शनिवार, 25 अप्रैल 2015

कांग्रेसी मूर्ख बनाकर ही वोट लेंगे क्या? राहुल भी इसी राह पर!

शिव ओम गुप्ता
लांचिंग-रीलांचिंग, पिकनिक-हॉलीडे और रिहर्सल-भाषण के बाद बहरुपिये राहुल गांधी एक बार फिर अपनी पुश्तैनी मांद में घुसने जा रहें हैं?

सब कुछ गंवा चुकी कांग्रेस की थिंकटैक एक बार फिर पुराने ढर्रे पर लौटते हुए राहुल गांधी को हिंदू वोटरों को एक फिर ताड़ने के लिए हिंदू तीर्थों के चक्कर लगवा रही है, ताकि हिंदू बहुसंख्यक राहुल गांधी को इटलीवासी नहीं, हिंदुवादी समझे?

जैसा कि उनके पिता राजीव गांधी से अयोध्या राम जन्मभूमि का ताला खुलवा कर किया गया था और हिंदू बहुसंख्यकों को इमोशनल फूल (मूर्ख) बनाते रहे!

क्या कांग्रेस थिंकटैंक 2014 लोकसभा चुनाव की ऐतिहासिक पराजय के बाद अभी भी यह मानती है कि आज की नई जनरेशन भी गांधी परिवार के मोह में इमोशनल फूल बन जायेगी और स्वघोषित पप्पू राहुल गांधी को भी अपना वोट देगी?

आज जहां देश का युवा विकास, तकनीकी और रोजगार की बात कर रहा है, वहीं कांग्रेस एक बार फिर इमोशनल फूल बनाने वाले कॉर्ड पर दांव खेल रही है और पप्पू तो पप्पू? पप्पू की मम्मी भी राजी हैं!

तो क्या विश्व के सबसे बड़े युवा मतदाताओं वाला देश पप्पू के लिए इमोशनल फूल बनने को राजी हैं, क्योंकि कांग्रेस थिंक टैंक तो देश को पप्पू को थोपने पर अमादा दिखती है और वो हर वो चोचले आजमाने की कोशिश करती दिख रही है, जिसके जरिये उसने भारत को 5 दशक तक बर्बाद किया?

#RahulGandhi #Pappu #Congress #Youth  #SoniaGandhi #Voters #GandhiFamily 

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

केजरीवाल एंड पार्टी का मास्टर प्लान बैक फायर हो गया!

#केजरीवाल एंड पार्टी का #मास्टरस्ट्रोक जो उनके ही लिए #हॉर्टस्ट्रोक साबित हो गयी?

मास्टर स्ट्रोक प्लान की पटकथा-

"तैयारी हो गयी ?"
"हाँ हो गयी"
"वो आदमी कौन है जो पेड़ पे चढ़ कर थोड़ा ड्रामा करे, उसे क्या बोलना है सब समझा दिया ना",
"हां, लिख कर दे दिया है",
"कौन है वो?"
"बीजेपी का था अब बस टाइमपास है",
"चलो अच्छा है, कल को कुछ गलत हुआ तो #बीजेपी के सर पे दे मारेंगे के तुम्हारा बन्दा हमारी सभा में ड्रामा कर रहा था।
देखो सब ठीक से हो? बहुत ज्यादा देर तक पेड़ पे ना रहे। जब हल्ला मचे उसे आराम से उतारवा लेना और मंच में ले आना।
वही से उसका भाषण करा देंगे"
"बहुत क्रन्तिकारी होगा, मोदी साब तो हिल जायेंगे हमारे मास्टर स्ट्रोक से !"

हॉर्ट स्ट्रोक- बैक फायर्ड-स्क्रिप्ट:

"लटक गया"
'यह सब किसान आंदोलन को रोकने की साजिश है, बीजेपी चाहती है कि आम आदमी पार्टी को बदनाम किया जाये"
"हमारी कोई गलती नहीं, हमने गजेंद्र को उतारने की अपील की थी"
"#गजेंद्र अगली बार अगर पेड़ से लटका तो खुद केजरीवाल पेड़ पर चढ़ेंगे, शाखाओं पर जायेंगे और खुद उसे उतारेंगे"
हम से गलती हो गयी जी, हम माफी मांगते हैं जी"
#Gajendra #Kezriwal #AAP #Farmer #Suicide #KumarBiswas

सावधान! एक और बहरुपिया आया?


शिव ओम गुप्ता
क्योंकि अगर राहुल गांधी सचमुच हिंदू धर्म का पालन करते है या हिंदू धर्म को जानते हैं तो यह भी जानते होंगे कि हिंदू धामों की यात्रा एक हिंद धर्मावलंबी कब शुरू करता है?

और अगर राहुल गांधी केदारनाथजी यात्रा को जरिये हिंदुओं के दिलों में पुनर्वापसी की कोशिश है, तो यह छिछोरापन से अधिक कुछ नहीं है ।

ये तो वहीं बात हुई कि 100 चूहे खाकर बिल्ली चली हज को? वो कहते हैं न कि कपड़े बदलने से शक्ल नहीं बदलती है और राहुल गांधी आपकी काबिलियत और कारिस्तानी से देश का बच्चा परिचित है।

अच्छा होगा अगर आप आज राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर लो, क्योंकि देश की जनता का कोई भरोसा नहीं है, क्योकि अभी भी देश की अधिकांश जनसंख्या इतनी समझदार नहीं हुई है, क्योंकि वह आज भी अपना वोट जाति-बिरादरी और भावनाओं और जज्बातों से ही करती है?

एक नहीं, कईयों ऐसे उदाहरण हैं जिन्हें चाहे-अनचाहे देश/राज्यों को झेलना पड़ता है, क्योंकि वोट देने के बाद जनता सिर्फ  झेल सकती है। यानी, जब चिड़िया चुग गई खेत?

जैसे-पिछले 10 वर्ष देश को मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के रुप में झेलना पड़ा, उत्तर प्रदेश में पुत्तर अखिलेश को प्रदेशवासी  झेल रहें हैं और अब दिल्ली में केजरीवाल जैसे बहरूपिये को दिल्लीवाले होश-जोश खोकर वोट देकर झेलने को मजबूर हैं!

तो राहुल गांधी भी निकल पड़े बहरुपिये बनने और हिंदू वोट और जज्बाती वोटरों के दिल में जगह बनाने चल पड़े धार्मिक यात्रा पर...क्योंकि काबिलियत तो है ही नहीं, अब वोट तो ऐसे ही हासिल हो सकते हैं।

तो देश की जनता, आंख-नाक-कान खोल को रखो, क्योंकि मनमोहन सिंह, अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल के बाद अब राहुल गांधी बहरुपिये की खाल पहन चुके हैं, बस वादों का पिटारा खोल आपसे वोट मांगने वाले है, तो तैयार रहिये?

गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

Inhumane CM Kezriwal! Thank God, It was Delhi?

Shiv Om Gupta
Delhi you are lucky enough! because what you did in assembly election of Delhi by own your hand at polling booth, never been easy 5 years for you?

Otherwise you can't imagine what will happen with you such so called new age politics of Kezriwal!

Yesterday, Everyone witnessed Kezriwal & his party's characteristic! Kezriwal shown his worsen class by his dirty face of politics at Jantar-Mantar, Delhi where an farmer suicide at front of him and Delhi CM kezriwal continuously does political speech inhumanely?

Think once, If Kezriwal fought election from Haryana or Rajasthan assembly election and they got mandate like Delhi?

I just felt numb to think about it, because if it was in Haryana or Rajasthan then they could have uncontrolled and does whatever they want?

Today indeed National capital of Delhi people will feel relaxed by its own Delhi status that has been controlled by Central government.

बुधवार, 22 अप्रैल 2015

किसान राजनीति में केजरीवाल ने किसान को मार डाला!

शिव ओम गुप्ता
देश में राजनीति बदलने और सुधार करने की बात करने वाले हवशी अरविंद केजरीवाल ने राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर स्वार्थ प्रेरित राजनीति का ऐसा नंगा नाच खेला कि बड़े-बड़े राजनीतिक दलों ने दांतों तले उंगुली दबा ली। मतलब कि केजरीवाल ने महज केंद्रीय राजनीति में हैसियत जताने और अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा दिखाने के लिए एक निर्दोष किसान की बलि ले ली!

केजरीवाल की देहरी पर फरियाद लेकर पहुंचे दौसा, राजस्थान के किसान गजेंद्र ने केजरीवाल की भारी उम्मीदों के बीच हार कर मौत को गले लगाना ही पड़ा!

नि:संदेह दौसा का वह किसान बेमौसमी बरसात से खराब हुए फसल से उपजे आर्थिक तंगी के कारण नाउम्मीदी में था और केजरीवाल से उम्मीदों में आत्महत्या का धमकी दे रहा था!

वरना दो घंटे पहले पेड़ पर चढ़ कर बैठे व्यक्ति ने आत्महत्या में इतनी देर क्यों की? क्योंकि आर्थिक तंगी से परेशान किसान नाउम्मीदी से भरा था और चाह रहा था कि केजरीवाल या पार्टी का कोई सदस्य उसकी बात सुने, लेकिन कोई उसके पास नहीं गया ?

किसान की नाउम्मीदी और उस पर केजरीवाल की अनदेखी से किसान के पास कोई चारा नहीं बचा! शायद किसान केजरीवाल की रैली में उनके अलग राजनीति करने की झांसे से प्रभावित था, जैसे दिल्ली विधानसभा चुनाव में दिल्ली की जनता झांसे में आ गई थी!

हालांकि खुद को बचाने के लिए किसान ने कई बार चिल्लाकर, गमछा हिलाकर और पर्ची फेंककर कोशिश भी की ताकि कोई आये और उसको उतार कर उसकी बात सुने और उसकी सहायता करे!

लेकिन किसान राजनीति में हाथ धोने में जुटे केजरीवाल ने ध्यान देना जरूरी नहीं समझा और किसान नाउम्मीदी में गमछे को फंदा बनाकर झूल गया! 

सोमवार, 20 अप्रैल 2015

Rahul's scripted speech doesn't touch hearts!

Propaganda of congress doesn't reflect reality of Indian farmers. It seems congress did not learned anything from defeat.

Hibernated Vice president Mr Rahul Gandhi, who came after 56 days of holiday (Honeymoons) from famous (infamous) Bangkok spoke like shit again.

Because his scripted speech doesn't touch hearts of people, although political malfunctioned speech of his hurts more.

#RahulGandhi #Congress #LandAcquisitionBill #IndianFarmers

फिर धरने पर केजरीवाल, उन 70 वादों का क्या?

शिव ओम गुप्ता
अबे जो निवाला मुंह में ले रखा है पहले उसको निगल? फिर दूसरे निवाले के बारे में सोचना?

कहने का मतलब है कि भाई केजरीवाल पहले उन 70 वादों को पूरा करो, जिसके चक्कर में दिल्ली ने तुम्हें मुख्यमंत्री की गद्दी सौंप दी है?

और तुम हो कि इधर-उधर की बातें करके दिल्लीवालों को बेवकूफ पर बेवकूफ बनाये जा रहे हो?

कभी दिल्ली में किसान ढूंढ लाते हो, फिर फिजूल की पब्लिसिटी के लिए उन्हें मुआवजा बांटने का तिकड़म करते हो और दिल्ली को जिम्मेदारी छोड़कर धरने पर बैठने जा रहे हो?

भाई केजरीवाल, तूने ही कहा था कि दिल्ली को छोड़कर तुम्हारी पार्टी कहीं और के बारे नहीं सोचेगी और पूरा ध्यान दिल्लीवालों की उम्मीदों को पूरा करने में देगी।

और फिर तुमने इसीलिए तो योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को किनारे लगाया क्योंकि वे दिल्ली से बाहर पार्टी का विस्तार चाहते थे और ऐसा तुम नहीं चाहते थे, सच है कि नही?

अब अगर पार्टी दिल्ली से बाहर अभी विस्तार नहीं चाहती है तो भूमि अधिग्रहण विधेयक और मुआवजे की राजनीति क्यों कर रही है?

ये तो वही बात हो गई कि चील का उड़ना कम और चिल्लाना ज्यादा? कुछ काम कर लो बेटा केजरीवाल वरना कहीं ऐसा न हो कि चौबे जी गये छब्बे बनने और दूबे बनकर लौटे?

#Kezriwal #AAP #Delhi #LandAcquisitionBill #Congress

शनिवार, 18 अप्रैल 2015

किसानों के भेष में राहुल गांधी से मिलने पहुंचे कांग्रेसी कार्यकर्ता!

शिव ओम गुप्ता
राहुल गांधी से मुलाकात करने पहुंचे अधिकांश लोग किसान की भेष में कांग्रेसी कार्यकर्ता हैं, क्योंकि किसान कांग्रेस या राहुल गांधी के नारें क्यों लगायेंगे भला?

राहुल गांधी ने मुलाकात के बाद इसकी पुष्टि कर दी है, उन्होंने कहा, ज्यादा से ज्यादा किसानों को रैली में लेकर आओ?

अब किसान नेता तो किसानों की रैली का खर्च उठा नहीं सकते? क्योंकि राहुल गांधी के आवास पर जुटा लोगों का हुजुम किसान नहीं, बल्कि कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का है और किसानों को बसों में भर कर भीड़ जुटायेंग?

