?

बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हालत सबको पता है, लेकिन सुशासन बाबू नीतीश कुमार की पार्टी हालत किसी से छिपी नहीं है और चारा घोटाले में सजायाफ्ता और अभी जमानत पर रिहा चल रहें लालू यादव के महागठबंधन की हकीकत भी किसी से छिपी नहीं है।

देख सकते हैं कि बिहार विधानसभा चुनाव में
महज सत्ता पाने के लिए कैसे सांप, नेवले और छछूंदर एक बिल में बैठने को मजबूर हो गये हैं और सभी आदर्शों को ताख पर रख कर नीतीश बाबू राजद के जंगलराज और कांग्रेस के 2जी, कोलगेट और कॉमनवेल्थ घोटाले से बदनाम पार्टियों से गठजोड़ करके बिहार की जनता से एक बार फिर जनादेश मांगने को मजबूर हैं?

नोएडा के दादरी में हुई सांप्रदायिक घटना के मायने बिहार विधानसभा चुनाव मद्देनजर देखे जाने होंगे, क्योंकि मोदी विरोधी सभी पार्टियों के पास अभी कोई और दूसरा हथियार नहीं हैं, जिससे वे बीजेपी को बिहार में जीत से रोक सकें।

30 से अधिक साहित्यकारों द्वारा पुरस्कार लौटाने की कवायद भी इसी रणनीति का हिस्सा है, जिसके जरिये बिहार की जनता (मुस्लिम समुदाय) को डराया जा रहा है ताकि वे बीजेपी को वोट न करें।

मतलब, ऐसे कोमल हृदय साहित्यकार पर सवाल उठ रहें हैं, जो एक अदने से दादरी की घटना से इतने आहत हो गये हैं कि अपने-अपने पुरस्कार लौटा रहें हैं, लेकिन इनका कोमल हृदय तब जरा भी नहीं आहत हुआ जब पिछले वर्ष  मुजफ्फरनगर दंगे में 60 से अधिक लोग मौत के घाट उतार दिये गये और तब भी नहीं जब वर्ष1992 में मुंबई सांप्रदायिक दंगों में सुलग गया, जब 1984 में सिख मौत के घाट उतारे गये, और तब भी जब वर्ष 1984 में ही हजारों भोपाल गैस त्रासदी में मारे गये और कांग्रेस ने दोषी वॉरेन एंडरसन को देश से भगा दिया था।

कहते हैं राजनीति में सब जायज होता है, लेकिन साहित्यकार भी राजनीतिक पार्टियों के मोहरे की तरह इस्तेमाल होंगे, यह सोचकर ही डर लगता है। लेकिन 'लिया है तो चुकाना ही पड़ेगा' की तर्ज पर पुरस्कार पाने वाले साहित्यकार फर्ज निभाये तो कोई क्या कह सकता है। आखिर कहीं तो वफादारी निभानी ही पड़ती?

कहते हैं कि लोकतंत्र में सबको अपनी बात कहने की आजादी होती है। मतलब, फ्रीडम ऑफ स्पीच। लेकिन मोदी विरोधी (राजनीतिक नेता-बुद्धिजीवी वर्ग) बीजेपी नेताओं के फ्रीडम ऑफ स्पीच को उचित नहीं मानते?

कहने का अर्थ है बीजेपी नेता किसी भी सांप्रदायिक दंगा प्रभावित इलाके का दौरा करते हैं और कुछ कहते हैं तो गलत है और वहीं दूसरे किसी पार्टी का नेता कुछ कहते हैं और दौरा करते है तो वह 'फ्रीडम ऑफ नीड' हो जाता है? जिसकी मुखालफत कोई नहीं करता?

दादरी घटना के बाद सबसे पहले कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी पहुंचे, फिर एमआईएम नेता असुद्दीन ओवैसी पहुंचा, फिर क्रांतिकारी नेता केजरीवाल गये, तब तक कुछ नहीं हुआ, लेकिन बीजेपी नेताओं के वहां पहुंचने पर राजनीतिक रोटी सेंक रहें तथाकथित सेकुलर असहज हो गये।

क्रांतिकारी टाइप के कुछ मीडिया भी बीजेपी नेताओं के दादरी दौरे पर असहज होकर रिपोर्टिंग करने लगी और बीजेपी नेताओं को छोड़कर अन्य विपक्षी दलों के नेताओं के दौरे और बयानों को मीडिया ने मरहूम अखलाक के मरहम साबित करते नहीं थके।

अब इतनी समझ तो देश की जनता को खुद में विकसित करनी ही होगी कि कौन सी पार्टी और कौन सी सोच उनके विकास और प्रगति में सहायक हो सकती है और कौन नहीं?

