शिव ओम गुप्ता |
देश में राजनीति बदलने और सुधार करने की बात करने वाले हवशी अरविंद केजरीवाल ने राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर स्वार्थ प्रेरित राजनीति का ऐसा नंगा नाच खेला कि बड़े-बड़े राजनीतिक दलों ने दांतों तले उंगुली दबा ली। मतलब कि केजरीवाल ने महज केंद्रीय राजनीति में हैसियत जताने और अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा दिखाने के लिए एक निर्दोष किसान की बलि ले ली!
केजरीवाल की देहरी पर फरियाद लेकर पहुंचे दौसा, राजस्थान के किसान गजेंद्र ने केजरीवाल की भारी उम्मीदों के बीच हार कर मौत को गले लगाना ही पड़ा!
नि:संदेह दौसा का वह किसान बेमौसमी बरसात से खराब हुए फसल से उपजे आर्थिक तंगी के कारण नाउम्मीदी में था और केजरीवाल से उम्मीदों में आत्महत्या का धमकी दे रहा था!
वरना दो घंटे पहले पेड़ पर चढ़ कर बैठे व्यक्ति ने आत्महत्या में इतनी देर क्यों की? क्योंकि आर्थिक तंगी से परेशान किसान नाउम्मीदी से भरा था और चाह रहा था कि केजरीवाल या पार्टी का कोई सदस्य उसकी बात सुने, लेकिन कोई उसके पास नहीं गया ?
किसान की नाउम्मीदी और उस पर केजरीवाल की अनदेखी से किसान के पास कोई चारा नहीं बचा! शायद किसान केजरीवाल की रैली में उनके अलग राजनीति करने की झांसे से प्रभावित था, जैसे दिल्ली विधानसभा चुनाव में दिल्ली की जनता झांसे में आ गई थी!
हालांकि खुद को बचाने के लिए किसान ने कई बार चिल्लाकर, गमछा हिलाकर और पर्ची फेंककर कोशिश भी की ताकि कोई आये और उसको उतार कर उसकी बात सुने और उसकी सहायता करे!
लेकिन किसान राजनीति में हाथ धोने में जुटे केजरीवाल ने ध्यान देना जरूरी नहीं समझा और किसान नाउम्मीदी में गमछे को फंदा बनाकर झूल गया!
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