वैसे, बेमौसमी बरसात से फसल बर्बाद होने सेे किसान खाली हैं उन्हें मुफ्त दिल्ली यात्रा में क्या परेशानी हो सकती है।

राहुल गांधी की रीलांचिंग ही करनी है तो करो भाई, किसानों को क्यों बदनाम कर रहे हो, वे किसान जो स्वाभिमान से जीना पसंद करता है, किसी से कुछ मांगने से बेहतर आत्महत्या कर लेता है, उसके भेष में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को खड़ाकर राहुल गांधी के नारे लगवा कर किसे मूर्ख बनाना चाह रहें हैं ।

दुनिया प्रसंशा कर रही है, कांग्रेस समेत विपक्षी छाती पीट रहीं हैं?

शिव ओम गुप्ता
प्रधानमंत्री #नरेंद्रमोदी के काम-काज और कार्य शैली की चारों तरफ जय जयकार हो रही है, लेकिन यह सुनकर सत्ता गंवा चुके  विपक्षी पार्टियों की छाती पर सांप लोटने लगते हैं, तो इसमें कोई क्या कह सकता है!

#अमेरिकीराष्ट्रपति #बराकओबामा ने #टाइम्समैगजीन में लिखे अपने लेख में मोदी को सबसे बड़ा #सुधारक बताया तो कांग्रेस रो पड़ी, अब #विश्वबैंक प्रमुख #जिमयोंगकिम ने प्रधानमंत्री #जनधनयोजना की प्रशंसा की है और मोदी की #दूरदर्शिता की प्रशंसा करते हुए जन धन योजना को एक दूरदर्शी प्रयोग करार दिया है, लेकिन कांग्रेस समेत का रोना ही खत्म ही नहीं हो रहा?

अरे भाई! #विपक्षीपार्टी का मतलब यह थोड़े न होता है कि कुछ भी हो झंडा लेकर खड़े हो जाओ? आंख-नाक-कान खोल के रखों भाई? 

भारतीय योजनाओं की देश-विदेश में प्रशंसा हो रही है और आप हैं कि अभी भी हार के गम में आंसू बहा रहें है? अब तो संभलों, वो जनता अब नहीं रही जो आप सुनाओगे, वो वहीं सुनेगी? 

थोड़ी तो समझदारी दिखाओं? क्योंकि आज का #युवावोटर परिवार और भावना में बहकर वोट नहीं कर रहा है, वह काम और दूरदर्शिता को वोट और सलाम करता है, तो भूल जाओ कि तुम्हारे विरोध और उलटबांसी भरे बयानों से युवा जनता को कोई फर्क पड़ने वाला है? 

भई, जो मोदी सरकार अच्छा कर रही हैं, बतौर विपक्षी पार्टी प्रशंसा नहीं कर सकते हैं तो चुप रहो? कम से कम मुंह खोलकर महज विरोध करने के लिए विरोध के नारे मत लगाओ? 

क्योंकि जनता सब जानती है और सब देख रही है, ये मत समझना कि अब हो-हल्ला करके, रैली और भगदड़ करके उन युवा #मतदाताओं के वोट हासिल कर लोगे, तो भूल जाओ।

हालांकि अभी भी देर नहीं हुई है और पुरातन पद्धति को छोड़कर आगे बढ़ो, क्योंकि अब #बीजेपी से ही नहीं, लोग #केजरीवाल से भी हिसाब करने लगे हैं और फिर कांग्रेस नेता सिर्फ छाती पीट रहे हैं?

#Modi #BJP #JanDhanYojna #JimYongKim #WorldBank #BarrackObama #Congress #OppositionParty

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

धरना नहीं, अब होगा धर्म परिवर्तन धरना?

शिव ओम गुप्ता
क्या अजीबोगरीब स्थिति आ गई है, अब लोग अवैध निर्माण, अवैध कार्यों को कानूनी व वैध बनाने के लिए #धर्मपरिवर्तन की धमकी देंगे और मांगे नहीं पूरी होने तक धर्म बदल लेंगे और मांगे पूरी होते ही पुन: अपने धर्म में लौट आयेंगे?

यानी 'धरना' अब 'धर्म परिवर्तन धरना' से जाना जायेगा, जिसको अपनी मांगे पूरी करवानी होगी, वे लोग अब धरना नहीं, बल्कि धर्म परिवर्तन धरना करेंगे?

गौरतलब है #जनलोकपाल के लिए धरना-प्रदर्शन करके केजरीवाल जैसे लोग मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गये और ऐसी पूरी संभावना है कि कल कुछ और लोगों का समूह सड़कों पर जनलोकपाल के लिए सड़कों पर कब्जा कर ले?

लेकिन इस बार वे धरना नहीं, बल्कि धर्म परिवर्तन धरना शुरू कर देंगे? और नारा होगा, " हमारी मांगे पूरी करो, वरना धर्म परिवर्तन कर लेंगे!

क्योंकि धरना-प्रदर्शन का माइलेज तो #केजरीवाल सरीखे तमाशाई ले उड़े, जिससे अब सामान्य आदमी का धरना-प्रदर्शनों से भरोसा उठ गया है इसलिए अब कुछ नया जुगाड़ करना ही पड़ेगा?

तो अब वैध-अवैध लोकतांत्रिक अधिकारों और हकों के लिए कुछ तमाशाई लोग अगर धर्म परिवर्तन धरना की अगुवाई करते दिखे तो आश्चर्य मत कीजियेगा।

 क्योंकि धरना-प्रदर्शन के जरिये राजनीति में पहुंचे लोगों ने इसकी आत्मा को मलिन कर दिया है, जिससे अब धरने के उद्दश्यों पर प्रश्नचिह्न लग गया है, क्योंकि धरना-प्रदर्शनों में अब न जनता को भरोसा है और न ही देश के हुक्मरानों में भरोसा बचा है!
#Protest #Democracy #AAP #Kezriwal #Conversion

गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

तो आजम खां साहब, कब जा रहें हैं देश छोड़कर?

यूपी के कबीना मंत्री आज़म खान की बददिमागी और हिकारत पूर्ण भाषा शैली देख-सुनकर देश ही नहीं, खुद हमबिरादर मुस्लिम भी दुखी रहते हैं, लेकिन राजनीति चमकाने के लिए कुछ भी कर गुजरने में खां साहब उस्ताद हैं, जिनका पूरा साथ सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव महज मुस्लिम वोट बैंक के लिए देते है। डर है कि ऐसे एक-आध नेता और पैदा हो गए तो देश का क्या होगा? अच्छा है खां साहब परवेज मुशर्रफ की तरह कहीं निकल जायें।

एक ऐसा नेता, जो डंके की चोट पर कह सकता है कि वह जानबूझकर ठीक चुनाव से पूर्व ऐसी सांप्रदायिक, दुर्भावनापूर्ण और भड़काऊं बयान देता है ताकि मुस्लिम एकजुट हों, वोटों का ध्रुवीकरण हो? ऐसे नेताओं का देश छोड़ देना ही उचित है, क्योंकि इससे देश की एकता को ही नहीं, एकरसता को भी खतरा है।

मुझे लगता है, भारत का कोई भी मुस्लिम आजम खान के कट्टर सोच और कुत्सित मानसिकता को सेल्युट नहीं करता, क्योकि देश का कोई भी नागरिक अब हिन्दू-मुस्लिम को नहीं, शुचिता और प्रगति को सैल्युट करता है!

आज देश का प्रत्येक नागरिक देश की तरक्की के बारे में पहले सोचता है, क्योंकि महंगाई, भ्रष्टाचार, घोटालों और बेरोजगारी से परेशान देश सपने देखने लगा है, लेकिन आजम खां जैसे लोग हमबिरादरी मुस्लिम वोटरों को उनके विकास और तरक्की के मुद्दों से इतर रखकर भटकाने कोशिश करते रहे हैं, ताकि समाजवादी पार्टी में उनकी राजनौतिक हैसियत ऊंची हो सके, लेकिन मुस्लिम भाईयों के विकास का क्या? जिनको महज भड़काकर और उनके वोटों का हाईजैक करने के बाद उन्हें उनके नसीब पर छोड़ दिया जाता है?

वैसे ही, अधिकांश मुस्लिम वोटरों पर आरोप लगता है कि वे मौलानाओं व इमामों के फतवों पर वोट करती हैं, उनकी कोई अपनी राय नहीं होती?

लेकिन लगता है कि अब वो दिन लदने वाले हैं,  क्योंकि अब मोदी-बीजेपी का डर दिखाकर वोट मांगने और उल्लू बनाने वाले को मुस्लिम भाई भी समझ चुके हैं!

सच्चाई यह है कि देश की महंगाई का सबसे अधिक नुकसान मुस्लिम भाईयों पर पड़ता है, कैसे? यह सभी मुस्लिम भाई-बहन बहुत अच्छी तरीके से जानते है?

जबाव है, मु्स्लिम समुदाय का रहन-सहन और उनकी पारंपरिक जीवन शैली? देखा गया है कि अधिकांश मुस्लिम आबादी रोज की जरूरत के अनुसार अपनी गृहस्थी की सामग्री खरीदते हैं, इसीलिए बढ़ती महंगाई के मुताबिक इन्हें हर दिन रोजमर्रा की जरुरतों पर दूसरों की तुलना में अधिक खर्च करना पड़ता है।

हालांकि इसके पीछे एक अन्य वजह मुस्लिम परिवारों का बड़ा होना और फिर जल्द ही परिवार में भाई-भाईयों के बीच (न्यूक्लियर फेमली) होने वाला बिखराव भी है?

इसलिए जरूरी है कि हिन्दू-मुस्लिम नहीं, जाति-बिरादरी नहीं, बल्कि विकास को सलामी देना जरुरी है, क्योंकि विकास ही वह कुंजी है, जिससे महंगाई, बेरोजगारी और बेकारी को दूर किया जा सकता है!

नि:संदेह हिंदू-मुस्लिम, जाति-बिरादरी से देश नहीं चलता है और जो लोग इस प्रकार की राजनीति करना चाहते हैं उन्हें बिना देर किये देश छोड़ देना चाहिए, क्योंकि ऐसी राजनीति को हां कहने के लिए देश की नई पीढ़ी बिल्कुल तैयार नहीं है। तो खां साहब कहीं शरणार्थी वीजा के लिए अप्लाई कर लें, क्योंकि आपको नागरिकता तो पाकिस्तान भी नहीं देगा? क्योंकि पाकिस्तान में ऐसे नेताओं की भरमार है।

बुद्धु अब बुद्धु नहीं रहा, अब वह राहुल हो गया है?

राहुल गांधी की घर वापसी के बाद सभी मीडिया चैनलों पर एक ही पंच लाइन है, "लौट के राहुल घर को आये"

त्राहिमाम! राहुल गांधी ने 'बुद्धु' को रिप्लेस कर दिया है। मतलब, बुद्धु का नया नामकरण अब राहुल हो गया है!

बधाई हो, क्योंकि बुद्धु अब बुद्धु नहीं रहा, अब वह राहुल हो गया है?

रविवार, 12 अप्रैल 2015

एक पोर्न स्टार को आदर्श बनाने पर क्यों तुला है ABP न्यूज चैनल?

ABP न्यूज चैनल में काम करने वालों कर्ताधर्ताओं की बुद्धि भ्रष्ट हो गयी लगती है। एक ऐसे व्यक्तित्व को व्यक्ति विशेष का तमगा दे दिया है, जिसके बारे में चर्चा करने मात्र से हमें एक ऐसी इंडस्ट्री के बारे में चर्चा करनी पड़ती है, जिसके बारें में शायद ही कोई घर-परिवार की सदस्य अपने संबंधियों के बीच खुलकर चर्चा कर पायें!

कोई क्या करता है, यह व्यक्ति विशेष की व्यक्तिगत पसंद होती है, किसी को इससे कोई समस्या नहीं है, लेकिन महज भारतीय होने के करण किसी पोर्न स्टार को महिमामंडित करके लोगों के घरों में पहुंचा देना एक सामाजिक अपराध है।

ABP चैनल एक पोर्न स्टार के कहानी के जरिये क्या संदेश देना चाहती थी?

एक पोर्न स्टार को लोगों का रोल मॉडल बनाने पर क्यों अमादा है ABP चैनल?

एक पोर्न स्टार के संघर्ष से क्या लेना-देना है हमारे समाज का?. (पोर्न मजबूरी का पेशा नहीं)

क्या चैनल भारत में पोर्न इंडस्ट्री को बढ़ावा देने के लिए पोर्न स्टार का महिमा मंडन कर रहा है?

वेश्वावृति जैसे दंश से पहले ही अभिसप्त हमारे समाज में एक कोढ़ है, जहां लड़कियों को जबरन घसीटा जाता है?

क्या चैनल पोर्न इंडस्ट्री को एक अवसर के रुप में भारत में परोसने व दिखाने की कोशिश नहीं कर रहा है?

ABP चैनल की बौद्धकिता के दर्शन तो हो गये, जो टीआरपी के ईंधन से संचालित होते है, लेकिन क्या चैनल को समीज के जिम्मेदारी सिखाने के लिए भारत की आईबी मिनिस्ट्री कुछ करेगी, यह अधिक महत्वपूर्ण है।

सरकार को तुरंत चैनल को कारण बताओ नोटिस भेजना चाहिए और चैनल के प्रसारण पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए!

#ABPNews #NewsChannel #IBMinitery #PornStar #SunnyLeone

शनिवार, 11 अप्रैल 2015

वे कौन लोग हैं जो फूहड़ बयानों पर भी दहाड़े मारकर हंसते हैं?