देश के प्रत्येक वर्ग को अपनी और देश की माली हालत पता है और देश के अलग-अलग समुदायों को कभी जाति, तो कभी वर्ग में बांटकर वोट बैंक समझने वाली लुटेरी कांग्रेस को भी समझती है, जिसने देश को पिछले 68 वर्ष तक लूटा है और जनता उन पार्टियों दशा-दिशा भी उसे बखूबी समझती है जो उनके विकास के नाम पर अपना और अपने परिवार का विकास करती आईं है।
#Modi #BJP #Congress #Muslim #VoteBank #BiharPolls #DadriLynching

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

पुरस्कार लौटाकर आकाओं को रिटर्न गिफ्ट दे रहें हैं तथाकथित साहित्यकार?

शिव ओम गुप्ता
उत्तर प्रदेश सरकार ने साहित्य जगत में तथाकथित ख्याति प्राप्त करीब 80 लोगों को रेवड़ी की तरह यश भारती पुरस्कार बांटे थे और जिन्हें पुरस्कार मिले थे उनमें 90 फीसदी साहित्यकार मुस्लिम और यादव थे।
सवाल उठता है अब साहित्यकार क्या मुस्लिमों और यादवों के घर का पता लेकर पैदा होने लगे हैं या और लोग गौ पालक हो गये या हुनर-धंधेबाज हो गये?
सीधी सी बात है अब सरकारें ऐसी साहित्यकारों की फौज को पुरस्कारों के एवज में राजनीतिक इस्तेमाल के लिए गढ़ती है, जिसका रिटर्न जरूरत के समय किया जाता है।
अभी कांग्रेस फसल काट रही है और अगले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में आसन्न हार के बाद सपा सरकार भी फसल काटेगी? अब भाई बिना बीज रोपे फसल थोड़े काटा जा सकता है?
धन्य हो ऐसी राजनीति और ऐसे दरबारी साहित्य और साहित्यकारों की, जिन्होंने पुरस्कार को दुकान और साहित्य को सामान बनाकर बेंच और खरीद रहें हैं।
यह सवाल इसलिए आबरू रखते हैं, क्योंकि जिन्होंने पुरस्कार लौटाएं हैं अथवा पद छोड़ा है, उनका दिल, दिमाग और गुर्दा कांग्रेस के शासनकाल में हुए विकराल नरसंहार और दंगों में नहीं पसीजा था।
‪#‎Riots‬ ‪#‎Intolrence‬ ‪#‎Litrate‬ ‪#‎Resign‬ ‪#‎Dadri‬

सुधींद्र कुलकर्णी का मुंह ही नहीं, आत्मा भी काली लगती है!

षिव ओम गुप्ता
वाह रे सुधींद्र कुलकर्णी मुंह तुम्हारा काला हुआ तो तुमने पूरे देश का मुंह काला करने की कोशिश कर डाला। उस पाकिस्तानी खुर्शीद कसूरी के बुक प्रमोशन के लिए भले ही तुमने मुंह से काला रंग उतार दिया, लेकिन तुम्हारी आत्मा अभी भी काली होगी।

क्योंकि जिस नापाक इंसान कसूरी के बुक प्रमोशन के लिए तुमने अपना ईमान और राष्ट्रप्रेम को ताख पर रख दिया उस कमीने मे तुम्हारे राष्ट्र के प्रधानमंत्री का अपमान किया है।

कमीने कसूरी ने पूर्व प्रधानमंत्री बाजपेयी की आड़ में प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधने की हिम्मत की है। उसने कहा है कि बाजपेयी ने जो शांति वार्ता शुरू की थी वह प्रधानमंत्री मोदी के शासनकाल में खत्म हो गया है।

कमीने कसूरी को कोई बताये कि उस शांति वार्ता की आड़ में परवेज मुशर्रफ और तत्कालीन विदेश मंत्री खुर्शीद ने भारत की पीठ से छूरा घोंपा था और भारत को कारगिल का युद्ध लड़ना पड़ा था!

लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के ईट के बदले पत्थर वाले जबाव की कार्रवाई से हैरान-परेशान पाकिस्तानी डरे-सहमे ऐसे बौखलाहट वाले बयान दे रहें हैं। डूब मरो सुधींद्र कुलकर्णी!
#SudhindraKulkarni #Pakistan #KhurshidKasuri

रविवार, 11 अक्तूबर 2015

प्रगति पथ पर है भारत, बस लाभ से कोई वर्ग वंचित न रहे?

शिव ओम गुप्ता
किसी भी देश की खुशहाल जनता ही उस देश की तरक्की और प्रगति का पैमाना होती है और भारत की तो बात ही अलग है।

हम सभी जानते हैं कि किसी भी समाज के उत्थान के लिए वहां रह रहे प्रत्येक वर्ग विशेष को एक समान शिक्षा, स्वास्थ्य और बेरोजगारी जैसी मूल जरूरतों को मुहैया कराना जरूरी है।

लेकिन भारत देश कई मामलों में अलहदा है, क्योंकि यहां के लोग अनुकूल और विपरीत परिस्थितियों में भी मेहनतकश होते हैं, फिर चाहे वह मध्यम वर्ग हो अथवा गरीब वर्ग?

