बुधवार, 17 जून 2015

टट्टू बनकर रह गयी हैं पत्रकारिता और पत्रकार!

शिव ओम गुप्ता
"निकले थे हरि भजन को ओटन लगे कपास" आज के दौर की पत्रकारिता और पत्रकारों की दशा-दिशा को यह दोहा बढ़िया से परिभाषित करती है।

घर से निकलकर पत्रकारिता करने निकले युवा आज देश के चौथे स्तंभ को मजबूत करने में सहभागी तो बनना चाहते हैं, लेकिन पत्रकारिता के दौर ए जहन्नुम में न्यूज चैनल, न्यूज पेपर और न्यूज बेवसाइट की संपादकीय विभाग की बैठकें अब खबरों की चर्चा कम टीआरपी, सर्कुलेशन और हिटिंग की चर्चा में मशगूल है, जहां जनहित मुद्दे गौड़ और कमाई, चापलूसी ज्यादा अह्म और प्राथमिक हो चली है।

संपादकीय बैठक में अब इस बात की चर्चा नाम मात्र की होने लगी है कि कौन सी खबर छूट गई है, बल्कि सर्वाधिक चर्चा इस बात की होती है कि सर्वाधिक टीआरपी, सर्कुलेशन और हिट दिलाने वाली खबर कौन सी है?

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