शिव ओम गुप्ता |
रोज रोज यह सोचता हूं आज केजरीवाल के बारे में नहीं लिखूंगा, लेकिन ये केजरीवाल एंड पार्टी इतनी पाजी है कि हाथ की उंगलियां खुद ब खुद चलने लगती हैं।
अफसोस यह है कि अब तक आम आदमी पार्टी की नादानी पर लिखता था कि कच्चे नींबू हैं पर मजबूरन अब उनकी बेवकूफियों पर लिखना पड़ता है।
एक से बढकर एक हरकतें इनकी ऐसी हैं कि हंसी फुदकने लगते हैं और केजरीवाल एंड पार्टी समझती है कि वे जो कर रहें वो किसी के समझ नहीं आ रही है और वे जो प्रेस कांफ्रेंस करके कह देंगे, लोग मान लेंगे और उनकी पिलाई घुट्टी पीकर सो जायेंगे।
ये एक और मुगालते में रहते हैं कि दिल्ली वाले सच्चाई जानन् के लिए केजरीवाल एंड पार्टी की प्रेस कांफ्रेस का इंतजार करते हैं, दिल्ली संतुष्ट हो जाती है। कितनी हास्यास्पद बात है।
तरस आता है इनकी सोच और हरकतों की। मतलब जिनमें गांव की पंचायत नहीं संभाल सकने की औकात और समझ नहीं है वे देश को लोकतंत्र का मतलब समझाने के लिए चुन ली गईं हैं।
मेरा दावा है कि केजरीवाल एंड पार्टी दिल्ली की सत्ता में जब तक रहेगी, वह पूर्ण राज्य मुद्दे की आड़ में कोई काम नहीं करने की बहाना करती रहेगी और दिल्ली की छाती पर मूंग दलती रहेगी? और छाती पर मूंग दलना भी चाहिए, क्योंकि छाती पर दिल्ली वालों ने तो खुद ही बिठाया है?
और इस बात की अधिक संभावना है केजरीवाल एक बार फिर दिल्ली की मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर हो जायेंगे, क्योंकि राजनीतिक अक्षमता और फैसले लेने की कमजोरी केजरीवाल को नैतिक अधिकार नहीं देगी कि वे बिना वादों को पूरा किये मुख्यमंत्री पद पर बने रहें ।
और इस बात की अधिक संभावना है केजरीवाल एक बार फिर दिल्ली की मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर हो जायेंगे, क्योंकि राजनीतिक अक्षमता और फैसले लेने की कमजोरी केजरीवाल को नैतिक अधिकार नहीं देगी कि वे बिना वादों को पूरा किये मुख्यमंत्री पद पर बने रहें ।
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