यानी सरकार अगर देश की बीमारी, बेकारी और बेचारगी को दूर करने में कदम उठाती है तो मेहनत करके ऊपर उठना और आगे बढ़ना हमारे देश की जनता अच्छी तरह से जानती है।

मौजूदा मोदी सरकार ने सामाजिक सुरक्षा के लिए पहली बार ऐसे कई कदम उठायें  है, जो अगर देश के हरेक नागरिक तक पहुंच गये तो विकास ही नहीं, विकास की अम्मा, नानी और दादी को भी आने से कोई रोक नहीं सकता है।

देश में पहली बार एक अभियान की तरह शुरू हुए जन धन योजना के तहत गरीब से गरीब लोगों का बैंक खाता खुलना एक बड़ी उपलब्धि है, जिससे सरकारी सहायता जरूरतमंदों को बिना बिचौलियों को सीधे उन्हें मिलने शुरू हो चुके हैं।

बैंकिंग सुविधा से गरीब और मध्यम वर्ग को एक तरफ जहां सरकारी मदद और योजनाओं के लाभ सीधे मिलने शुरू हो गये हैं, दूसरी तरफ 1 रुपये प्रतिमाह की सस्ती दुर्घटना बीमा, 230 रुपये प्रतिमाह में पेंशन योजना से उनकी सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य की अनिश्च्तता की चिंता पर विराम लगा दिया है।

मोदी सरकार की चुनौती बस इतनी सी है कि वह शुरू किये सभी सामाजिक सुरक्षा योजना का लाभ प्रत्येक वर्ग तक पहुंचाये और उसके अमल में भी तेजी लाये, ताकि उक्त योजनाओं से जुड़े जरूरतमंदों को उनकी जरूरत पर किसी का मुंह न देखना पड़े।



मंगलवार, 6 अक्तूबर 2015

लॉ एंड ऑर्डर नहीं, मुआवजा वाली है अखिलेश सरकार!

शिव ओम गुप्ता
कौन नहीं जानता कि उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार प्रदेश इतिहास की सबसे नकारा और निकम्मी सरकार है और उसके नकारापन और निकम्मेपन को छिपाने के लिए अखिलेश के दायें-बायें हमेशा रहने वाले अदृश्य मुख्यमंत्रियों की टोली दंगा और मुआवजे का गंदा खेल रच रही है।

उत्तर प्रदेश में जब से अखिलेश यादव की सरकार सत्तासीन हुई है प्रदेश की लॉ एंड ऑर्डर भगवान भरोसे चल रहीं है, जिसके लिए रोजाना मीडिया की खबरें ही नहीं, पिता मुलायम ही मुख्यमंत्री को लताड़ते रहें हैं।

पिछले 3 वर्षों में उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व में प्रदेश की हालत बद से बद्दतर हुई है और तथाकथित मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कुछ करने के बजाय मुआवजा राजनीति कर रहें हैं।

अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री पद के शपथ के दिन से लेकर उत्तर प्रदेश लॉ एंड ऑर्डर की समस्या बिकराल होती गईं है, क्योंकि गुंडों और अपराधियों के हौसले बुलंद है।

अखिलेश सरकार के कार्यकाल में प्रदेश की हालत के लिए अपराध के आंकड़े की देखने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह सरकार अपराध नहीं, अपराधियों के जाति-संप्रदाय के आधार पर कार्रवाई करती नजर आई है।

मुजफ्फर नगर और दादरी जैसे मामले प्रदेश सरकार की नकारा और तुष्टिकरण की राजनीति के कारण जन्म लेते है, जिसका सीधा जुड़ाव लॉ एंड ऑर्डर के फेलियर से है।

उत्तर प्रदेश में अपराध और अपराधियों के हौसले बुलंद है, क्योंकि वहां एक नहीं, पांच-पांच मुख्यमंत्री काम कर रहें हैं। अपराधी किसी भी समुदाय से हो, उसे पता है कि कुछ होना जाना नहीं है, मुआवजा बांटकर इतिश्री कर लेगी अखिलेश सरकार ।

#AkhileshYadav #UPGovernment #LawAndOrders #Riots #Failurs 

मीडिया रिपोर्टिंग और नाच-नौटंकी के बीच फर्क खत्म हो गया है?

शिव ओम गुप्ता
वह दिन दूर नहीं जब दंगा और फसाद के लिए मीडियाकर्मी और मीडिया का नाम सर्वोपरि होगा।

दादरी में मरहूम अखलाक की मौत के मामले को न्यूज चैनल्स जिस तरीके से खींच कर रबड़ बना रहें हैं और महज टीआरपी की रेस में बने रहने के लिए रोते-बिलखते परिजनों का फुटेज वोट बैंक और टीआरपी के बीच मरहूम अखलाक कहीं नहीं है?

