बुधवार, 17 जून 2015

कांग्रेसी झूठ और मीडिया दुष्प्रचार की निष्पक्षता पर उठ रहे हैं सवाल ?

शिव ओम गुप्ता
कांग्रेस प्रवक्ताओं में एक से एक ऐसे झूठे प्रवक्ताओं की फौज जमा है कि सच और ईमानदारी शरमा जाये!

संजय झा, रागिनी नायक, अजय कुमार, राशिद अल्वी, शकील अहमद, दिग्विजय सिंह, सरिता बहुगुणा, पूनावाला बंधु, मीम अफजल और आलोक शर्मा जैसे प्रवक्ताओं का झुंड दिनभर टीवी न्यूज चैनलों पर पानी पी पी कर झूठ और दुष्प्रचार करते है।

कहा भी गया है कि झूठ के सिर पैर नहीं होते हैं और झूठ की आवाज भी बहुत बुलंद होते है और जिन्हें झूठ का ही व्यापार करना आता है वे छाती ठोक कर ऐसे झूठ बोलते हैं कि सच सामने होते हुए झूठ प्रभावी और प्रभावित कर जाता है।

शायद यही कारण है कि कांग्रेस क्षणिक ही सही, लेकिन झूठ और दुष्प्रचार से चेहरे चमका रही है पर कांग्रेसी भूल रहें हैं कि सच की रोशनी में झूठ के बादल फटते ही नहीं जाते, झूठ बोलने वालों के मुंह काले हो जाते हैं।

हालांकि कांग्रेस के प्रवक्ताओं को बेल ट्रेंड लॉयर की डिग्री मिली हुई लगती है, क्योंकि ऐसा कई बार हुआ है जब टीवी चैनलों पर सफेद झूठ बोल चुके उपरोक्त प्रवक्ताओं के चेहरे शर्म से सफेद पड़ गये हैं, लेकिन ट्रेनिंग तो ट्रेनिंग होती है, ये फिर दूसरे दिन मुंह धोकर एक नया झूठ लेकर पहुंच जाते हैं।

उदाहरण चाहिए, क्योंकि बिना उदाहरण बात हजम नहीं होती है। यूपीए कार्यकाल में हुए कोल ब्लॉक, 2जी स्पैक्ट्रम, रॉबर्ट वाड्रा जमीन सौदा और कॉमनवेल्थ घोटाले को कांग्रेस के इन्हीं प्रवक्ताओं ने जीरो लॉस की थ्योरी बताकर झूठ का पुलिंदा बतलाया था, लेकिन आज सच्चाई सबके सामने आ चुका है।

क्या डी राजा, क्या मनमोहन सिंह, क्या श्रीप्रकाश जायसवाल, क्या कनिमोझी, क्या रॉबर्ट वाड्रा और क्या शीला दीक्षित सबकी पोल खुल गई। इनके साथ ही उपरोक्त इन सभी कांग्रेसी प्रवक्ताओं की पोल खुल गई, जे छाती ठोक कर टीवी पर सफेद झूठ बोलते थे।

क्या ललित मोदी को लेकर ऐसे कांग्रेसी प्रवक्ताओं के हो-हल्ला, झूठ और दुष्प्रचार पर कोई भरोसा कर सकता है, जिन्होंने यूपीए शासनकाल में हुए अरबों-खरबों के घोटाले को जीरो लॉस थ्योरी से झुठलाने की कोशिश की थी।

और मीडिया का सच अब किसी से छिपा हुआ नहीं है। क्या बरखा दत्त, क्या राजदीप सरदेसाई, क्या आशुतोष, क्या शेखर गुप्ता और पुण्य प्रसून बाजपेयी? और भी कई धुरंधर हैं, कहा जाये तो हमाम में सारे नंगे हैं!

उपरोक्त सभी धुरंधर कहे जाने वाले कालजई पत्रकारों की सच्चाई किसी से छिपी नहीं है, क्योंकि उपरोक्त सभी टीवी पर पत्रकारिता छोड़, बाकी सब कुछ करते हैं और मार्केट और ज्यादा पैसे कमाने के लिए ईमान बेंचकर ऐजेंडा सेट करने की कोशिश करते हैं।

 और तुर्रा यह कि चाहते है कि सभी इनके दिखाये सच पर भरोसा भी कर लें। हालांकि अधिकांश दर्शक इनके झूठ और दुष्प्रचार से प्रभावित हो भी जाते है और बिना क्रॉस चेक किये क्रांतिकारी बन जाते हैं।

राजदीप सरदेसाई (कैश फॉर वोट), बरखा दत्त (कैश फॉर वोट) आशुतोष (केजरीवाल आंदोलन ), शेखर गुप्ता (गुजरात दंगा-भ्रामक रिपोर्टिंग) और पुण्य प्रसून बाजेपेयी (केजरीवाल लाइव स्टूडियो ) जैसे प्रकरण इनकी निष्पक्षता पर दाग लगा चुके है।
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