शिव ओम गुप्ता
भारत में जब भी कोई नेता निहायत ही वाहियात और गंदा बयान दे रहा होता है तो वो कौन लोग होते हैं जो बेहद ही फूहड़ता और बददिमागी से दहाड़े मारकर चुटीली हंसी हंस रहे होते है?

नहीं मालूम? ये वहीं लोग हैं जिनकी #चापलूसी में मास्टरी ही नहीं, डॉक्ट्रेट भी होती है, जिन्हें कोई नहीं फर्क पड़ता कि उनका चापलूस पंसद नेता क्या बोलेगा या क्या बोल रहा है, क्योंकि ऐसों का काम सिर्फ और सिर्फ ताली बजाना है और खीसे निपोरना है!

इसका ताजा उदाहरण #जदयू नेता #शरदयादव के #पद्मसम्मान के बारे में दिये गये अवव्ल दर्जे के बेहूदा और #विवादास्पद बयान में देखा-सुना जा सकता है।

#PadamSamman #SharadYadav #MulayamYadav #ControversialStatement

सोते को जगाना आसान है, लेकिन जागे हुये को क्या जगाना?

शिव ओम गुप्ता
वे लोग जो किसी समाज द्वारा बनाई सांस्कृतिक सभ्यता और मान्यताओं में भरोसा रखते हैं और अमल करने में विश्वास रखते हैं, ऐसे अगर भटक भी जायें तो उनकी सुधरने की उम्मीद हो सकती है?

लेकिन वे लोग जो अपनी ही विरासत, संस्कृति और मान्यताओं में यकीन ही रखते या रखना ही नहीं चाहते और सबको धता बता कर नये समाज और उसूल की कल्पना कर रहें हैं, उनसे क्या उम्मीद की जा सकती है?

बात हो रही है सामाजिक विद्रूपता की। हमारा समाज परिवार में पैदा हुये लड़का-लड़की को भाई-बहन की मान्यता देती हैं और दोनों से जुड़े उन तमाम रिश्तों को भी एक सारगर्भित रिश्तों से जोड़ती है, लेकिन आज कल तमाम ऐसी खबरें मीडिया में सुर्खियों में होती हैं, जो समाजिक ताने-बाने को न केवल तोड़ रहीं हैं, बल्कि नष्ट करके कुछ नया करने पर अमादा हैं!

हां, हम बात कर रहें है, ऐसी खबरों की जो अमर्यादित रिश्तों से जुड़ी होती हैं, जहां पिता-बेटी, भाई-बहन, चाचा-भतीजी और मामा-भांजी के रिश्तों को नष्ट कर रही है?

कौन है जिम्मेदार, यह तो तय करना जरूरी है, वरना समाज का यह चेहरा वसूलों को ही नहीं, रिश्तों को भी खत्म कर देगा!

गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

Finally, End of identity crisis of journalist?

Presstitute: What a innovative word invent by vk singh, Thanks to vk singh for this invention, because nowadays Press sounds and conclude them self near and there?

Hats off VK singh! You shown the mirror those one who throw out such holy profession into dark word for his personal growth, Seems such gets  identity now!

Finally, End of identity crisis for such people, otherwise everyone behaving like journalist who works in press world!

#presstitute #VKSingh #Press #Journalism

रविवार, 5 अप्रैल 2015

मुस्लिम को क्रिसमस और हिंदू को ईद पर छुट्टी क्यों?

शिव ओम गुप्ता 
सुप्रीम कोर्ट जज जोसेफ कुरियन की खिलंदड़ता और हल्केपन पर तरस ही खाया जा सकता है, लेकिन इस प्रकरण ने एक अच्छे विचार को जन्म दे दिया है!

वो यह कि सरकार को अब सरकारी छुट्टियां संप्रदाय/धर्म विशेष के आधार पर नहीं देना चाहिए? मतलब हिंदुओं को ईसाइयों के त्यौहार गुड फ्राईडे और क्रिसमस पर सरकारी छुट्टी क्यों? मुस्लिम को हिंदुओं के त्यौहार होली, दीवाली और दशहरा पर सरकारी छुट्टी क्यों? इसी तरह ईसाइयों को हिंदू, मुस्लिम या अन्य धर्मों के अनुयायियों के त्यौहारों पर छुट्टी क्यों ?

यह सर्वविदित सत्य है कि दूसरे धर्मों के त्यौहारों पर मिली छुट्टियों पर लोग इंजॉय नहीं करते हैं, तो उन्हें जबरन घर पर बैठाने से बेहतर है वे दफ्तर जाकर जनता के काम निपटायें, जिससे सरकारी मशीनरी में सुधार भी होगा और अलग-अलग धर्मों के त्यौहारों पर सरकारी दफ्तर भी खुले रह सकते है। इसका सीधा फायदा पब्लिक को ही मिलेगा और इससे सरकारी  कार्यों का निष्पादन भी बिना व्यवधान चल सकेगा?

हालांकि सरकारी कर्मचारी यह स्वैच्छिक/ऐच्छिक भी कर सकते है, जिसके लिए उन्हें इंसेंटिव भी दिया जा सकता है। बाद में, सरकार भिन्न-भिन्न मंत्रालयों/दफ्तरों/ऑफिसों में भिन्न मतावलंबी कर्मचारियों की एक अदद टुकड़ी भी रिक्रूट करने की कोशिश कर सकती है, जिसका फायदा यह होगा कि अन्य मतावलंबी कूलीग की त्यौहारी छुट्टियों में भी सरकारी दफ्तर अनवरत खुले रह सकेंगे और पब्लिक और सरकारी मशीनरी भी बिना व्यवधान सुचारू रुप से चल सकेंगी!

सरकार, बिना किसी विरोध के इसे आसानी से लागू भी कर सकती है, क्योंकि इसमें किसी भी कर्मचारी को अड़चन नहीं होगी, क्योंकि ऐसा कई बार होता रहा है जब भिन्न मतालंबियों के त्यौहारों के संयोग एक क्रम में, एक सप्ताह में और एक साथ में पड़ जाते हैं? जैसे कि वर्ष 2015 के मार्च माह का आखिरी और अप्रैल का पहला हफ्ता?

हां, कुछ फिजूल की राजनीतिक रोटियों इसमें सेंकी जा सकती हैं, लेकिन संभावना कम है और सरकार द्वारा इसे अमल में लाने में किसी भी मतावलंबी को कोई असुविधा भी नहीं होगी, क्योंकि इसका लाभ सरकारी कर्मचारी के साथ-साथ पब्लिक को भी मिलेगा और यह देश के दैनेंदिन विकास को भी उत्तरोत्तर प्रभावित करेगा!

#GovtHoliday #Guggeted #GovtEmpolyee #Leave #Festival #GovtOffice #Development 

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

खबरों को छोड़, अब एजेंडा बनाने में जुटी मीडिया!

शिव ओम गुप्ता
पिछले कई वर्षों में मीडिया खबरों का काम छोड़, देश-प्रदेश और निकाय चुनावों में परोक्ष रुप से एजेंडा सेट करने में जुटी अधिक दिखाई देती है।

हालांकि #मीडिया संगठन देश/पार्टी का #एजेंडा बनाने की कोशिश पहले भी करते रहे हैं, लेकिन आजकल मीडिया को गुमान हो चला है कि वे देश की जनता को अधिक जानते हैं और उनको अपने मुताबिक अधिक भड़का भी सकते हैं।

वैसे, #ओपिनियनपोल और #एग्जिटपोल सर्वे के नाम पर दर्शकों का समय बर्बाद करने व बरगलाने वाली मीडिया को जनता ने अपने फैसलों से कई बार धोबीपाट दिया है, लेकिन आदत सुधर भी जायें पर लत का इलाज नहीं है।

मीडिया कभी देश का ओपिनियन जानने का दंभ भरती थी, लेकिन अब मीडिया देश का एजेंडा बनाने का दंभ भरने लगी है, क्योंकि आज के पत्रकारों को लगता है कि वे देश की जनता का नब्ज जानते हैं और जबां-तहां उंगली रखकर शरीर का तापमान घटा-बढ़ा सकते हैं।

#दिल्लीविधानसभाचुनाव में #बीजेपी की हार और AAP की जीत के बाद मीडिया को कुछ अधिक गुमान हो गया, जो अब बल्लियों उछाल मार रहा है। शायद यही कारण है कि आजकल मीडिया हर दूसरे दिन सर्वें और ओपिनियन पोल का खेल खेलती नजर आती है।

समस्या यह है कि मीडिया खबरों का #कारोबार करते-करते अब #एक्सटार्शन ( #उगाही) के कारोबार में उतर गई दीखती है।

यहीं नहीं, मीडिया समूह अब भिन्न-भिन्न पार्टियों की एजेंडा बनाने की मशीन बनकर रह गई हैं, जहां वो किसी एक पार्टी को फायदे-नुकसान पहुंचाने के लिए सर्वें और सर्वेक्षण का व्यूह नहीं, चक्रव्यूह भी रचते हैं।

#Media #OpinionPoll #TVServey #ExitPoll #TRP #Voters #EC #BJP #Congress #AAP #News #Press #Agenda

मीडिया वाहियात ही नहीं, बचकाना हो गई है!

यह मीडिया का क्या बेवकूफियाना है, जो केजरीवाल पार्टी नहीं संभाल पा रहा है, दिल्लीवालों को मूर्ख बनाकर सीएम की कुर्सी पर बैठकर एक-एक कर अपने ही पार्टी नेताओं को किनारे लगा रहा है, उसको पीएम पद की उम्मीदवारी के समक्ष रखना बचकाना ही नहीं, वाहियात कहा जा सकता है!

किसी को अब शंका नहीं है कि केजरीवाल जैसे व्यक्ति को दिल्ली की गद्दी पर बैठाने में मीडिया प्रोपेगेंडा ने महत्वपूर्ण योगदान किया, डर है कि अगर ऐसा जारी रहा तो मीडिया अपनी बची-खुची विश्वसनीयता भी खो देगा।

#Kezriwal #AAP #Media #Agenda #Sting

रविवार, 29 मार्च 2015

विराट कोहली कहीं अगला विनोद कांबली तो नहीं?

यह विराट कोहली कहीं अगला विनोद कांबली तो नहीं निकलेगा, जिसमें अब कोई शक की गुंजाइश नहीं बची है? 

कांबली भी बहुत ही धाकड़ और विस्फोटक बल्लेबाज था, लेकिन खूबसूरत गर्लफ्रेंड/बीवी की दीवानगी ने उसे नकारा बना दिया वरना सचिन-कांबली की करिश्माई जोड़ी को कौन भूल सकता है?

हालांकि गर्लफ्रेंड/ बीवी के दीवानों की हमारे इतिहास में लंबी फेहरिस्त है! इनमें महाकवि कालीदास और तुलसीदास की कथा सर्वोपरि है।

काश! कोहली की दशा कांबली जैसी न हो? और अनुष्का में तुलसीदास और कालीदास की पत्नियों की रुह समा जाये ताकि भारतीय टीम का एक होनहार बल्लेबाज को सुरक्षित बचाया जा सके, आमीन!
#ViratKohli #AnushkaSharma #LoveAffair #WC2015 #Controversy #Girlfriend

शुक्रवार, 27 मार्च 2015

केजरीवाल का दंभ और अह्म आया सामने, सहयोगियों को कहा साला और कमीना!

वाह रे केजरीवाल! एक आडियो स्टिंग में अह्म और दंभ से भरे केजरीवाल पार्टी नेता व सहयोगी योगेंद्र यादव, प्रो.आंनद कुमार, प्रशांत भूषण को कमीनपंथी की पदवी से नवाज रहें हैं और उन्हें कमीना और साला कहते हुए लात मारकर पार्टी से बाहर निकालने की बात कह रहें हैं।

यह क्या कर लिया दिल्लीवालों, ये किसे चुन लिया है आपने, जो इतना बड़ा दंभी और तमीजदार है कि गली के गुंडों की तरह बर्ताव कर रहें हैं! दिल्लीवालों आपने तो भस्मासुर को अपने सिर पर ही बिठा लिया है!

देखिये जी न्यूज पर देखिये केजरीवाल के बोल-

ये आम आदमी पार्टी है या मछली बाजार?

ये आम आदमी पार्टी है या मछली बाजार, जिसे देखो बोली लगा रहा है कितने में और कैसे बिके केजरीवाल? 

हालांकि मैं शुरू से जानता था कि यह पार्टी नहीं, एक ऐसे लोगों का समूह है जो चिकनी-चुपड़ी बातों से राजनीति नहीं, खुद को दुरूस्त करने आये थे और दूसरे की थाली में ज्यादा घी देखकर बिलबिला रहें हैं?

धन्य है दिल्ली की जनता, क्योंकि अब 5 साल तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता! क्योंकि 49 दिनों का ट्रेलर देखने के बाद 5 साल वाला फिल्म देखने के लिए जनता खुद जिद करके थियेटर में घुसीे है?

#Kezriwal #aap #YogendraYadav #PrashantBhushan #5SaalKezriwal

मंगलवार, 24 मार्च 2015

जय हो लोकतंत्र, आईटी एक्ट धारा-66A की दर्दनाक मौत!

जिस नेता के खिलाफ बोलना हो, दिल खोलकर लिखिये और बोलिये, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की उस धारा को ही रद्द कर दिया है, जिसको आधार बनाकर देश के खिलंदड़ टाइप के नेता अपना बचपना दिखाते रहे थे, जय हो लोकतंत्र!