वोट की राजनीति में मरहूम अखलाक की मौत महज एक राजनीतिक और न्यूज चैनलों का फंसाना बनकर रह गयी है, जहां संवेदना नाम की चीज नहीं दिखती है।

एक तरफ जहां 24 घंटे सियासी रोटियां सेंककर राजनीतिक दल वोट बैंक पुख्ता कर रहें हैं, तो दूसरी तरफ 24 घंटे की ऊल-जुलुल रिपोर्टिंग करके न्यूज चैनल्स टीआरपी रेटिंग में थोड़े उछल मारने में लगे हैं।

लेकिन इस सब के बीच अखलाक और उसके परिवार के सदस्य महज तमाशाई बनके रह गये हैं और पीड़ित परिवार के आसपास रह रहा समाज भी मूक दर्शक की तरह सब तमाशा देख रहा है और समझने की कोशिश कर रहा है कि आखिर हो क्या रहा है?

क्योंकि गलती किसी की भी थी, लेकिन राजनीतिक दल और मीडियाकर्मी वहां रह रहे पूरे समाज को बांट रहें हैं, जिनके साथ ही पीड़ित परिवार को आगे भी रहना है और इस सब से आगे भी बढ़ना है।

#Dadri #Incident #Akhlaq #Politics #VoteBank #Media #TRP  बार -बार लहराया और चलाया जा रहा है, वह बेहद की उत्तेजक और घातक है।

चैनल्स के उक्त घातक प्रयास समुदाय विशेष में गलत संदेश और उत्तेजना फैलाने की कोशिश कर रहें हैं, जिससे देश के अलग-अलग इलाकों में दंगा-फसाद फैल जाये इससे इनकार नहीं जा सकता?

मीडिया वालों कुछ तो होश में आओ और अपनी तुच्छ और कुत्सित मानसिकता को छोड़ कर वास्तविक पत्रकारिता का उदाहरण पेश करो वरना वह दिन दूर नहीं जब मीडियाकर्मी किसी भी घटना-दुर्घटना पर लोगों से बात करने को तरस जायेंगे और जहां जायेंगे जूते और खाकर लौटेंगे! सोचो? अभी भी वक्त है!

#Media #Reporting #TRP #Prestitutes

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2015

लालू मतलब जंगलराज की वापसी: कौन करेगा महागठबंधन को वोट?

शिव ओम गुप्ता
चारा चोर लालू यादव को पता है कि उनको अब बतौर राजनेचा कभी सम्मानजनक जीवन नहीं मिलने वाला है और आज नहीं, तो कल बाकी की सजा काटने जेल में वापस जाना ही पड़ेगा?

शायद यही कारण है कि लालू यादव दोनों बेटों का राजनीतिक भविष्य बनाने के लिए नीतीश कुमार के साथ गठजोड़ कर खून के आंसू पी रहें हैं और अपने हवाई सपनों के संभावित अड़चनों से डरे -सहमें लालू यादव गाली-गलौज पर उतर आये हैं।

लालू यादव को थोड़ा आत्मचिंतन करना चाहिए कि बिहार में जंगलराज मतलब लालू यादव ही होता है और चारा घोटाला आरोप नहीं है, बल्कि लालू न्यायालय द्वारा  घोषित अपराधी और सजायाफ्ता है, जो जमामत पर बाहर हैं।

समझ नहीं आता है कि लालू यादव को सुन कौन रहा है और बिहार में कौन ऐसा मतदाता होगा जो लालू मतलब जंगलराज को वोट देकर बिहार में वापसी कराना चाहेगा?

लालू नीतीश का जोड़ी का सत्ता से जाना चो लगभग तय हैं, देखना यह है कि बिहार की जनता इनकी कैसी विदाई करेगा?

क्योंकि लालू और नीतीश दोनों को बिहार में आसन्न भयानक हार की आशंका हो गई है, जिसे दोनों के वागियात बयानों से समझा भी जा सकता है।

#LaluYadav #NitishKumar #BiharPolls #Jungalraaj #FodderScam #JDU #RJD

गुरुवार, 24 सितंबर 2015

राहुल बाबा नाम रोशन करके लौटाना!

कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने बताया है कि राहुल गांधी अमेरिका के कोलोरेडो स्थित एसपिन में एक कांफ्रेंस में भाग लेने के लिए बिहार का चुनाव प्रचार छोड़कर भागे हैं।

यही नहीं, सुरजेवाला ने बताया कि उक्त इंटरनेशनल लेबल के कांफ्रेंस में तमाम देशों के ख्याति प्राप्त लोगों को बुलाया गया है और भारत से उन्होंने पप्पू को विशेष आग्रह करके बुलाया है।

वैसे रंगीनमिजाजी के लिए कुख्यात एसपिन में कैसा कांफ्रेंस होगा, जिसमें राहुल गांधी निमंत्रित हैं? हालांकि भाई लोगों ने काफी जांच पड़ताल के बाद पाया है कि एसपिन में होने वाले किसी भी कांफ्रेंस सूची में पप्पू का नाम नहीं बरामद हो सका है।

अब एसपिन में कोई पप्पूगिरी पर कांफ्रेंस आयोजित हो रहा हो और उसमें अपने पप्पू को आमंत्रित किया गया हो, तो अलग बात है।

वैसे राहुल बाबा ऐसे किसी कांफ्रेंस में आमंत्रित किये गये हैं तो नीतीश और लालू ही नहीं, हम सभी खुश होंगे।

ऐसा लगता है कि राहुल बाबा किसी पप्पूगिरी कांफ्रेंस में भारतीय प्रतिनिधुत्व कर रहें हैं। राहुल बाबा नाम रोशन करके लौटाना, बिहार चुनाव की चिंता मत करना?

#Rahul_Gandhi #Congress #Aspen #Pappu

जर्नलिज्म करूं या पैसे कमाऊं?

शिव ओम गुप्ता
मैंने जर्नलिज्म के लिए ही जर्नलिज्म ज्वाइन किया है, नौकरी करने के लिए जर्नलिज्म में ज्वाइन नहीं किया?

अपनी मनपंसद के काम करने के लिए मुझे 24 घंटे भी कम मालूम पड़ते हैं, लेकिन 8 घंटे ऑफिस में बैठने के लिए कंपनी स्टैंडर्ड की जितनी भी सैलेरी परोसती है उसे बोनस मानता हूं (और फिर रूम रेंट वगैरा भी तो निपटाना होता है)

न हताशा, न प्रत्याशा ? बल्कि खुशी! कि जो करना चाहता हूं वो कर रहा हूं,  पैसा कमाना कभी मेरी शौक में ही शामिल नहीं रहा, क्योंकि पैसे बचपन से कमा रहा हूं, कसम से!

हालांकि तथाकथित बुद्धिजीवी और निहायत ही परजीवी टाइप के लोगों को मेरी बातें हजम नहीं होंगी?

सवाल उठाते हुए कहेंगे, 'भैय्या, करने को तो हम भी जर्नलिज्म करने आए थे, लेकिन जर्निलज्म अब होता कहां है?'

डॉयलाग भी मारेंगे, "तुम्हारे आदर्शों और जर्नलिज्म को गूंथ कर रोटी नहीं बनाई जा सकती"

मत बनाओ रोटी, और क्यूं बनेगा रोटी? रोटी बनानी है तो ढाबे की दुकान खोलो, रोटी ही नहीं, नॉन-बटर नॉन बनाओ, लेकिन जर्नलिज्म को जर्नलिज्म ही रहने दो?

क्योंकि जर्नलिज्म को रोटी बनाने वालों ने ही इसको चोटी से उतार कर बोटी-बोटी किया है और अब आपस में बांटकर खा रहें हैं!

बावजूद इसके मैं अपनी जर्नलिज्म से खुश हूं, क्योंकि मुझे मांगकर नहीं, पाकर खुशी मिलती है...मसलन, मुझे कोई मेरे पसंदीदा काम की एवज में आगे बढ़ने का मौका दे रहा है?

कोई मेरे द्वारा मुझसे कमाई कर रहा है तो कमाए मुझे क्या? क्योंकि अगर कमा रहा तो बांट भी रहा है, किसी को 20 टका मिल रहा है तो वहीं किसी को 20 करोड़ भी दे रहा है...

और हां, जर्नलिज्म करते हुए यदि कोई कंपनी मुझे 20 टका से बढ़ाकर 20 लाख देती है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है, बनिया हूं भाई...पैसे ने किसी को काटा है कभी? हां, नौकरी करते हुए तो करोड़पति भी बनते-बिगड़ते रहते है!

चूंकि मैं सौभाग्य से बनिया हूं इसलिए समझता हूं कि पैसे काम पर खर्चे जाते हैं नौकरी या नौकरी करने वाले पर नहीं?

अब अगर आप जर्नलिज्म करने निकले हैं तो जर्नलिज्म ही करना पड़ेगा? लेकिन अधिकांश जर्नलिज्म की नौकरी करने आए है, जहां जर्नलिज्म छोड़ वो सब करते है, तुर्रा यह कि कहेंगे, 'अब वो जर्नलिज्म कहां? अब जिसके पास पैसा वहीं बड़ा जर्नलिस्ट?'

फिर कहेंगे अब वो मिशन जर्नलिज्म कहां है, अब तो चोरी, बलात्कार और सेक्स की खबरें बिकती हैं?

अब सवाल उठता है कि मिशन जर्नलिज्म क़्या बला है? भई, गुलामी के दौर में अग्रेजों के अन्यायों को उदघाटित करते लेख और न्याय की गुहार की रिपोर्टिंग को ही मिशन जर्नलिज्म कहते है?

