शिव ओम गुप्ता |
कांग्रेस लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक हार के बाद अब तक किसी ऐसे मुद्दे पर उस जनता को आकर्षित करने में असफल रही है, जिसने उसे लोकसभा चुनावों 44 सीटों और दिल्ली विधानसभा चुनाव में 00 पर समेट दिया था।
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, जिन्हें एक संदेश लिखने के लिए भी नकल की जरूरत पड़ती है, उन्हें कांग्रेसी भारत भ्रमण करवा कर स्क्रिप्टेड भाषण करवा रही है ताकि बेरोजगार और कुंवारे शहजादे की नौकरी और छोकरी का जुगाड़ हो सके।
कांग्रेस की समस्या है कि वह गांधी परिवार से इतर कोई कांग्रेस से जुड़ा नेता काबिल दिखता ही नही है और ऐसे बैल को जबरन हल से बांधना चाहते हैं जो खेत जोतना तो छोड़ों, खूंटे से भी बंधना नहीं चाहता है।
राहुल गांधी होंगे काबिल, लेकिन कम से कम राजनीति के काबिल तो बिलकुल नहीं है। मां सोनिया गांधी राहुल के साथ टिपिकल पैरेंट्स की तरह व्यवहार कर रहीं है, जहां पैरेंट्स बच्चों को डाक्टर और इंजीनियर बनाने की जिद में बच्चों की जिंदगी बर्बाद कर देते है। राहुल गांधी बर्बाद ही हुआ जा रहा है। अरे भाई लौंडा 50 का हुआ जा रहा है, कब होगी उसकी शादी?
राहुल गांधी को ऐसे दौड़ में क्यों शामिल किया जा रहा है ये तो आसानी से कोई भी समझ सकता है, लेकिन कांग्रेस को राहुल गांधी के चक्कर में असामयिक मौत क्यों करवाई जा रही है, यह समझ से परे है।
राहुल गांधी की नेतृत्व में कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान, दिल्ली, झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ विधानसभा चुनाव में सत्ता गवीं चुकी है।
ऐसा लगता है कांग्रेस और कांग्रेसी नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में भस्म होने को अभिसप्त है। यह ठीक वैसे है, जैसे दूल्हे को जबरन घोड़ी पक बिठा दिया गया है और बाराता न केवल घोड़ी के साथ चलने को मजबूर हैं बल्कि नाचते-गाते चलने को भी मजबूर हैं ।
इसका नमूना किसी भी गैर गांधी परिवार के छोटे-बड़े नेताओं के चेहरे पर देखा जा सकता है। बात चाहे कांग्रेस नेता आनंद शर्मा की करें या गुलाब नबी आजाद की, जिनकी गिनती कांग्रेस के काफी शांतिप्रिय और संजीदा नेताओं में होती है, वे आज किसी भी मुद्दे पर बयान देते वक्त फस्ट्रेट नजर आते हैं।
हम यहां उन कांग्रेसी नेताओं की फस्ट्रेशन की चर्चा जरूरी नहीं है जो हमेशा फस्ट्रेशन में बयान देते हैं । इनमें मनीष तिवारी, शकील अहमद, राशिद अल्वी, संजय झा और सुरजेवाला जैसे कुख्यात नेता शामिल हैं।
राहुल गांधी पूरे पांच साल कितनी भी प्रायोजित इमेज बिल्डिंग यात्रा कर लें, लेकिन परिणाम हमेशा जीरो ही निकलेगा, क्योंकि राहुल गांधी जब लोगों से मिलते हैं तो लगता है किसी मिशन पर निकले हैं और स्क्रिप्ट पढ़ रहें हैं। उनके मुंह से निकली बात बनावटी और नकली लगती है, जिसका असर टीवी चर्चा और न्यूजपेपर की सुर्खियों में भी अधिक देर जिंदा नहीं रह पाती है।
तो सोनिया जी राहुल गांधी की लांचिंग छोडिये और कांग्रेस की रीलांचिंग के बारे में सोचिये, क्योंकि एक बेहतर लोकतांत्रिक ढांचे के लिए एक बेहतर सरकार के साथ-साथ देश को एक बेहतर विपक्ष भी चाहिए, जो राहुल गांधी बिलकुल नहीं हैं।
तो सोनिया जी पुत्रमोह को छोड़िये और कांग्रेस को बचाने के लिए गांधी परिवार से इतर सोचना जरूरी है, क्योंकि कांग्रेस में अच्छे नेताओं की कमी नहीं है, जो आपकी डायनेस्टी पॉलिटिक्स में उभर नहीं पा रहें हैं।
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