गौरतलब है सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की धारा -66A को पूरी तरह से रद्द कर दिया है, यानी अब सोशल मीडिया पर किसी भी नेता पर टिप्पणी करने पर किसी की गिरफ्तारी नहीं हो सकेगी।

याद होगा, अभी हाल ही में सपा के बड़के और भड़काऊ बयीनों वाले नेता ने एक 13 वर्षीय लड़के की गिरफ्तारी इसलिए करवा दी थी, क्योंकि उसने आजम खां के खिलाफ सोशल मीडिया में चल रहे एक बयान को महज शेयर किया था!

#ITAct #66A #SupremeCourt #RightToExpression

रविवार, 22 मार्च 2015

क्या आप वहीं करते हैं जो दिल कहता है, जिसकी जरुरत होती है?

मैं तो वहीं करता हूं जो जरूरत से जुड़ी होती है या जिसमें पर दिल आ जाये, वह नहीं करता जिसकी जरुरत नहीं या जिसमें दिमाग लगाना पड़े?

हालांकि मैंने देखा है कि लोग बाग देखा-देखी और दूसरों की नकल में अपनीं अधिकांश ऊर्जा और धन खर्च कर देते हैं।

मसलन, युवक-युवतियां सिगरेट, अल्कोहल और फैशन की लत दिलों और जरुरतों से नहीं, बल्कि देखा-देखी, नकल, फैशन और टशन के लिए पाल बैठते हैं?

लेकिन रिकॉर्ड कहते हैं कि 90 फीसदी युवक-युवतियां सिगरेट, अल्कोहल और फैशन को अपनी जिंदगी में दिल और जरुरत से शामिल नहीं करते, बल्कि टशन और नकल के कारण शामिल करते हैं, जबकि 5 फीसदी लोग फस्ट्रेशन और 5 फीसदी आनुवांशिकी इस नशे के शिकार होते हैं!
#Addiction #Fashion #Nicotine #Alcohol

गुरुवार, 19 मार्च 2015

Industry doesn't entertain such jerk who love to called himself a journalist?

I really fed up media, Not journalism? Media don't does job pro people, its only attached with pro market, its attached with pro benefit, not pro problem of India or people?

No No...its not true? that my eye opened now? after 10 years journey of journalism?

My eyes were open since joined this journey but don't want to make such immature statement from beginning of career, but now I'm OK with my statements.

Someone who want to change the world and wanna work for betterment for country, there were no place for them.

Because industry called media doesn't allow and entertain such jerk who love to called himself a journalist.

मंगलवार, 17 मार्च 2015

किसको मूर्ख बना रहीं हैं सोनिया गांधी एंड पार्टी?

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया के दामाद रॉबर्ट वाड्रा ने कौड़ियों के भाव किसानों की जमीन हथिया ली, वो सोनिया आज किसानों की जमीन के लिए मोर्चा ले रहीें हैं? ये तो वहीं बात हुयी कि सौ चूहे खाकर बिल्ली निकली हज को?

सोनिया जी, देश की जनता ने पिछले 10 वर्षों के यूपीए सरकार में आपके और आपके दामाद के किसान प्रेम और उनके प्रायोजित कार्यक्रम खूब देखे है!

ओ भाई, क्यों बेवजह दोबारा जनता को याद दिला रहे हो, जनता को दोबारा याद आ गया तो कांग्रेस और साथ खड़ी सभी विपक्षी पार्टियों का आने वाले चुनावों में हाल बुरा होना तय होयेगा?

क्योंकि कांग्रेस के साथ खड़ी अधिकांश पार्टियां यूपीए सरकार में सहयोगी रहीं है और कांग्रेस के 10 वर्षों के पाप की पूरी भागीदार रहीं हैं?
#UPA #Congress #Scam #RobertVadra #LandScam

भूमि अधिग्रहण विधेयक के भरोसे चुनावी भूमि तलाशने में जुटा पूरा विपक्ष !

भूमि अधिग्रहण विधेयक के खिलाफ संसद से राष्ट्रपति भवन तक मार्च करने वाले कांग्रेस और समूची विपक्षी पार्टियों की जमात विधेयक के लिए नहीं, बल्कि अपने वजूद के लिए सड़कों पर जद्दोजहद को मजबूर हैं?

विधेयक के विरोध में शामिल पार्टियां पिछले 10 वर्षों से देश को लूट कर खा गई कांग्रेस नीत यूपीए सरकार की हिस्सा रहीं हैं।

बात चाहे वाम दल की करें या सपा, बसपा, आरजेडी, डीएमके और टीएमसी हो, सभी यूपीए सरकार के साथ गठबंधन में रहीं हैं, जो विरोध में मजबूरन इसलिए शामिल हुयीं हैं ताकि राज्यों में मोदी लहर को रोका जा सके।

जदयू की समस्या भी यही है ताकि निकट बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी को किसान विरोधी बताकर किसानों का वोट हासिल किया जा सके?

सवाल है कि क्या भूमि अधिग्रहण विधेयक सचमुच किसान विरोधी है या लुट-पुट चुकी कांग्रेस व अन्य दल देश को गुमराह करके अपना उल्लू साधने की कोशिश कर रहीं हैं?

कांग्रेस और तमाम विपक्षी पार्टियों की यह लड़ाई और मार्च देश के उन किसानों के लिए कम खुद के वजूद के लिए अधिक है, क्योंकि जिस विधेयक को लेकर पार्टियां नूराकुश्ती कर रहीं हैं, अधिकांश किसानों को इसकी समझ ही नहीं है!

#LAB #LandAccusationBill #भूमिअधिग्रहणविधेयक 

शुक्रवार, 6 मार्च 2015

I support banning such video viewing who spreads negativity!

I support government for banning of such documentary for public broadcast because the ban on 'India's daughter' documentary was an approach to restrict a voice of brutal face of criminals mind towards society for optimistic world.

You never be a good parents to allow your kids to watch negativity of life, parents can educate them via two way communication but freely and publicly broadcasting such negativity to everyone not positive approach.

An vedio viewing impacts are always greater then word and an immature mind will hurt hugely via negativity propaganda beyond our expectations.

Government are parents of country and they have all right to take decision and serve banned like parents, be lives in democracy..so raise your voice but don't justify yourself on sake of mass.

#BBC #Documentory #Ban #Nirbhaya #Rape #Government #Media

गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015

हमें लोक लुभावन नहीं, प्रगति सूचक बजट मिला है, शुक्रिया प्रभु!

रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने ऐतिहासिक रेल बजट पेश किया है। फस्ट्रेटेड विपक्ष को छोड़ दें तो पहली बार ऐसा रेल बजट पेश हुआ है, जो लोकप्रिय और परंपरागत बजट से जुदा है।

रेल बजट 2015 एक प्रगति सूचक और संकेतक बजट है, जिसमें कोई लोक-लुभावन घोषणाएं नहीं की गई हैं, बल्कि बुनियादी विकास और सुरक्षा को प्रमुखता दी गयी है।

वरना घोषणाएं तो प्रत्येक रेल बजट में रेल मंत्री करते आये हैं, लेकिन कितनों पर अमल हुए इसका किसी के पास हिसाब नहीं है।

ज्यादा दूर नहीं, पिछले 20 वर्षों में नयी ट्रेन चलाने की गयी घोषाणाओं को उठा कर देखेंगे तो पायेंगे कि रेल मंत्रियों द्वारा घोषित नयी ट्रेनों में से 1 फीसदी ट्रेनें भी ट्रैक तक भी नहीं पहुंची?

क्या आप ऐसी फिजूल घोषणाओं के आदी हो चुके है, जिसमें सिर्फ घोषणाएं हों, काम हो न हो?

भई, क्या आप घर बना कर फ्रीज, टीवी और कूलर खरीदते हैं या घर बनने से पहले खरीद लाते हैं और उसे बाहर छोड़ देते हैं?

नि: संदेह रेल बजट 2015 एक ऐतिहासिक बजट है, जिससे न भारतीय रेल में मजबूत आयेगी, बल्कि जैसा रेल हम चाहते हैं, उस ओर रेल कदम बढ़ायेगी!

लोकप्रिय और परंपरागत रेल बजट भारतीय रेल को गर्त में ही ले जाता, ऐसा नहीं करके देश को बचा लिया आपने ,शुक्रिया प्रभु!

#रेलबजट #सुरेशप्रभु #RailBudget #SureshPrabhu 

शनिवार, 21 फ़रवरी 2015

स्मार्टसिटी की अवधारणा विकास की एक प्रक्रिया है!

स्मार्टसिटी की अवधारणा विकास की एक प्रक्रिया है और चरणबद्ध तरीके से इसमें बिना किसी व्यवधान के होते रहना चाहिए। 

स्मार्टसिटी और बुलेट ट्रेन की अवधारणा को इसी तरह से लेना चाहिए जो व्यवहारिक ही नही, आवश्यक भी है, क्योंकि विकास हमेशा उत्तरोत्तर होता है और समानान्तर विकास की परिकल्पना बेमानी है कि जब सब एक समान हो जायेंगे तब आगे बढेंगे या कुछ नया करेंगे।

मसलन, हम मोबाइल फोन का आविष्कार तब तक ना करें, जब तक टेलीफोन सबके घर न पहुंचा दें , ऐसा सोचना और उसको मूर्तिरुप देना मूर्खतापूर्ण है।

सच्चाई यह है कि आज मोबाइल के आविष्कार ने टेलीफोन को एंटीक बना कर रख दिया है। ठीक इसी तरह स्मार्टसिटी की अवधारणा उतनी ही मौजू है, जितनी झुग्गी को तोड़कर फ्लैट निर्माण करना है ।

स्मार्टसिटी की अवधारणा का यह मतलब यह नहीं कि विकास गडमड्ड हो जायेगा, ऐसा सोचेंगे तो एअरप्लेन पर यात्रा मुश्किल हो जाती और हम बैलगाड़ी से चल रहे होते?

स्मार्टसिटी की परिकल्पना को विकास की तरह देखना चाहिए, जैसे औद्योगिक विकास के लिए ऩयी तकनीकी और कलपुर्जों को साथ लेकर चलना पड़ता है, वैसे ही स्मार्टसिटी को देखना चाहिए| एक साधारण उदाहरण से समझिए-

एक अनपढ़ किसान अपनी दिनचर्या में ईश्वर की पूजा 24 घंटे करता है, लेकिन 8वीं पास उसका बेटा 24 घंटे में से महज 2 घंटे ही पूजा करता है और बाकी समय वह खेती किसानी के कार्य के नवोन्मेष में लगाता है जबकि अनपढ़ किसान का पोता यानी 8वीं पास बेटे का बेटा, जो शहर में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है वो ईश्वर को सिर्फ कुछ सेकेंड ही दे पाता है।

अब आप कैसे कह सकते हैं कि किसान, किसान का 8वीं पास बेटा और 8वीं पास बेटे के सॉफ्टवेयर इंजीनियर बेटे में से कौन भगवान का सबसे बड़ा भक्त है?

भक्ति और विकास एक दूसरे के पूरक है, इंसान भक्ति में अधिक समय तब तक देता है जब तक वह अज्ञानी है और ज्ञान ही वैयक्तिक, सामूहिक और सारगर्भित विकास के लिए जरूरी है ।

शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2015

केजरीवाल साब, मॉर्निंग वॉक ही करेंगे?

केजरीवाल साब, मॉर्निंग वॉक ही करेंगे या कुछ काम भी करेंगे? आज पूरे एक हफ्ते हो गये, लेकिन न बिजली सस्ती हुई, न फ्री वाईफाई और न ही फ्री पानी पर अभी तक कोई पहल दिखी है?

हालांकि पिछली सरकार में केजरीवाल ने एक हफ्ते में ही बिजली, पानी और घूसखोरी कम करने की घोषणायें कर चुके थे?

क्या हुआ केजरीवाल साब, दिल्लीवालों को दांत खाने वाले ही दिखाये थे या दिखाने वाले?

हालांकि अभी तो आप दिल्लीवालों को यह कह कर ठेंगा भी दिखा सकते हो कि सब सिसोदिया देख रहें हैं और वहीं जबाव देंगे, क्योंकि मेरे पास कोई मंत्रालय नहीं है।

गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

जीविका कमाने के लिए पत्रकारिता ?

कभी-कभी सोचता हूं कि गलत प्रोफेशन में आ गया हूं , पत्रकारिता में भी दांव-पेंच और बनियागिरी करनी होगी तो शायद ही पत्रकारिता को बतौर करियर कभी चुनता, बनियागिरी ही करता?

पत्रकारिता भी नाप-तौल करके ही करनी थी तो बनियागिरी में क्या बुराई है, बनियागिरी में कम से कम आत्मा (जमीर) पर कोई बोझ तो नहीं रहता कि जो कर रहें हैं, वह पेशेगत सही है!

पत्रकारिता करियर में पूरे 9 वर्ष का मेरा कार्यकाल काफी संघर्षपूर्ण रहा, जहां खुद (नैतिकता) के वजूद की रक्षा-सुरक्षा के लिए कईयों को उनकी औकात भी बताई है और नौकरी को लात भी मारी है।

लेकिन तथाकथित बुद्धिजीवी कहते हैं कि प्रैक्टिकल होना चाहिए? चिपकना नहीं चाहिए, इससे विकास रुक जाता है? सवाल है किसका विकास?

जीविका कमाने के लिए पत्रकारिता ? विकास के लिए पत्रकारिता? दोनों में से हम किसका चुनाव करते हैं? यही पत्रकारिता की दशा और दिशा तय करने वाले हैं?