तो क्या हमारे देश में सबको न्याय मिल गया, कोई शोषित, वंचित और अश्पृश्य नहीं बचा, जिन पर हो रहे अन्या़यों की रक्षा के लिए हमारे कंप्युटर के की बोर्ड न्याय की गुहार वाली रिपोर्टिंग व आर्टिकल छाप सके?

जर्नलिज्म में पैसा कमाने आए हो तो पैसा कमाओ, बातें मत बनाओ? बड़े आए मिशन जर्नलिज्म का डेफिनेशन बताने वाले?

तो पैसा ही कमाओ भैय्या, वैसे पैसे ही कमाना है तो जर्नलिज्म में क्या कर रहे हो, जाओ कोई और काम करो, जिसमें नैतिकता और मूल्यों का कोई लोचा नहीं है और दबा कर कमाओ?

कम से कम तुम्हारे जैसे लोगों की वजह से जर्नलिस्ट बताते ही पुलिस वाला दो सोटे अधिक तो नहीं मारेगा?

बुधवार, 9 सितंबर 2015

आधुनिकता और आध्यात्मिकता का पर्याय है हिंदू जीवनशैली!

कट्टरता-लोचनियता,  कठिन-सरल और गृहस्थ-संन्यास हिंदू धर्म या हिंदू होने की विलक्षणता है, जो जैसा वहन करना चाहता है अंगीकार कर सकता है, कोई रोक-असंतोष नहीं!

बतौर हिंदू व्यक्ति हमेशा नैसर्गिक आधुनिकता में जीता है वरना अनुष्ठान और क्रिया-कलापों में निहित धर्म लोगों को मजबूर बनाते हैं, लेकिन हिंदू हमेशा स्वतंत्र व स्वछंद रहता है! मसलन, यथा भक्ति जथा शक्ति!

एक बीमार, लाचार और जरुरतमंद व्यक्ति पूजा-पाठ और धर्म से जुड़े अनुष्ठानों में अधिक रमता-रंगता है, लेकिन वह जीवन जनित लाचारगी से उबरते ही सफलता की अभ्यासों में रम जाना चाहता है पर अनुष्ठानों वाले धर्म और उसकी धार्मिक कट्टरता व्यक्ति का मार्ग रोक लेती है!

एक लाचार और अनगढ़ व्यक्ति (किसी भी धर्म को मानने वाला) धार्मिक अनुष्ठानों में, पूजा-पाठ में अधिक रमा व लगा रहता है, लेकिन ज्ञान प्राप्त होने अथवा इच्छित सफलता की ओर बढ़ने पर कर्म प्रधान होने लगता है!

रोजाना दो घंटे कर्मकांडों में बिताने वाले व्यक्ति को अनुष्ठान के लिए दो सेकेंड निकालना भी मुश्किल लगता है, क्योकि सफलता और ज्ञान से व्यक्ति समझ चुका होता है कि कर्म ही पूजा है!

असफल, अज्ञानी और परजीवी व्यक्ति ही अनुष्ठानों में अधिक रमते हैं, क्योंकि ऐसों के ज्ञान चक्षु खुलते नहीं हैं या खोलना नहीं चाहते हैं,?

मंगलवार, 8 सितंबर 2015

नकारेपन पर हो रही फजीहत से फस्ट्रेशन में हैं सोनिया गांधी

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी एक के बाद एक कीर्तिमान रच रही मोदी सरकार के कामों से कितनी फ्रस्ट्रेशन में हैं कि वो छुपा भी नहीं पा रहीं हैं।

बात चाहे ब्लैक मनी पर एसआईटी गठन की हो या बात नगालैंड उग्रवादी समझौते की हो या बांग्लादेश से बार्डर समझौते की हो अथवा 42 वर्ष बाद वन रैंक वन पेंशन को लागू करने पर हो रही मोदी सरकार की वाहवाही और कांग्रेसी के नकारेपन पर हो रही फजीहत की हो।

कोई पार्टी कितनी बेशर्म हो सकती है इसका जिंदा उदाहरण कोई है तो वो है कांग्रेस पार्टी, कोई और पार्टी होता तो चुल्लू भर पानी में डूब मरती, लेकिन कम से कम अपने नकारेपन पर सीनाजोरी नहीं करती?

कहते हैं कि लोग गलतियों से सीखते हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी के लिए यह लागू नहीं होती? नि:संदेह कांग्रेस अगर देश की जनता से अपने नकारेपन और घोटालेपन की हरकतों के लिए माफी मांगती तो जनता माफ कर देती, लेकिन?

