गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

तो आजम खां साहब, कब जा रहें हैं देश छोड़कर?

यूपी के कबीना मंत्री आज़म खान की बददिमागी और हिकारत पूर्ण भाषा शैली देख-सुनकर देश ही नहीं, खुद हमबिरादर मुस्लिम भी दुखी रहते हैं, लेकिन राजनीति चमकाने के लिए कुछ भी कर गुजरने में खां साहब उस्ताद हैं, जिनका पूरा साथ सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव महज मुस्लिम वोट बैंक के लिए देते है। डर है कि ऐसे एक-आध नेता और पैदा हो गए तो देश का क्या होगा? अच्छा है खां साहब परवेज मुशर्रफ की तरह कहीं निकल जायें।

एक ऐसा नेता, जो डंके की चोट पर कह सकता है कि वह जानबूझकर ठीक चुनाव से पूर्व ऐसी सांप्रदायिक, दुर्भावनापूर्ण और भड़काऊं बयान देता है ताकि मुस्लिम एकजुट हों, वोटों का ध्रुवीकरण हो? ऐसे नेताओं का देश छोड़ देना ही उचित है, क्योंकि इससे देश की एकता को ही नहीं, एकरसता को भी खतरा है।

मुझे लगता है, भारत का कोई भी मुस्लिम आजम खान के कट्टर सोच और कुत्सित मानसिकता को सेल्युट नहीं करता, क्योकि देश का कोई भी नागरिक अब हिन्दू-मुस्लिम को नहीं, शुचिता और प्रगति को सैल्युट करता है!

आज देश का प्रत्येक नागरिक देश की तरक्की के बारे में पहले सोचता है, क्योंकि महंगाई, भ्रष्टाचार, घोटालों और बेरोजगारी से परेशान देश सपने देखने लगा है, लेकिन आजम खां जैसे लोग हमबिरादरी मुस्लिम वोटरों को उनके विकास और तरक्की के मुद्दों से इतर रखकर भटकाने कोशिश करते रहे हैं, ताकि समाजवादी पार्टी में उनकी राजनौतिक हैसियत ऊंची हो सके, लेकिन मुस्लिम भाईयों के विकास का क्या? जिनको महज भड़काकर और उनके वोटों का हाईजैक करने के बाद उन्हें उनके नसीब पर छोड़ दिया जाता है?

वैसे ही, अधिकांश मुस्लिम वोटरों पर आरोप लगता है कि वे मौलानाओं व इमामों के फतवों पर वोट करती हैं, उनकी कोई अपनी राय नहीं होती?

लेकिन लगता है कि अब वो दिन लदने वाले हैं,  क्योंकि अब मोदी-बीजेपी का डर दिखाकर वोट मांगने और उल्लू बनाने वाले को मुस्लिम भाई भी समझ चुके हैं!

सच्चाई यह है कि देश की महंगाई का सबसे अधिक नुकसान मुस्लिम भाईयों पर पड़ता है, कैसे? यह सभी मुस्लिम भाई-बहन बहुत अच्छी तरीके से जानते है?

जबाव है, मु्स्लिम समुदाय का रहन-सहन और उनकी पारंपरिक जीवन शैली? देखा गया है कि अधिकांश मुस्लिम आबादी रोज की जरूरत के अनुसार अपनी गृहस्थी की सामग्री खरीदते हैं, इसीलिए बढ़ती महंगाई के मुताबिक इन्हें हर दिन रोजमर्रा की जरुरतों पर दूसरों की तुलना में अधिक खर्च करना पड़ता है।

हालांकि इसके पीछे एक अन्य वजह मुस्लिम परिवारों का बड़ा होना और फिर जल्द ही परिवार में भाई-भाईयों के बीच (न्यूक्लियर फेमली) होने वाला बिखराव भी है?

इसलिए जरूरी है कि हिन्दू-मुस्लिम नहीं, जाति-बिरादरी नहीं, बल्कि विकास को सलामी देना जरुरी है, क्योंकि विकास ही वह कुंजी है, जिससे महंगाई, बेरोजगारी और बेकारी को दूर किया जा सकता है!

नि:संदेह हिंदू-मुस्लिम, जाति-बिरादरी से देश नहीं चलता है और जो लोग इस प्रकार की राजनीति करना चाहते हैं उन्हें बिना देर किये देश छोड़ देना चाहिए, क्योंकि ऐसी राजनीति को हां कहने के लिए देश की नई पीढ़ी बिल्कुल तैयार नहीं है। तो खां साहब कहीं शरणार्थी वीजा के लिए अप्लाई कर लें, क्योंकि आपको नागरिकता तो पाकिस्तान भी नहीं देगा? क्योंकि पाकिस्तान में ऐसे नेताओं की भरमार है।

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