मैं तो तैयार हूं, लेकिन क्या आने वाली नई जनरेशन इससे तालमेल बिठा पायेगी, जिसे उदाहरण तलाशने के लिए गूगल बाबा की शरण लेनी पड़ेगी?

क्योंकि ऐसी प्रजाति वाले पत्रकार विलुप्त होने के कगार पर हैं और कोई हैरिटेज सिक्युरिटी स्कीम भी नहीं है?
#पत्रकारिता #जर्नलिज्म #Journalism #Journalist #Ethics #नैतिकता

बुधवार, 18 फ़रवरी 2015

सुना है दिल्ली में स्वाइन फ्लू टेस्ट सस्ता हो गया है ?

नाशपीटे केजरीवाल, पहले तू ये इंतजाम कर दिल्ली में स्वाइन फ्लू के संक्रमण न फैले, जो कि सबसे कम है, और दूसरा कौन सा आम आदमी 4500 रुपये टेस्ट के लिए चुका सकेगा?

सच तो यह है कि आम आदमी टेस्ट के लिए 4500 रुपये खर्च करना तो दूर , जुटाने में ही ऊपर निकल जायेगा?

बकलोल, कुछ दिन ही सरकारी कैंप लगवा कर मुफ्त टेस्ट करवा लेता? वरना कुछ तो तुम्हारे वोटर्स 4500 रुपये सुनकर ही टेस्ट नहीं करवा सकेंगे?

केजरीवाल, तू खाक आम आदमी को समझता है, तुझे अगर दिल्ली वालों में महामारी स्वाइन फ्लू के संक्रमण को रोकना ही है, तो टेस्ट को फ्री कर देता ताकि आम और खास सभी तुरंत चेक करवा सके और दिल्ली को संक्रमण से अधिक सुरक्षित रखा जा सकता था?

लेकिन तू तो लगता है संक्रमण को रोकना नहीं, संक्रमण का खौफ फैलाकर लैब ऐजेंसियों को पैसे कमाने का अवसर दे रहा है, लानत है ऐसी आम आदमी सरकार पर!

#केजरीराग #मुफ्तखोर #KezriRaag #DilliWale #Freebies

मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015

केजरीवाल फिर बनने चला PM, सिसोदिया को सौंपा काम!

ई का हुआ...5 साल केजरीवाल तो बस जुमला बन के रह गया? ई तो 5 साल सिसोदिया हो गया।

साला फिर केजरीवाल ने दिल्ली वालों का चूतिया काट दिया, ई ससुरा केजरीवाल CM बन के राजी नहीं, इसे तो PM ही बनना है?

सुना है ससुरे ने कौनों जिम्मेदारी लेने से मना कर दिया है और सारा बोझ सिसोदिया पर लाद दिया है ..

यानी सिसोदिया दिल्ली वालों को मूर्ख बनावेगा और केजरीवाल एक बार PM बनने के लिए पूरे देश को मूर्ख बनाने निकलेगा?

बहुत तरस आ रहा है दिल्ली के मतदाताओं पर... केजरीवाल ने कैसा मूर्ख बनाया ?

केजरीवाल जानता है कि वो दिल्लीवालों को किये वादों को कभी पूरा नहीं कर पायेगा इसलिए कोई मंत्रालय नहीं लिया...ताकि ससुरे पर कोई कुछ कह नहीं पावेगा और केजरीवाल खुद भी सिसोदिया को डांट कर पल्ला झाड़ते हुए दिल्लीवालों का चूतिया काट देगा!

तो दिल्लीवालों अब तो तुम्हारी लग गई, क्योंकि जिस पर भरोसा करके आपने AAP को अपने वोट दिये थे, उसने तो हाथ धो लिए और वह PM बनने फिर दिल्ली छोड़कर निकल लिया!

#केजरीवाल #दिल्ली #Kezriwal #AAP #Delhi

शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

फ्री WIFI पर दिल्लीवासियों को मिला तगड़ा झटका!

फ्री WIFI की बाट जोह रहे दिल्ली वासियों को जैसे ही पता चला कि केजरीवाल 24 घंटे में महज 30 मिनट ही WIFI फ्री देगा तो देखिये दिल्ली वालों ने कैसा ठगा हुआ महसूस किया और कैसे AAP पार्टी की खिल्ली उड़ाई और उनके वादों का कैसा मजाक बनाया है।

नीचे देखिये फेसबुक पर दी गई कुछ मजेदार टिप्पणी-

"दिल्ली में मिलेगा सिर्फ 30 मिनट फ्री Wi-Fi, उसमे
भी सिर्फ Govt की साईट खुलेगी। साला छोटी गंगा बोल के नाले में कूदा दिया बे!"

"ye to abhi shuruat hai..aage aage dekho delhi valo ki lottery lagne vali hai :p

Congratulations Delhi walo, "C#utiya" kata hai :P"

"may AAPian  look .gov website for upcoming 800000 jobs for delhi people :P :P :P or vacany for teachers in 500 schools or how much water they consume in a day ..may also download their own cctv footage  for selfie from that 1500000 ctv camera :P :P :P"

"दिल्ली वालो की हालत जुदाई फ़िल्म के जॉनी लीवर जैसी हो गई !!
दुल्हन का घूंघट उठाते ही दुल्हन बोली " अब्बा डब्बा चब्बा"

"चार दिन पहले तक "15 लाख...15 लाख" चिल्लाने वाले  टोपी वाले  अब "15 लाख CCTV, 10 लाख पक्के मकान, और 8 लाख नौकरियां" सुनकर ऐसे बिलबिलाता उठते हैं जैसे उन पर किसी ने पेट्रोल डाल दिया हो ...."

"ye toh chutzpa ho gaya..! koi nai aadat daal lo this is the first one , many more to come."

"WiFi 30min, Paani 15 min Bijlee 5 min aurEntertainment 5 saal!!!! # 5saalkejribawal"

"dehli walon kejriwal tumhari keh ke lega :p"

"अभी तीस मिनट के लिए फ्री वाईफाई दे रहे हैं केजरीवाल, कल को ये भी कह सकते हैं कि मुफ्त पानी सिर्फ g.... धोने के लिए ही मिलेगा।"

"ab AAPtards ki topi par likha hoga-"मुझे चाहिए सम्पूर्ण वाई फाई"!"

"U-Turn No 1......many more to follow"

"Voting for AAP was subject to Delhiwala's risk... Please you should have read the documents (manifesto)before voting."

"Ye afwaah kaun uda raha hai...ki ghar ki chhat par jhaadu latkaane se free WiFi network milega."

"yeh lulz ho gaya dilliwalo ke sath, lekin party toh abhi suru huyi hai :D"

"Dear Aaptards, Wifi Ke baare me suna? Hahaha... kejru tum sabko C bana gaya.. #BellMuft"

"Ohh...ni de re kya koi b FREE thngz... :/ m toh dilli shift hone soch ri thi..o_O awww me. :/ :("

"Sab ko milga free me.. baba ji ka thullu.. :D"

"जिसको wifi फ़्री करना है वो जाके अपनी भैंस चराए !! :D"

"Hahaha...yeh toh 22 karat waale offer jaisi baat hogayi..
Socha 22 Karat Gold, aur mile 22 Carrots (Gajar)"

"Delhiwalas maze hain tumhare #5SaalJhelo"

"haha , lo ji aur vote karo free free free ke chakkar mein.. mila baba ji ka thullu :D"

"Ab to koi opposition v nai hai kon bachayega dlhiwalo ko ye sb torture se.....democracy ko autocracy me badal diya dlhiwalo ne.."

"Ye to hona he tha.
Waise ye adhuri khabar hai puri khabar ye hai ki.
1).Free pani milega sirf hath dhone k liye.
2).Bijali bhi free milega but sirf mobile charge karne k liye."

"C.M is angain bcome C.A
Kajriwal Condition Apply."

"Yeh toh shurwat hai dekh aage aage kaise Chutiya banata hai"

"I hope they don't give water also like this. Thirty minutes water or stay dry all day!  Aap cheat")

"Dilliwalo ye toh LOL 😁 ho gaya"

"Bhai logon itne me toh irctc ki site khulegi bhi nahi."

"अब दिल्ली की हालत उस लड़की की तरह हो गयी है, जिसे एक बेरोज़गार लड़के ने चाँद तारों के सपने दिखा कर ब्याह तो कर लिया....पर घर लाके बता रहा है कि..."......सब कुछ लाऊंगा बेबी अगर पापा पैसे देंगे तो.."
http://indianexpress.com/article/cities/delhi/aap-proposes-wifi-access-across-delhi/

बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

हम तो ऐसे हैं भैय्या?

दिल्ली चुनावों का सबसे अच्छा विश्लेषण वाशिंगटन पोस्ट ने किया है, अख़बार ने लिखा है की भारत की जनता मुफ्त में हर चीज पाना चाहती है, यही कारण है की भारत में इतनी बेकारी और गरीबी है।

अखबार ने आगे लिखा है, अच्छा है कि अमेरिका में अभी यह ट्रेंड शुरू नही हुआ वरना अमेरिका दिवालिया हो जायेगा ?

अखबार के मुताबिक जैसे यूपी में एक पार्टी ने मुफ्त में लैपटॉप और सिर्फ १००० रुपये यानी आठ डालर महीने देने का वायदा करके बम्पर जीत हासिल की, तमिलनाडु में एक पार्टी में जूसर मिक्सर ग्राइंडर देकर जीत हासिल की!

अखबार कहती है कि लेकिन जनता को सोचना चाहिए कि कोई भी पार्टी यह अपने पार्टी फंड से नही बल्कि सरकारी फंड से ही देती है जो जनता के टैक्स से ही आता है!

अखबार रिपोर्ट कहती है कि यदि सरकारी खजाने से बांटे गये मुफ्त पैसे विकास कार्यो में खर्च होते तो आज भारत बहुत आगे होता?

"आप" से हारने के लिए चुनाव लड़ रही थी बीजेपी?

मुझे लगता है बीजेपी दिल्ली विधानसभा का चुनाव जीतने के लिए नहीं लड़ रही थी और वह महज लड़ाई दिखाने के लिए लड़ाई का माहौल तैयार कर रही थी?

पार्टी केजरीवाल के संदर्भ में हमेशा से ही ढीली रही, वरना चुनाव में देरी, ऐन वक्त रणनीति में बदलाव और प्रचार कैंपेन में निगेटिविटी बीजेपी और मोदी-अमित शाह की शैली कभी रही नहीं है?

दिल्ली विधानसभा के इस चुनाव में पार्टी भली भांति से दिल्ली में ऐसे टर्न आउट की संभावना चाहती थी और उसने वोटरों को पुकारा तो जरूर पर ललचाया नहीं? यही नहीं, बीजेपी ने केजरीवाल को जानबूझ कर अंडरडॉग की तरह पेश किया? हर वो निगेटिव प्रचार-प्रसार किया जिससे केजरीवाल के प्रति जनता का ऑटोमेटिक जुड़ाव पैदा हो और हुआ!

बीजेपी ने चुनाव रणनीति और कैंपेन में जितनी तब्दीली दिल्ली विधानसभा चुनाव में की है, ऐसे उदाहरण विरले ही देखने में मिलता है? चुनाव घोषणा पत्र की विजन डॉक्युमेंट इनमें से एक है?

मतलब..बीजेपी ने लड़ाई में बने रहने के लिए साम, दाम, दंड और भेद सारे इस्तेमाल किये, लेकिन चुनाव हारने के सारे इंतजाम पहले ही कर दिये थे। (अब सवाल है कि आखिर बीजेपी चुनाव हारना क्यों चाहती थी ? इसकी चर्चा अगले लेख में करेंगे!)

क्योंकि दिल्ली की जनता ने मोदी को अंडरडॉग बनाये जाने की दशा में लोकसभा चुनाव में दिल्ली की कुल 7 सीटें जितवा कर दी थी, ठीक वैसे ही मंसूबे बीजेपी ने केजरीवाल के लिए तैयार किया और केजरीवाल अब दिल्ली के सीएम बनने जा रहें हैं!

आप खुद देखेंगे, यह लैंडस्लाइड जीत केजरीवाल की नहीं ,जनता की है, जो केजरीवाल को हर हाल में सीएम बनना चाहती थी?

वरना कौन कह सकता था कि केजरीवाल एंड पार्टी 70 विधानसभा सीट में से 67 सीट जीत सकेंगे, बकवास भले कोई कर ले? हालांकि बीजेपी इतनी बुरी हार वहीं चाहती थी, लेकिन जनता का जनादेश ऐसे ही मिलता है, उन्हें याद है उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर अकल्पनीय 73 सीटों पर जीत?

कांग्रेस को छोड़िये, निर्दलीय तक को भी वोट नहीं देना, दिल्ली का एग्रेशन ही है कि कोई चांस नहीं लेना था और लैंडस्लाइड जीत बताता है कि उन्होंने किस शिद्दत से केजरीवाल को वोट किया है?

केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के जो खिलंदड़े टाइप के नेता हैं अगर इस जीत को अपनी जीत मानने की भूल करते हैं तो उनके और उनकी पार्टी के लिए यही 5 साल कब्रगाह भी साबित हो जा़येगा?

जाहिर है जीत पर इतराने से बेहतर है कि जीत की खुमारी से केजरीवाल एंड पार्टी के नेता निकले और ईमानदारी और मेहनत से दिल्ली को किये वादों को पूरा करने में सर्वस्व लगा दें ,क्योंकि वोटर किसी का सगा नहीं होता?