हमारे सामने ताजा उदाहरण है कि दिल्ली की जनता ने प्रधानमंत्री बनने की लोभ में दिल्ली छोड़कर भागे केजरीवाल को दिल्ली की जनता ने माफी मांगने के बाद माफ कर दिया और दिल्ली का मुखिया बना दिया, वो अलग बात है कि केजरीवाल की हरकतों से वाकिफ नहीं थी दिल्ली की जनता और अब पछता रही है।

सोमवार, 7 सितंबर 2015

PM Modi increased fascination by ride on Delhi metro!

Prime minister #Narendra_Modi certainly increased his fan following in country & world by his surprised yesterday visit in Delhi metro.

People who were traveling in #Delhi_Metro along with prime minister modi seemingly seen so attached & emotional in released pictures.

Indeed people of our country the first time gone through such experience where #Prime_minister_of_India sitting parallel & next to them.

I'm dame sure whoever viewing this picture of Modi in Delhi metro's surprise visit, they will not only fascinated although attached to gesture of PM Modi too.

If you Like someone doesn't mean you Love him?

Mean, if you think the thing of liking someone are love? Then you are on wrong track? because if some how result turned out becomes sour? you will become violent but loves never be violent by nature?

So don't mix like and love as same emotions and consider both has different taste and in between has big difference as sky to earth.

However, If love exists then husband-wife's fighting story never happen? Understand its simply liking and an human likes always changes like nature but love never change because its belongs to only self liabilities?

So if you think you love someone by liking her/his face and figure think once again? Because liking are not a love and such relationships later turn out to be bad that's you considering today as love?

So be first ready by wealthy & healthy to handle love liability then start liking someone for love/life partner? Because love deals by two way method and likes with always by one way?

Otherwise who the hell in this world who likes her/his own partner after marriage if there are no involvement of money, property & other related liabilities for his/her respective livelihood.

शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

क्या है बलात्कार? आखिर क्यों होते हैं बलात्कार?

कहते हैं कि एक सभ्य समाज का निर्माण एकाएक नहीं, धीरे-धीरे होता है और ऐसे सभ्य समाज की परिकल्पना, जिसमें स्त्री-पुरुष, बड़े-छोटे और अमीर-गरीब को समान शिक्षा और समान अवसर की उपलब्धता सुनिश्चित हो तो समाज से द्वेष, हिंसा और बलात्कार जैसे कोढ़ हद तक मिटाये जा सकते हैं।

आप क्या सोचते हैं? हमारे समाज में स्त्रियों के खिलाफ लगातार बढ़ते बलात्कार का क्या वास्तविक कारण है? लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई, लड़कियों का घर से बाहर निकलना, लड़कियों द्वारा जींस पहनना और मोबाइल फोन रखना अथवा एक लड़की द्वारा हर क्षेत्र में लड़कों को पीछे छोड़ देना भी कारण है?

अगर आप उपरोक्त कारण बलात्कार के कारणों के लिए सही मानते हैं तो आप गलत दिशा में जा रहें है, क्योंकि यह सभी कारण वास्तविक नहीं है बल्कि कृत्रिम हैं और गढ़े गये कारण है? सच्चाई तो कुछ और ही है!

आप जरा सोचिए, दिमाग लगाइये और गुणा-भाग कीजिये, क्योंकि आपके प्रत्येक विचार और दी गई तथ्यात्मक जानकारी यह  लगाने में काफी उपयोगी होगी कि आखिर बलात्कारी मानसिक रोगी होते हैं या शारीरिक?

तो भेजिये अपने विचार कमेंट बॉक्स में अथवा मुझे मेल करें। धन्यवाद!

मेरा मेल आईडी- gupta.shivom@gmail.com

गुरुवार, 3 सितंबर 2015

फ्री वाई फाई और नौकरी के सब्जबाग में दिल्ली अब नहीं फंसेगी?

ऐसा लगता है केजरीवाल ने मूर्ख बनाने का ठेका ले रखा है और उसे लगता है कि दिल्ली के युवा एक बार फिर मूर्ख बन जायेंगे?

सुना है दिल्ली यूनीवर्सिटी छात्र संघ चुनाव में भी आम आदमी पार्टी के चेले चुनाव लड़ रहें हैं और वे केजरीवाल जो दिल्ली सरकार के 6 माह पूरे होने के बाद भी किया एक वादा नहीं पूरा कर सके वे अब छात्रों को मूर्ख बनाने के लिए फिर वादों का पिटारा खोल रहें है।

केजरीवाल को वोट देकर दिल्ली तो पछता ही रही है और अब यूनीवर्सिटी के छात्र चुनाव में भी केजरीवाल ने वादों का रायता फैला दिया है, देखो अभी दिल्ली में कितने मूर्ख बचे हैं, जो केजरीवाल के भरोसे बैठेंगे और उसके चेलों को सिर पर बैठायेंगे?

