शिव ओम गुप्ता |
हालांकि #मीडिया संगठन देश/पार्टी का #एजेंडा बनाने की कोशिश पहले भी करते रहे हैं, लेकिन आजकल मीडिया को गुमान हो चला है कि वे देश की जनता को अधिक जानते हैं और उनको अपने मुताबिक अधिक भड़का भी सकते हैं।
वैसे, #ओपिनियनपोल और #एग्जिटपोल सर्वे के नाम पर दर्शकों का समय बर्बाद करने व बरगलाने वाली मीडिया को जनता ने अपने फैसलों से कई बार धोबीपाट दिया है, लेकिन आदत सुधर भी जायें पर लत का इलाज नहीं है।
मीडिया कभी देश का ओपिनियन जानने का दंभ भरती थी, लेकिन अब मीडिया देश का एजेंडा बनाने का दंभ भरने लगी है, क्योंकि आज के पत्रकारों को लगता है कि वे देश की जनता का नब्ज जानते हैं और जबां-तहां उंगली रखकर शरीर का तापमान घटा-बढ़ा सकते हैं।
#दिल्लीविधानसभाचुनाव में #बीजेपी की हार और AAP की जीत के बाद मीडिया को कुछ अधिक गुमान हो गया, जो अब बल्लियों उछाल मार रहा है। शायद यही कारण है कि आजकल मीडिया हर दूसरे दिन सर्वें और ओपिनियन पोल का खेल खेलती नजर आती है।
समस्या यह है कि मीडिया खबरों का #कारोबार करते-करते अब #एक्सटार्शन ( #उगाही) के कारोबार में उतर गई दीखती है।
यहीं नहीं, मीडिया समूह अब भिन्न-भिन्न पार्टियों की एजेंडा बनाने की मशीन बनकर रह गई हैं, जहां वो किसी एक पार्टी को फायदे-नुकसान पहुंचाने के लिए सर्वें और सर्वेक्षण का व्यूह नहीं, चक्रव्यूह भी रचते हैं।
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