 #AAP #Kezriwal #Delhipoll #BJP #Modi

दिल्ली छोड़, अब पंजाब को जीतेगी आम आदमी पार्टी ?

आम आदमी पार्टी के बड़बोले नेता और कविराज कुमार विश्वास का कहना है कि पार्टी पंजाब विधानसभा का चुनाव भी लड़ेगी? 

ऐसे चाल-चरित्र के चलते पूरे देश की जनता ने लोकसभा चुनाव में पार्टी को पूरी तरह से नकार दिया था और अभी एक चुनाव जीते नहीं कि कुमार विश्वास जैसे छिछले (नेता?) कड़ाही में पड़े पकौड़े की तरह फूलने लग गये?

कविराज जी, दिल्ली की जनता ने साम्राज्य विस्तार के लिए वोट नहीं दिया है, अब भौकाल का काम गया, काम करो, जिसके लिए जनता ने सबको छोड़कर तुम्हारी पार्टी को मौका दिया है।

याद रखो...जो मुफ्त का सब्जबाग दिल्ली की जनता को तुम लोगों ने दिखाया है उसको पूरा करना पड़ेगा, वो कैसा पूरा करना है उसकी सोचो, पंजाब का चुनाव अभी दूर है?

पहले दिल्ली में किये वादे पूरी करके दिखाओ फिर कहीं और की सोचो? कुछ सांस ले लो...मियां कुमार विश्वास, बयान देने और गाली देने का वक्त निकल चुका है, अब काम करो वरना जनता आती है?
  #AAP #Kezriwal #DelhiPoll #BJP #Congress #KumarBiswas

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

Kezriwal will exposed if not able to fulfill his promises!

AAP leader Arvind Kezriwal will exposed early if he get chance to form government again and whoever voted him will shouted first if he failed to fulfill his proposed promises.

Kezriwal make lots of false promises in his election campaign that can't be fulfill under limited power and budget of Delhi territory, Because Delhi are not state, and such things people couldn't understand.

Although, It is the basic interest of democracy that such government early go down as rise who doesn't have vision. So chill out...see whatever happened at 10 February and have ready to taste of D-Democracy.

Delhi voted neither Modi nor Kezriwal ?

Delhi voters not listened Modi nor Kezriwal, they listen own and his/her soul, And voting formula was PM for Modi , CM for Kezriwal.

If you remember, In 2013 assembly election Delhi voters given support to AAP by this formula and AAP won 28 seat in debut.

Its fact, almost 90℅ youth voters are supporter of Modi who voted Kezriwal last election because youth wants modi rule center and Kezriwal rule Delhi.

Therefore don't think about Kezriwal magic behind 67 seat victory over 70 assembly seat. These figure happened only the sake of Delhi voters specific choice.

It was a stupidity to give statement, "Its defeat of Modi or BJP ? You can call this  tranmendous victory of Democracy, who runs by public and rule by public.

If anyone recall his memory they found the answer would be right!

Kezriwal himself quoted this formula in his first election campaign through own party website, where they literally wrote, "Modi for PM and Kezriwal for CM?"(Later party deleted this after controversy)

पब्लिक सिंपैथी से हीरो बने केजरीवाल?

कांग्रेस और अन्य पार्टियों ने नकारात्मक प्रचार-प्रसार के जरिये मोदी कोे हरसंभव रोकने की कोशिश की और मोदी लगातार पब्लिक सिंपैथी मिलती गई और वो प्रधानमंत्री बन गये!

लेकिन बीजेपी ने कुछ नहीं सीखा और केजरीवाल के खिलाफ नकारात्मक प्रचार-प्रसार के जरिये केजरीवाल को हरसंभव रोकने की कोशिश की और केजरीवाल को भी पब्लिक सिंपैथी हासिल हो गई और वे अब मुख्यमंत्री बन जायेंगे?

सवाल यह है कि महज 9 महीनों में बीजेपी यह कैसे भूल गई कि बीजेपी को अपार जन समर्थन मोदी के खिलाफ लगातार नकारात्मक प्रचार-प्रसार से मिला था, जो उन्होंने केजरीवाल के खिलाफ वहीं करके सूद समेत वापस लौटा दिया ?

यानी बीजेपी नहीं समझी कि नकारात्मक प्रचार-प्रसार का लाभ पब्लिक सिंपैथी के रुप में विरोधी पार्टी को ही मिलता है, जैसा मोदी को मिला था!

रविवार, 8 फ़रवरी 2015

तथाकथित पत्रकारों ने लूट ली पार्टी, सदमें में केजरीवाल?

7 फरवरी, 2015 यानी आज की एक बात बिल्कुल पल्ले नहीं पड़ी कि दिल्ली विधानसभा का चुनाव आम आदमी पार्टी ही लड़ रही थी या कोई और?

क्योंकि एग्जिट पोल के नतीजों पर तथाकथित वरिष्ठ पत्रकारों का समूह केजरीवाल एंड पार्टी की तुलना में कुछ ज्यादा ही खुमारी में दिखी, जबकि टीवी स्क्रीन की विंडो से झांक रहा कोई भी AAP नेता नतीजों से उतना उछलता-कूदता नहीं दिखा जितना तथाकथित पत्रकार बिरादरी उछल रही थी...

यकीन न हो तो किसी भी नामी-गिरामी पत्रकार की फेसबुक-टि्वटर अकाउंट और टाइम लाइन पर मुंह मार आइये, सबूत वहीं बिखरे पड़े हैं!

क्या भाई, क्या चल रहा है सब? पत्रकारिता तो गिरवी नहीं रख दी आप लोगों ने, गिरेबां झांक लो अपने-अपने? या फिर राजनीति में प्रवेश का इंतजाम हो रहा है, लाइक-आशुतोष, लाइक आशीष खेतान ?

एक बात तो समझ में आती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पत्रकार बिरादरी को वो तवज्जों नहीं देते है, जैसा तवज्जों उन्हें पिछली सरकारों (कांग्रेस सरकार) में पाने की आदत मिली है? हो सकता है इससे पत्रकारों का एक तबका नाराज हो?

क्योंकि यह सार्वजनिक सच है कि दिल्ली में मोदी सरकार बनने के बाद तथाकथित नामी-गिरामी पत्रकारों की इज्जत पर बट्टा लगा है, वो इसलिए कि मोदी पत्रकारों को अधिक मुंह नहीं लगाते हैं और विदेशी दौरों पर भी उन्होंने पत्रकारों को मुफ्त की सैर पर रोक लगा दी है?

कहीं ये तो नहीं, कहीं वो तो नहीं और कहीं वैसा तो नहीं, अरे नहीं कही ऐसा तो नहीं, जिससे पत्रकार पत्रकारिता की साख पर रिवेंज का खेल तो नहीं खेल रहें हैं?

वरना बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना टाइप हमारे वरिष्ठतम पत्रकार क्यों झुम रहे होते? कुछ तो गड़बड़ है, वैसे- कब है १० फरवरी हैं, कब है १० फरवरी?

शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2015

दिल्ली देखो, केजरीवाल को किसका मिल रहा है साथ?


1-ममता बनर्जी, जिसके आधे से अधिक सांसद 24,000 करोड़ रुपये के सारदा चिटफंड घोटाले में गिरफ्तार हो चुके हैं!

2-सीपीएम नेता प्रकाश करात, जिनकी राजनीति बांटो और राज करो की है, पश्चिम बंगाल जिसके शासन काल में गर्त में चला गया, क्योंकि ये भी केजरीवाल की तरह धरना और हड़ताल प्रधान नेता हैं!

3-नीतीश कुमार - इन्हें तो अभी भूले नहीं होंगे, जो केजरीवाल की तरह मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बनने के सपने के लिए राज्य की जनादेश और भावनाओं को लात मार दिया था!

4- मुलायम यादव- उत्तर प्रदेश में पिछले ढाई वर्ष के शासन काल की हालत किसी से छिपी नहीं है, बलात्कार, हत्या और अराजकता अखिलेश सरकार में कैसे बढ़ा है, सभी जानते है और महिला सुरक्षा पर मुलायम की सोच तो आपको याद ही होगी,  "लड़कों से गलतियां हो जाती है?"

ये हैं केजरीवाल के समर्थक नेता? सोचिए, ऊपर के इन चारो नेताओं का साथ केजरीवाल को क्यों मिला?

भई, इनकी कुंडली कहीं न कहीं एक है, ये चारो नेता स्वार्थी, अराजक, धरनेबाज, घोटालेबाज है और प्रधानमंत्री बनने की चाहत रखने वाले ही नेता हैं? इनका विकास और देश की तरक्की से कुछ लेना देना नहीं है बस अपना विकास और तरक्की ही इनका प्रमुख एजेंडा है?

उदाहरण के लिए, नीतीश कुमार ने बिहार का मुख्यमंत्री पद छोड़कर मुलायम और लालू का दामन इसलिए पकड़ लिया, क्योंकि नीतीश प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं?

ममता बनर्जी लोक सभा चुनाव और बाद में मोदी विरोधी इसलिए बनी हुई हैं, क्योंकि उन्हें भी प्रधानमंत्री बनना है?

मुलायम यादव ने उत्तर प्रदेश को भले ही पुत्तर प्रदेश बना दिया है, लेकिन प्रधानमंत्री न बन पाने की कसक दिन रात उन्हें परेशान करती है और अभी तो उन्होंने महागठबंधन भी खड़ा किया है, महज प्रधानमंत्री बनने के लिए, जो प्रदेश नहीं संभाल सके वे देश संभालने का सपना देख रहें हैं?

एक लाइन में कहें तो केजरीवाल के समर्थक नेताओं में काफी समानताएं है, जो राजनीति में तकरीबन एक जैसी राय रखते हैं और ठीक भी है, भई दो स्वभाव के लोग एक साथ थोड़े ही बैठेंगे ?

अब दिल्ली की जनता आप खुद ही तय कीजिए कि केजरीवाल को वोट देकर दिल्ली को पश्चिम बंगाल बनाना है या बिहार बनाना है अथवा उत्तर प्रदेश ?

 #AAP #Kezriwal #DelhiPoll #BJP #KiranBedi #NitishKumar #MamtaBenerjee #MulayamYadav #SardaScam

बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

AIB रोस्ट के विरोधी खुलेआम कबीरा रस लेकर गाते है?

मुझे #AIB roast पर मचा घमासन निहायत ही बेतुका लगता है, कोई भी ग्रुप में एक बंद कमरे में बैठकर बिना किसी को एक्सप्लॉइट किये कैसे भी भाषा में बात व मजाक कर सकता है, खुलेआम सड़क पर तो ऐसा कुछ नहीं किया गया, प्रोग्राम का लाइव प्रसारण तो नहीं किया गया? 

"कबीरा " का नाम सुना है आपने, जो होलिका दहन के बाद गाया जाता हैं,  किसी को मालूम है क्या होता है कबीरा?

#कबीरा, ऐसा लोक गाना है जिसे होली त्योहार में होलिका दहन और बाद में नशे और भांग में धुत लोगों की टुकड़ी खुलेआम गली - गली के हर परिवार के मुंह पर ऐसी - ऐसी कच्ची-पक्की गालियां देते हैं कि शर्म से चेहरा लाल हो जाती है, लेकिन उसे सामाजिक मान्यता है,  तो AIB पर दोहरा मापदंड क्यों, संस्कृति बिगड़ने का रोना क्यों?

#AIB रोस्ट तो फिर भी ठीक है, जो बंद कमरे में की गई, जिसे लाइव भी नहीं दिखाया गया, फिर हाय तौबा क्यों?

#AIB रोस्ट शो के वीडियो यू ट्यूब पर डाले जाने का विरोध क्यों हो रहा है, जबकि 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे भी अवैध अकाउंट के जरिये पोर्न फिल्में दबाकर देख रहें हैं, उसका क्या?

#AIBRousterControversy #KaranJohar #ArjunKapoor #RanveerSingh
#Kabira 

क्या मोदी सरकार से आहत हैं न्यूज चैनल कारोबारी?

शिव ओम गुप्ता
अनायाश ही ऐसा भरोसा होता जा रहा है कि खासकर ब्रॉडकॉस्ट मीडिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के लगातार विस्तार से आहत ही नहीं, छटापटा सी रही है? 

मैं वजहों में नहीं जाते हैं , लेकिन टीवी मीडिया एक और राज्य में बीजेपी की सरकार बनता नहीं देखना चाहती है और केजरीवाल के पक्ष में एक एजेण्डा बनाने में मर-खप रही है, जो कतई मीडिया का काम नहीं है, और अगर है भी तो सबसे निचले दर्जे का काम है!

टीवी की घबड़ाहट और छटपटाहट की कई वजहें यहां गिनाई जा सकती हैं, जिनमें प्रमुख हैं मुद्दों की कमी और  24x7 का समाचार चैनल?

मीडिया धंधे (जगत) से जुड़े कई बड़े तबकों का मानना है कि अगर दिल्ली में भी मोदी नीत बीजेपी की सरकार बन गई तो समाचार चैनलों का सारा मसाला खत्म हो जायेगा अथवा समाचार चैनल्स बिना चीनी की फीकी चाय होकर रह जायेंगी?

शायद इसलिए ज्यादातर टीवी मीडिया सीधे-सीधे दिल्ली में बीजेपी को हारती हुई और केजरीवाल की पार्टी को जीतते हुए बतलाने को मजबूर हैं?