वैसे केजरीवाल की छात्र नेता जसलीन कौर का एपीसोड ज्यादा पुराना नहीं हुआ है, जब केजरीवाल की तरह रायता फैलाकर उसने टीवी कैमरा का एक्शन ड्रॉमा किया था और लोगों को मूर्ख बनाने की कोशिश की।

लेकिन बाद  में पता चला था कि छेड़ने वाला और छिड़वाने वाली दोनों केजरीवाल के चेले निकले और दोनों हंगामा करके किसे मूर्ख बना रहे थे, दिल्ली को और दिल्ली यूनीवर्सिटी के छात्रों को? किस लिए जी? छात्र संघ चुनाव में वोट पाने के लिए ?

चूंकि जसलीन कौर एपीसोड का रायता उल्टा फैल गया है तो केजरीवाल ने एक बार 1 लाख नौकरी और फ्री वाई फाई का शिगूफा छोड़ दिया है, तो भाई ले लो फ्री नौकरी और वाई फाई और यूनीवर्सिटी में भी केजरीवाल के चेलों को रायता फैलाने की अनुमति दे दो?

#Kezriwal #AAP #Delhi_University #Student_Election

केजरीवाल अब दिल्ली में ऑनलाइन जनमत संग्रह करवायेंगे?

आम आदमी पार्टी अब एक ऑनलाइन ट्रैकर विकसित करने की बात कह रही है, जिससे वह दिल्ली से अपनी 6 माह पुरानी सरकार के बारे में राय जान सके?

केजरीवाल एंड पार्टी को बखूबी पता है कि पार्टी ने पूरे छह महीने में रायता फैलाने के सिवाय कुछ नहीं किया है, इसलिए खुद ही वकील और खुद ही जज बनने की कोशिश कर रही है।

केजरीवाल एंड पार्टी को अपने नाकारा सरकार के कामकाज का अंदाजा तभी लग जाना चाहिए जब पार्टी ने अपनी सरकार के छह माह पूरा होने पर विज्ञापन छपवाये, जिसमें वह कुछ नया नहीं बता पाने में असमर्थ नजर आई दिखी?

दिल्ली मेट्रो में आजकल केजरीवाल सरकार के छह महीने पूरे होने के विज्ञापन चिपकाये हैं, लेकिन विज्ञापन में कुछ नया नहीं है। ऐसा लगता है कि विज्ञापन बनाने वाली कंपनी ने पुराने विज्ञापन में सिर्फ छह माह की सरकार अतिरिक्त रुप से जोड़ दिये हैं, क्योंकि बताने के लिए केजरीवाल के पास सिवाय रायते के कुछ नहीं था।

आपको भरोसा नहीं है तो मेट्रो रेल में सफर कर लीजिये और केजरीवाल एंड पार्टी के नये विज्ञापन को देख लीजिये, यकीन हो जायेगा!

#Kezriwal #AAP #DelhiCM #DirtyPolitics

बुधवार, 2 सितंबर 2015

Stop spreading IS Group Inhuman videos, You are being trapped?

We need to spread awareness towards all web/tv broadcaster of world to restrict or ban such video of inhumanity that uploaded by ISIS militant group.

Its a inhuman activity where innocent people being killed by killers groups and we are supporting them by showing his cruel activity live in our platform?

Please stop this non sense race of broadcast where publicly you guys trading inhumanity for demand and supply meatheads.

Look it yourself guys its trap? And you being trapped? Because by showing the killers group video...you literally supporting his job and spreading violence towards society.

So let's start banning such video and clipping released by IS group...by this activity we can stop such killers to enter in our world.

#ISIS #Inhumanity #Militant_Group #IS #Video 

रविवार, 30 अगस्त 2015

केजरीवाल ट्रेनिंग कैंप से निकले नेता दिल्ली को शेखचिल्ली बनाकर छोड़ेंगे?

वाह रे जसलीन कौर...क्या रायता फैलाया तूने?  दिल्लीवाले पहले ही तमाशाई थे और तूने अपनी नौटंकी से कुछ बचे-कुचे दिलवालों को भी डरा दिया है कि अब वे किसी की मदद को हाथ आगे कर सकें?

ये आम आदमी पार्टी में भर्ती होने के लिए कोई खास कुशलता है क्या? कि पार्टी में एंट्री के लिए नौटंकीबाजी का कौशल होना आवश्यक हुनर है, और लगता खुद केजरीवाल ऐसे होनहारों की पहचान करते होंगे?

वरना पार्टी से जुड़े सब के सब नेता रायता फैलाने में उस्ताद नहीं होते...मुझे तो लगता है फील्ड ट्रेनिंग के लिए खुद केजरीवाल इनकी रायता ट्रेनिंग क्लास भी लेता होगा।

भगवान बचाये...हमें ऐसी पार्टी से और दिल्ली को इस पार्टी के संक्रमण से...वरना आम आदमी पार्टी की ट्रेनिंग कैंप से निकले नेताओं के फैलाये रायतों से एक दिन दिल्ली का नाम भी बदलकर शेखचिल्ली जरूर हो जायेगा?