रविवार, 5 अप्रैल 2015

मुस्लिम को क्रिसमस और हिंदू को ईद पर छुट्टी क्यों?

शिव ओम गुप्ता 
सुप्रीम कोर्ट जज जोसेफ कुरियन की खिलंदड़ता और हल्केपन पर तरस ही खाया जा सकता है, लेकिन इस प्रकरण ने एक अच्छे विचार को जन्म दे दिया है!

वो यह कि सरकार को अब सरकारी छुट्टियां संप्रदाय/धर्म विशेष के आधार पर नहीं देना चाहिए? मतलब हिंदुओं को ईसाइयों के त्यौहार गुड फ्राईडे और क्रिसमस पर सरकारी छुट्टी क्यों? मुस्लिम को हिंदुओं के त्यौहार होली, दीवाली और दशहरा पर सरकारी छुट्टी क्यों? इसी तरह ईसाइयों को हिंदू, मुस्लिम या अन्य धर्मों के अनुयायियों के त्यौहारों पर छुट्टी क्यों ?

यह सर्वविदित सत्य है कि दूसरे धर्मों के त्यौहारों पर मिली छुट्टियों पर लोग इंजॉय नहीं करते हैं, तो उन्हें जबरन घर पर बैठाने से बेहतर है वे दफ्तर जाकर जनता के काम निपटायें, जिससे सरकारी मशीनरी में सुधार भी होगा और अलग-अलग धर्मों के त्यौहारों पर सरकारी दफ्तर भी खुले रह सकते है। इसका सीधा फायदा पब्लिक को ही मिलेगा और इससे सरकारी  कार्यों का निष्पादन भी बिना व्यवधान चल सकेगा?

हालांकि सरकारी कर्मचारी यह स्वैच्छिक/ऐच्छिक भी कर सकते है, जिसके लिए उन्हें इंसेंटिव भी दिया जा सकता है। बाद में, सरकार भिन्न-भिन्न मंत्रालयों/दफ्तरों/ऑफिसों में भिन्न मतावलंबी कर्मचारियों की एक अदद टुकड़ी भी रिक्रूट करने की कोशिश कर सकती है, जिसका फायदा यह होगा कि अन्य मतावलंबी कूलीग की त्यौहारी छुट्टियों में भी सरकारी दफ्तर अनवरत खुले रह सकेंगे और पब्लिक और सरकारी मशीनरी भी बिना व्यवधान सुचारू रुप से चल सकेंगी!

सरकार, बिना किसी विरोध के इसे आसानी से लागू भी कर सकती है, क्योंकि इसमें किसी भी कर्मचारी को अड़चन नहीं होगी, क्योंकि ऐसा कई बार होता रहा है जब भिन्न मतालंबियों के त्यौहारों के संयोग एक क्रम में, एक सप्ताह में और एक साथ में पड़ जाते हैं? जैसे कि वर्ष 2015 के मार्च माह का आखिरी और अप्रैल का पहला हफ्ता?

हां, कुछ फिजूल की राजनीतिक रोटियों इसमें सेंकी जा सकती हैं, लेकिन संभावना कम है और सरकार द्वारा इसे अमल में लाने में किसी भी मतावलंबी को कोई असुविधा भी नहीं होगी, क्योंकि इसका लाभ सरकारी कर्मचारी के साथ-साथ पब्लिक को भी मिलेगा और यह देश के दैनेंदिन विकास को भी उत्तरोत्तर प्रभावित करेगा!

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