क्यों? सवाल अच्छा है, क्योंकि मोदी के सत्ता में आते ही जिस तरह से मीडियाकर्मियों की आवभगत में कमी आई है, वैसा पहले कभी किसी भी सरकार के कार्यकाल में नहीं हुआ?

दूसरे, मोदी के दिल्ली पधारने के बाद से ही मीडिया की विभिन्न मंत्रालयों की मलाई खाने और मसालेदार खबरें पाने के स्रोत भी सूखते गये है!

क्योंकि मोदी खुद ही नहीं, अपने सभी मंत्रालयों के मंत्रियों को भी मीडिया से एक निश्चित दूरी और पत्रकारों से निकटता कम रखने की सलाह दी है, जिससे टीवी मीडिया का पसंदीदा और प्रिय न्यूज बीट "मसाला न्यूज" बुलेटन से पूर्णतया विलुप्त हो चुका है!

मसालेदार खबरों का टीवी मीडिया में ऐसा नाता है कि जैसे जल बिन मछली,  लेकिन  मोदी के बाद चैनलों  में मसालेदार खबरों का ऐसा टोटा है कि टीवी पत्रकार ही नहीं, टीवी चैनलों के मालिक भी हैरान-"परेशान हैं कि करे तो क्या करें?

ऐसे में केजरीवाल को मोदी से ऊपर बताने और दर्शाने का खेल हो रहा है, और देखा जाये तो यह टीवी मीडिया की मजबूरी भी है!

भई, हर प्रदेश में मोदी नीत बीजेपी की सरकार सत्ता में आ गई तो धंधा तो चौपट हुआ समझो? भाई मसालेदार खबर कैसे मिलेंगे?

क्योंकि ज्यादातर टीवी न्यूज चैनलों का कारोबार ही मलाईदार और मसालेदार खबरों पर चलता है, क्योंकि भारतीय न्यूज चैनल विकास और सकारात्मक खबरों से नहीं चलती हैं, इन्हें हर पल मसालेदार ब्रेकिंग न्यूज चाहिए, जिसे सेन्सेनलाइज करके परोसा जा सके और ज्यादा से ज्यादा टीआरपी हासिल किया जा सके!

इन सब के बीच में पत्रकारिता और नौतिकता तेल लेने जाती है तो जाये तेल लेने, इनकी बला से!

छोटा सा उदाहरण-एबीपी न्यूज चैनल-नील्सन ने 26 जनवरी, 2015 के दिल्ली सर्वे में कुल 70 विधानसभा सीटों पर किए तथाकथित सर्वे के आधार पर बीजेपी को 37-40 सीटों पर जीतने का अनुमान किया और क्रमश: आप और कांग्रेस को दूसरी और तीसरी पार्टी घोषित किया!

लेकिन 2 फरवरी ,2015 को किये दूसरे सर्वे में एबीपी-निल्शन सर्वे में बीजेपी को दूसरे नंबर ढकेल दिया गया और आप पार्टी को पहले नंबर पर ठेल दिया,  एबीपी-निल्शन ने आप पार्टी को 39-42 सीट और बीजेपी को 29 सीटों पर सिमटने का शिगूफा छोड़ दिया!

लेकिन 2 फरवरी ,2015 को किये एबीपी-निल्शन सर्वे में से एक बात दर्शकों से बेहद ही चतुराई से छुपा ली गई,  वो यह कि 2 फरवरी के सर्वे में दिल्ली विधानसभा के केवल 35 सीटों पर सर्वे किये गये और 35 सीटों के आधार पर ही आप पार्टी को 39-42 सीटें दे दी गई और बीजेपी की सीटें घटाकर 29 कर दी गई?

समझिये, एबीपी-निल्शन और ऐसे ही उन तमाम न्यूज चैनलों के सर्वे की ही तरह, जो निजी हितों के लिए दिल्ली की जनता को गुमराह कर रहें हैं और संविधान के चौथे स्तंभ का जनाजा निकाल रहें हैं!

#TvMedia #AAP #Kezriwal #DelhiPoll #BJP #KiranBedi #Modi #MediaEthics 

मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015

फर्जीवाड़े से नाराज हुआ केजरीवाल का मजबूत वोटर वर्ग!

आम आदमी पार्टी के हवाला और मनी लांन्ड्रिंग कारनामे से केजरीवाल को उन वोटरों से हाथ धोना पड़ेगा, जिनके बलबूते केजरीवाल दिल्ली की कुर्सी पर बैठने का सपना देख रहे थे!

 2 करोड़ रुपये के फर्जी वाड़े का सर्वाधिक नुकसान केजरीवाल को हुआ है, क्योंकि फर्जी वाड़े वाली सारी कंपनियां उन्‍हीं के मजबूत वोटरों की झुग्गी-झोपड़ी में स्थित है,  जहां पर पिछले दो दिनों से रिपोरेटरों ने खाक छानी है?

इससे केजरीवाल के मजबूत वोट वर्ग काफी नाराज हुए है और केजरीवाल के खिलाफ हो गए हैं और कह रहें हैं कि केजरीवाल ने उनकी इज्जत उछाल दी है!

क्योंकि जिन पतों पर फर्जी कंपनियों के नाम दर्ज है, वहाँ रह रहे मकान मालिक रिपोरेटरों के सवालों से आहत हैं और बेहद अपमानित महसूस कर रहें हैं, क्योंकि मीडिया वाले उनसे 50 लाख रुपये का हिसाब पूछ रहें हैं? 

गुरुवार, 29 जनवरी 2015

देश के लिए विध्वंशकारी है केजरीवाल की राजनीति!

केजरीवाल ने भारतीय राजनीति में ऐसी गंध फैला दी है कि राजनीति में सुचिता और नौतिकता जो बची है वो भी चौपट हो जायेगी।

किसी भी देश के राजनीतिकों में वसूल और नैतिक मूल्‍य खत्म हो जाये तो उस देश का पतन भी शुरू हो जाता है, जैसा कि पड़ोसी मुल्क में हुआ है,  जहां की जनता राजनीतिकों और दहशतगर्दों के बीच हमेशा बंटी रहती है और देश बर्बाद हो जाता है?

कुछ ऐसी ही तरह की राजनीति केजरीवाल टाइप का मकौड़ा कर रहा है,  वह दिन दूर नहीं जब भारतीय राजनीति में भी सुचिता और नौतिकता खत्म हो जायेगी,  जिसके दोषी और जिम्मेदारी सिर्फ देश के वोटर्स होंगे।

हमारे देश में राजनीतिक कैसे भी हों,  लेकिन उनमें लोकतंत्र की जड़ें गहरी जमी है। भारतीय इतिहास की अब तक सभी छोटे-बड़े राजनीतिक दलों में सुचिता और नौतिकता हमेशा जिंदा रहती हैं, लेकिन केजरीवाल ने ऐसी अराजक, झूठ और आरोपों वाली राजनीति शुरू की है जो नौतिकता और वसूलों आधारित राजनीति को ध्वस्त कर रही है ।

भारतीय लोकतंत्र और भारतीय राजनेताओं (जिनमें AAP को छोड़कर सभी पार्टियां शामिल हैं) की एक खूबसूरती और पहचान रही है कि चुनाव में मिली हार को स्वीकारने में वे देर नहीं लगाते, भले ही किसी पार्टी की सरकार 10 वर्ष या 15 वर्ष सत्ता में क्यों न रही हो,  साफगोई से हार स्वीकार करते हैं और सत्ता छोड़कर चुनाव जीतने वाले दूसरे दल को सत्ता सौंप देते है!

लेकिन केजरीवाल की अराजक और नौतिकता विहीन राजनीति को देख सुनकर डर लगता है कि अगर राजनीति से नौतिकता और सुचिता खत्म हो गई तो भारत और पड़ोसी मुल्क की राजनीति में अंतर खत्म हो जायेगा?

अब देश की जनता को तय करना है कि वो कैसा देश और राजनीतिक चाहते है, क्योंकि केजरीवाल की राजनीति में नौतिकता, सुचिता और वसूल छोड़कर कर सब-कुछ है, चुनाव आपको करना है कि आपको कैसा देश चाहिए?

क्योंकि केजरीवाल की राजनीतिक गंदगी देश में ऐसा जहर फैला रही है, जिससे कोई भी राजनीतिक दल अछूता नहीं रह पायेगा!

सत्ता पाने के लिए,  वोट पाने के लिए और मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने के लिए केजरीवाल भारतीय राजनीति में ऐसे बीज रोप रहा है, जिसमें निराधार झूठ, आरोप और छल  हैं, जो देश को गर्क में ही ले जायेगा!

सोचिये,  अगर राजनीति में नौतिकता, सुचिता, वसूल और शर्म खत्म हो गई तो भारतीय राजनीति का कैसा विद्रूप चेहरा हो सकता है, जो भारत को पाकिस्तान भी तब्दील कर सकता है?

पाकिस्तानी राजनेताओं की हैसियत कैसी है, यह किसी से छिपा नहीं है, वहां की जनता पार्टियों को वोट तो जरुर देती है लेकिन देश की बागडोर कई लोगों के हाथ में बंटी रहती है?

तो कैसा देश चाहते है आप? अराजक पसंद और झूठ फैलाकर राजनीति करने वाले केजरीवाल की राजनीति नि:संदेह देश के लिए विध्वंशकारी है, निर्णय वोटर्स को करना है, क्योंकि देश के वोटर्स ही देश का मुस्तकबिल बनाते है, चाहे वो अच्छा हो या बुरा?

#केजरीवाल #AAP #KEZRIWAL #DelhiPoll

मंगलवार, 27 जनवरी 2015

कांग्रेसी क्यों भस्मासुर की तरह व्यवहार कर रहें हैं?

कांग्रेसी नेता उस भस्मासुर की तरह व्यवहार कर रहें हैं जो खुद को ही अंतत:भस्म कर लेता है। मोदी सरकार के विरोध वो जो कुछ भी करते हैं वो उनके खिलाफ जाते हैं।

कांग्रेस के एक से एक बुद्धजीवी नेता ऐसे फस्ट्रेशन वाले मुद्दों पर प्रतिक्रिया देते हैं जो फिजूल हैं, उनकी बातें सुनकर ऐसा लगता है कांग्रेसी नेताओं ने भस्मासुर वाला हाथ खुद के सिर पर रख लिया हो और पूरी तरह से भस्म होने को तैयार हैं ?

सच कहूं तो कांग्रेस मुक्त भारत के लिए कोई और कांग्रेसी नेता ही काफी जिम्मेदार हैं, इन्हें किसी और की जरूरत ही नहीं है!

मतलब, क्या बोलना चाहिए, किस पर बोलना चाहिए इसकी भी अक्ल नहीं है। राहुल गांधी (पप्पू) कह रहें हैं कि अमेेरिकी - भारत संबंध केवल मोदी की पर्सनल पीआर करते हैं, हद है पप्पूगिरी की,  तो भाई तू भी कर लेता?

उधर, प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अमेेरिकी राष्‍ट्रपति बराक ओबामा को बराक कहने पर लोग रो-गा रहें हैं। भई, दो राष्ट्र प्रमुखों का अपना कंफर्ट लेबल है तो वो कैसे भी बात करेंगे उन्हें तय करने दें!

बराक ओबामा के तीन दिवसीय दौरे में हजार अच्छी बातें और करार हुई, लेकिन ये उसकी बातें नहीं करेंगे, क्योंकि इसके लिए उन्हें प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करनी पड़ेगा, लेकिन ऐसा न करके कांग्रेसी नेता फिजूल की बातें कर रहे हैं, जो गैर जरूरी ही नहीं, वाहियात भी है!

#Congress #NAMO #Modi #Obama

आचार संहिता का लगातार उलंघन: केजरीवाल का कोई स्केप प्लॉन तो नहीं है?

केजरीवाल लगातार चुनावी आचार संहिता का उलंघन कर रहे हैं, "पैसा सबसे लो और वोट AAP को दो" के खिलाफ शिकायत होने के बावजूद केजरीवाल नहीं रुके और दूसरे दिन भी लोगों से यही बात दोहराई!

अभी दिल्ली बीजेपी की मुख्यमंत्री उम्मीदवार किरण बेदी को अवसरवादी* और खुद को ईमानदार* ठहराने वाले पोस्टर बतलाते हैं कि केजरीवाल आसन्न पराजय से भयभीत तो जरूर हो गया है और लगातार चुनाव आयोग की अवमानना कर रहा है!

कहीं केजरीवाल भागने की फिराक में तो नहीं है,  क्योंकि लगातार चुनाव आयोग चेतावनी दे रहा है और केजरीवाल लगातार मनमानी कर रहा है और आचार संहिता की धज्जियां उड़ा रहा है?

आज एक बार फिर चुनाव आयोग ने केजरीवाल को आचार संहिता उलंघन करने के लिए चेतावनी दी है? क्या यह केजरीवाल का स्केप (Escape plan) प्लॉन है, जिससे उसकी उम्मीदवारी रद्द हो सके और वह दूसरों पर आरोप लगाकर किनारे लग सके?

हालांकि अराजक केजरीवाल से ऐसी उम्मीद की जा सकती है, उदाहरण सबके सामने है! चाहे पीएम की कुर्सी के सीएम की कुर्सी छोड़कर बनारस भागना हो अथवा पिछले गणतंत्र दिवस पर धरने पर बैठना और खुद अराजक बताना हो?

आइए, देखते हैं आगे होता है क्या? इतना तो पक्का है केजरीवाल नहीं मानने वाला, क्योंकि अराजकता और भागना दोनों केजरीवाल के स्वभाव में है!

