शिव ओम गुप्ता |
दिल्ली नगर निगम कर्मचारियों को 15 जून तक वेतन देने के हाईकोर्ट आदेश के बाद मजबूरन शुक्रवार, 12 जून को 493 करोड़ रिलीज करने पड़े वरना केजरीवाल की राजनीति कब रुकती कहां नहीं कहा जा सकता है।
क्योंकि केजरीवाल की राजनीतिक हथकंडे इतने घिनौने और अमानवीय है, जिसके उदाहरण भारतीय राजनीतिक इतिहास में ढूंढने से नहीं मिलेंगे! हड़ताल खत्म होने के बाद कमीने झाडूं लेकर निकल पड़े लीपापोती करने ताकि आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति कर सके। इन्हें तो जनता को उन्हीं की झांडू से मारकर हर जगह से भगाना चाहिए था!
कौन भूल सकता है दिल्ली के जंतर-मंतर की वह घटना जब किसान राजनीति में हाथ धोने के लिए केजरीवाल एंड पार्टी ने एक राजस्थान के किसान गजेंद्र सिंह को सूली पर चढ़ा दिया!
केजरीवाल एंड पार्टी को समझना होगा कि सिर्फ आम आदमी पार्टी नाम रख लेने से आम आदमी का भला नहीं हो जायेगा, बल्कि आम आदमी की तरह दिखना और व्यवहार भी करना होगा।
लेकिन केजरीवाल एंड पार्टी जब से दिल्ली में 67 सीटें जीतकर आई है तब से इनका अहंकार इतना बढ़ गया है कि जनता ही नहीं, भारतीय संविधान, चुनाव आयोग, हाईकोर्ट और सभी संवैधानिक संस्थाओं को आंखें दिखाने लगी हैं।
केजरीवाल की समस्या है कि वे समझते हैं कि जो कुछ वो कह रहें हैं और कर रहें हैं उसको बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ मढ़कर आगे निकल जायेंगे, लेकिन शनिवार 13 जून को दिल्ली के कृष्णानगर विधानसभा से विधायक को वहां की जनता ने जिस तरह से विरोध किया और वहां से भगा दिया, वह काफी कुछ कहता है।
केजरीवाल के लिए यह एक संकेत मात्र है, वे अब नहीं समझे तो वह दिन दूर नहीं जब दिल्ली के प्रत्येक कोने से दिल्ली की जनता अपने ही चुने सभी आप विधायकों को देखते ही डंडा लेकर दौड़ेगी।
केजरीवाल को समझना होगा कि सरकारी अफसर नहीं जो हुक्म चलायेंगे और कोई कुछ नहीं कहेगा। अफसरशाही और राजनेता में बड़ा फर्क है और केजरीवाल एंड पार्टी इस फर्क को जितना जल्दी समझ जायें दिल्ली और उनकी पार्टी दोनों के लिए उतना ही अच्छा है।
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