रविवार, 17 मई 2015

पेट्रोल-डीजल मूल्यों में वृद्धि पर हाय तौबा क्यों?

घर का बजट बिगड़ जाये तो उसको सुधारने में सालों गुजर जाते हैं और बजट को सुधारने के लिए कड़े फैसले भी लेने पड़ते है, क्योंकि कोई भी दुकानदार हमारे बिगड़े बजट को सुधारने के लिए अपना सामान कम दामों पर नहीं बेचता?

देश का बजट भी ऐसे ही है, जब देश की अर्थ-व्यवस्था बिगड़ी हो, राजकोषीय घाटा अधिक हो तो देश का बजट सुधारने के लिए आश्यकतानुसार कड़े फैसले लेने ही पड़ते हैं!

पेट्रोल और डीजल के रेट जब अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में कम हुए तो पेट्रोल-डीजल के रेट नीचे चले गये, लेकिन जब बढ़ रहें हैं तो बढ़ाये जा रहें हैं! इसमें हाय तौबा कैसा?

वैसे भी भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें सरकार की नियंत्रण से बाहर हैं और तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल के रेट घटाते बढ़ाते हैं?

हां, सरकार तेल कंपनियों का बढ़े मूल्यों का घाटा देकर पेट्रोल-डीजल के दाम स्थिर रख सकती है, लेकिन इससे देश पर ही भार बढ़ेगा और बजट हमेशा बिगड़ा ही रहेगा और बजट और अर्थ-व्यवस्था कभी नहीं सुधरेगा?

ठीक वैसे, जैसे हम घर का बजट सुधारने के लिए लग्जरी चीजों पर पैसा खर्च करना बंद कर देते है! कोई एक घर ऐसा नहीं मिलेगा जो लग्जरी जरूलतों को पूरा करने के लिए लोन लेगा और खुश रह पायेगा?

तो देशवासियों दिमाग लगाओ और दुष्प्रचार में नाक-कान देना बंद करो! देश बचेगा तभी घर बचेगा और अगर घर का बजट सुधार सकते हो तो देश का बजट सुधारने में अपना योगदान करो?
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