नि:संदेह केजरीवाल के लक्षण बता रहे हैं कि वो भागेगा और नहीं भागा तो अराजकता लगातार जारी रखेगा, परीक्षा यहाँ चुनाव आयोग की होगी कि वो कितने क्षमाशील और सहनशील होते हैं?

चूंकि केजरीवाल को दोनों में लाभ होगा! उसकी चिट भी सही और पट भी सही होगी, भई छोड़कर भागने के लिए कोई तो बहाना होना चाहिए,  हैं जी!

#केजरीवाल #दिल्लीचुनाव #पराजय #AAP #Kezriwal #DelhiPoll #BJP #EC

हाजमा खराब हो गया है तो पखाना चले जाएं प्लीज?

पिछले तीन दिनों बड़ी ही ऊहापोह में रहा, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ खासकर सोशल मीडिया में लिखी गयी टिप्‍पड़ी तलाशने में बड़ी ही माथा-पच्ची में बीता।

हालाँकि कुछ खास नहीं मिला, क्योंकि लोगों को कहने को कुछ मिला नहीं,  क्योंकि पीएम मोदी न केवल नागरिक एटमी डील साइन करवा ने सफल रहे बल्कि सब कुछ उम्मीद से बेहतर ही जा रही है।

लेकिन नकारात्मक प्रवृत्ति के लोग कहां मानने वाले? अजी पेट में मरोड़ में जो है! खबर है लोगों को पीएम मोदी की जोधपुरी जैकेट मे प्रिंटेट नाम और अमेरिकी राष्‍ट्रपति बराक ओबामा की चिउन्गम से राहत मिली है?

वामपंथी और चरमपंथियों विचारधारा टाइप के लोग इसमें अधिक सक्रिय हैं, जिन्हें पिछले तीन दिनों से कुछ लिखने-कहने को मनमुताबिक कोई मैटेरियल नहीं नसीब हुआ था?

मत पूछो, अब आलम यह है कि फेसबुक-टिवटर में पू-पो और फुस्स - फस्स की दुर्गंध इस कदर फैली हुई है कि हालत खराब है!

भाई लोगों हाजमा खराब हो गया है तो पखाना चले जाओ, सोशल मीडिया और हमें प्लीज बख्श दो!

#मोदी #मीडिया #फेसबुक #Modi #Media #Facebook #Fart

सोमवार, 26 जनवरी 2015

बेटे को 5 साल तो दे दो ताकि...

शादी जिंदगी का एक पड़ाव है और हर एक की जिंदगी का महत्व पूर्ण हिस्सा भी है, लेकिन इसमें की गई जल्दबाजी दो जिंदगी को अनाश्यक दुश्वारियों में ढकेल देती है,  जिसके फलस्वरूप मानसिक और शारीरिक बीमारियां जन्म लेते हैं,  जैसे-समय पूर्व बाल झड़ना,  बालों की सफेदी और चिड़चिड़ापन एवं तोंद निकलना प्रमुख हैं।

बात निकलेगी तो दूर तक जायेगी?

सच कहूं तो मैं चाहता भी यही हूँ, क्‍योंकि हमारा समाज युवकों की शादी को लेकर बेहद लालायित और दीवाने होते हैं।

गांव - जवार, नाते-रिश्ते और आस-पड़ोस के कुंवारे लड़के और लड़कियां इनकी आँखों को खटकते हैं, युवक की नौकरी लग चुकी हो तो जैसे इनकी छाती पर साँप लोटने लग जाते हैं कि फलाने उसकी शादी क्यों नहीं कर रहें?

कुछ नहीं तो ७५ रिश्ते खुद लेकर पहुँच जायेंगे(नेकी कर दरिया में डाल शैली में) और तब तक बेचैन रहते हैं जब तक शादी की चेन न बंधवा दें!

ये तो रही सामाजिक बात अब कुछ वास्तविक हो लेते हैं- माने, हम-आप बोझ उठाने से पहले खुद की बोझ उठा पाने की क्षमता का परीक्षण जरूर करते हैं, लेकिन शादी से पहले युवक की जिम्मेदारियों के उठा पाने की क्षमता के परीक्षण के लिए वक्त क्यों नहीं दे पाते?

भैय्या,  नौकरी सरकारी हो या निजी(प्राइवेट),  दोनों नौकरियों को करने,  सीखने और पारंगत होने में वक्त तो लगता है? सीधे कहूं तो नौकरी पा लेना और नौकरी करना आना में जमीं - आसमां का अंतर होता है?

युवक की नौकरी देखी, मोटी तनख्वाह देखी और ढूँढने-बताने लगे रिश्ते,  कहीं रिश्ता हाथ से निकल न जाये,  फिर चाहे शादी के बाद वो ही युवक मां-बाप के हाथ से ही क्यों न निकल जाए?

नौकरी लगते ही शादी होने से युवकों को दोहरी जिम्मेदारी का भार झेलना पड़ता है, प्राइवेट नौकरी है तो उसे नौकरी बचाये रखने के लिए नियोक्ता की जरुरी - गैर-जरुरी सभी शर्तों के साथ नौकरी करनी होगी।

जबकि सरकारी नौकरी वाले युवक को नौकरी के शुरू के २ साल तो डिपॉर्टमेंट के अपर-सब ऑर्डिनेट और लोअर-सब ऑर्डिनेट को समझने, झेलने और गुस्से से बचने में नौकरी करनी पड़ती है, जिसका गुस्सा वह अपनी पत्नी पर निकालेगा, क्योंकि वह पत्नी की जिम्मेदारियों को उठाने के लिए ही सारे शोषणों को झेल रहा है, ऐसे में युवक या तो पत्नी का पति रह सकेगा अथवा मां-बाप का बेटा?

युवक नि:संदेह पत्नी की सुनेगा तो 'जोरू का गुलाम'और मां-बाप की सुनेगा तो 'दूध पीता बच्चा' कहलाता है? इसीलिए वह मां-बाप के हाथ से निकल जाता है और दुनिया कहती है कि युवक नाकारा निकला?

वैसे, कई बिरले जोरू का गुलाम और दूध पीछा बच्चा टैग को सीरियसली ले लेते हैं और बीच (मध्यम मार्ग) का रिश्ता निकलने की कोशिश करते हैं तो मां-बाप और पत्नी दोनों ओर से हमला जिंदगी भर झेलने को अभिसप्त होते हैं,  जिससे वे जल्दी ही मानसिक रोगी भी बन जाते हैं!

चूंकि मां-बाप को शादी के बाद भी वही आज्ञाकारी बेटा चाहिए और शादी के बाद पत्नी को भी आदर्श पति चाहिए, लेकिन 'आज्ञाकारी' और 'आदर्श पति' के दोराहे से गुजरता युवक हमेशा यही सोचता है कि काश! कोई हाइवे होता,  जहाँ से निकल भागता पर वह नहीं निकल पाता,  क्यों? वो तो आपको भी पता ही है! ⛄🍼

एक क्षेत्रिय अखबार का अनुभव: जैसे आत्मा बिना शरीर!

पिछले कुछ एक दिन एक क्षेत्रिय अखबार के दफ्तर में गुजरा, अनुभव बेहद ही खराब रहा?

हालांकि ऐसी आशंका ही नहीं, भरोसा भी था कि कुछ ऐसा ही नजारा मिलेगा और हुआ भी ऐसा!

मैंने देखा, क्षेत्रिय अखबारों के दफ्तरों में पत्रकारिता और पत्रकारिए धर्म दोनों के मायने जुदा होते हैं, मतलब यह है कि क्षेत्रिय अखबार में काम करने वाले पत्रकार सरोकारी और नैतिक पत्रकारिता से उतने ही दूर रहते हैं जैसे ?

क्षेत्रिय अखबारों की प्राथमिकता और प्रसांगिकता भी समझ से परे होते हैं, बिल्कुल मैकेनिकल? क्योंकि उनका झुकाव जन सरोकार से हमेशा इतर होता है और उनके कलम और कॉलम प्राय: जरूरतंमंदों के लिए नहीं, बल्कि वैयक्तिक जरुरतों के लिए अधिक जगह घेरते हैं।

मैंने यह महसूस ही नहीं किया बल्कि व्यक्तिगत रूप से देखा भी है, और सोच रहा हूँ कि ऐसे क्षेत्रिय पत्रकार साथी कैसे सरोकारी पत्रकारिता करते होंगे जब वो स्थानांतरित होकर राजधानी में पहुंचते होंगे?

हालांकि पत्रकारिता भी अब कॉरपोरेट और कारोबारी हो चली है, लेकिन आत्मा अभी यहां जिंदा है और उन्मुखता भी उसी ओर दिखती है पर क्षेत्रिय पत्रकारिता और पत्रकारों में विचित्र बीज रोपे जाते हैं, जो अफसोस जनक है।

मैंने हमेशा क्षेत्रिय स्तर की पत्रकारिता से दूरी बनाये रखने की कोशिश की और भविष्य में चाहूंगा कि क्षेत्रिय पत्रकारों में पत्रकारिए धर्म को विकसित करने के लिए एक ऐसी संस्था बनाये जो नौकरी से पूर्व एक क्रैश कोर्स के जरिए पत्रकारिता के छात्रों में सरोकारी पत्रकारिता की गुण धर्म विकसित कर सके !

मोदीजी एक नियामक संस्था जरूरी है?

मैं चाहता हूं कि प्रधानमंत्री मोदी एक ऐसी निगरानी और नियामक संस्था विकसित करें जो रोजमर्रा की जरूरत की सामग्रियों की बिक्री दरों की निगरानी और नियमन का कार्य संभाले!

क्योंकि दुकानदार घटती लागत के बावजूद बढ़ाई कीमतों को वापस लेने से कतराते हैं जबकि जरुरी चीजों के मूल्‍यों में मामूली वृद्धि से भी कीमत बढ़ाने से गुरेज नहीं करते?

जरूरत है एक ऐसी स्वतंत्र नियामक संस्था की जो बाजार में बिक्री के लिए उपलब्ध सामग्रियों की कीमतों की मनमानी पर रोक लगाए और लागत के आधार पर उनकी बिक्री सुनिश्चित करे और चरणबद्ध तरीकों से उनके मुनाफे की सीमा का निर्धारण भी करे!

पिछले 7-8 माह में देश की खुदरा और थोक मूल्‍यों की महंगाई दरों में निरंतर गिरावट दर्ज हुई है बावजूद इसके दुकानदार पुराने बढ़ाये मूल्‍यों पर ही सामानों की बिक्री कर रहें हैं और घटती महंगाई दरों का लाभ अकेले दुगना-चौगुना करके डकार रहें है,  जिन्हें आज रोकने वाला कोई नहीं है?

मोदी सरकार को ऐसे सभी दुकानदारों पर नकेल कसने के लिए एक नियामक संस्था विकसित करनी चाहिए, जिससे दुकानदारों की मनमानी मुनाफाखोरी बंद हो और घटती महंगाई दरों का लाभ आम लोगों को भी हो?

जो समोसे 6 रुपये में दुकानदार बेचते थे उन्होंने महंगाई के नाम पर समोसे की कीमत बढ़ाकर 10 रुपये प्रति तो कर दिये, लेकिन महंगाई दरों में जारी गिरावट के बाद भी आज वे समोसे 10 रुपये में ही बेच रहे है,  इनकी मनमानी कौन रोकेगा ?

कौन इन्हें घटती लागतों के बीच चीजों की कीमतों में कमी लाने के लिए रेगुलेट करेगा,  क्योंकि अभी तक कोई ऐसी संस्था वजूद में ही नहीं है, जो इन्हें लागत के मुताबिक चीजों की कीमतों के घटाने-बढ़ाने और स्थिर  रखने की कोशिश कराती दिखती हो?

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फेमनिस्ट या लंबरदार : कोई आईना दे दो भाई!

वो जो अपने घरों में पत्नी को बगैर वेतन की नौकर और बेटी को बोझ मानते/समझते हैं, ऐसे लोग आजकल फेमनिस्ट के लंबरदार बने फिर रहे हैं? 

प्रधानमंत्री मोदी के पत्नी त्याग पर मुंह खोलने वाले ऐसे घड़ियालों को नहीं पता है कि दुनिया ऐसे दर्जनों हैं, जिन्होंने सामाजिक और धार्मिक हितों के लिए स्वैच्छिक   रुप से ऐसा रास्ता चुना, जिसको बाद में ने केवल मान्यता मिली बल्कि सिरोधार्य किया गया!

लेकिन क्षणिक चर्चा में आने के लिए अथवा महज विरोध के लिए विरोध करने वाले बुद्धिहीनों पर केवल तरस ही क्या जा सकता है, क्यों?

क्योंकि इनकी सुनते तो राजसी ठाठ-बाट और पत्नी यशोधरा को छोड़कर भागे तत्कालीन राजा सिद्धार्थ सूली पर चढ़ा दिये जाते,  भगवान बुद्ध बनना तो दूर की बात थी!

क्योंकि सिद्धार्थ तो गृहस्थ आश्रम में भी प्रवेश कर चुके थे और तो और पत्नी के साथ - साथ उनपर एक बच्चे की जिम्मेदारी भी थी?

मैं यहाँ तुलना नहीं कर रहा हूँ, बस कुछ लोगों को आईना दिखाने की कोशिश कर रहा हूं, शायद किसी को अपनी सही शक्ल दिख जाये!

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http://www.palpalindia.com/2015/01/18/awesome-Gautama-Buddha-Enjoyment-yoga-meditation-news-in-hindi-india-83553.html